17-08-2020, 06:18 PM
आज “प्रीतम” बसंत के समान बढ़ते एवं खिलता हुआ ठीक १८ वर्ष की उम्र की देहरी लांघ रहा था,
ऐसा जानकर उसकी माँ “राजेश्वरी”,उसकी पत्नी “बसंती देवी” और उसका पुत्र “शेखू” अत्यधिक प्रसन्न थे ,पिता “जसराम” इस समय कही बाहर गए हुए थे ..
पिता ने अपने पुत्र की शादी अपने समाज की परम्पराओं एवं रीतियों के अनुसार लगभग ५ वर्ष पूर्व ही कर दी थी ,
उन वृद्ध माता पिता का ढलती उम्र में एक ये ही सहारा था ,क्योंकि प्रीतम उनकी अकेली संतान था,प्रीतम के पिता ने उसकी शादी इतनी जल्दी यह सोचकर कर दी थी अगर कल को उसकी आँखें बंद हो गयी तो मेरे बच्चे का कल को कोई सहारा बनें या ना बने ,कम से कम अपनी पत्नी के साथ अपना जीवन गुजार तो सकेगा, और बेचारी उसकी बूढी माँ कहाँ मारी मारी फिरेगी ,
प्रीतम की शादी के कुछ समय बाद एक बच्चे का जन्म हुआ , उसके जन्म पर राजेश्वरी ,जसराम और बसंती देवी ने बड़ी ख़ुशी के साथ अपने रिश्तेदारों ,पड़ोसियों ,को भोजन कराया और साथ में नेग भी दिया . सभी ने उस नवजात शिशु को शुभकामनाएं दी ,उसका नाम “शेखू” रख लिया , दादा ,दादी माता,पिता को शेखू से बहुत लगाव था, इस तरह उसका बहुत लाड़ प्यार से पालन पोषण हो रहा था, अब शेखू २ वर्ष का हो गया था ,
उसके पिता प्रीतम का अभी ठीक से बालकपन भी व्यतीत नहीं हुआ था, वह अभी भी अपने साथियों के साथ गिल्ली डंडा तथा छिपाछिपी जैसे बच्चों के खेल आज भी खेलता था, आज भी वह अपने साथियों के साथ “लकड़ी का खेल” ( इसको देहाती भाषा में “लभा” कहते हैं) खेल रहा था , इसमें एक बच्चे को वृक्ष पर बैठे किसी एक लड़के को छूना होता है और साथ में उस लकड़ी को ( उसको एक गोल घेरे के अन्दर रखा जाता है) भी सुरक्षित रखना होता है,
“सभी बच्चे वृक्षों की शाखाओं पर कौये की तरह बैठे थे जबकि नीचे खड़ा प्रीतम लोमड़ी की तरह उनको तांक रहा था”
वह उनको बार बार छूने का प्रयत्न कर रहा था लेकिन वे लोग “गूलर के फूल की तरह उसके हाथ नहीं आ रहे थे ,वो बेचारा असहाय इधर से उधर घूम रहा था,तभी उसके साथी ने लकड़ी को छू लिया,उस लकड़ी को पुनः दूर फ़ेंक दिया गया ,अबकी बार वह लकड़ी दूर घास में पड़ी थी जिसको उठाने के लिए प्रीतम को वहां जाना पड़ा ! उसके साथियों को क्या पता था कि उनका ये खेल अपने प्रिय साथी से बिछड़वा देगा. !
वहां वो प्रीतम जैसे ही उस घास में से लकड़ी उठाने गया उसको एक काले सर्प ने काट लिया .. कुछ ही पल में प्रीतम बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा,उसके साथियों ने ये देखा तो घबरा कर उसके पास पहुंचे , अपने उस अजीज साथी को इस हालत में देखकर सभी उसको उठाने का प्रयत्न करने लगे लेकिन उसका शरीर शिथिल और शिथिल होने लगा , उसकी साँसें धीमी गति से लगातार और धीमी होती जा रही थीं, जैसे जैसे समय बीत रहा था वो मौत के निकट जा रहा था, जब साथियों के उठाने पर भी वह नहीं उठा, तभी किसी ने पास में जाते हुए उस सर्प को देख लिया, उनको यकीन हो गया कि निश्चित ही इसे सर्प ने डंस लिया है. सभी बुरी तरह से चीखने चिल्लाने लगे, उनकी चीख पुकार गाँव वालों ने सुनी तो दौड़ पड़े उसी तरफ , धीरे-धीरे गाँव के सैंकड़ों स्त्री पुरुष का हुजूम इकठ्ठा हो गया , घरवालों ने सुना कि प्रीतम को एक सर्प ने काट लिया है तो घर में कोहराम मच गया , जैसे थे उसी हालत में दौड़ पड़े
अपने उस लाड़ले प्रीतम की ओर, गाँव के बड़े बुज़ुर्ग सभी अपने अपने तरीके से प्राथमिक देसी उपचार बताने लगे ,लेकिन प्रीतम की हालत लगातार में कोई सुधार नहीं हो रहा था, सारे गाँव में मातम सा छा गया था, उसका पुत्र शेखू अपने आप में मगन था , वह अपनी माँ के अंचल से लिपटा हुआ कभी इधर बैठी स्त्रीओं को देखता कभी उस ओर, उस मासूम को क्या पता उसका पिता पल हर पल उससे दूर बहुत दूर होता जा रहा है, तभी किसी ने सलाह दी क्यों ना प्रीतम के शरीर को नीम के पत्ते में दबाकर रख दिया जाए आखिरकार यही सुनिश्चित हुआ और उसके शरीर को नीम के पत्तों के बीच ढक दिया गया , उसकी माँ और पत्नी का बुरा हाल था , रो रो कर अपनी आँखें सुजा रखी थी ,कभी अपने बाल नोंचती ,कभी छाती पीटती ,उनकी शक्लें पागल महिलाओं सी हो गयी थीं,स्त्रीयों का हुजूम उनको समझा रहा था और संभाल रहा था , लेकिन कभी कभी वे उन्हें भी दुत्कार देती थीं, उनकी यह हालत देख पिता भी अपनी आँखों में निकलते आंसुओं के सैलाब का ना रोक सके, समय भी अपनी
निर्बाध गति से बढ़ा जा रहा था, और कोई भी उसको पकड़ने का साहस तक नहीं दिखा पा रहा था,
आखिरकार धीरे-धीरे भगत एवं बायगीर उनके निवास स्थान पर इकठ्ठा होने लगे, उन्होंने अपने झाड़ फूँक, तंत्र मंत्र करने शुरू किये किये लेकिन सफलता ना मिल सकी ,यह कार्य दो-तीन दिन चलता रहा लेकिन इसका कोई लाभ नहीं मिला, अपनी अपनी तरह से सभी ने काफी प्रयास किये लेकिन इसी बीच प्रीतम के शरीर से बदबू आने लगी , तो वहां बैठे भगतों ,बायगीरों और स्त्री पुरुषों ने उसको मुर्दा समझना शुरू कर दिया ! फिर भी उसे उसकी माँ की ममता उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी,
लेकिन जब इसके कुछ घंटों के बाद प्रीतम के शरीर से अधिक बदबू आने लगी तो लोगों ने कहा , भाई जसवंत जो ईश्वर को मंजूर था वो हो चुका ,इसलिए अब इसकी अंतिम क्रिया का बदोबस्त करो , सबकी सहमती से प्रीतम के पिता ने अंतिम क्रिया के लिए हाँ कह दी , और गांव के वृद्ध जानकार लोग उसकी अंतिम क्रिया की तैयारी करने लगे!
“वैसे यह आम धारणा है कि सर्प के काटे को कभी जलाया नहीं जाता है ! उसको या तो जल में प्रवाहित करते हैं या मिट्टी के बर्तन में (नाद में ) सीधा बिठाकर समाधि दे दी जाती है !”
जारी है......
ऐसा जानकर उसकी माँ “राजेश्वरी”,उसकी पत्नी “बसंती देवी” और उसका पुत्र “शेखू” अत्यधिक प्रसन्न थे ,पिता “जसराम” इस समय कही बाहर गए हुए थे ..
पिता ने अपने पुत्र की शादी अपने समाज की परम्पराओं एवं रीतियों के अनुसार लगभग ५ वर्ष पूर्व ही कर दी थी ,
उन वृद्ध माता पिता का ढलती उम्र में एक ये ही सहारा था ,क्योंकि प्रीतम उनकी अकेली संतान था,प्रीतम के पिता ने उसकी शादी इतनी जल्दी यह सोचकर कर दी थी अगर कल को उसकी आँखें बंद हो गयी तो मेरे बच्चे का कल को कोई सहारा बनें या ना बने ,कम से कम अपनी पत्नी के साथ अपना जीवन गुजार तो सकेगा, और बेचारी उसकी बूढी माँ कहाँ मारी मारी फिरेगी ,
प्रीतम की शादी के कुछ समय बाद एक बच्चे का जन्म हुआ , उसके जन्म पर राजेश्वरी ,जसराम और बसंती देवी ने बड़ी ख़ुशी के साथ अपने रिश्तेदारों ,पड़ोसियों ,को भोजन कराया और साथ में नेग भी दिया . सभी ने उस नवजात शिशु को शुभकामनाएं दी ,उसका नाम “शेखू” रख लिया , दादा ,दादी माता,पिता को शेखू से बहुत लगाव था, इस तरह उसका बहुत लाड़ प्यार से पालन पोषण हो रहा था, अब शेखू २ वर्ष का हो गया था ,
उसके पिता प्रीतम का अभी ठीक से बालकपन भी व्यतीत नहीं हुआ था, वह अभी भी अपने साथियों के साथ गिल्ली डंडा तथा छिपाछिपी जैसे बच्चों के खेल आज भी खेलता था, आज भी वह अपने साथियों के साथ “लकड़ी का खेल” ( इसको देहाती भाषा में “लभा” कहते हैं) खेल रहा था , इसमें एक बच्चे को वृक्ष पर बैठे किसी एक लड़के को छूना होता है और साथ में उस लकड़ी को ( उसको एक गोल घेरे के अन्दर रखा जाता है) भी सुरक्षित रखना होता है,
“सभी बच्चे वृक्षों की शाखाओं पर कौये की तरह बैठे थे जबकि नीचे खड़ा प्रीतम लोमड़ी की तरह उनको तांक रहा था”
वह उनको बार बार छूने का प्रयत्न कर रहा था लेकिन वे लोग “गूलर के फूल की तरह उसके हाथ नहीं आ रहे थे ,वो बेचारा असहाय इधर से उधर घूम रहा था,तभी उसके साथी ने लकड़ी को छू लिया,उस लकड़ी को पुनः दूर फ़ेंक दिया गया ,अबकी बार वह लकड़ी दूर घास में पड़ी थी जिसको उठाने के लिए प्रीतम को वहां जाना पड़ा ! उसके साथियों को क्या पता था कि उनका ये खेल अपने प्रिय साथी से बिछड़वा देगा. !
वहां वो प्रीतम जैसे ही उस घास में से लकड़ी उठाने गया उसको एक काले सर्प ने काट लिया .. कुछ ही पल में प्रीतम बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा,उसके साथियों ने ये देखा तो घबरा कर उसके पास पहुंचे , अपने उस अजीज साथी को इस हालत में देखकर सभी उसको उठाने का प्रयत्न करने लगे लेकिन उसका शरीर शिथिल और शिथिल होने लगा , उसकी साँसें धीमी गति से लगातार और धीमी होती जा रही थीं, जैसे जैसे समय बीत रहा था वो मौत के निकट जा रहा था, जब साथियों के उठाने पर भी वह नहीं उठा, तभी किसी ने पास में जाते हुए उस सर्प को देख लिया, उनको यकीन हो गया कि निश्चित ही इसे सर्प ने डंस लिया है. सभी बुरी तरह से चीखने चिल्लाने लगे, उनकी चीख पुकार गाँव वालों ने सुनी तो दौड़ पड़े उसी तरफ , धीरे-धीरे गाँव के सैंकड़ों स्त्री पुरुष का हुजूम इकठ्ठा हो गया , घरवालों ने सुना कि प्रीतम को एक सर्प ने काट लिया है तो घर में कोहराम मच गया , जैसे थे उसी हालत में दौड़ पड़े
अपने उस लाड़ले प्रीतम की ओर, गाँव के बड़े बुज़ुर्ग सभी अपने अपने तरीके से प्राथमिक देसी उपचार बताने लगे ,लेकिन प्रीतम की हालत लगातार में कोई सुधार नहीं हो रहा था, सारे गाँव में मातम सा छा गया था, उसका पुत्र शेखू अपने आप में मगन था , वह अपनी माँ के अंचल से लिपटा हुआ कभी इधर बैठी स्त्रीओं को देखता कभी उस ओर, उस मासूम को क्या पता उसका पिता पल हर पल उससे दूर बहुत दूर होता जा रहा है, तभी किसी ने सलाह दी क्यों ना प्रीतम के शरीर को नीम के पत्ते में दबाकर रख दिया जाए आखिरकार यही सुनिश्चित हुआ और उसके शरीर को नीम के पत्तों के बीच ढक दिया गया , उसकी माँ और पत्नी का बुरा हाल था , रो रो कर अपनी आँखें सुजा रखी थी ,कभी अपने बाल नोंचती ,कभी छाती पीटती ,उनकी शक्लें पागल महिलाओं सी हो गयी थीं,स्त्रीयों का हुजूम उनको समझा रहा था और संभाल रहा था , लेकिन कभी कभी वे उन्हें भी दुत्कार देती थीं, उनकी यह हालत देख पिता भी अपनी आँखों में निकलते आंसुओं के सैलाब का ना रोक सके, समय भी अपनी
निर्बाध गति से बढ़ा जा रहा था, और कोई भी उसको पकड़ने का साहस तक नहीं दिखा पा रहा था,
आखिरकार धीरे-धीरे भगत एवं बायगीर उनके निवास स्थान पर इकठ्ठा होने लगे, उन्होंने अपने झाड़ फूँक, तंत्र मंत्र करने शुरू किये किये लेकिन सफलता ना मिल सकी ,यह कार्य दो-तीन दिन चलता रहा लेकिन इसका कोई लाभ नहीं मिला, अपनी अपनी तरह से सभी ने काफी प्रयास किये लेकिन इसी बीच प्रीतम के शरीर से बदबू आने लगी , तो वहां बैठे भगतों ,बायगीरों और स्त्री पुरुषों ने उसको मुर्दा समझना शुरू कर दिया ! फिर भी उसे उसकी माँ की ममता उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी,
लेकिन जब इसके कुछ घंटों के बाद प्रीतम के शरीर से अधिक बदबू आने लगी तो लोगों ने कहा , भाई जसवंत जो ईश्वर को मंजूर था वो हो चुका ,इसलिए अब इसकी अंतिम क्रिया का बदोबस्त करो , सबकी सहमती से प्रीतम के पिता ने अंतिम क्रिया के लिए हाँ कह दी , और गांव के वृद्ध जानकार लोग उसकी अंतिम क्रिया की तैयारी करने लगे!
“वैसे यह आम धारणा है कि सर्प के काटे को कभी जलाया नहीं जाता है ! उसको या तो जल में प्रवाहित करते हैं या मिट्टी के बर्तन में (नाद में ) सीधा बिठाकर समाधि दे दी जाती है !”
जारी है......