17-08-2020, 06:24 PM
अगर यह बालक किसी प्रकार से जीवित हो गया तो मेरा सूना घर आबाद हो जायेगा ,
मुझे बुढ़ापे का एक सहारा मिल जायेगा ,
अचानक से वो अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सोचने लगी , कितनी हंसती खेलती दुनिया थी उसकी, उसका एक प्रीतम जितना बड़ा लड़का था और अपने पति के साथ जिंदगी कुल मिलाकर अच्छी कट रही थी ,
लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि जिसकी कल्पना उसने सपने में भी नहीं की थी ,
उसका लड़का मदन खेतों की तरफ गया था, फसल को पानी वगैरह देना था,
वैसे, बड़े बुज़ुर्ग कहते हैं कि यदि आप ,
अपने खेतों की तरफ रोज़ चक्कर लगाते हैं तो खड़ी फसल भी अपने मालिक को देखकर बहुत प्रसन्न होती है और पैदावार में वृद्धि भी अधिक होती है,
खैर जी, मदन खेतों में पानी लगाने लगा ,
अचानक जिस नाले से पानी आ रहा था,
उस नाले की मिट्टी कट गयी और पानी का फव्वारा फूट पड़ा , खेतों में पानी आना कम हो गया था,
अब मदन उस पूरे नाले को देखता हुआ जा रहा था, देखें कहाँ से पानी कट गया है,
अचानक उसकी नज़र वहां पड़ी ,जहाँ से पानी फूटा था,
वह तुरंत फावड़े से मिट्टी काटकर उस नाले को रोकने का प्रयास करने लगा ,
लेकिन वहां नाले में ही सटी हुई किसी सर्प की बामी थी , ये उसे मालूम ना था,
जल्दी जल्दी मिट्टी उठाने के चक्कर में वो अंधाधुन्द फावड़ा चला रहा था ,
एकाएक वो फावड़ा उस बामी में पड़ा ,
और उस फावड़े के वार से उस बामी में बैठे सर्प की पूंछ कट गयी और तुरंत उस सर्प ने मदन के पैर में काट लिया,
अब मदन का भी वही हाल होने लगा जो प्रीतम का हुआ था,
सर्प के काटने पर, वो शिथिल होकर जमीन पर गिर पड़ा ,
जब गाँव वालों को पता लगा भाग लिए वो उसी तरफ,
मदन का उपचार तरह तरह से होने लगा ,
लेकिन कोई लाभ ना हुआ और वो इस दुनिया को छोड़ कर सदा के लिए चला गया,
उस बूढी काकी की तो दुनिया ही उजड़ गयी,
वाह रे ! ऊपर वाले तुझे जरा भी दया नहीं आई कि तू उसका बुढ़ापे का सहारा छीन रहा है....,
मित्रों , वक्त हर जख्म को भरने का मलहम है ,
आज वो मलहम बूढ़ी काकी के जख्म भरने में लगा था,
उसके आंसू भी वक्त की गोद में कहीं सिमटकर रह गए,
तभी से काकी ने सौगंध खाई कि वह सर्प विद्या सीखेगी और अपने जीते जी किसी का घर नहीं उजड़ने देगी.....
अचानक से वो बुढ़िया अपनी सोच से बाहर निकली .... वो वर्तमान में लौट आई थी,
उसको अपने स्वर्गवासी पति का ध्यान आने पर आंसू निकल पड़े,
जिनके जीते जी हमेशा अपने बुढ़ापे की चिंता लगी रहती और उसी चिंता ने उनकी यह लीला समाप्त कर दी,
बुढ़ापा भी अटल सत्य है, इससे कोई अछूता नहीं....हां इसको वक्त में पीछे ढकेला जा सकता है,
लेकिन टाला बिल्कुल भी नहीं जा सकता.........
इतना सोचते सोचते सूर्योदय होने लगा,
जिससे घाट पर स्त्री पुरुषों का आना प्रारम्भ हो गया ,
अब तो साहब जिसने भी बूढी काकी को इस हालत में देखा ,
वो उधर ही चल पड़ा ,
उनमें से एक बोला ...... “अरे ! काकी तू इस लाश के सर को गोद में रखे क्यों बैठी है, अरे ! इसमें से तो बदबू सी आ रही है, उसने थोड़ा गुस्से से कहा,
बुढ़िया ने कहा : “बेटा कोई तो मदद करो इसको मेरी कुटिया तक ले जाने में ,इतना कहते कहते वो रुआंसा सी हो आई”....
वो आदमी : इसके लिए तू खामखाँ परेशान है, इसके घरवाले क्या बेवकूफ है, अरे ! मरा होगा तभी तो इसे नदी में बहा दिया है, जाने दे छोड़ दे इसकी अर्थी को नदी में ,
बुढ़िया : तुम लोग समझने की कोशिश करो ,मैंने महसूस किया कि इसकी साँसे हल्की हल्की चल रही है...
दूसरा आदमी : देख ये पूरी तरह नीला से पड़ चुका है, मुंह से झाग भी निकल रहा है, क्यों तू इसके पीछे पड़ी है ....
बुढ़िया : अब तुम लोग चाहे जो कहो , लेकिन मैं इसे नहीं छोड़ सकती ,मैं तुम लोगों के आगे हाथ जोड़ती हूँ, मेरी मदद करो....
एक दो स्त्रियाँ मदद के लिए आगे बढ़ी तो उन आदमियों के सर शर्म से झुक गए,
आँखों के इशारे से मदद के लिए एक दुसरे की आँखों में झाँका,
निश्चय किया और उन्होंने अर्थी को हाथ लगाते हुए दुबारा से लाश को उस पर लिटा दिया,
अर्थी को अपने कन्धों पर लेकर गाँव की तरफ चल पड़े ...
वाह री ! किस्मत उस प्रीतम की , कैसा अजब दृश्य .....
जो घरवाले, उसकी अर्थी को कन्धा देकर नदी तक लाये थे, वही अर्थी नदी से दुबारा घर की तरफ चल दी थी, बस अर्थी को उठाने वाले कंधे अलग थे,
कैसी कैसी लीला रचाता है ‘वो’ ,
एक अर्थी दो बार कन्धों पर चल चुकी थी जिनके कंधे नदी तक आ कर रुक गए थे, वहीँ दुसरे कंधे उसे लगातार सहारा दिए जा रहे थे, खैर......
तेरी लीला तू ही जाने.....
पल में कर दे अपनों को बेगाने....
एक तरफ उम्मीद टूट चुकी थी,
और दूसरी तरफ उम्मीद की एक किरण जगमगा उठी थी,
उस अर्थी को उन लोगों ने उसकी कुटिया पर रख दिया ,और वहां से चले तो वह बुढ़िया बोली :
जारी है............
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मुझे बुढ़ापे का एक सहारा मिल जायेगा ,
अचानक से वो अपनी पिछली जिंदगी के बारे में सोचने लगी , कितनी हंसती खेलती दुनिया थी उसकी, उसका एक प्रीतम जितना बड़ा लड़का था और अपने पति के साथ जिंदगी कुल मिलाकर अच्छी कट रही थी ,
लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि जिसकी कल्पना उसने सपने में भी नहीं की थी ,
उसका लड़का मदन खेतों की तरफ गया था, फसल को पानी वगैरह देना था,
वैसे, बड़े बुज़ुर्ग कहते हैं कि यदि आप ,
अपने खेतों की तरफ रोज़ चक्कर लगाते हैं तो खड़ी फसल भी अपने मालिक को देखकर बहुत प्रसन्न होती है और पैदावार में वृद्धि भी अधिक होती है,
खैर जी, मदन खेतों में पानी लगाने लगा ,
अचानक जिस नाले से पानी आ रहा था,
उस नाले की मिट्टी कट गयी और पानी का फव्वारा फूट पड़ा , खेतों में पानी आना कम हो गया था,
अब मदन उस पूरे नाले को देखता हुआ जा रहा था, देखें कहाँ से पानी कट गया है,
अचानक उसकी नज़र वहां पड़ी ,जहाँ से पानी फूटा था,
वह तुरंत फावड़े से मिट्टी काटकर उस नाले को रोकने का प्रयास करने लगा ,
लेकिन वहां नाले में ही सटी हुई किसी सर्प की बामी थी , ये उसे मालूम ना था,
जल्दी जल्दी मिट्टी उठाने के चक्कर में वो अंधाधुन्द फावड़ा चला रहा था ,
एकाएक वो फावड़ा उस बामी में पड़ा ,
और उस फावड़े के वार से उस बामी में बैठे सर्प की पूंछ कट गयी और तुरंत उस सर्प ने मदन के पैर में काट लिया,
अब मदन का भी वही हाल होने लगा जो प्रीतम का हुआ था,
सर्प के काटने पर, वो शिथिल होकर जमीन पर गिर पड़ा ,
जब गाँव वालों को पता लगा भाग लिए वो उसी तरफ,
मदन का उपचार तरह तरह से होने लगा ,
लेकिन कोई लाभ ना हुआ और वो इस दुनिया को छोड़ कर सदा के लिए चला गया,
उस बूढी काकी की तो दुनिया ही उजड़ गयी,
वाह रे ! ऊपर वाले तुझे जरा भी दया नहीं आई कि तू उसका बुढ़ापे का सहारा छीन रहा है....,
मित्रों , वक्त हर जख्म को भरने का मलहम है ,
आज वो मलहम बूढ़ी काकी के जख्म भरने में लगा था,
उसके आंसू भी वक्त की गोद में कहीं सिमटकर रह गए,
तभी से काकी ने सौगंध खाई कि वह सर्प विद्या सीखेगी और अपने जीते जी किसी का घर नहीं उजड़ने देगी.....
अचानक से वो बुढ़िया अपनी सोच से बाहर निकली .... वो वर्तमान में लौट आई थी,
उसको अपने स्वर्गवासी पति का ध्यान आने पर आंसू निकल पड़े,
जिनके जीते जी हमेशा अपने बुढ़ापे की चिंता लगी रहती और उसी चिंता ने उनकी यह लीला समाप्त कर दी,
बुढ़ापा भी अटल सत्य है, इससे कोई अछूता नहीं....हां इसको वक्त में पीछे ढकेला जा सकता है,
लेकिन टाला बिल्कुल भी नहीं जा सकता.........
इतना सोचते सोचते सूर्योदय होने लगा,
जिससे घाट पर स्त्री पुरुषों का आना प्रारम्भ हो गया ,
अब तो साहब जिसने भी बूढी काकी को इस हालत में देखा ,
वो उधर ही चल पड़ा ,
उनमें से एक बोला ...... “अरे ! काकी तू इस लाश के सर को गोद में रखे क्यों बैठी है, अरे ! इसमें से तो बदबू सी आ रही है, उसने थोड़ा गुस्से से कहा,
बुढ़िया ने कहा : “बेटा कोई तो मदद करो इसको मेरी कुटिया तक ले जाने में ,इतना कहते कहते वो रुआंसा सी हो आई”....
वो आदमी : इसके लिए तू खामखाँ परेशान है, इसके घरवाले क्या बेवकूफ है, अरे ! मरा होगा तभी तो इसे नदी में बहा दिया है, जाने दे छोड़ दे इसकी अर्थी को नदी में ,
बुढ़िया : तुम लोग समझने की कोशिश करो ,मैंने महसूस किया कि इसकी साँसे हल्की हल्की चल रही है...
दूसरा आदमी : देख ये पूरी तरह नीला से पड़ चुका है, मुंह से झाग भी निकल रहा है, क्यों तू इसके पीछे पड़ी है ....
बुढ़िया : अब तुम लोग चाहे जो कहो , लेकिन मैं इसे नहीं छोड़ सकती ,मैं तुम लोगों के आगे हाथ जोड़ती हूँ, मेरी मदद करो....
एक दो स्त्रियाँ मदद के लिए आगे बढ़ी तो उन आदमियों के सर शर्म से झुक गए,
आँखों के इशारे से मदद के लिए एक दुसरे की आँखों में झाँका,
निश्चय किया और उन्होंने अर्थी को हाथ लगाते हुए दुबारा से लाश को उस पर लिटा दिया,
अर्थी को अपने कन्धों पर लेकर गाँव की तरफ चल पड़े ...
वाह री ! किस्मत उस प्रीतम की , कैसा अजब दृश्य .....
जो घरवाले, उसकी अर्थी को कन्धा देकर नदी तक लाये थे, वही अर्थी नदी से दुबारा घर की तरफ चल दी थी, बस अर्थी को उठाने वाले कंधे अलग थे,
कैसी कैसी लीला रचाता है ‘वो’ ,
एक अर्थी दो बार कन्धों पर चल चुकी थी जिनके कंधे नदी तक आ कर रुक गए थे, वहीँ दुसरे कंधे उसे लगातार सहारा दिए जा रहे थे, खैर......
तेरी लीला तू ही जाने.....
पल में कर दे अपनों को बेगाने....
एक तरफ उम्मीद टूट चुकी थी,
और दूसरी तरफ उम्मीद की एक किरण जगमगा उठी थी,
उस अर्थी को उन लोगों ने उसकी कुटिया पर रख दिया ,और वहां से चले तो वह बुढ़िया बोली :
जारी है............
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