21-08-2020, 01:53 PM
यह प्रथा भले ही हमारे समाज के लिए घिनौनी प्रथा हो किंतु यह सत्य है कि इस प्रथा को अपनाने वाले युवक युवतियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि होती जा रही है। इस चलन को अपनाने वाली मृदुला सिन्हा का कथन है कि जिस प्रकार एक सब्जी को रोज खाते रहने से एक दिन ऐसा भी आता है कि उसका नाम सुनते ही भूख मिट जाती है, उसी प्रकार एक पति की अंकशायिनी बनकर रहने से जीवन नीरस हो जाता है। जीवन को सरस बनाये रखने के लिए 'वाइफ एक्सचेंज' तथा 'हसबैण्ड एक्सचेंज' कोई बुरी प्रथा नहीं है। फिर हम लोग दिन में तो अपने अपने घरों में ही रहा करते हैं।
अगर शारीरिक संबंध तक ही पति-पत्नी का संबंध रहता तो विवाह' जैसी पवित्र संस्था का औचित्य ही क्या था? एक युवक की एक युवती के साथ विवाह मात्र शारीरिक संबंध बनाये रखने तक ही सीमित नहीं होता बल्कि सुख-दुख के साथ जीवन की गति को स्वच्छ प्रक्रियाओं द्वारा आगे बढ़ाते रहने के लिए भी विवाह की आवश्यकता होती है। अगर ऐसी बात न हो तो पशु तथा मनुष्य में अन्तर ही क्या रह जाएगा?
सिर्फ क्षणिक दैहिक सुख की प्राप्ति की अभिलाषा में अपनी प्रथाओं, सभ्यताओं का त्याग कर देना क्या घृणित कदम नहीं है? अगर यह कदम घृणित नहीं माना जाता तो समाज में 'विवाह' जैसे पवित्र शब्द का आविष्कार ही नहीं होता। पाश्चात्य देशों की नकल करने वालों को यह सोचना चाहिए कि उन देशों में भी यह प्रथा आम नहीं है।
अगर शारीरिक संबंध तक ही पति-पत्नी का संबंध रहता तो विवाह' जैसी पवित्र संस्था का औचित्य ही क्या था? एक युवक की एक युवती के साथ विवाह मात्र शारीरिक संबंध बनाये रखने तक ही सीमित नहीं होता बल्कि सुख-दुख के साथ जीवन की गति को स्वच्छ प्रक्रियाओं द्वारा आगे बढ़ाते रहने के लिए भी विवाह की आवश्यकता होती है। अगर ऐसी बात न हो तो पशु तथा मनुष्य में अन्तर ही क्या रह जाएगा?
सिर्फ क्षणिक दैहिक सुख की प्राप्ति की अभिलाषा में अपनी प्रथाओं, सभ्यताओं का त्याग कर देना क्या घृणित कदम नहीं है? अगर यह कदम घृणित नहीं माना जाता तो समाज में 'विवाह' जैसे पवित्र शब्द का आविष्कार ही नहीं होता। पाश्चात्य देशों की नकल करने वालों को यह सोचना चाहिए कि उन देशों में भी यह प्रथा आम नहीं है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.