17-08-2020, 06:25 PM
एक एहसान और कर दो , इसके शरीर को नीम के पत्तों के दबा दो फिर मैं अपना इलाज शुरू करुँगी ,
अब तो साहब एक और त्रिया हठ , चलो ,
वह भी उन आदमियों ने पूरी कर दी और सभी वहां से ऐसे भागे जैसे जेल से छूटे कैदी हों,
उन सबका ज़ी मचला गया था,
अब ये खबर गाँव में जंगल में आग की तरह फ़ैल गई,
गाँव के सभी बच्चे बूढ़े सभी कुटिया की तरफ इकठ्ठे होने लगे ,उधर उस बुढ़िया ने अपनी तरह से इलाज़ करना शुरू किया,
थोड़ी ही देर में उसकी कुटिया पर गांव वासियों का हुजूम इकठ्ठा हो गया ,
देखते देखते मेला सा लग गया ...
अब तो जितने मुंह उतनी बातें ,
कोई कहे, “बुढ़िया सठिया गयी है जो मुर्दे को लाकर घर में रख लिया है ”,
कोई कहे, “बुढ़िया की तो बिल्कुल अक्ल ही मारी गयी है जो ऐसा अशुभ कार्य करने लगी है”
बुढ़िया ने किसी के तानों का कोई उत्तर नहीं दिया,
आखिरकार थक हार कर वे लोग वहां से चले गए,
लेकिन बुढ़िया अपने कार्य ,झाड फूंक में लगी रही,
उसे अपनी सीखी हुई विद्या पर पूरा भरोसा था,
देसी जड़ी बूटियों से उपचार में लगी रही, कब दिन गया ,कब रात, उसे कोई सुध नहीं थी,
गाँव वालों ने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया था,
अब एक बूढी माँ के दिल का दर्द कौन जाने,
उसकी ममता का आँचल उन लोगों की सोच से शायद कहीं ऊपर था,
जड़ी बूटियाँ पीसकर खिलाने के लिए वो उसका मुंह खोलती, लेकिन उसका जबड़ा तो कसकर भिंच गया था,वो जड़ी बूटियों को बिल्कुल पनीला कर उसे पिलाने की कोशिश करती,
वो सोचती थी,यदि दो बूँद भी पेट में गयी तो बहुत राहत मिलेगी,
समय तो अपनी गति से लगातार घूम रहा था,
इसी बीच दो दिन और गुज़र गए,
उसे ऐसा लगा जैसे उसकी हालत में सुधार होने लगा है, इलाज़ में उसने कोताही नहीं बरती थी ,
पहले से कहीं तेज़ उपचार शुरू कर दिया था,
तीसरे दिन प्रीतम ने आँखें खोल दी, उसकी आँखें खुलते ही बुढ़िया की आँखों से झर झर आंसुओं की धारा बह निकली,
ये उसकी ख़ुशी के आंसू थे,
उसकी निश्वार्थ सेवा ने प्रीतम को जीने पर मजबूर कर दिया था , और उधर यमराज के सिपहसालारों ने हार का बिगुल बजा दिया था,
धीरे धीरे वो पूरी तरह से होश में आने लगा ,
अब वो बुढ़िया थोड़ा संयत हुई और अपने आंसुओं को अपने आँचल से पोंछने लगी,
उसने मन में सोचा,
इसके साथ परिवार के सदस्य की तरह व्यवहार किया जाए या बेटे की तरह या ठीक करने वाले हकीम वैद्य की तरह ,
वो प्रीतम के पास पहुंची और उसके सर पर हाथ फेरा, और उससे पूछा : बेटा ,अब कैसी तबियत है, प्रीतम बिना कुछ कहे इधर उधर देख रहा था,
उसे समझ नहीं आ रहा था, ये मैं कहाँ आ गया,
मुझे तो सर्प ने काटा था, लेकिन उसके बाद का मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा ,
लेकिन तभी बुढ़िया ने फिर पूछा : बेटा कुछ तो बोलो ,कैसा लग रहा है........
जारी है..........
अब तो साहब एक और त्रिया हठ , चलो ,
वह भी उन आदमियों ने पूरी कर दी और सभी वहां से ऐसे भागे जैसे जेल से छूटे कैदी हों,
उन सबका ज़ी मचला गया था,
अब ये खबर गाँव में जंगल में आग की तरह फ़ैल गई,
गाँव के सभी बच्चे बूढ़े सभी कुटिया की तरफ इकठ्ठे होने लगे ,उधर उस बुढ़िया ने अपनी तरह से इलाज़ करना शुरू किया,
थोड़ी ही देर में उसकी कुटिया पर गांव वासियों का हुजूम इकठ्ठा हो गया ,
देखते देखते मेला सा लग गया ...
अब तो जितने मुंह उतनी बातें ,
कोई कहे, “बुढ़िया सठिया गयी है जो मुर्दे को लाकर घर में रख लिया है ”,
कोई कहे, “बुढ़िया की तो बिल्कुल अक्ल ही मारी गयी है जो ऐसा अशुभ कार्य करने लगी है”
बुढ़िया ने किसी के तानों का कोई उत्तर नहीं दिया,
आखिरकार थक हार कर वे लोग वहां से चले गए,
लेकिन बुढ़िया अपने कार्य ,झाड फूंक में लगी रही,
उसे अपनी सीखी हुई विद्या पर पूरा भरोसा था,
देसी जड़ी बूटियों से उपचार में लगी रही, कब दिन गया ,कब रात, उसे कोई सुध नहीं थी,
गाँव वालों ने उसे उसके हाल पर छोड़ दिया था,
अब एक बूढी माँ के दिल का दर्द कौन जाने,
उसकी ममता का आँचल उन लोगों की सोच से शायद कहीं ऊपर था,
जड़ी बूटियाँ पीसकर खिलाने के लिए वो उसका मुंह खोलती, लेकिन उसका जबड़ा तो कसकर भिंच गया था,वो जड़ी बूटियों को बिल्कुल पनीला कर उसे पिलाने की कोशिश करती,
वो सोचती थी,यदि दो बूँद भी पेट में गयी तो बहुत राहत मिलेगी,
समय तो अपनी गति से लगातार घूम रहा था,
इसी बीच दो दिन और गुज़र गए,
उसे ऐसा लगा जैसे उसकी हालत में सुधार होने लगा है, इलाज़ में उसने कोताही नहीं बरती थी ,
पहले से कहीं तेज़ उपचार शुरू कर दिया था,
तीसरे दिन प्रीतम ने आँखें खोल दी, उसकी आँखें खुलते ही बुढ़िया की आँखों से झर झर आंसुओं की धारा बह निकली,
ये उसकी ख़ुशी के आंसू थे,
उसकी निश्वार्थ सेवा ने प्रीतम को जीने पर मजबूर कर दिया था , और उधर यमराज के सिपहसालारों ने हार का बिगुल बजा दिया था,
धीरे धीरे वो पूरी तरह से होश में आने लगा ,
अब वो बुढ़िया थोड़ा संयत हुई और अपने आंसुओं को अपने आँचल से पोंछने लगी,
उसने मन में सोचा,
इसके साथ परिवार के सदस्य की तरह व्यवहार किया जाए या बेटे की तरह या ठीक करने वाले हकीम वैद्य की तरह ,
वो प्रीतम के पास पहुंची और उसके सर पर हाथ फेरा, और उससे पूछा : बेटा ,अब कैसी तबियत है, प्रीतम बिना कुछ कहे इधर उधर देख रहा था,
उसे समझ नहीं आ रहा था, ये मैं कहाँ आ गया,
मुझे तो सर्प ने काटा था, लेकिन उसके बाद का मुझे कुछ याद क्यों नहीं आ रहा ,
लेकिन तभी बुढ़िया ने फिर पूछा : बेटा कुछ तो बोलो ,कैसा लग रहा है........
जारी है..........