07-03-2019, 10:19 AM
उनके घर में बंद रूम जैसा बाथरूम नही था बल्की किचन के एक कोने में नहाने की जगह थी. दो बाजू में कोने की दीवार, सामने से वो जगह खुली थी और एक बाजू में चार फूट उँची एक छोटी दीवार थी. इस कहानी का शीर्षक भाई बहन की आपस में चुदाई है | शालू दीदी सुबह जल्दी नहाती नही थी. सुबह के सभी काम निपटने के बाद और उसके पति दुकान में जाने के बाद वो आराम से आठ नौ के दरम्यान नहाने जाती थी. उसका लड़का सोता रहता था और दस बजे से पहले उठता नही था. में भी सोने का नाटक करता रहता था. नहाने के लिए बैठने से पहले शालू दीदी किचन का दरवाजा बंद कर लेती थी. में जिस रूम में सोता था वो किचन को लगा के था. में शालू दीदी की हलचल का जायज़ा लेते रहता था और जैसे ही नहाने के लिए वो किचन का दरवाजा बंद कर लेती थी वैसे ही में उठकर चुपके से बाहर आता था.</p><p>किचन का दरवाजा पुराने स्टाइल का था यानी उस में वर्टीकल गॅप थी. वैसे तो वो गॅप बंद थी लेकिन मैंने गौर से चेक करके मालूम कर लिया था के एक दो जगह उस गॅप में दरार थी जिसमें से अंदर का कुछ भाग दिख सकता था. नहाने की जगह दरवाजे के बिलकूल सामने चार पाँच फूट पर थी. दबे पाँव से में किचन के दरवाजे में जाता था और उस दरार को आँख लगाता था. मुझे दिखाई देता था के अंदर शालू दीदी साड़ी निकाल रही थी. बाद में ब्लाउस और पेटीकोट निकालकर वो ब्रा और पैंटी पहने नहाने की जगह पर जाती थी. फिर गरम पानी में उसे चाहिए उतना ठंडा पानी मिलाके वो नहाने का पानी तैयार करती थी.</p><p>फिर ब्रा, पैंटी निकालकर वो नहाने बैठती थी. नहाने के बाद वो खडी रहती थी और टावेल ले के अपना गीला बदन पौन्छती थी. फिर दूसरी ब्रा, पैंटी पहन के वो बाहर आती थी. और फिर पेटीकोट, ब्लऊज पहने के वो साड़ी पहन लेती थी. पूरा समय में किचन के दरवाजे के दरार से शालू दीदी की हरकते चुपके से देखता रहता था. उस दरार से इतना सब कुछ साफ साफ दिखाई नही देता था लेकिन जो कुछ दिखता था वो मुझे उत्तेजीत करने के लिए और मेरी काम वासना भडकाने के लिए काफ़ी होता था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.