07-03-2019, 10:17 AM
एक दिन में ऑफीस से घर आया तो मा ने बताया के शालू दीदी का फ़ोन आया था और उसे दीवाली के लिए हमारे घर आना है. हमेशा की तरह उसके पति को अपनी दुकान से फुरसत नही थी उसे हमारे घर ला के छोडने की इसलिए शालू दीदी पुछ रही थी कि मुझे समय है क्या, जा के उसे लाने के लिए. शालू दीदी को लाने के लिए उसके घर जाने की कल्पना से में उत्तेजीत हुआ. चार महीने पहीले में उसके घर गया था तब क्या क्या हुआ ये मुझे याद आया.</p><p>दिनभर शालू दीदी के पति अपनी दुकानपर रहते थे और दोपहर के समय उसका लड़का नर्सरी कॉलेज में जाया करता था. इसलिए ज़्यादा तर समय दीदी और में घर में अकेले रहते थे और में उसे बिना जीझक निहाराते रहता था. काम करते समय दीदी अपनी साड़ी और छाती के पल्लू के बारे में थोड़ी बेफिकर रहती थी जिससे मुझे उसके छाती के उभारो की गहराईयो अच्छी तरह से देखने को मिलती थी. फर्शपर पोछा मारते समय या तो कपड़े धोते समय वो अपनी साड़ी उपर कर के बैठती थी तब मुझे उसकी सुडौल टाँगे और जाँघ देखने को मिलती थी..
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.