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Thriller कुछ अनसुनी कहानियाँ और संस्मरण...
#6
आखिरकार प्रीतम के जलप्रवाह की तैयारी की जाने लगी ! इस परिवार का भविष्य और वर्तमान का आसरा वह आज दुनिया छोड़ चुका था,राजेश्वरी,बसंती देवी और जसराम की तो दुनिया ही उजड़ गयी ! उनकी लाल आँखें और उससे निकलते निरंतर आंसू इसकी गवाही दे रहे थे ! प्रीतम के सभी साथी अपने अपने तरीके से उसको याद कर रहे थे ! जसराम उसके पिता का तो अब बहुत बुरा हाल हो चुका था उनको अब होश नहीं था ! चारों तरफ उस करुण क्रंदन की चीखे उस आकाश को भी गुन्जाय मान कर रही थी जैसे वो भी बेचारा आंसुओं के सागर में गोते लगा रहा हो, एक आंसू की बूँद आँखों से निकलकर ठुड्डी तक ना आ पाती , तब तक दूसरी बूँद वही रास्ता खोज लेती ,जैसे होता है ना कि मनुष्य अपना शरीर त्यागने के बाद सीधा परमात्मा को खोज में निकल पड़ता है, पता नहीं उसे ये रास्ता कैसे पता रहता है, और यह सभी ८४ लाख योनियों द्वारा ये अनवरत चलता रहता है वो किसी एक ऐसी कड़ी से जुडा रहता है जिसका छोर सबको पता है लेकिन पता नहीं क्यों वो उसको नकारने में लगा रहता हैं , चारों तरफ का वातावरण बस हाहाकार और चीत्कार की ध्वनि से गूंज रहा था, और उसे वो नभधारी ऐसे फिल्मानें में लगा था जैसे उसके लिए ये चीखना चिल्लाना सब व्यर्थ हैं, तभी भीड़ में किसी की आवाज आई, भईया इस प्रीतम की लाश को ईशन नदी में (यह नदी अलीगढ़ से दक्षिण- पूर्व दिशा सेनिकलती है तथा एटा मैनपूरी जिलोंसे बहती हुई फर्रूखाबाद में प्रवेश करती है। फिर कानपुर देहात के बिल्हौर तहसील के अंतर्गत महगवां से दक्षिण- पूर्वदिशा में बहती हुई अंतः गंगा में मिल जाती है) प्रवाहित कर दें तो कैसा रहे रहेगा,पास में खड़े सभी स्त्री पुरुषों ने अपने अपने सर हां में हला दिए,इसके बाद विधि विधान से लाश को सफ़ेद चादर में लपेटकर ईशन नदी में प्रवाहित करने के लिए लाया गया , अंतिम बार पिता ने अपने लाड़ले बेटे प्रीतम का मुंह देखा , तो आंसुओं की अविरल धारा सारे बंधन तोड़ती हुई फिर से आँखों से आजाद हो गयी ,प्रीतम के पुत्र शेखू को अपने पिता का चेहरा दिखाया गया वो बेचारा उसकी अर्थी (लाश जिस पर लिटाई जाती है) पर ही खेलने लगा उसको क्या मालूम कि अपने मृत पिता के साथ वो अंतिम बार खेल रहा है ,धीरे धीरे उसकी अर्थी से प्रीतम को उठाया गया और नए वस्त्रादि पहनाकर अर्थी सहित ईशन नदी में प्रवाहित कर दिया गया , सभी लोगों ने उस बहती लाश को अंतिम बार प्रणाम किया और शोकाकुल परिवार के साथ घर की ओर लौट पड़े , इसके बाद शोक संतृप्त परिवार ने लौटकर हवन,शुद्धिकरण और सामजिक क्रियायें विधि विधान के साथ संपन्न की ,अब जसराज के परिवार में २ वर्षीय शेखू के अलावा कोई ख़ुशी का आसरा ना बचा था, माँ और पत्नी दिन रात रोती रहती थीं और अपने अपने भाग्य को कोसती रहती थीं जिससे वह चहल पहल वाला घर अब सूना सूना सा लगता था,

उधर ईशन नदी कल कल करती हुई अपनी मस्त चाल में चली जा रही थी जैसे वह अभी अपने प्रेमी से मिलेगी और प्रेमालाप में व्यस्त हो जायेगी , प्रातः कालीन वेला सूर्य का आगमन बस होने ही वाला है जिसकी सूचना पहले ही उसकी लालिमा दे रही है , नदी के किनारे के वृक्षों पर पक्षी अपनी प्यारी प्यारी आवाज़ में कलरव करना प्रारम्भ हो गए हैं, जिसमें एक पक्षी की धवनि उस गीत की तरह लग रही है (एक है तू .......) साफ़ साफ़ सुनाई दे रही है, जिसको सुनकर आभास होता है कि पक्षी भी ईश्वर भजन करते हैं, पश्चिमी तट से थोड़ी दूरी पर गाँव के नज़दीक एक बंगाली परिवार ने अपना निवास एक कुटिया में बना लिया था उस परिवार का मुखिया अभी कुछ समय पूर्व अपनी उम्र पूरी करने के बाद चल बसा था , अब उसकी मुखिया एक बुढ़िया थी , जो उस कुटिया में अब अकेले ही जीवन को गुज़ारने का प्रयत्न कर रही थी , बुढ़िया रोज सुबह सुबह ईशन नदी में स्नान तथा कपड़े धोने के लिए जाती थी , उस रोज भी वह सुबह सुबह लकड़ी टेकती हुई ईशन नदी पर चली जा रह थी ,लेकिन उस रोज़ का सुभावना मौसम नदी की कल कल की आवाज को अत्यधिक लुभावना बना रहा था, धीरे धीरे वह नदी पर पहुंची, स्नान आदि के लिए नदी में प्रवेश किया ,स्नान करने के पश्चात वह नदी के किनारे कपड़े धोने लगी , लेकिन कपड़े धोते धोते उसकी दृष्टि नदी के बीचों बीच उस सफ़ेद चादर में लिपटी अर्थी पर पड़ी , जो शायद कहीं दूर से बही चली आ रही थी, पहले तो बुढ़िया चौंकी लेकिन अगले ही पल वो संयत हो गयी क्योंकि यह यहां की नदियों में सामान्य सी बात होती है, अब वो उस अर्थी की तरफ ध्यान लगाकर देखने लगी, तो उसने ऐसा लगा कि उस अर्थी में लिपटी लाश से कुछ बुलबुले धीरे धीरे उठ रहे हैं , अब तो वो घबरा गयी और इधर उधर देखने लगी, कि काश कोई मदद के लिए मिल जाए और वो उसकी मदद से अर्थी को नदी से निकाल सके, ये कार्य अधिक शीघ्रता से करना था क्योंकि पानी के बहाव में यदि अर्थी बह कर आगे निकल जाती ,तो उसके लिए मुश्किल खड़ी हो जाती, अब उस बुढ़िया ने जल्दी से लाठी उठाई और तेज तेज क़दमों के साथ वापस गाँव की ओर मदद लेने चलने लगी , आज उसकी रफ़्तार पहले से कहीं अधिक थी, उसे उम्मीद सी जगी थी कि उसकी जिंदगी का सूरज अभी शायद अस्त नहीं हुआ है, खैर, बस वो थोड़ा ही आगे चली थी कि दो किसान सुबह सुबह खेती का काम करने में व्यस्त थे, उसने आवाज लगाई तो उन किसानों ने सोचा कि आज ये बुढ़िया इतनी घबराई हुई क्यों है, वो उसके पास आये और उससे पूछा तो, उस बुढ़िया ने सारा हाल कह सुनाया ,लेकिन उन किसानों ने कहा कि काकी तू उस अर्थी के पीछे इतना क्यों परेशान है, जा अपने घर जा, किसी की लाश को उसके घरवालों ने यूहीं थोड़ी बहा दिया होगा,लेकिन बूढ़ी काकी अपनी जिद पर अड़ी रही, अब उन किसानों ने सोचा बस अर्थी को पानी में से ही तो निकालना है इसके बाद ये जानें और इसका काम, ये सोचकर वे दोनों किसान इसके लिए राजी हो गए और बूढ़ी काकी के साथ चल दिए , नदी के समीप आकर देखा वो नदी के बीचोंबीच बह रही थी और बुढ़िया के कपड़े धोने के स्थान से थोड़ा आगे निकल चुकी थी,वे दोनों थोड़ा सा नदी में घुसकर दो बड़ी बड़ी डंडियों की सहायता से अर्थी को निकालने का प्रयास करने लगे ,जैसे ही अर्थी नदी के बिल्कुल किनारे पर आई तो उस बूढ़ी काकी ने गौर से देखा कि हकीकत में उसमें से कुछ बुलबुले उठ और गिर रहे हैं,पेट भी सांस के कारण मंद मंद सी हरकत कर रहा है ,उसे ऐसा लगा, अब उन दोनों किसानों ने अर्थी को नदी के किनारे सूखी जमीन पर रख दिया और वहां से चले गए ,अब उसने धीरे से सिर की तरफ से कफ़न उठाकर देखा तो उस अपरिचित बालक को देखकर उसकी ख़ुशी का ठिकाना ना रहा, उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे वो लेटा लेटा मद्धम मद्धम सांसे ले रहा हो , वो बुढ़िया बंगालिन थी, सर्प,बिच्छू और ज्योतिष के मामले में वो विशेष योग्यता रखती थी ,वह तुरंत समझ गयी कि इसको किसी सर्प ने काटा है जिसको जल प्रवाह कर दिया गया है, बुढ़िया ने अर्थी के ऊपर से पूरा कफ़न का कपड़ा हटा दिया. और उस मृतप्राय बालक के बन्धनों को उस अर्थी से आजाद कर दिया और उसका सिर अपनी गोद में रखकर बैठ गयी, अब उसके मस्तिष्क में यही बात आ रही थी कि ....


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RE: कुछ अनसुनी कहानियाँ और संस्मरण... - by usaiha2 - 17-08-2020, 06:20 PM



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