06-03-2019, 09:12 PM
साली, सलहज एक साथ
जीजा का आधा मुँह काला था और बाकी आधे पर मैं सफेद वार्निश का पेंट लगा रही थी।
भाभी जो अब पीठ पर काला रंग लगा रही थीं, बोल पडीं-
“अरे नन्दें तो साल्ली सब कि सब होती ही हैं बचपन की छिनाल, ये क्यों नहीं कहती की मेरे नंदोई ही बहनचोद हैं बल्कि साथ-साथ…”
ये कहते हुए उन्होंने अपना कालिख लगा हुआ हाथ उनके पिछवाड़े डाल दिया और-
“गान्डू हैं…”
कहकर अपनी बात पूरी की।
जीजा की चिहुंक से हम लोगों को अन्दाज लग गया कि भाभी ने कहां रंग लगाया है।
भोले स्वर में भाभी ने कहा-
“अरे, नन्दोई जी, एक उंगली में ही… मुझे तो मालूम था कि आप बचपन के गान्डू हैं। लगता है प्रैक्टिस छूट गई है। खैर… मैं करवा देती हूं…”
बेचारे जीजाजी, उनके दोनों हाथ बंधे थे और साली और सलहज दोनों…
भाभी खूब जमकर पिछवाड़े अन्दर तक और मैं भी खूब जमकर… मैंने सिर में खूब सूखा रंग और बाकी हर जगह अपना पक्का पैंट… जीजा की अच्छी हालत हो रही थी।
भाभी तभी एक बाल्टी में रंग भरकर ले आयीं। जीजाजी के ‘वहां’ इशारा करते हुए, बोलीं-
“यह जगह अब तक लगता है बची है…”
(सुबह की भांग की दो-दो गुझिया, जीजा ने मेरी चूची की जो रगड़ायी की, होली का माहौल, मैं भी बेशर्म हो गई थी)
मैं- “हां भाभी…”
कहकर मैंने उनका पाजामा आगे की ओर खींच दिया, और भाभी ने पूरी बाल्टी का रंग ‘उसके’ ऊपर उड़ेल दिया। पर भाभी ने फिर कहा-
“अरे, वहां पेन्ट भी तो लगाओ…”
और उन्होंने मेरा पेंट लगा हाथ जीजाजी के पाजामे में डालकर ‘उसे’ पकड़ा दिया।
पहली बार मेरे कुँवारे, टीन हाथों ने ‘उसे’ छुआ था और मैं एकदम सिहर गई। मेरी पूरी देह में मस्ती छा गई। लेकिन मैं घबड़ा, शर्मा रही थी… वह खूब कड़ा… बड़ा… लग रहा था।
भाभी ने फोर्स करते हुये कहा-
“अरे, होली के दिन साली जीजा का लण्ड पकड़ने में शर्मायेगी तो… कैसे चलेगा? अभी चूत में जायेगा तो चूतर उठा-उठा करके लीलोगी…”
और उन्होंने मेरे हाथ में लण्ड पकड़ा ही दिया।
मैं भी मस्ती में लण्ड में रगड़कर पेंट लगाने लगी।
इसी बीच जीजाजी ने अपना हाथ छुड़ा लिया। पर जब तक वह पकड़ पाते हम आंगन के दूसरे छोर पर थे। जीजा ने रंग भरी बाल्टी उठाई और सीधे भाभी के रसीले जोबन पर निशाना लगाकर फेंका। पर भाभी भी कम थोड़े ही थीं, उन्होंने भी जीजा के मेरे हाथ लगने के बाद खड़े पाजामा फाड़ते, टेंटपोल पर फेंका।
तब तक जीजू के निशाने पे मैं आ गई थी।
उन्होंने मेरे किशोर उभरते हुए उभारों पर इस तरह रंग फेंका कि, मैं एकदम गीली हो गई। ब्रा तो पहले ही हट गई थी और अब मेरी चूचियां टाइट और गीली फ्राक से चिपक कर एकदम साफ दिख रही थीं। जब तक मैं संभलती जीजा के दूसरे वार ने ठीक मेरी जांघों के बीच रंग की धार डाल दी।
मैं उत्तेजना से एकदम कांप गई। उस समय तो अगर मुझे जीजा पकड़कर… तो मैं…
पर भाभी ने बोला- “अरे तू भी तो डाल… और हाँ ठीक निशाने पे…”
मैं भी एकदम बेशर्म हो गई थी। मैंने भी जीजू के पाजामे के अन्दर से झलकते खड़े लण्ड पर सीधे रंग भरी बाल्टी डाल दी।
देर तक गीले रंगों की होली चलती रही। जीजा टापलेस तो थे ही, मेरे और भाभी के ‘ठीक निशाने’ पर डाले गये रंग से ‘उनका’ एक बित्ते का… खूंटा सा खड़ा… साफ दिख रहा था। और मेरी भी पुरानी टाईट, झीनी फ्राक देह से ऐसी चिपकी थी कि… पूरा जोबन का उभार… और नीचे भी गोरी-गोरी जांघें… फ्राक एकदम टांगों के बीच चिपकी हुई थी।
जीजू बस ऐसे जोश में थे कि लग रहा था कि उनका बस चले तो मुझे वहीं चोद दें (और उस हालत में, मैं मना भी नहीं करती)।
पर तभी एक गड़बड़ हो गई। भाभी ने एक बाल्टी रंग दीदी के ऊपर भी डाल दिया।
और फिर तो दीदी ने भाभी को पकड़ लिया और उन दोनों के बीच नो होल्ड्स बार्ड होली चालू हो गई। मैं अकेली रह गई।
जीजा का आधा मुँह काला था और बाकी आधे पर मैं सफेद वार्निश का पेंट लगा रही थी।
भाभी जो अब पीठ पर काला रंग लगा रही थीं, बोल पडीं-
“अरे नन्दें तो साल्ली सब कि सब होती ही हैं बचपन की छिनाल, ये क्यों नहीं कहती की मेरे नंदोई ही बहनचोद हैं बल्कि साथ-साथ…”
ये कहते हुए उन्होंने अपना कालिख लगा हुआ हाथ उनके पिछवाड़े डाल दिया और-
“गान्डू हैं…”
कहकर अपनी बात पूरी की।
जीजा की चिहुंक से हम लोगों को अन्दाज लग गया कि भाभी ने कहां रंग लगाया है।
भोले स्वर में भाभी ने कहा-
“अरे, नन्दोई जी, एक उंगली में ही… मुझे तो मालूम था कि आप बचपन के गान्डू हैं। लगता है प्रैक्टिस छूट गई है। खैर… मैं करवा देती हूं…”
बेचारे जीजाजी, उनके दोनों हाथ बंधे थे और साली और सलहज दोनों…
भाभी खूब जमकर पिछवाड़े अन्दर तक और मैं भी खूब जमकर… मैंने सिर में खूब सूखा रंग और बाकी हर जगह अपना पक्का पैंट… जीजा की अच्छी हालत हो रही थी।
भाभी तभी एक बाल्टी में रंग भरकर ले आयीं। जीजाजी के ‘वहां’ इशारा करते हुए, बोलीं-
“यह जगह अब तक लगता है बची है…”
(सुबह की भांग की दो-दो गुझिया, जीजा ने मेरी चूची की जो रगड़ायी की, होली का माहौल, मैं भी बेशर्म हो गई थी)
मैं- “हां भाभी…”
कहकर मैंने उनका पाजामा आगे की ओर खींच दिया, और भाभी ने पूरी बाल्टी का रंग ‘उसके’ ऊपर उड़ेल दिया। पर भाभी ने फिर कहा-
“अरे, वहां पेन्ट भी तो लगाओ…”
और उन्होंने मेरा पेंट लगा हाथ जीजाजी के पाजामे में डालकर ‘उसे’ पकड़ा दिया।
पहली बार मेरे कुँवारे, टीन हाथों ने ‘उसे’ छुआ था और मैं एकदम सिहर गई। मेरी पूरी देह में मस्ती छा गई। लेकिन मैं घबड़ा, शर्मा रही थी… वह खूब कड़ा… बड़ा… लग रहा था।
भाभी ने फोर्स करते हुये कहा-
“अरे, होली के दिन साली जीजा का लण्ड पकड़ने में शर्मायेगी तो… कैसे चलेगा? अभी चूत में जायेगा तो चूतर उठा-उठा करके लीलोगी…”
और उन्होंने मेरे हाथ में लण्ड पकड़ा ही दिया।
मैं भी मस्ती में लण्ड में रगड़कर पेंट लगाने लगी।
इसी बीच जीजाजी ने अपना हाथ छुड़ा लिया। पर जब तक वह पकड़ पाते हम आंगन के दूसरे छोर पर थे। जीजा ने रंग भरी बाल्टी उठाई और सीधे भाभी के रसीले जोबन पर निशाना लगाकर फेंका। पर भाभी भी कम थोड़े ही थीं, उन्होंने भी जीजा के मेरे हाथ लगने के बाद खड़े पाजामा फाड़ते, टेंटपोल पर फेंका।
तब तक जीजू के निशाने पे मैं आ गई थी।
उन्होंने मेरे किशोर उभरते हुए उभारों पर इस तरह रंग फेंका कि, मैं एकदम गीली हो गई। ब्रा तो पहले ही हट गई थी और अब मेरी चूचियां टाइट और गीली फ्राक से चिपक कर एकदम साफ दिख रही थीं। जब तक मैं संभलती जीजा के दूसरे वार ने ठीक मेरी जांघों के बीच रंग की धार डाल दी।
मैं उत्तेजना से एकदम कांप गई। उस समय तो अगर मुझे जीजा पकड़कर… तो मैं…
पर भाभी ने बोला- “अरे तू भी तो डाल… और हाँ ठीक निशाने पे…”
मैं भी एकदम बेशर्म हो गई थी। मैंने भी जीजू के पाजामे के अन्दर से झलकते खड़े लण्ड पर सीधे रंग भरी बाल्टी डाल दी।
देर तक गीले रंगों की होली चलती रही। जीजा टापलेस तो थे ही, मेरे और भाभी के ‘ठीक निशाने’ पर डाले गये रंग से ‘उनका’ एक बित्ते का… खूंटा सा खड़ा… साफ दिख रहा था। और मेरी भी पुरानी टाईट, झीनी फ्राक देह से ऐसी चिपकी थी कि… पूरा जोबन का उभार… और नीचे भी गोरी-गोरी जांघें… फ्राक एकदम टांगों के बीच चिपकी हुई थी।
जीजू बस ऐसे जोश में थे कि लग रहा था कि उनका बस चले तो मुझे वहीं चोद दें (और उस हालत में, मैं मना भी नहीं करती)।
पर तभी एक गड़बड़ हो गई। भाभी ने एक बाल्टी रंग दीदी के ऊपर भी डाल दिया।
और फिर तो दीदी ने भाभी को पकड़ लिया और उन दोनों के बीच नो होल्ड्स बार्ड होली चालू हो गई। मैं अकेली रह गई।