21-08-2020, 03:45 PM
पुरुष और स्त्री कामुकता
पुरुष और स्त्री कामुकता में अंतर होता है, यह बात साधारण लग सकती है पर अक्सर मेरे विचार में इसे ठीक से नहीं समझा जाता. कई साल पहले जब मैं Shonen ai comics"यौन सम्बंध और विकलांगता" विषय पर शौध कर रहा था तो यौन सम्बंधों के बारे में कौन से प्रश्न पूछे जायें यह निर्णय शौध में भाग लेने वालों के साथ ही किया गया था, जिनमें पुरुष भी थे, स्त्रियाँ भी. शौध के सात-आठ महीनों में भाग लेने वाले लोगों से मित्रता के सम्बंध बन गये थे, हम लोग एक दूसरे को जानने लगे थे. तब बात हो रही थी कि शौध के प्रश्न ठीक थे या नहीं, तो स्त्रियों का कहना था कि शौध के यौन सम्बंध पर सभी प्रश्न पुरुष की दृष्टि से थे, उनमें नारी दृष्टि नहीं थी.
पहले तो लगा कि यह बात ठीक नहीं होगी, क्योंकि प्रारम्भ की बहस में, स्त्री और पुरुष दोनो ने भाग लिया था, तो क्यों नारी दृष्टिकोण प्रश्नों में नहीं आ पाया? और दूसरी बात थी कि क्या नारी का यौन सम्बंधों को देखना का नजरिया पुरुष नजरिये से भिन्न होता है, तो क्या भिन्नता होती है उसमें?
बात की गहराई में जाने पर निकला कि प्रारम्भ की बहस में सब लोग नये नये थे, एक दूसरे को ठीक से नहीं जानते थे, और उस समय गुट की स्त्रियों ने, जब प्रश्न निर्धारित किये जा रहे थे तो झिझक की वजह से ठीक से अपने विचार नहीं रखे. उनका यह भी कहना था कि अगर किसी स्त्री ने अपनी बात रखने की कोशिश की भी तो शौध दल के पुरुष उसे ठीक से नहीं समझ सके, क्योंकि पुरुषों का इस बारे में सोचने का तरीका ही भिन्न है. इस बात चीत का निष्कर्ष था कि पुरुष विचारों में प्रेम को यौन सम्बंध से मिला कर देखता है, यौन अंग और सम्भोग पुरुष कामुकता का केन्द्र होते हैं. जबकि नारी विचार रिश्ते की आंतरिकता, उनकी भावनाओं को केन्द्र में रखते हैं, उसमें यौन अंग और सम्भोग के साथ एक दूसरे को करीब से जानना और महसूस करना उतना ही महत्वपूर्ण है.
कुछ समय पहले अर्धसत्य चिट्ठे पर मनीषा जी का एक संदेश पढ़ा था जिसमें उन्होंने लिखा था, ".. अब अपनो से अपनी बात कहना चाहती हूं कि सेक्सुअल लाइफ़ हमारी तो होती ही नहीं है उस आदमी की होती है जिसके शारीरिक संबंध किसी लैंगिक विकलांग के साथ होते होंगे क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य के शरीर में अलग-अलग आनंद की अनुभूति के लिये अलग-अलग अंग बनाए हैं लेकिन जब हमारे जैसे लोग एक अंग विशेष से दुर्भाग्यवश वंचित हैं तो हम उस आनंद की अनुभूति कैसे कर सकते हैं? जैसे किसी को जीभ न हो तो उससे कहा जाये कि आप कान से स्वाद का अनुभव करके बताइए कि अमुक पदार्थ का क्या स्वाद है? .." जब यह पढ़ा तो वही बात मन में आयी थी कि क्या मनीषा जी की बात यौनता को पुरुष दृष्टिकोण से देखने का निष्कर्ष है और अगर नारी दृष्टि से देखा जाये तो क्या यौन अंग का होना या न होना ही सब कुछ नहीं? पर यह भी सच है कि इस विषय पर मेरी जानकारी शायद अधूरी ही है और इस तरह की बातें कि "सभी पुरुष ऐसे होते हैं" या "सभी नारियाँ वैसा महसूस करती हैं", जैसी बातें सोचना गलत है, क्योंकि हम सब भिन्न हैं, और हमारे सोचने महसूस करने के तरीकों को पुरुष या नारी होने की परिधियों में बाँधना उसे कम करना है?
पुरुष और स्त्री कामुकता में अंतर होता है, यह बात साधारण लग सकती है पर अक्सर मेरे विचार में इसे ठीक से नहीं समझा जाता. कई साल पहले जब मैं Shonen ai comics"यौन सम्बंध और विकलांगता" विषय पर शौध कर रहा था तो यौन सम्बंधों के बारे में कौन से प्रश्न पूछे जायें यह निर्णय शौध में भाग लेने वालों के साथ ही किया गया था, जिनमें पुरुष भी थे, स्त्रियाँ भी. शौध के सात-आठ महीनों में भाग लेने वाले लोगों से मित्रता के सम्बंध बन गये थे, हम लोग एक दूसरे को जानने लगे थे. तब बात हो रही थी कि शौध के प्रश्न ठीक थे या नहीं, तो स्त्रियों का कहना था कि शौध के यौन सम्बंध पर सभी प्रश्न पुरुष की दृष्टि से थे, उनमें नारी दृष्टि नहीं थी.
पहले तो लगा कि यह बात ठीक नहीं होगी, क्योंकि प्रारम्भ की बहस में, स्त्री और पुरुष दोनो ने भाग लिया था, तो क्यों नारी दृष्टिकोण प्रश्नों में नहीं आ पाया? और दूसरी बात थी कि क्या नारी का यौन सम्बंधों को देखना का नजरिया पुरुष नजरिये से भिन्न होता है, तो क्या भिन्नता होती है उसमें?
बात की गहराई में जाने पर निकला कि प्रारम्भ की बहस में सब लोग नये नये थे, एक दूसरे को ठीक से नहीं जानते थे, और उस समय गुट की स्त्रियों ने, जब प्रश्न निर्धारित किये जा रहे थे तो झिझक की वजह से ठीक से अपने विचार नहीं रखे. उनका यह भी कहना था कि अगर किसी स्त्री ने अपनी बात रखने की कोशिश की भी तो शौध दल के पुरुष उसे ठीक से नहीं समझ सके, क्योंकि पुरुषों का इस बारे में सोचने का तरीका ही भिन्न है. इस बात चीत का निष्कर्ष था कि पुरुष विचारों में प्रेम को यौन सम्बंध से मिला कर देखता है, यौन अंग और सम्भोग पुरुष कामुकता का केन्द्र होते हैं. जबकि नारी विचार रिश्ते की आंतरिकता, उनकी भावनाओं को केन्द्र में रखते हैं, उसमें यौन अंग और सम्भोग के साथ एक दूसरे को करीब से जानना और महसूस करना उतना ही महत्वपूर्ण है.
कुछ समय पहले अर्धसत्य चिट्ठे पर मनीषा जी का एक संदेश पढ़ा था जिसमें उन्होंने लिखा था, ".. अब अपनो से अपनी बात कहना चाहती हूं कि सेक्सुअल लाइफ़ हमारी तो होती ही नहीं है उस आदमी की होती है जिसके शारीरिक संबंध किसी लैंगिक विकलांग के साथ होते होंगे क्योंकि ईश्वर ने मनुष्य के शरीर में अलग-अलग आनंद की अनुभूति के लिये अलग-अलग अंग बनाए हैं लेकिन जब हमारे जैसे लोग एक अंग विशेष से दुर्भाग्यवश वंचित हैं तो हम उस आनंद की अनुभूति कैसे कर सकते हैं? जैसे किसी को जीभ न हो तो उससे कहा जाये कि आप कान से स्वाद का अनुभव करके बताइए कि अमुक पदार्थ का क्या स्वाद है? .." जब यह पढ़ा तो वही बात मन में आयी थी कि क्या मनीषा जी की बात यौनता को पुरुष दृष्टिकोण से देखने का निष्कर्ष है और अगर नारी दृष्टि से देखा जाये तो क्या यौन अंग का होना या न होना ही सब कुछ नहीं? पर यह भी सच है कि इस विषय पर मेरी जानकारी शायद अधूरी ही है और इस तरह की बातें कि "सभी पुरुष ऐसे होते हैं" या "सभी नारियाँ वैसा महसूस करती हैं", जैसी बातें सोचना गलत है, क्योंकि हम सब भिन्न हैं, और हमारे सोचने महसूस करने के तरीकों को पुरुष या नारी होने की परिधियों में बाँधना उसे कम करना है?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.