17-08-2020, 06:27 PM
प्रीतम उसकी आवाज़ सुनकर अपनी सोच से बाहर आया,
और बोला : आप कौन हैं , मुझे तो अपने घर जाना है ,
मेरा पुत्र शेखू और मेरी माँ.पत्नी, पिताजी सभी मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे ,
उसे अपनी पूरी यादाश्त थी ,उसने रोते हुए अपनी पूरी कहानी बता दी,
बुढ़िया के सारे सपने धरे के धरे रह गए,
उसने क्या सोचा था और क्या हो गया ,
वो असमंजस में फंस गयी कि जिसे अपनी जिंदगी का सहारा समझा था,
वो मेरे पास रहेगा या नहीं,
उसने अब सब कुछ वक्त के हाथों में छोड़ दिया,
उधर प्रीतम जिद करते करते बेहोश सा हो गया, कमजोरी जो थी,
उधर गाँव वाले सोच रहे थे कि तीसरा दिन होने को आया,
ये बुढ़िया कर क्या रही है उस मुर्दे के साथ ,
सभी हुजूम बनाकर उसकी कुटिया की तरफ चलने लगे ,
कुटिया के भीतर झाँका तो प्रीतम बेहोश ही था,
उसके चेहरे से नीलापन खत्म हो चुका था ,
और बुढ़िया उसके सहारे से बैठी थी,
ये देखकर तो एकबार को सभी चौंक गए ,
सभी उस बुढ़िया के पास आये और उससे पूछा,
तो उसने सारी कहानी कह सुनाई, सभी चकित थे,
अब तो उस बुढ़िया के प्रति सभी के मन में आदर भावना थी,
वे लोग वहीँ डेरा जमाकर बैठ गए,
ये चमत्कार उन्होंने अपने उस गाँव में होते देखा था,
जिसकी कल्पना उन्होंने कभी नहीं की थी,
खैर धीरे धीरे समय बीता प्रीतम अब पूरी तरह होश में आ चुका था,
उसने आँखें खोली और सामने स्त्री पुरुषों का हुजूम इकठ्ठा पाया, सब उससे उसकी पिछली जिन्दगी के बारे में पूछने लगे ,
प्रीतम ने अपनी पूरी कहानी सभी को बता दी,
सभी गाँव वालो ने उसको बता दिया कैसे उस बुढ़िया ने उसको जिन्दा किया है,
प्रीतम की आँखों से भी आंसू निकलने लगे, उसके मन में अब पिछली जिंदगी के कम ,
वर्तमान में उस बुढ़िया और अपनी आगे की जिन्दगी के बारे में ज्यादा विचार आने लगे,
अब वो उसे अपनी दूसरी ‘माँ’ के रूप में देखने लगा, उधर वो बुढ़िया उसकी सेवा सुशुर्षा में लगी रही,
इलाज भी प्रतिदिन निरंतर चल रहा था,
प्रीतम अब स्वस्थ होने लगा था,
उसके जिन्दा होने की खबर आसपास के सभी गाँवों में फ़ैल गयी थी,
प्रीतम की कहानी सुनने केलिए दूर दूर से लोग आने लगे, उसने अपनी आप बीती सबको बताई,
इधर जब प्रीतम के विषय में उसकी माँ राजेश्वरी,पत्नी बसंती देवी ,
पिता जसराज को खबर लगी तो बहुत प्रसन्न हुए और अपने पुत्र से मिलने के लिए गाँव वालों के साथ प्रीतम से मिलने के लिए पहुँच गए,
प्रीतम बहुत ख़ुशी ख़ुशी उनसे मिला,
उसके माता पिता पत्नी सभी उससे घर जाने की विनती करने लगे, जब बुढ़िया को पता लगा तो उसने कहा : बेटा मेरे इस घर में एकदम से सूना पन पैदा मत करो ,
कुछ समय के बाद चले जाना ,
और बुढ़िया ने उसके घरवालों से कहा,
बाद में ये चला जाएगा तब तक मैं इसकी और दवाई आदि करुँगी ....
वे सभी इसी बात का विश्वास करके घर चले गए ,
उधर उन लोगों के जाने के बाद बुढ़िया उसको बंगाल ले जाने की सोचने लगी, एक दिन उसने प्रीतम से कहा, बेटा ,
मेरी जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं ,कब ख़त्म हो जाए,
इसीलिए मैं तुम्हें अपनी विद्या सिखाना चाहती हूँ ,
जिसके लिए तुम्हें मेरे साथ बंगाल चलना होगा, यदि तुम हां कहो तो,
जिससे कोई भी इस कष्ट को ना झेल सके जो मैंने झेला है,
प्रीतम इसके लिए राज़ी हो गया, इसी दौरान वो उसे लेकर बंगाल चली गयी ,
वहां उसने सपेरों की कला,तांत्रिक कर्म और ज्योतिष विद्या में अपने गुरुओं से निपुण करवा दिया,
साथ ही साथ अपनी जाति की कन्या के साथ उसकी शादी भी करवा दी, हालांकि प्रीतम की इसके लिए मनाही थी , लेकिन उसकी इस जिंदगी पर अब उसका हक़ था, यही सोचकर उसने ज्यादा आना कानी नहीं की,
इसके बाद वह बंगाल से लौटकर इलाहाबाद चली आई ,
वह यहां दो वर्ष तक झोपड़ी बनाकर और भीख मांगकर ,तमाशा दिखाकर गुज़ारा करती रही,
इसी बीच उसके घरवाले गाँव उसकी खबर लेने आते तो ,
उन्हें खली हाथ लौटना पड़ता, क्योंकि वो कुटिया अब इंसान रहित थी,
इधर उसके दूसरी पत्नी से भी दो बच्चे हो गए थे,
और बुढ़िया , और अधिक वृद्ध हो चली थी,
अब उसने अपनी अंतिम इच्छा वही,
उसी कुटिया में रहने की जताई , प्रीतम ने हां कहा, और वे सब वहीँ उसी गाँव में आकर रहने लगे ,
बुढ़िया अब अपनी जिंदगी पर बहुत खुश थी ,
क्योंकि उसके घर में अब एक की जगह चार सदस्य हो गए थे, बच्चों की किलकारी से, उसकी छोटी सी पर्णकुटी मयूर नृत्य करने लगती थी,
प्रीतम अब तक पूर्ण सपेरा और ज्योतिषी बन चुका था,
उसका कभी कभी अपने घर जाने का मन करता तो,
बुढ़िया कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देती,
अब प्रीतम के पास दोहरी जिन्दगी के अलावा कोई रास्ता न बचा था,
वो जिंदगी के उस दौराहे पर खड़ा था, जिसे निभाना इतना सरल भी ना था,
एक दिन बुढ़िया ..............
जारी है ..........
और बोला : आप कौन हैं , मुझे तो अपने घर जाना है ,
मेरा पुत्र शेखू और मेरी माँ.पत्नी, पिताजी सभी मेरा इंतज़ार कर रहे होंगे ,
उसे अपनी पूरी यादाश्त थी ,उसने रोते हुए अपनी पूरी कहानी बता दी,
बुढ़िया के सारे सपने धरे के धरे रह गए,
उसने क्या सोचा था और क्या हो गया ,
वो असमंजस में फंस गयी कि जिसे अपनी जिंदगी का सहारा समझा था,
वो मेरे पास रहेगा या नहीं,
उसने अब सब कुछ वक्त के हाथों में छोड़ दिया,
उधर प्रीतम जिद करते करते बेहोश सा हो गया, कमजोरी जो थी,
उधर गाँव वाले सोच रहे थे कि तीसरा दिन होने को आया,
ये बुढ़िया कर क्या रही है उस मुर्दे के साथ ,
सभी हुजूम बनाकर उसकी कुटिया की तरफ चलने लगे ,
कुटिया के भीतर झाँका तो प्रीतम बेहोश ही था,
उसके चेहरे से नीलापन खत्म हो चुका था ,
और बुढ़िया उसके सहारे से बैठी थी,
ये देखकर तो एकबार को सभी चौंक गए ,
सभी उस बुढ़िया के पास आये और उससे पूछा,
तो उसने सारी कहानी कह सुनाई, सभी चकित थे,
अब तो उस बुढ़िया के प्रति सभी के मन में आदर भावना थी,
वे लोग वहीँ डेरा जमाकर बैठ गए,
ये चमत्कार उन्होंने अपने उस गाँव में होते देखा था,
जिसकी कल्पना उन्होंने कभी नहीं की थी,
खैर धीरे धीरे समय बीता प्रीतम अब पूरी तरह होश में आ चुका था,
उसने आँखें खोली और सामने स्त्री पुरुषों का हुजूम इकठ्ठा पाया, सब उससे उसकी पिछली जिन्दगी के बारे में पूछने लगे ,
प्रीतम ने अपनी पूरी कहानी सभी को बता दी,
सभी गाँव वालो ने उसको बता दिया कैसे उस बुढ़िया ने उसको जिन्दा किया है,
प्रीतम की आँखों से भी आंसू निकलने लगे, उसके मन में अब पिछली जिंदगी के कम ,
वर्तमान में उस बुढ़िया और अपनी आगे की जिन्दगी के बारे में ज्यादा विचार आने लगे,
अब वो उसे अपनी दूसरी ‘माँ’ के रूप में देखने लगा, उधर वो बुढ़िया उसकी सेवा सुशुर्षा में लगी रही,
इलाज भी प्रतिदिन निरंतर चल रहा था,
प्रीतम अब स्वस्थ होने लगा था,
उसके जिन्दा होने की खबर आसपास के सभी गाँवों में फ़ैल गयी थी,
प्रीतम की कहानी सुनने केलिए दूर दूर से लोग आने लगे, उसने अपनी आप बीती सबको बताई,
इधर जब प्रीतम के विषय में उसकी माँ राजेश्वरी,पत्नी बसंती देवी ,
पिता जसराज को खबर लगी तो बहुत प्रसन्न हुए और अपने पुत्र से मिलने के लिए गाँव वालों के साथ प्रीतम से मिलने के लिए पहुँच गए,
प्रीतम बहुत ख़ुशी ख़ुशी उनसे मिला,
उसके माता पिता पत्नी सभी उससे घर जाने की विनती करने लगे, जब बुढ़िया को पता लगा तो उसने कहा : बेटा मेरे इस घर में एकदम से सूना पन पैदा मत करो ,
कुछ समय के बाद चले जाना ,
और बुढ़िया ने उसके घरवालों से कहा,
बाद में ये चला जाएगा तब तक मैं इसकी और दवाई आदि करुँगी ....
वे सभी इसी बात का विश्वास करके घर चले गए ,
उधर उन लोगों के जाने के बाद बुढ़िया उसको बंगाल ले जाने की सोचने लगी, एक दिन उसने प्रीतम से कहा, बेटा ,
मेरी जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं ,कब ख़त्म हो जाए,
इसीलिए मैं तुम्हें अपनी विद्या सिखाना चाहती हूँ ,
जिसके लिए तुम्हें मेरे साथ बंगाल चलना होगा, यदि तुम हां कहो तो,
जिससे कोई भी इस कष्ट को ना झेल सके जो मैंने झेला है,
प्रीतम इसके लिए राज़ी हो गया, इसी दौरान वो उसे लेकर बंगाल चली गयी ,
वहां उसने सपेरों की कला,तांत्रिक कर्म और ज्योतिष विद्या में अपने गुरुओं से निपुण करवा दिया,
साथ ही साथ अपनी जाति की कन्या के साथ उसकी शादी भी करवा दी, हालांकि प्रीतम की इसके लिए मनाही थी , लेकिन उसकी इस जिंदगी पर अब उसका हक़ था, यही सोचकर उसने ज्यादा आना कानी नहीं की,
इसके बाद वह बंगाल से लौटकर इलाहाबाद चली आई ,
वह यहां दो वर्ष तक झोपड़ी बनाकर और भीख मांगकर ,तमाशा दिखाकर गुज़ारा करती रही,
इसी बीच उसके घरवाले गाँव उसकी खबर लेने आते तो ,
उन्हें खली हाथ लौटना पड़ता, क्योंकि वो कुटिया अब इंसान रहित थी,
इधर उसके दूसरी पत्नी से भी दो बच्चे हो गए थे,
और बुढ़िया , और अधिक वृद्ध हो चली थी,
अब उसने अपनी अंतिम इच्छा वही,
उसी कुटिया में रहने की जताई , प्रीतम ने हां कहा, और वे सब वहीँ उसी गाँव में आकर रहने लगे ,
बुढ़िया अब अपनी जिंदगी पर बहुत खुश थी ,
क्योंकि उसके घर में अब एक की जगह चार सदस्य हो गए थे, बच्चों की किलकारी से, उसकी छोटी सी पर्णकुटी मयूर नृत्य करने लगती थी,
प्रीतम अब तक पूर्ण सपेरा और ज्योतिषी बन चुका था,
उसका कभी कभी अपने घर जाने का मन करता तो,
बुढ़िया कोई न कोई बहाना बनाकर टाल देती,
अब प्रीतम के पास दोहरी जिन्दगी के अलावा कोई रास्ता न बचा था,
वो जिंदगी के उस दौराहे पर खड़ा था, जिसे निभाना इतना सरल भी ना था,
एक दिन बुढ़िया ..............
जारी है ..........