21-08-2020, 02:53 PM
और आज भी ऐसा ही करती हूँ, कोई न कोई बहाना बना ही लेती हूँ।
ठीक ऐसा कविता भी उसके पति के साथ कई बार चुकी है।
जब भी मैं इस बात की याद पतिदेव को दिलाती हूँ वो शर्म के मारे आँखें बन्द कर इधर उधर देखने लगते हैं और मैं हंसने लगती हूँ।
ठीक ऐसा कविता भी उसके पति के साथ कई बार चुकी है।
जब भी मैं इस बात की याद पतिदेव को दिलाती हूँ वो शर्म के मारे आँखें बन्द कर इधर उधर देखने लगते हैं और मैं हंसने लगती हूँ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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