07-03-2019, 10:22 AM
बाद में तैयार होकर हम बस से उसकी ननद के घर गये और मेरे भांजे यानी मेरी बहन के लडके को हम वहाँ मिले. अपने मामा को देखकर वो खुश हो गया. हम मामा-भांजे काफ़ी देर तक खेलते रहे. मैंने जब उसे पुछा के अपने नाना, नानी को मिलने वो हमारे घर आएगा क्या तो उसने नही कहा. उसके जवाब से हम सब हंस पड़े. दीदी ने उसे बताया के वो आठ दिन के लिए कल्याण जा रही है और उसे अपनी आंटी के साथ ही रहना है तो वो हंस के तैयार हो गया. बाद में मैं और दीदी बस से उसके पति की दुकान पर गये. एकाद घंटा हमलोग वहाँ पर रुके और फिर वापस घर आए. बस में चढते, उतरते और भीड़ में खड़े रहते मैंने अपनी बहन के मांसल बदन का भरपूर स्पर्शसूख् लिया.
</p><p>घर आने के बाद वापस शालू दीदी का कपड़े बदलने का प्रोग्राम हो गया और वफ़ादार दर्शक की तरह मैंने वापस उसे कामूक नज़र से चुपके से निहार लिया. जब से में अपनी बहन के घर आया था तब से में कामूक नजरसे उसका वस्त्रहरण करके उसे नंगा कर रहा था और उसे चोदने के सपने देख रहा था. मुझे मालूम था के ये संभव नही है लेकिन यही मेरा सपना था, मेरा टाइमपास था, मेरा मूठ मारने का साधन था.
</p><p>दूसरे दिन दोपहर को में हॉल में बैठकर टीवी देख रहा था. शालू दीदी मेरे बाजू में बैठकर कुछ कपडो को सी रही थी. हमलोग टीवी देख रहे थे और बातें भी कर रहे थे. में रिमोट कंट्रोल से एक के बाद एक टीवी के चनेल बदल रहा था क्योंकी दोपहर के समय कोई भी प्रोग्राम मुझे इंटारेस्टेंग नही लगा रहा था. आखीर में एक मराठी चनेलपर रुक गया जिसपर आड़ चल रही थी. ऱिमोट बाजू में रखकर मैंने सोचा के आड़ ख़त्म होने के बाद जो भी प्रोग्राम उस चनेलपर चल रहा होगा वो में देखूँगा. आड़ ख़त्म हो गयी और प्रोग्राम चालू हो गया
</p><p>घर आने के बाद वापस शालू दीदी का कपड़े बदलने का प्रोग्राम हो गया और वफ़ादार दर्शक की तरह मैंने वापस उसे कामूक नज़र से चुपके से निहार लिया. जब से में अपनी बहन के घर आया था तब से में कामूक नजरसे उसका वस्त्रहरण करके उसे नंगा कर रहा था और उसे चोदने के सपने देख रहा था. मुझे मालूम था के ये संभव नही है लेकिन यही मेरा सपना था, मेरा टाइमपास था, मेरा मूठ मारने का साधन था.
</p><p>दूसरे दिन दोपहर को में हॉल में बैठकर टीवी देख रहा था. शालू दीदी मेरे बाजू में बैठकर कुछ कपडो को सी रही थी. हमलोग टीवी देख रहे थे और बातें भी कर रहे थे. में रिमोट कंट्रोल से एक के बाद एक टीवी के चनेल बदल रहा था क्योंकी दोपहर के समय कोई भी प्रोग्राम मुझे इंटारेस्टेंग नही लगा रहा था. आखीर में एक मराठी चनेलपर रुक गया जिसपर आड़ चल रही थी. ऱिमोट बाजू में रखकर मैंने सोचा के आड़ ख़त्म होने के बाद जो भी प्रोग्राम उस चनेलपर चल रहा होगा वो में देखूँगा. आड़ ख़त्म हो गयी और प्रोग्राम चालू हो गया
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.