25-08-2020, 01:17 PM
काव्या को उसका मदत करने का तरीका देख अच्छा लगा. काव्या के बारे में बताये तो वो भले ही योवन सुंदरी राजसी महिला थी पर वो दिमाग से ज्यादा शातिर नहीं थी. उसको इंसान पहचानने में उतनी महारत नहीं थी. इसलिए जब कोई भीड़ में उसकी गद्देदार पृष्ठभाग को मसलता तो उसको लगता शायद उसीकी गलती होगी या भीड़ की वजह. इसका कारन था क्योंकि वो जिस परिवार से थी वहां सब शरीफ लहजे के ही लोग थे. कभी तो वो अपने मरीजो का इलाज भी बिना कोई फीस लेते कर देती. अपने पेशे से ज्यादा प्यार करने वाली काव्या हर इंसान की आदतों को एक बीमारी का रूप दे कर उसको निहारती थी ना के शक के नज़रो से.
ऐसी मन से नादान और तन से सुन्दर महिला इन शातिर लोगो के साथ ऑटो में बैठ गयी थी. ना जाने उसके जीवन में अब कौनसा बदलाव आनेवाला था. शायद शहर की डोक्टोरिन साहिबा को ये बदलाव नये रोमांचिक अनुभवों का उपहार देने वाले थे जो उसको हमेशा याद में रहेंगे.
सत्तू ने ऑटो स्टार्ट कर दिया....और ऑटो चालू हो गया. उसने सामने के मिरर मे देखा..और मुस्कुराया सुलेमान की इस हरकत पे.
“तो चले बीबीजी बरवाड़ी? देखिये गा बहुत मजा आएगा आपको कोई शिकायत का मौका नहीं देंगे.”
और ऑटो गाँव के तरफ रवाना हो गया. गाँव की कच्ची सड़को पे हिलता डुलता ऑटो, अनजान लोग और पुराणी गाँव की यादे सब मिल जुल के काव्या को बचपन के वो पल याद दिला रहे थे जहा वो खेली थी पर साथ ही अब जवानी का ये मोड़ उसको बहुत नयी यादे अब दिलाने वाला था और नए नए खेल का खिलाडी बनाने वाला था .
ऑटो मे काव्या और सलमा के बीच सुलेमान बैठा था. एक ३३ साल का अधेड़ काला आदमी जिसने लूँगी पहनि थी और एक जालीदार बनियान. मूह मे तंबाकू की गंध और बदन मे पसीने की बदबू. उसको मानो ऐसा लग रहा था के किसी परी के साथ सैर पे निकला हो. उसने ऐसी हुस्न की देवी को पहली बार जीवन में इतने करीब से देखा था. जब वो शहर जाता तब वो अक्सर एक कोठे पे जाता, वहा पर कुछ महंगी रंडिया भी होती थी. जो अमीर कस्टमर के साथ जाती थी. उनको देख आहे भर अपनी कडकी जेब का गुस्सा वो सस्ती रंडियों पे निकालता. सत्तु का हाल भी कहा अलग था. आज उसके ऑटो की सही मायने में इज्जत बढ गयी थी. जाने क्यों उसको आज खुदपर और चम्पकलाल पर बहुत फक्र महसूस हो रहा था. सच में वो समा ही कुछ अलग बन गया. औटो में काव्या की खुश्बू और सुलेमान की बदबू दोनो भी अपना अपना गजब ढा रहे थे.
तभी सुलेमान के शैतानी दिमाग़ मे कुछ आया उसने जान बुज़के अपना मूह सलमा की तरफ़ फेर दिया. सलमा जो के एक सलवार कमीज़ मे बैठी थी. सावले रंग की एक कसी हुई 1९ साल की देहाती जवान लड़की जिसको ये दो कलूटे अपने हवस के लिए इस्तेमाल किए जा रहे थे वो अभी अभी हुयी चुदाई से चुप हो बैठी थी. उसके भोली शकल को देख सुलेमान को आज बड़ा अच्छा लगा. उसके गले पर का निशान ने सुलेमान को अभी हुयी चुदाई की याद दिलादी. उसके दातो के लव बाइट्स उसको निशानि के उपहार में सलमा को मिले थे. सच में हवस से भरी चुम्बन को अंग्रेजी ने आज एक बड़ा स्थान दे दिया हैं ‘लव बाइट्स’.
सुलेमान ने ख़ुशी के मारे उसको कस के अपने पास खीचा और ज़ोर से उसके दाए गाल पे एक जोर की पप्पी ले ली और साथ ही उसके पेट पे चिकोटी काट ली.
“आआ..आम्मी ....ओऊ”….अचानक से हुए हमले से सलमा चीलाई....सो काव्या का ध्यान उसके पास चला गया और सामने से सत्तू ने भी पीछे कान दिए.
“अरे..मेरी मौधी..मेरी बेगम...मेरी लाडो..अब तक नाराज़ हो क्या...अपने मिया से ज़्यादा नाराज़ नही रहते..तू तो मेरी बीवी हैं ना...” सुलेमान ने जान बुज़के काव्या के सामने सलमा को अपनी बीवी कहा था. बल्कि सलमा उसके सगे बुड्ढे चाचा की औलाद थी. सलमा खुद हक्की बक्की रह गयी, जाने सुलेमान के दिमाग चल रहा था उसको ही पता.
उसने देखा काव्या चौक गयी हैं बस सुलेमान ने उसकी तरफ़ बिना कोई वक़्त जाया करे तुरंत मूह किया..और कहा..
“देखी ये न बीबीजी...ये हमारी बेगम हमसे नाराज़ हो गइ हैं..कुछ बोलिए ना आप पढ़ी लिखी लग रही हो”
काव्या थोड़ी हैरत से बोली...”व्हाट..आई मीन , म..मैं क्या बोलू? ये आपके आपस का मामला हैं..और ना ही मैं आपको जानती भी हूँ”
इसपे सुलेमान बोला ”अरे बीबीजी..खाक आपस का मामला हैं..अब हम बरवाडी के ही हैं ना और आप भी तो वह ही जा रही हो..तो हुए ना हम एक ही मामले मे..”
काव्या बोली ,”नो नो,.आई मीन.. हाँ मैं पढ़ीलिखी हूँ. अक्चुअली मैं एक डॉक्टर हूँ और गाओं में कुछ दिन रहने के लिए आई हु और कुछ दिनों के बाद वापस जाऊंगी..”
सत्तू झट से सामने से बोला..”.ऊऊओ...तो आप डॉक्टोरिया हैं बीबीजी...”
सुलेमान : अरे बीबीजी ..हमारे गाओं मे एक डॉक्टोरिया आने वाली थी ..कब से इंतज़ार था हमको..चलो फिर वो आप ही हैं. अब समझा”
काव्या इन बातो से अनजान थी. उसने इस गलत फैमि को दूर करने के लिए कहा “ अरे नहीं..वो मैं नहीं हूँ..वो कोई और होगा. मैं यहाँ अपने नाना के यहाँ रहने आई हूँ..किशोरीलाल अग्रवाल”
सत्तू जो सब गाँव की खबर रखता था उसने झट से पुछा “अच्छा मतलब आप ठाकुर किशोरीलाल की पोती हैं?...बड़े ही नेक आदमी थे चल बसे
इसपे काव्या बोली “हाँ..वो तो हैं ..बस नानी से मिलने आई हूँ.बहुत दिनों के बाद पुराना मकान देखने को भी मिलेंगा”
“अच्छा मतलब वो बड़ा बंगला वही जाना हैं न आपको बीबीजी...हम छोड़ देंगे आपको वहा तक. हमारा घर भी उसके थोडा आगे ही हैं नदी किनारे” ” मंगला देवी के घर का काम करते समय उसके लिए कुछ काम वो किशोरीलाल के घर भी रहते थे. जैसे कोई सामान राशन या व्यापार का लेन देन. सो मंगलादेवी उसको ही वहा भेजती थी इसी कारन उसको काव्या को जानने में कोइ देरी नहीं हुयी.
सुलेमान जो अब तक सत्तू की बाते सुन रहा था उसने बात काटते कहा “ अरे सत्तू तू भी क्या बिबिजो को परेशां कर रहा हैं..हमरे गाँव की मेहमान हैं और अपने ही गाँव की हैं...तू कुछ मत बोल..बीबीजी पर सुना हैं वहा इतने बड़े बंगले में सिर्फ दो तिन ही जन रह्ते हैं..अगर आप को कोई मदत लगे तो हमको ज़रूर याद कर लीजिये गा बीबी जी..”
सुलेमान की इस मदत करने की बार बार होते बात की काव्या पे दिमाग पे एक जवाब बना रहा था, उसको ये बात अच्छी लगी के गाँव के लोग बहुत खुले मन के हैं. पर उसको सुलेमान की इसके पिच्छे का मकसद नहीं पता था.
अपनी और एक गन्दी मुस्कुराहट दे कर सुलेमान सलमा की तरफ़ और एक बार मूह करके देखता हैं और उसको फिर से एक जम के चुम्मा जड़ देता हैं. लेकिन इस बार हमला कसे हुए देहाती होठों पे था.
“आईइ वाअ..देख सलमा, मेरी बेगम देख...हमारे गाओं मे अब डॉक्टोरीं साहिबा आ गइ हैं. अब हम सब का इलाज हो जाएगा..
सुलेमान इश्स कदर सलमा को चुम्मे दे रहा था वो देखकर काव्या शर्म पानी हो कर से नज़रे झुका के हा मे हा भर रही थी. वो करती भी क्या मिया बीवी समझ के वो उनको शर्माते इगनोर कर रही थी. और खुद शर्म से पानी पानी होती थी.
ये सब शीशे आगे से देख रहे सत्तू को सुलेमान पे इतनी जलन हो रही थी के उसको लगा ऑटो से उतर जाये और खुद उसकी जगह लेले.
सुलेमान ने कहा...”अरी डॉक्टर साहिबा..आपका स्वागत हैं फिर से हमारे गाओं मे..हम कब से किसी डॉक्टर साहिबा का इंतेज़ार कर रहे थे..आज आपके दर्शन हो गये..ऐसा लगा रा के मानो पुण्य का काम किया हो...” उसकी नज़रे काव्या के गले से दिखती हुई स्लीव्लेस ब्लाउस के दूध के चीरो की तरफ मानो डेरा डाल के बैठी थी.
ऑटो जैसे ही ख़राब सड़क पे आ जाता वो ज़रा हिलता उसके साथ काव्या के दूध उछल जाते और सुलेमान के लंड मे कोहराम मच जाता जिसका बराबर का हिसाब वो पड़ोस के सलमा पे निकालता था. सुलेमान का बाया हाथ सलमा के कंधो पे था और मूह काव्या के तरफ़. उसकी नज़रे भूके भेड़िए की तरह काव्या के उभरे और तने हुए गोर सीने पे जमी हुई थी. उसकी हिरनी जैसी गर्दन और नीचे उछलते भरे हुए ३४ के स्तन मानो किसी प्यासे की प्यास बुझाने की दो टंकिया हो. ये सब देखते उसके मूह मे पानी आ गया था काव्या थी ही इतनी सुंदर और उसके दूध तो बहुत सुडोल थे. उसको ऐसा लगा के वही काव्या का ब्लाउस खोलके उसके दूध को मसल मसल कर पी जाये.
अपनी आँखों से वो काव्य के दूध को नंगा कर रहा था और इसी कामुक इरादे मे अपनी सारी वासना की भड़ास वो बाजू सलमा पे निकाल रहा था.बीच बीच मे वो सलमा को छेड़ता था. काव्या के दूध को आँखो से नंगा करके उसको दबोचने की चाहत मे डूबे हुए सुलेमान ने अचानक से एक दम कसके सलमा का बया दूध मसल दिया.
"अया.........आअह्ह...." अचानक के हुए इस दबाव से सलमा चहक उठी.
उसकी चहक की अवाज में दर्द तो था पर वो मादक स्वरुप का था. काव्या को ऐसी आवाजे सुनके समझने में देरी ना लगी के सुलेमान और सलमा जरा ज्यादा ही ओपन दम्पती हैं. जिस तरह से सुलेमान सलमा को छेड़ रहा था काव्या शर्म के साथ अब थोडा रोमांचित भी हो रही थी.
तभी फिरसे सुलेमान अपनी नज़रे काव्या के दूध पे रखके कसमसाते हुए बोलता हैं,
"आह..स्स्स्स..,डॉक्टोरीं साहिबा,,,वैसे आप आई अब तो सब ठीक हो ही जाएगा..तनिक आपसे एक बात कहु..?"
काव्या थोड़े धीरे से बोली,,"हा बोलिए ना.क्या हैं?"
उसने इतने कोमल आवाज से सुलेमान से ये बोला था के उसके होश ही उड गए. उसको अभीतक किसीने इतनी इज्जत से बात नहीं की थी. यहाँ तक उसकी बीविया भी उसको गुस्से में गाली गलोच से ही बात करती थी. काव्या उसके खुलेपन से और सलमा के प्रति दिखाए गए प्रेम से उसको थोडा धीरे और शरमाते हुए नज़रे बचाते बात कर रही थी. और वो इसका पूरा इस्तेमाल अपनी नज़रे उसके बदन के कोने कोने पे चलाके ले रहा था.
सूलेमान काव्या के गोरी चिकनी बघलो से गर्मी के वजह से आती हुई पसीने की गंध को सूंघते हुए बोला..”...वैसे आप डॉक्टोरीन लग ही नही रहे हो..”
उसके लिए वो गंध किसी खुशबू से कम नहीं थी. उसमे काव्या की खूबसूरती और परफ्यूम की भीनी गंध भी आ रही थी. हद से ज्यादा साफ़ रहने वाली काव्या अपने अंग अंग का ख्याल रखती थी. रमण के साथ जब भी वो क्लब में जाती या किसी पार्टी में जाती तो सब उसके खूबसूरती के चर्चे करते थे. कुछ ठरकी मरीज़ तो बस उसको देखने के लिए ही उसके क्लिनिक के चक्कर काटते रहते. नियमित योग, वॉक, और हेल्दी फ़ूड खाके उसकी बॉडी फिट थी. उसके बदन पे बाल आते ही नहीं थे फिर भी वो महीने में कभी वैक्स और कही और नुस्के इस्तेमाल करती थी. जिसके कारन उसकी त्वचा बहुत मूलायम और तेजदर हो गयी थी.
काव्या ने पहली बार सुलेमान की आखो में देखा और चौक हो के बोली...”ओह?? ऐसा क्यों?”
पढ़िलिखी काव्या को लगा शायद वो उसको अनपढ़ तो नहीं समज रहा लेकिन उसको ये नही पता था के ये बोलने के पिछे उसका शातिर दिमाग़ हैं. सुलेमान भी झट से बोला..”मतलब आप तो किसी हेरोइन की माफिक लगती हो” और ज़ूत मूठ के शर्माके अपने गंदे दात दिखाते रहा.
ऐसी मन से नादान और तन से सुन्दर महिला इन शातिर लोगो के साथ ऑटो में बैठ गयी थी. ना जाने उसके जीवन में अब कौनसा बदलाव आनेवाला था. शायद शहर की डोक्टोरिन साहिबा को ये बदलाव नये रोमांचिक अनुभवों का उपहार देने वाले थे जो उसको हमेशा याद में रहेंगे.
सत्तू ने ऑटो स्टार्ट कर दिया....और ऑटो चालू हो गया. उसने सामने के मिरर मे देखा..और मुस्कुराया सुलेमान की इस हरकत पे.
“तो चले बीबीजी बरवाड़ी? देखिये गा बहुत मजा आएगा आपको कोई शिकायत का मौका नहीं देंगे.”
और ऑटो गाँव के तरफ रवाना हो गया. गाँव की कच्ची सड़को पे हिलता डुलता ऑटो, अनजान लोग और पुराणी गाँव की यादे सब मिल जुल के काव्या को बचपन के वो पल याद दिला रहे थे जहा वो खेली थी पर साथ ही अब जवानी का ये मोड़ उसको बहुत नयी यादे अब दिलाने वाला था और नए नए खेल का खिलाडी बनाने वाला था .
ऑटो मे काव्या और सलमा के बीच सुलेमान बैठा था. एक ३३ साल का अधेड़ काला आदमी जिसने लूँगी पहनि थी और एक जालीदार बनियान. मूह मे तंबाकू की गंध और बदन मे पसीने की बदबू. उसको मानो ऐसा लग रहा था के किसी परी के साथ सैर पे निकला हो. उसने ऐसी हुस्न की देवी को पहली बार जीवन में इतने करीब से देखा था. जब वो शहर जाता तब वो अक्सर एक कोठे पे जाता, वहा पर कुछ महंगी रंडिया भी होती थी. जो अमीर कस्टमर के साथ जाती थी. उनको देख आहे भर अपनी कडकी जेब का गुस्सा वो सस्ती रंडियों पे निकालता. सत्तु का हाल भी कहा अलग था. आज उसके ऑटो की सही मायने में इज्जत बढ गयी थी. जाने क्यों उसको आज खुदपर और चम्पकलाल पर बहुत फक्र महसूस हो रहा था. सच में वो समा ही कुछ अलग बन गया. औटो में काव्या की खुश्बू और सुलेमान की बदबू दोनो भी अपना अपना गजब ढा रहे थे.
तभी सुलेमान के शैतानी दिमाग़ मे कुछ आया उसने जान बुज़के अपना मूह सलमा की तरफ़ फेर दिया. सलमा जो के एक सलवार कमीज़ मे बैठी थी. सावले रंग की एक कसी हुई 1९ साल की देहाती जवान लड़की जिसको ये दो कलूटे अपने हवस के लिए इस्तेमाल किए जा रहे थे वो अभी अभी हुयी चुदाई से चुप हो बैठी थी. उसके भोली शकल को देख सुलेमान को आज बड़ा अच्छा लगा. उसके गले पर का निशान ने सुलेमान को अभी हुयी चुदाई की याद दिलादी. उसके दातो के लव बाइट्स उसको निशानि के उपहार में सलमा को मिले थे. सच में हवस से भरी चुम्बन को अंग्रेजी ने आज एक बड़ा स्थान दे दिया हैं ‘लव बाइट्स’.
सुलेमान ने ख़ुशी के मारे उसको कस के अपने पास खीचा और ज़ोर से उसके दाए गाल पे एक जोर की पप्पी ले ली और साथ ही उसके पेट पे चिकोटी काट ली.
“आआ..आम्मी ....ओऊ”….अचानक से हुए हमले से सलमा चीलाई....सो काव्या का ध्यान उसके पास चला गया और सामने से सत्तू ने भी पीछे कान दिए.
“अरे..मेरी मौधी..मेरी बेगम...मेरी लाडो..अब तक नाराज़ हो क्या...अपने मिया से ज़्यादा नाराज़ नही रहते..तू तो मेरी बीवी हैं ना...” सुलेमान ने जान बुज़के काव्या के सामने सलमा को अपनी बीवी कहा था. बल्कि सलमा उसके सगे बुड्ढे चाचा की औलाद थी. सलमा खुद हक्की बक्की रह गयी, जाने सुलेमान के दिमाग चल रहा था उसको ही पता.
उसने देखा काव्या चौक गयी हैं बस सुलेमान ने उसकी तरफ़ बिना कोई वक़्त जाया करे तुरंत मूह किया..और कहा..
“देखी ये न बीबीजी...ये हमारी बेगम हमसे नाराज़ हो गइ हैं..कुछ बोलिए ना आप पढ़ी लिखी लग रही हो”
काव्या थोड़ी हैरत से बोली...”व्हाट..आई मीन , म..मैं क्या बोलू? ये आपके आपस का मामला हैं..और ना ही मैं आपको जानती भी हूँ”
इसपे सुलेमान बोला ”अरे बीबीजी..खाक आपस का मामला हैं..अब हम बरवाडी के ही हैं ना और आप भी तो वह ही जा रही हो..तो हुए ना हम एक ही मामले मे..”
काव्या बोली ,”नो नो,.आई मीन.. हाँ मैं पढ़ीलिखी हूँ. अक्चुअली मैं एक डॉक्टर हूँ और गाओं में कुछ दिन रहने के लिए आई हु और कुछ दिनों के बाद वापस जाऊंगी..”
सत्तू झट से सामने से बोला..”.ऊऊओ...तो आप डॉक्टोरिया हैं बीबीजी...”
सुलेमान : अरे बीबीजी ..हमारे गाओं मे एक डॉक्टोरिया आने वाली थी ..कब से इंतज़ार था हमको..चलो फिर वो आप ही हैं. अब समझा”
काव्या इन बातो से अनजान थी. उसने इस गलत फैमि को दूर करने के लिए कहा “ अरे नहीं..वो मैं नहीं हूँ..वो कोई और होगा. मैं यहाँ अपने नाना के यहाँ रहने आई हूँ..किशोरीलाल अग्रवाल”
सत्तू जो सब गाँव की खबर रखता था उसने झट से पुछा “अच्छा मतलब आप ठाकुर किशोरीलाल की पोती हैं?...बड़े ही नेक आदमी थे चल बसे
इसपे काव्या बोली “हाँ..वो तो हैं ..बस नानी से मिलने आई हूँ.बहुत दिनों के बाद पुराना मकान देखने को भी मिलेंगा”
“अच्छा मतलब वो बड़ा बंगला वही जाना हैं न आपको बीबीजी...हम छोड़ देंगे आपको वहा तक. हमारा घर भी उसके थोडा आगे ही हैं नदी किनारे” ” मंगला देवी के घर का काम करते समय उसके लिए कुछ काम वो किशोरीलाल के घर भी रहते थे. जैसे कोई सामान राशन या व्यापार का लेन देन. सो मंगलादेवी उसको ही वहा भेजती थी इसी कारन उसको काव्या को जानने में कोइ देरी नहीं हुयी.
सुलेमान जो अब तक सत्तू की बाते सुन रहा था उसने बात काटते कहा “ अरे सत्तू तू भी क्या बिबिजो को परेशां कर रहा हैं..हमरे गाँव की मेहमान हैं और अपने ही गाँव की हैं...तू कुछ मत बोल..बीबीजी पर सुना हैं वहा इतने बड़े बंगले में सिर्फ दो तिन ही जन रह्ते हैं..अगर आप को कोई मदत लगे तो हमको ज़रूर याद कर लीजिये गा बीबी जी..”
सुलेमान की इस मदत करने की बार बार होते बात की काव्या पे दिमाग पे एक जवाब बना रहा था, उसको ये बात अच्छी लगी के गाँव के लोग बहुत खुले मन के हैं. पर उसको सुलेमान की इसके पिच्छे का मकसद नहीं पता था.
अपनी और एक गन्दी मुस्कुराहट दे कर सुलेमान सलमा की तरफ़ और एक बार मूह करके देखता हैं और उसको फिर से एक जम के चुम्मा जड़ देता हैं. लेकिन इस बार हमला कसे हुए देहाती होठों पे था.
“आईइ वाअ..देख सलमा, मेरी बेगम देख...हमारे गाओं मे अब डॉक्टोरीं साहिबा आ गइ हैं. अब हम सब का इलाज हो जाएगा..
सुलेमान इश्स कदर सलमा को चुम्मे दे रहा था वो देखकर काव्या शर्म पानी हो कर से नज़रे झुका के हा मे हा भर रही थी. वो करती भी क्या मिया बीवी समझ के वो उनको शर्माते इगनोर कर रही थी. और खुद शर्म से पानी पानी होती थी.
ये सब शीशे आगे से देख रहे सत्तू को सुलेमान पे इतनी जलन हो रही थी के उसको लगा ऑटो से उतर जाये और खुद उसकी जगह लेले.
सुलेमान ने कहा...”अरी डॉक्टर साहिबा..आपका स्वागत हैं फिर से हमारे गाओं मे..हम कब से किसी डॉक्टर साहिबा का इंतेज़ार कर रहे थे..आज आपके दर्शन हो गये..ऐसा लगा रा के मानो पुण्य का काम किया हो...” उसकी नज़रे काव्या के गले से दिखती हुई स्लीव्लेस ब्लाउस के दूध के चीरो की तरफ मानो डेरा डाल के बैठी थी.
ऑटो जैसे ही ख़राब सड़क पे आ जाता वो ज़रा हिलता उसके साथ काव्या के दूध उछल जाते और सुलेमान के लंड मे कोहराम मच जाता जिसका बराबर का हिसाब वो पड़ोस के सलमा पे निकालता था. सुलेमान का बाया हाथ सलमा के कंधो पे था और मूह काव्या के तरफ़. उसकी नज़रे भूके भेड़िए की तरह काव्या के उभरे और तने हुए गोर सीने पे जमी हुई थी. उसकी हिरनी जैसी गर्दन और नीचे उछलते भरे हुए ३४ के स्तन मानो किसी प्यासे की प्यास बुझाने की दो टंकिया हो. ये सब देखते उसके मूह मे पानी आ गया था काव्या थी ही इतनी सुंदर और उसके दूध तो बहुत सुडोल थे. उसको ऐसा लगा के वही काव्या का ब्लाउस खोलके उसके दूध को मसल मसल कर पी जाये.
अपनी आँखों से वो काव्य के दूध को नंगा कर रहा था और इसी कामुक इरादे मे अपनी सारी वासना की भड़ास वो बाजू सलमा पे निकाल रहा था.बीच बीच मे वो सलमा को छेड़ता था. काव्या के दूध को आँखो से नंगा करके उसको दबोचने की चाहत मे डूबे हुए सुलेमान ने अचानक से एक दम कसके सलमा का बया दूध मसल दिया.
"अया.........आअह्ह...." अचानक के हुए इस दबाव से सलमा चहक उठी.
उसकी चहक की अवाज में दर्द तो था पर वो मादक स्वरुप का था. काव्या को ऐसी आवाजे सुनके समझने में देरी ना लगी के सुलेमान और सलमा जरा ज्यादा ही ओपन दम्पती हैं. जिस तरह से सुलेमान सलमा को छेड़ रहा था काव्या शर्म के साथ अब थोडा रोमांचित भी हो रही थी.
तभी फिरसे सुलेमान अपनी नज़रे काव्या के दूध पे रखके कसमसाते हुए बोलता हैं,
"आह..स्स्स्स..,डॉक्टोरीं साहिबा,,,वैसे आप आई अब तो सब ठीक हो ही जाएगा..तनिक आपसे एक बात कहु..?"
काव्या थोड़े धीरे से बोली,,"हा बोलिए ना.क्या हैं?"
उसने इतने कोमल आवाज से सुलेमान से ये बोला था के उसके होश ही उड गए. उसको अभीतक किसीने इतनी इज्जत से बात नहीं की थी. यहाँ तक उसकी बीविया भी उसको गुस्से में गाली गलोच से ही बात करती थी. काव्या उसके खुलेपन से और सलमा के प्रति दिखाए गए प्रेम से उसको थोडा धीरे और शरमाते हुए नज़रे बचाते बात कर रही थी. और वो इसका पूरा इस्तेमाल अपनी नज़रे उसके बदन के कोने कोने पे चलाके ले रहा था.
सूलेमान काव्या के गोरी चिकनी बघलो से गर्मी के वजह से आती हुई पसीने की गंध को सूंघते हुए बोला..”...वैसे आप डॉक्टोरीन लग ही नही रहे हो..”
उसके लिए वो गंध किसी खुशबू से कम नहीं थी. उसमे काव्या की खूबसूरती और परफ्यूम की भीनी गंध भी आ रही थी. हद से ज्यादा साफ़ रहने वाली काव्या अपने अंग अंग का ख्याल रखती थी. रमण के साथ जब भी वो क्लब में जाती या किसी पार्टी में जाती तो सब उसके खूबसूरती के चर्चे करते थे. कुछ ठरकी मरीज़ तो बस उसको देखने के लिए ही उसके क्लिनिक के चक्कर काटते रहते. नियमित योग, वॉक, और हेल्दी फ़ूड खाके उसकी बॉडी फिट थी. उसके बदन पे बाल आते ही नहीं थे फिर भी वो महीने में कभी वैक्स और कही और नुस्के इस्तेमाल करती थी. जिसके कारन उसकी त्वचा बहुत मूलायम और तेजदर हो गयी थी.
काव्या ने पहली बार सुलेमान की आखो में देखा और चौक हो के बोली...”ओह?? ऐसा क्यों?”
पढ़िलिखी काव्या को लगा शायद वो उसको अनपढ़ तो नहीं समज रहा लेकिन उसको ये नही पता था के ये बोलने के पिछे उसका शातिर दिमाग़ हैं. सुलेमान भी झट से बोला..”मतलब आप तो किसी हेरोइन की माफिक लगती हो” और ज़ूत मूठ के शर्माके अपने गंदे दात दिखाते रहा.