21-08-2020, 02:52 PM
एक बार मेरे पतिदेव ने जरूर हमें रंगे हाथ पकड़ लिया होता!
छुट्टी का दिन था, सब घूमने गए हुए थे, कविता को भी मैंने घर पर बुला लिया था।
जब मैं सिर्फ़ तौलिये में थी और उसे किस करने ही वाली थी कि मेरे पति आये पर उनका ध्यान हमारी ओर नहीं था।
हमारी तो जान में जान आई, मैंने उन्हें बाहर जाने के लिए कहा पर वो नहीं गए, तो मैंने उन्हें कविता के सामने ही उनके गाल पर चुम्मा देकर जाने की विनती की पर फिर भी नहीं गए।
अचानक मेरे दिमाग में शरारत सूझी क्योंकि मैं तो हूँ ही बेशर्म.
मैंने तौलिया निकालकर एक तरफ फेंक दिया और पूरी नंगी हो गई!
और अपने दोनों हाथ कविता भी मुँह पर रखकर आश्चर्य से मेरी तरफ देख रही थी और पतिदेव भी!
वो मुझे डांटने लगे, पर कब तक डांटते?
उन्हें ही बाहर जाना पड़ा।
जब वो बाहर गए तो हम दोनों खूब हंसी, मैं पूरे समय तक नंगी ही रही, और कविता के साथ बात करती रही।
पतिदेव ने जब कहा कि सब लोग आ गए हैं तब मैं कपड़े पहन कर बाहर निकली।
जब भी मुझे पतिदेव को ऐसे चिड़ाना होता है तो मैं कविता को बुला लेती और नंगी हो जाती!
छुट्टी का दिन था, सब घूमने गए हुए थे, कविता को भी मैंने घर पर बुला लिया था।
जब मैं सिर्फ़ तौलिये में थी और उसे किस करने ही वाली थी कि मेरे पति आये पर उनका ध्यान हमारी ओर नहीं था।
हमारी तो जान में जान आई, मैंने उन्हें बाहर जाने के लिए कहा पर वो नहीं गए, तो मैंने उन्हें कविता के सामने ही उनके गाल पर चुम्मा देकर जाने की विनती की पर फिर भी नहीं गए।
अचानक मेरे दिमाग में शरारत सूझी क्योंकि मैं तो हूँ ही बेशर्म.
मैंने तौलिया निकालकर एक तरफ फेंक दिया और पूरी नंगी हो गई!
और अपने दोनों हाथ कविता भी मुँह पर रखकर आश्चर्य से मेरी तरफ देख रही थी और पतिदेव भी!
वो मुझे डांटने लगे, पर कब तक डांटते?
उन्हें ही बाहर जाना पड़ा।
जब वो बाहर गए तो हम दोनों खूब हंसी, मैं पूरे समय तक नंगी ही रही, और कविता के साथ बात करती रही।
पतिदेव ने जब कहा कि सब लोग आ गए हैं तब मैं कपड़े पहन कर बाहर निकली।
जब भी मुझे पतिदेव को ऐसे चिड़ाना होता है तो मैं कविता को बुला लेती और नंगी हो जाती!
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.