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गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी )
#4
काव्या इस बात पे ज़रा शर्मा गयी और थोड़ा सा हस दी. स्वाभाविक हैं स्त्री को अपने सौदर्य की स्तुति पसंद होती हैं और वो इसका जवाब शरमाके देती हैं. काव्य भी शरमाके सुलेमान से बात टालते हुए बोली ..."हे हे...आप भी ना सब बस, कुछ भी" . हालाकि उसको ये बात पसंद आई थी.

उसकी हसी को देख के सत्तू ने कहा..."हा सुलेमान भाई..वो अपनी अमीशा पटेल की माफिक..."
अमीशा पटेल का नाम सुनते ही काव्या शर्म से और लाल हो गयी. उस ऑटो मे अमीशा का फोटो लगा था वो भी सिर्फ़ बिकिनी वाला. सुलेमान ने अपना हाथ उस फोटो पे फेरते कहा “ हम्म..बात तो ठीक कही सत्तू तूने..बीबीजी है बिलकुल इस हेरोइनी माफिक..कितनी खुबसूरत हैं”

“बिबिजी हम गलत नाही कहत..आप सच में उस जैसी हो..बल्कि मैं तो कहू उससे भी आगे”
काव्या शर्म से लाल हो रही थी. और वो एक मुस्कराहट से बोली..”अब बस हां..इतनी तारीफ..कहा वो अदाकारा और कहा मैं जिसको एक्टिंग भी नहीं आती.. आप दोनों भी न”
काव्या की चेहरे पे हसी देख सुलेमान को अब ये विश्वास होने लगा क मछली जाल में फस तो गयी हैं. बस उसको डिब्बे में उतारना हैं. और वैसे भी सुलेमान अपनी बातो में कही औरतो को फसाता था. औरतो की जूठ मूठ तारीफ़ भी कोई उससे सीखे. और अब तो सामने तारीफ़ की जैसी योवन सुंदरी हो तब ये कहा चुप रहनेवाला था.

“अरे...क्या बात करे हो बीबीजी...मैं आपकी खूबसूरती की तारीफ हमरी बेगम के सामने कर रहा हु..फिर भी नहीं हिचकिच कर रहा ..और आप हैं के हमको जूठा मान रहे..”
इसपे काव्या बोली, “अरे ..वैसा नहीं...इ आई मीन चलो आप ही बताओ मैं ऐसी कैसे हो सकती हु?”
ऐसा सुनेहरा मौका सुलेमान कैसा जाने देता? उसने झट से दबे स्वर में काव्या के आँखों में आँखे डालके बोल दिया,

“अरे बीबीजी गलत मत समझिएगा...आपको बताऊ, हमरी बेगम को भी ये पसंद हैं. पर पसंद होने से तनिक कोई होता हैं..इसको ऐसे कपडे पहना दिए तो बावली को कैसे लगेंगे...मगर.....आप को अगर ऐसे कपडे पहना दिए न तो ये सत्तू इसकी फोटो निकाल के आपकी फोटो लगा न दू तो बोलना. आप इससे कही अच्छी लगोगी.”

अमीषा पटेल की पोस्टर पे हाथ फिरते सुलेमान जो बात की उससे काव्या को ४४० वाल्ट ज़टका लगा. पर अपनी इतनी तारीफ़ सुनके वो गर्व महसूस कर बैठी और अपने मुस्कराहट से बयां करती रही. काव्या की हर कातिल हसी पे सुलेमान अपनी ज़िज़क बाजू के सलमा पे निकालता था और वो भी शायद अब उसके हमले के मज़े ले रही थी.
सत्तू ने अचानक एक सुनसान मोड़ पे ऑटो रोक दिया. वहा एक मोड़ था और कच्ची सड़क और बहुत सारी झाडीया. वो शायद किसी के खेतो का रास्ता था.
आधे घंटे से चल रहा ऑटो अचानक से एक मोड़ पे रुक गया. सड़क सुनसान थी और कच्ची. काव्या को लगा कही गाँव तो नहीं आ गया. उसने अपने मोबाइल में देखा तो अभी तक उसपर कोई सिग्नल नहीं बता रहा था. वो कुछ बोले उसके पहले ही सुलेमान बोल पड़ा,

”अरे सत्तू आधे रास्ते में ही कहा ऑटो खड़ा कर दिया रे. बहुत कामचोर हो गया हैं रे तू ”

“अबे सुलेमान. तू बीबीजी से बाते कर बैठत तबसे, तुझे क्या मालूम? काम क्या होता हैं? बात कर रहा”
सत्तु तभी ऑटो से उतरा. उसने एक जोर की अंगडाई ली. उसको देख ऐसा लग रहा था के कितने दिनों से वो लगातार ऑटो ही चला रहा हैं. कामचोर सत्तू को काम करना जी पे आता था. वो तो बस जुवे के खर्चे के लिए और मंगलादेवी की चापलूसी के लिए ऐसे काम करता था. अपने गंदे दस्ताने से खुदका मूह साफ़ करके काव्या के तरफ़ होके वो बोला..

"अरे बीबीजी..आप इस सुलेमान भाई के बातो में मत आओ..बड़े मेहनती हैं हम, काम के बिच में किसीको नहीं आने देते पर का हैं के हमरि भी एक मजबूरी हैं..बस 5 मीनट ज़रा रुकियेगा, बहुत ज़ोर से हमको लगी हैं..तनिक जरा धार मार लेते हैं.."

काव्या के सीने की तरफ़ दिखते हुए भरे भरे गोर क्लेवेज पे नजर गडाते हुए उसने अपना एक हाथ अपने पजामे के उपर रखा और वही अपने लंड को बड़ी बेशर्मी से ऊपर से मसलते हुए गंदी तरीके से हसते हुए बोल पड़ा,

"बस थोड़ा टाइम लगेगा बीबीजी ..बहुत देर से रोक के रखी थी..मादरचोद मान नही रहा."
काव्या उसकी गंदी गाली और धार की बात सुनके शर्म से पानी हो गयी. वहा सुलेमान कहाँ चुप रहने वाला था उसने झट से मौके का फायदा उठाते हुए कहा,

"अरी ओ मादरजाद..जल्दी करो ओये..वरना शाम लगवा दोगे गये टाइम की तरह.." और हमेशा की तरह अपनी गन्दी मुस्कान दिखादी.

भरी दोपहर में उस कच्ची सड़क पे सत्तू मुश्किल से बस ४ कदम चला होगा ऑटो से और फिर उसने अपनी पजामे की ज़िप खोल के अपने काले बदबूदार ७ इंच के लंड को आज़ाद कर दिया. कमीना जान बुझके ऐसा खड़ा था जहा से ऑटो मे से उसका लंड एकदम साफ नज़र आए.
काव्या की नज़र जैसे ही सत्तू के आज़ाद काले लंड पे गिरी वो तो सन्न रह गयी. जब उसने सत्तू का लंड देखा. उसने शर्म और रोमांच के मारे नज़रे नीचे कर दी. इतना मूसल लंड उसने जीवन में पहली बार देखा था. सत्तू का मादरजाद खड़ा लंड देख काव्या ने अपनी आँखे थोड़े देर के लिए मूँद ली.

“स्रर्र्र्र्र्र्र्रररर्र्र्रर्र्र्रर्र्र......” आवाज़ ने माहोल की शांति भंग कर दी.

शायद बदबूदार पेशाब की धार मादरज़ाद सत्तू छ्चोड़े जा रहा था. भरी धुप में भी सुनसान गली में उसकी आवाज़ मानो सब के कानो में गूंज रही थी.

“अरीय हो मेरी..लैला तेरा चूमा लय लू,,,एक चूमा लयलू...”

सत्तू पेशाब करते समय गाना गाने की आदत रखता था. वहा भी वो जोर जोर से देहाती गाने गा रहा था. गानो में वो इतना मश्गुल हो जाता था के आँखे बंद करके अपने बेसुरे आवाज में और उचे टेम्पो में गाना गाने की कोशिश करता था. ठीक वैसा ही गाना उसने शुरू किया. और गाने की धुन के साथ अपना लंड भी हवा में चलाना शुरू कर दीया. जिससे उसके धार कभी दाए तो कभी बाए उड़ जाती. मानो कोई पौधों को पानी डाल रहा हो वो भी नाचते गाते.

सच मे काम वासना की आग भी अजीब होती हैं. काव्या भी कहा उसको रोक पा रही थी. उसकी नज़रे ना चाहते हुए भी सत्तू के लंड पे फिर से चली गयी. शायद इसकी वजह उसका पढाकू दिमाग़ और उसका लाचार पति था. उसका पति महीनो मे कभी कबार उसके साथ सेक्स करता था वो भी उसके ५ इंच के लिंग से. उसको आज भी पता था कैसे उसके शादी के पहले दिन सुहागरात में रमण के साथ उसने रात बितायी थी. उसकी उम्मीदों पे रमण उतना खरा तो नहीं उतरा पर काव्या ने उस रात जीवन में पहली बार पुरुष का खड़ा लिंग पास से देखा था. तबसे उसने रमण को ही अपने काम जीवन की कड़ी मान ली थी. उसके लिए वही सबसे आकर्षक चीज थी. लेकिन रमण का लंड सत्तू के सामने मानो ऐसा था जैसे कद्दू के मुकाबले ककड़ी रख दी जाये. यहा देहाती मुसल लंड जैसे कोई साप सा दिख रहा था, जो किसी बिल में जाने के खुरत में बैठा हो. भले ही काव्या के विचार उसको शर्म में बांध दे रहे थे लेकिन काव्या की जवानी जो के उफान पे थी वो जालिम जवानी भला इस कामुक दृश्य को देखने की लालसा कैसे जाने देती?

उसकी नज़रे बाजू में बैठे सुलेमान ने ताड़ ली. उसको पक्का लगने लगा काव्या की निगाहे क्या बया कर रही हैं. तभी सुलेमान ज़ोर से बोला..

"अरी ओ सत्तू, आराम से करो... कही बाढ़ ना आ जाए गर्मी मे भी इस जंगल मे".

क्या जाने इस बात से काव्या अचानक हस पड़ी. उस्की मीठी मुस्कान देख के सुलेमान ने झट से बोल दिया...

"आई हाई...देखो मिया..बीबीजी को भी बाढ़ पसंद नही हैं..कैसे खिलके हस पड़ी देखो..".

सुलेमान ने तभी धीरे से काव्या के करीब आके उसके दूध पे नज़र गिडाते हुए हलके से कान मे कहा...
"मैं भी ज़रा धार मार ले आता हूँ बीबीजी..हौला मान ही नहीं रहा. कब से खुला होने का मन कर रहा हैं."

वो इस कदर पुछ रहा था जैसे काव्या से कोई इजाजत माँग रहा हो. और सलमा की तरफ़ देख के बोला..
"मेरी बेगम ज़रा काम करके आता हूँ, तुम भी धार मार लो...वरना रात को फिर से झगडा करोगी.."

और उसने कसके सलमा का बाया दूध दबा डाला. इस बार काव्या ने ये सब देख लिया था. अभी तक काव्या के सामने ज़बरदस्ती वो दोहरे शब्दो का इस्तेमाल करे जा रहा था और हर शब्दो से काव्या सहर उठ रही थी. अब तो उसने सलमा को काव्या की नज़रो के सामने ही दबा डाला. ये देख काव्या तो शर्म से पानी पानी हो गयी और उसने नज़रे बाजू कर दी. और वो करती ही क्या हमेशा की तरह मिया बीवी का रिश्ता बोलके वो अपने आप को समझा रही थी. बाजु में भी तो कुछ अलग नहीं था सत्तू तो अपन ही धुन में हवा में अपना लंड फिराने में मगन था, ये दोनों दृश्य देख काव्या को हसी भी आ रही थी और और शर्म भी पर धीरे धीरे अब उसके मन मे भी कही न कही काम वासना की चिंगारी जल रही थी.
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RE: गाँव की डॉक्टर साहिबा ( पुरी कहनी ) - by THANOS RAJA - 25-08-2020, 01:19 PM



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