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Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#6
.
तब तक कामेश घूमकर अपने बिस्तर की ओर चला गया था, और कामया की ओर ही देख रहा था। कामया धीरे से उठी और चादर लपेटकर ही बाथरूम की ओर चल दी।

लेकिन अंदर जाने से पहले जब पलट कर देखा, फिर कामया चुपचाप बाथरूम में घुस गई और अपने को साफ करने के बाद जब वो बाहर आई तो शायद कामेश सो चुका था। वो अब भी चादर लपेटे हुई थी, और बिस्तर के कोने में आकर बैठ गई थी। सामने ड्रेसिंग टेबल पर कोने से उसकी छवि दिख रही थी, बाल उलझे हुए थे, पर चेहरे पर मायूसी थी कामया के। ज्यादा ना सोचते हुए कामया भी धम्म से अपनी जगह पर गिर पड़ी और कंबल के अंदर बिना कपड़े के ही घुस गई, और सोने की कोशिश करने लगी। न जाने कब वो सो गई और सुबह भी हो गई।

उठते ही कामया ने बगल में देखा, तो कामेश उठ चुका था, शायद बाथरूम में था। वो बिना हिले ही लेटी रही। पर बाथरूम से ना तो कुछ आवाज ही आ रही थी, ना ही पूरे कमरे से। वो झट से उठी और घड़ी की ओर देखा। बाप रे… 8:30 बज चुके हैं। कामेश तो शायद नीचे होगा। जल्दी से कामया बाथरूम में घुस गई और फ्रेश होकर नीचे आ गई। पापाजी, मम्मीजी और कामेश टेबल में बैठे थे, चाय बिस्कुट रखा था टेबल पर। कामया की आहट सुनते ही सब पलटे।

कामेश- क्या बात है, आज तुम्हारी नींद ही नहीं खुली?

कामया- जी।

मम्मीजी- और क्या? सोया कर बहू। कौन सा तुझे जल्दी उठकर घर का काम करना है। आराम किया कर, और खूब घुमा फिरा कर, और मस्ती में रह।

पापाजी- और क्या? क्या करेगी घर पर? यह बोर भी तो हो जाती होगी। क्यों ना कुछ दिनों के लिए अपने मम्मी पापा के घर हो आती बहू?

मम्मीजी- वहां भी क्या करेगी। दोनों ही तो नौकरी वाले हैं, वहां भी घर में बोर होगी।

इतने में कामेश की चाय खतम हो गई और वो उठ गया, कहा- “चलो। मैं तो चला तैयार होने। और पापा आप थोड़ा जल्दी आ जाना…”

पापाजी- हाँ हाँ आ जाऊँगा।

कामेश के जाने के बाद कामया भी उठकर जल्दी से कामेश के पीछे भागी। यह तो उसका रोज का काम था। जब तक कामेश शोरूम नहीं चला जाता था, उसके पीछे-पीछे घूमती रहती थी, और चले जाने के बाद कुछ नहीं बस इधर-उधर फालतू। कामेश अपने कमरे में पहुँचकर नहाने को तैयार था। एक तौलिया पहनकर कमरे में घूम रहा था। जैसे ही कामया कमरे में पहुँची, वो मुश्कुराते हुए कामया से पूछा- “क्यों, अपने पापा मम्मी के घर जाना है क्या? थोड़े दिनों के लिए?”

कामया- “क्यों, पीछा छुड़ाना चाहते हो?” और अपने बिस्तर के कोने पर बैठ गई।

कामेश- “अरे नहीं यार, वो तो बस मैंने ऐसे ही पूछ लिया, पति हूँ ना तुम्हारा। और पापा भी कह रहे थे, इसलिए। नहीं तो हम कहां जी पाऐंगे आपके बिना…” और कहते हुए वो खूब जोर से खिलखिलते हुए हँसते हुए बाथरूम की ओर चल दिया।

कामया- थोड़ा रुकिये ना… बाद में नहा लेना।

कामेश- क्यों, कुछ काम है क्या?

कामया- “हाँ…” और एक मादक सी मुश्कुराहट अपने होंठों पर लाती हुई कहा।

कामेश भी अपनी बीवी की ओर मुड़ा और उसके करीब आ गया। कामया बिस्तर पर अब भी बैठी थी, और कामेश के कमर तक आ रही थी। उसने अपने दोनों हाथों से कामेश की कमर को जकड़ लिया और अपने गाल को कामेश के पेट पर घिसने लगी, और अपने होंठों से किस भी करने लगी। कामेश अपने दोनों हाथों से कामया का चेहरे को पकड़कर ऊपर की ओर उठाया, और कामया की आँखों में देखने लगा। कामया की आँखों में सेक्स की भूख उसे साफ देखाई दे रही थी। लेकिन अभी टाइम नहीं था, वो, अपने शो रूम के लिए लेट नहीं होना चाहता था।

कामेश- “रात को, अभी नहीं। तैयार रहना, ठीक है?” और कहते हुये वो नीचे चुका और अपने होंठों को कामया के होंठों पर रखकर चूमने लगा।

कामया भी कहां पीछे हटने वाली थी। बस झट से कामेश को पकड़कर बिस्तर पर गिरा लिया, और अपनी दोनों जांघों को कामेश के दोनों ओर से घेर लिया। अब कामेश कामया की गिरफ़्त में था। दोनों एक दूसरे में गुत्थम-गुत्था कर रहे थे। कामया तो जैसे पागल हो गई थी। उसने कसकर कामेश के होंठों को अपने होंठों से दबा रखा था, जोर-जोर से चूस रही थी, और अपने हाथों से कामेश के सिर को पकड़कर अपने और अंदर घुसा लेना चाहती थी।

कामेश भी आवेश में आने लगा था, पर दुकान जाने की चिंता उसके दिलो-दोमाग पर हावी थी। थोड़ी सी ताकत लगाकर उसने अपने को कामया के होंठों से छुड़ाया और झुके हुए ही कामया के कानों में कहा- “बाकी रात को…” और हँसते हुए कामया को बिस्तर पर लेटा हुआ छोड़कर ही उठ गया। उठते हुए उसकी तौलिया भी खुल गई थी, पर चिंता की कोई बात नहीं। वो तौलिया को अपने हाथों में लिए ही जल्दी से बाथरूम में घुस गया।

कामया कामेश को बाथरूम में जाते हुए देखती रही। उसकी नजर भी कामेश के लिंग पर गई थी, जो की सेमी रिजिड पोजीशन में था। वो जानती थी की थोड़ी देर के बाद वो तैयार हो जाता, और कामया की मन की मुराद पूरी हो जाती। पर कामेश के ऊपर तो दुकान का भूत सवार था। वो कुछ भी हो जाए उसमें देरी पसंद नहीं करता था। वो भी चुपचाप उठी और कामेश का इंतेजार करने लगी।

कामेश को बहुत टाइम लगता था बाथरूम में, शेव करने, और नहाने में। फिर भी कामया के पास कोई काम तो था नहीं, इसलिए वो भी उठकर कामेश की ड्रेस निकालने लगी, और बेड में बैठकर इंतेजार करने लगी। कामेश के बाहर आते ही वो झट से उसकी ओर मुखातिब हुई, और थोड़ा गुस्सा में कहा- “आज जल्दी आ जाना शो रूम से…”

कामेश- “क्यों, कोई खास है क्या?” थोड़ा चुटकी लेते हुए कामेश ने कहा।

कामया- अगर काम ना हो तो क्या शोरूम में ही पड़े रहोगे?

कामेश- हाहाहा… अरे बाप रे। क्या हुआ है तुम्हें, कुछ नाराज सी लग रही हो?

कामया- आपको क्या, मेरी नाराजगी से? आपके लिए तो बस अपनी दुकान। मेरे लिए तो टाइम ही नहीं है।

कामेश- अरे नहीं यार, मैं तो तुम्हारा ही हूँ। बोलो क्या करना है?

कामया- जल्दी आना कहीं घूमने चलेंगे।

कामेश- कहां?

कामया- अरे कहीं भी। बस रास्ते रास्ते में, और फिर बाहर ही डिनर करेंगे।

कामेश- ठीक है। पर जल्दी तो मैं नहीं आ पाऊँगा। हाँ… घूमने और डिनर की बात पक्की है। उसमें कोई दिक्कत नहीं।

कामया- अरे थोड़ा जल्दी आओगे तो टाइम भी तो ज्यादा मिलेगा।

कामेश- तुम भी कामया, कौन कहता है अपने को की जल्दी आ जाना या फिर देर तक बाहर नहीं रहना। क्या फरक पड़ता है अपने को? रात भर बाहर भी घूमते रहेंगे तो भी पापा मम्मी कुछ नहीं कहेंगे।

कामया भी कुछ नहीं कह पाई। बात बिल्कुल सच थी। कामेश के घर से कोई भी बंदिश नहीं थी, कामया और कामेश के उपर। लेकिन कामया चाहती थी की कामेश जल्दी आए तो वो उसके साथ कुछ सेक्स का खेल भी खेल लेती और फिर बाहर घूमते फिरते और फिर रात को तो होना ही था। कामया भी चुप हो गई, और कामेश को तैयार होने में मदद करने लगी।

तभी कामेश ने कहा- अच्छा एक बात बतायो। तुम अगर घर में बोर हो जाती हो तो कहीं घूम फिर क्यों नहीं आती?

कामया- कहां जाऊँ?

कामेश- “अरे बाबा कहीं भी, कुछ शापिंग कर लो, कुछ दोस्तों से मिल लो। ऐसे ही किसी माल में घूम आओ, या फिर कुछ भी तो कर सकती हो पूरे दिन। कोई भी तो तुम्हें मना नहीं करेगा। हाँ…”

कामया- मेरा मन नहीं करता अकेले। और कोई साथ देने वाला नहीं हो तो अकेले क्या अच्छा लगता है?

कामेश- अरे अकेले कहां? कहो तो आज से मेरे दुकान जाने के बाद में लक्खा काका को घर भेज दूँगा। वो तुम्हें घुमा फिराकर वापस घर छोड़ देगा और फिर दुकान चला आएगा। वैसे भी दुकान पर शाम तक दोनों गाड़यां खड़ी ही रहती हैं।

कामया- नहीं।

कामेश- अरे एक बार निकलो तो सही, सब अच्छा लगेगा। पापा को छोड़ने के बाद लक्खा काका को मैं भेज दूँगा। ठीक है?

कामया- अरे नहीं। मुझे नहीं जाना बस, ड्राइवर के साथ अकेले नहीं। हाँ, यह अलग बात थी की मुझे गाड़ी चलानी आती होती तो मैं अकेली जा सकती थी। पर ड्राइवर के साथ नहीं जाऊँगी। बस।

कामेश- “अरे वाह… तुमने तो एक नई बात खोल दी। अरे हाँ…”

कामया- क्या?

कामेश- “अरे तुम एक काम क्यों नहीं करती? तुम गाड़ी चलाना सिख क्यों नहीं लेती? घर में 3 गाड़ियां हैं। एक तो घर में रखे-रखे धूल खा रही है। छोटी भी है, तुम चलाओ ना उसे…” कामेश के घर में 3 गाड़ियां थीं। दो में तो पापा और वो खुद जाता था शोरूम, पर घर में ई-10 मम्मीजी को लेने ले जाने के लिए थी, जो की अब वैसे ही खड़ी थी।

कामया- क्या यार तुम भी? कौन सिखाएगा मुझे गाड़ी? आपके पास तो टाइम नहीं है।

कामेश- “अरे क्यों? लक्खा काका है ना। मैं आज ही उन्हें कह देता हूँ कि तुम्हें गाड़ी सिखा दे…” और एकदम से खुश होकर कामया के गालों को और फिर होंठों को चूम लिया- “और जब तुम गाड़ी चलाना सीख जाओगी, तो मैं पास में बैठा रहूँगा और तुम गाड़ी चलाना…”

कामया- क्यों?

कामेश- “और क्या? फिर हम तुम्हारे इधर-उधर हाथ लगायेंगे, और बहुत कुछ करेंगे। बड़ा मजा आएगा। हीहीही…”

कामया- धत्… जब गाड़ी चलाऊँगी, तब छेड़छाड़ करेंगे, घर पर क्यों नहीं?

कामेश- अरे तुम्हें पता नहीं। गाड़ी में छेड़छाड़ में बड़ा मजा आता है। चलो यह बात पक्की रही की तुम अब गाड़ी चलाना सीख लो जल्दी से।

कामया- नहीं अभी नहीं। मुझे मम्मीजी से पूछना है, इसके बाद कल बताऊँगी। ठीक है?”

फिर दोनों नीचे आ गये। डाइनिंग टेबल पर कामेश का नाश्ता तैयार था। भीमा चाचा का काम बिल्कुल टाइम से बँधा हुआ था। कोई भी देर नहीं होती थी। कामया आते ही कामेश के लिए प्लेट तैयार करने लगी। पापाजी और मम्मीजी पूजा घर में थे, उनको अभी टाइम था। कामेश ने जल्दी से नाश्ता किया और पूजा घर के बाहर से ही प्रणाम करके घर के बाहर की ओर चल दिया।

बाहर लक्खा काका दोनों की गाड़ी को साफ सूफ करके चमकाकर रखते थे। कामेश खुद ड्राइव करता था। पर पापाजी के पास ड्राइवर था लक्खा काका।

कामेश के जाने के बाद कामया भी अपने कमरे में चली आई और कमरे को ठीक-ठाक करने लगी। दिमाग में अब भी कामेश की बात घूम रही थी, ड्राइविंग सीखने की। कितना मजा आएगा, अगर उसे ड्राइविंग आ गई तो? कहीं भी आ जा सकती है, और फिर कामेश से कहकर नई गाड़ी भी खरीद सकती है। वाह… मजा आजेगा। यह बात उसके दिमाग में पहले क्यों नहीं आई? और जल्दी से अपने काम में लग गई। नहा धोकर जल्दी से तैयार होने लगी। वार्डरोब से चूड़ीदार निकाला और पहन लिया। सफेद और लाल कंबिनेशन था, बिल्कुल टाइट फिटिंग का था। मस्त फिगर दिख रहा था उसमें उसका।

तैयार होने के बाद जब उसने अपने को मिरर में देखा तो, गजब की दिख रही थी। होंठों पर एक खूबसूरत सी मुश्कान लिए, उसने अपने ऊपर चुन्नी डाली और मटकती हुई नीचे जाने लगी। सीढ़ी के ऊपर से डाइनिंग स्पेस का हिस्सा दिख रहा था। वहां भीमा चाचा टेबल पर खाने का समान सजा रहे थे। उनका ध्यान पूरी तरह से टेबल की ओर ही था, और कहीं नहीं। पापाजी और मम्मीजी भी अभी तक टेबल पर नहीं आए थे। कामया थोड़ा सा अपनी जगह पर रुक गई।

कामया को कल की बात याद आ गई। भीमा चाचा की नजर और हाथों का स्पर्श उसके जेहन में अचानक ही हलचल मचा दे रहा था। वो जहां थी वहीं खड़ी रह गई, जैसे उसके पैरों में जान ही नहीं है। खड़े-खड़े वो नीचे भीमा चाचा को काम करते देख रही थी।

भीमा चाचा अपने मन से काम में जल्दीबाजी कर रहे थे, और कभी किचेन में और कभी डाइनिंग रूम में बार-बार आ जा रहे थे। वो अब भी वही अपनी पुरानी धोती और एक फाटुआ पहने हुए थे। (फाटुआ एक हाफ बनियान की तरह होता है, जो की पुराने लोग पहना करते थे।)

कामिया खड़े-खड़े भीमा चाचा के बाजू को ध्यान से देख रही थी। कितने बाल थे उनके हाथों में, किसी भालू की तरह, और कितने काले भी, भद्दे से दिखते थे। पर खाना बहुत अच्छा बनाते थे। इतने में पापाजी के आने की आहट सुनकर भीमा जल्दी से किचेन की ओर भागा, और जाते-जाते सीढ़ियों की तरफ भी देखता गया। सीढ़ी पर कोने में कामया खड़ी थी, नजर पड़ी और चले गये। उसकी नजर में ऐसा लगा की उसे किसी का इंतेजार था, शायद कामया का।

कामया के जेहन में यह बात आते ही वो सनसना गई। पति की आधी छोड़ी हुई उत्तेजना उसके अंदर फिर से जाग उठी। वो वहीं खड़ी हुई भीमा चाचा को किचेन में जाते हुए देखती रही।

पापाजी के पीछे-पीछे मम्मीजी भी डाइनिंग रूम में आ गई थी। कामया ने भी अपने को संभाला और एक लम्बी सी सांस छोड़ने के बाद वो भी जल्दी से नीचे की ओर चल पड़ी। पापाजी और मम्मीजी टेबल पर बैठ गये थे। कामया जाकर पापाजी और मम्मीजी को खाना लगाने लगी, और इधर-उधर की बातें करते हुए पापाजी और मम्मीजी खाना खाने लगे थे। कामया अब भी खड़ी हुई पापाजी और मम्मीजी की प्लेट का ध्यान रख रही थी। पापाजी और मम्मीजी खाना खाने में मस्त थे, और कामया खिलाने में। खड़े-खड़े मम्मीजी को कुछ देने के लिए जब वो थोड़ा सा नजर घुमाई तो उसे किचेन का दरवाजा हल्के से नजर आया। तो भीमा चाचा के पैरों पर नजर पड़ी, तो इसका मतलब भीमा चाचा किचेन से छुपकर कामया को पीछे से देख रहे हैं।

कामया अचानक ही सचेत हो गई। खुद तो टेबल पर पापाजी और मम्मीजी को खाना परोस रही थी, पर दिमाग और पूरा शरीर कहीं और था। उसके शरीर में चींटियां सी दौड़ रही थीं। पता नहीं क्यों, पूरे शरीर में सनसनी सी दौड़ गई थी कामया के? उसके मन में जाने क्यों एक अजीब सी हलचल सी मच रही थी। टाँगें अपनी जगह पर नहीं टिक रही थीं। ना चाहते हुए भी वो बार-बार इधर-उधर हो रही थी। एक जगह खड़े होना उसके लिए दूभर था। अपनी चुन्नी को ठीक करते समय भी उसका ध्यान इस बात पर था की चाचा पीछे से उसे देख रहे हैं, या नहीं? पता नहीं क्यों उसे इस तरह का चाचा का छुपकर देखना अच्छा लग रहा था, उसके मन को पुलकित कर रहा था। उसके शरीर में एक अजीब सी लहर दौड़ रही थी।

कामया का ध्यान अब पूरी तरह से अपने पीछे खड़े चाचा पर था। नजर सामने पर ध्यान पीछे था। उसने अपनी चुन्नी को पीछे से हटाकर दोनों हाथों से पकड़कर अपने सामने की ओर हाथों पर लपेट लिया और खड़ी होकर पापा और मम्मीजी को खाते हुए देखती रही। पीछे से चुन्नी हटने की बजह से उसकी पीठ, कमर और नीचे नितम्ब बिल्कुल साफ-साफ शेप को उभार देते हुए दिख रहे थे। कामया जानती थी की वो क्या कर रही है?

एक कहावत है की औरत को अपनी सुंदरता को दिखाना आता है कैसे और कहां यह उसपर निर्भर करता है?

कामया जानती थी की चाचा अब उसके शरीर को पीछे से अच्छे से देख सकते हैं। वो जानबूझ कर थोड़ा सा झुक कर मम्मीजी और पापाजी को खाना देती थी और थोड़ा सा मटकती हुई वापस खड़ी हो जाया करती थी। उसके पैर अब भी एक जगह नहीं टिक रहे थे।

इतने में पापाजी का खाना हो गया तो पापाजी बोले- “अरे बहू, तुम भी खा लो। कब तक खड़ी रहोगी? चलो बैठ जाओ…”

कामया- जी पापाजी, बस मम्मीजी का हो जाए फिर खा लूँगी।

मम्मीजी- “अरे अकेले-अकेले खाओगी क्या? चलो बैठ जाओ। अरे भीमा?”

कामया- अरे मम्मीजी आप खा लीजिए मैं थोड़ी देर से खा लूँगी।

भीमा- जी माँजी।

कामया- अरे कुछ नहीं, जाओ मैं बुला लूँगी।

मम्मीजी- “अरे अकेली-अकेली क्या?” और बीच में ही बात अधूरी छोड़कर मम्मीजी भी खाने के टेबल से उठ गई और थोड़ा सा लंगड़ाती हुई बेसिन में हाथ धोकर मुड़ी।

तब तक पापाजी भी तैयार होकर अपने रूम से निकल आए, और बाहर की ओर जाने लगे। मम्मीजी और कामया भी उनके पीछे-पीछे दरवाजे की ओर चल दी।

बाहर पोर्च में लक्खा काका गाड़ी का दरवाजा खोले सिर नीचे किए खड़े थे। वही अपनी धोती और एक सफेद कुर्ता पहने मजबूत कद-काठी वाले काका पापाजी के बहुत ही, बल्की पूरी परिवार के, बड़े ही विस्वासपात्र नौकर थे। कभी भी उनके मुख से किसी ने ना नहीं सुना था। बहुत कम बोलते थे और काम ज्यादा करते थे। सभी नौकरों में भीमा चाचा और लक्खा काका का कद परिवार में बहुत ज्यादा ऊँचा था। खैर, पापाजी के गाड़ी में बैठने के बाद लक्खा भी जल्दी से दौड़कर सामने की ओर ड्राइवर सीट पर बैठ गया, और गाड़ी गेट के बाहर की ओर दौड़ गई।

मम्मीजी के साथ कामया भी अंदर की ओर पलटी। मम्मीजी तो बस थोड़ी देर आराम करेंगी और कामया खाना खाकर सो जाएगी। रोज का रूटीने कुछ ऐसा ही था, कि कामया पापाजी और मम्मीजी के साथ खाना खा लेती थी, पर आज उसने जानबूझ कर अपने को रोक लिया था। वो देखना चाहती थी की जो वो सोच रही थी क्या वो वाकई सच है, या फिर सिर्फ उसकी कल्पना मात्र था? वो अंदर आते ही दौड़कर अपने कमरे में चली गई।

पीछे से मम्मीजी की आवाज आई- “अरे बहू, खाना तो खा ले?”

कामया- जी मम्मीजी बस आई।

मम्मीजी अपने रूम की ओर जाते समय भीमा को आवाज देती हैं- “भीमा, बहू ने खाना नहीं खाया है, थोड़ा ध्यान रखना…”

भीमा- जी माँ जी।

भीमा जब तक डाइनिंग रूम में आता, तब तक कामया अपने कमरे में जा चुकी थी। भीमा खड़ा-खड़ा सोचने लगा की क्या बात है, आज छोटी बहू ने साहब लोगों के साथ क्यों नहीं खाया? और टेबल से जूठे प्लेट और ग्लास उठाने लगा। पर उसके भीतर जो कुछ चल रहा था वो सिर्फ भीमा ही जानता था। उसकी नजर बार-बार सीढ़ियों की ओर चली जाती थी की शायद बहू उतर रही है। पर जब तक वो डाइनिंग रूम में रहा तब तक बहू नहीं उतरी।

भीमा सोच रहा था की जल्दी से बहू खाना खा ले तो वो आगे का काम निबटाए। पर पता नहीं बहू को क्या हो गया था? लेकिन वो तो सिर्फ एक नौकर था, उसे तो मालिकों का ध्यान ही रखना है, चाहे जो भी हो, यह तो उसका काम है। सोचकर वो प्लेट और ग्लास धोने लगा।

भीमा अपने काम में मगन था की किचेन में अचानक ही बहुत ही तेज सी खुशबू फैल गई थी। उसने पलटकर देखा तो बहू खड़ी थी किचेन के दरवाजे पर। भीमा बहू को देखता रहा गया। जो चूड़ीदार वो पहने हुए थी वो चेंज करके आई थी। एक महीन सी हल्के पीले कलर की साड़ी पहने थी, और साथ में वैसा ही स्लीवलेश ब्लाउज़। एक पतली सी लाइन सी दिख रही थी साड़ी की, जो की उसकी चूचियों के उपर से उसके ब्लाउज़ को ढका हुआ था, बाल खुले हुए थे और होंठों पर गहरे रंग की लिपस्टिक थी, आँखों में और होंठों में एक मादक मुश्कान लिए बहू किचेन के दरवाजे पर एक रति की तरह खड़ी थी।

भीमा सब कुछ भूलकर सिर्फ कामया के रूप का रसपान कर रहा था। उसने आज तक बहू को इतने पास से या फिर इतने गौर से कभी नहीं देखा था किसी अप्सरा जैसा बदन था उसका। उतनी ही गोरी और सुडौल, क्या फिगर है और कितनी सुंदर, जैसे हाथ लगाओ तो काली पड़ जाए। वो अपनी सोच में डूबा था की उसे कामया की खिलखिलती हुई हँसी सुनाई दी।

कामया- “अरे भीमा चाचा, खाना लगा दो भूख लगी है। और नल बंद करो, सब पानी बह जाएगा…” और हँसती हुई पलटकर डाइनिंग रूम की ओर चल दी।

भीमा कामया को जाते हुए देखता रहा। पता नहीं क्यों आज उसके मन में कोई डर नहीं था, जो इज्जत वो इस घर के लोगों को देता था, वो कहां गायब हो गया था उसके मन से पता नहीं? वो कभी भी घर के लोगों की तरफ देखना तो दूर आखें मिलाकर भी बात नहीं करता था, पर जाने क्यों वो आज बिंदास कामया को सीधे देख भी रहा था और उसकी मादकता का रसपान भी कर रहा था।

जाते हुए कामया की पीठ थी भीमा की ओर जो की लगभग आधे से ज्यादा खुली हुई थी। शायद सिर्फ ब्रा की लाइन में ही थी, या शायद ब्रा ही नहीं पहना होगा, पता नहीं? लेकिन महीन सी ब्लाउज़ के अंदर से उसका रंग साफ-साफ दिख रहा था। गोरा और चमकीला सा और नाजुक और गदराया सा। वैसे ही हिलते हुए नितम्ब जो की एक दूसरे से रगड़ खा रहे थे, और साड़ी को अपने साथ ही आगे पीछे की ओर ले जा रहे थे।

भीमा खड़ा-खड़ा कामया को किचेन के दरवाजे पर से ओझल होते देखता रहा, और किसी बुत की तरह खड़ा हुआ प्लेट हाथ में लिए शून्य की ओर देख रहा था। तभी उसे कामया की आवाज सुनाई दी।

कामया- चाचा कहा तो लगा दो।

भीमा झट से प्लेट सिंक पर छोड़कर नल बंद करके लगभग दौड़ते हुए डाइनिंग रूम में पहुँच गया, जैसे की देर हो गई तो शायद कामया उसकी नजर से फिर से दूर ना हो जाए। वो कामया को और भी देखना चाहता था, मन भरकर उसके नाजुक बदन को, उसकी खुशबू को वो अपनी सांसों में बसा लेना चाहता था। झट से वो डाइनिंग रूम में पहुँच गया और कहा- “जी छोटी बहू, अभी देता हूँ…” कहते हुए वो कामया के लिये प्लेट लगाने लगा।

कामया का पूरा ध्यान टेबल पर था। वो भीमा के हाथों की ओर देख रही थी। बालों से भरा हुआ मजबूत और कठोर हाथ प्लेट लगाते हुए उसकी मांसपेशियों में हल्का सा खिचाव भी हो रहा था, उससे उसकी ताकत का अंदाजा लगाया जा सकता था। कामया के जेहन में कल की बात घूम गई, जब भीमा चाचा ने उसके पैरों की मालिश की थी। कितने मजबूत और कठोर हाथ थे।

और भीमा जो की कामया से थोड़ा सा दूर खड़ा था प्लेट और कटोरी, चम्मच को आगे करके फिर खड़ा हो गया हाथ बाँधकर।

पर कामया कहां मानने वाली थी? आज कुछ प्लानिंग थी उसके मन में शायद, कहा- “अरे चाचा, परोस दीजिए ना प्लीज…” और बड़ी इठलाती हुई दोनों हाथों को टेबल पर रखकर बड़ी ही अदा से भीमा की ओर देखा।

भीमा जो की बस इसी इंतेजार में ही था की आगे क्या करे? तुरंत आर्डर मिलते ही खुश हो गया। वो थोड़ा सा आगे बढ़कर कामया के करीब खड़ा हो गया और सब्जी, पराठा, सलाद, दाल और फिर, पर उसकी आँखें कामया पर थीं, उसकी बातों पर थी, उसके शरीर पर से उठ रही खुशबू पर थी, नजरें ऊपर से उसके उभारों पर थी जो की लगभग आधी बाहर थी ब्लाउज़ से, सफेद गोल-गोल से मखमल जैसे या फिर रूई के गोले सा ब्लाउज़ का कपड़ा भी इतना महीन था की अंदर से ब्रा की लाइनिंग भी दिख रही थी। भीमा अपने में ही खोया कामया के नजदीक खड़ा-खड़ा यह सब देख रहा था।

कामया बैठी हुई कुछ कहते हुए अपना खाना खा रही थी। कामया को भी पता था की चाचा की नजर कहां है? पर वो तो चाहती ही यही थी। उसके शरीर में उत्तेजना की जो लहर उठ रही थी, वो आज तक शादी के बाद कामेश के साथ नहीं उठी थी। वो अपने को किसी तरह से रोके हुए, बस मजे ले रही थी। वो जानती थी की वो खूबसूरत है। पर वो जो सेक्सी दिखती है, यह वो साबित करना चाहती थी, शायद अपने को ही। पर क्यों? क्या मिलेगा उसे यह सब करके? पर फिर भी वो अपने को रोक नहीं पाई थी। जब से उसे भीमा चाचा की नजर लगी थी, वो कामाग्नि में जल उठी थी।

तभी तो काल रात को कामेश के साथ एक वाइल्ड सेक्स का मजा लिया था पर वो मजा नहीं आया था। पर हाँ… कामेश उतेजित तो था रोज से ज्यादा, पर उसने कहा नहीं कामया को की वो सेक्सी थी। कामया तो चाहती थी की कामेश उसे देखकर रह ना पाए, और उस पर टूट पड़े, उसे निचोड़कर रख दे, बड़ी ही बेदर्दी से उसे प्यार करे। वो तो पूरा साथ देने को तैयार थी, पर कामेश ऐसा क्यों नहीं करता? वो तो उसकी पत्नी थी, वो तो कुछ भी कर सकता है उसके साथ। पर क्यों वो हमेशा एग्ज़िक्युटिव स्टाइल में रहता है? क्यों नहीं सेक्स के समय भूखा दरिन्दा बन जाता? क्यों नहीं है उसमें इतनी समझ? उसके देखने का तरीका भी वैसा नहीं है की वो खुद ही उसके पास भागी चली जाए? बस जब देखो तब बस पति ही बने रहते हैं, कभी-कभी प्रेमी और सेक्स मेनियक भी तो बन सकता है वो?

लेकिन भीमा चाचा की नजरों में उसने वो भूख देखी, जो की उसे अपने पति में चाहिए था। भीमा चाचा के लालाइत नजरों ने कामया के अंदर एक ऐसी आग भड़का दी थी की कामया, एक शुशील और पढ़ी लिखी बड़े घर की बहू, आज डाइनिंग टेबल पर अपने ही नौकर को लुभाने की चाल चल रही थी। कामया जानती थी की भीमा चाचा की नजर कहां है? और वो आज क्यों इस तरह से खुलकर उसकी ओर देख और बोल पा रहे हैं? वो भीमा चाचा को और भी उकसाने के मूड में थी। वो चाहती थी की चाचा अपना आपा खो दें, और उस पर टूट पड़ें। इसलिए वो हर वो कदम उठाना चाहती थी। उसने जानबूझ कर अपनी साड़ी का पल्लू और भी ढीला कर दिया, ताकि भीमा ऊपर से उसकी गोलाइयों का पूरा लुत्फ ले सके और उनके अंदर उठने वाली आग को वो आज भड़का देना चाहती थी।

कामया के इस तरह से बैठे रहने से, भीमा ना कुछ कह पा रहा था और न ही कुछ सोच पा रहा था। वो तो बस मूक दर्शक बनकर कामया के शरीर को देख रहा था, और अपने बूढ़े हो गए शरीर में उठ रही उत्तेजना की लहर को छुपाने की कोशिश कर रहा था। वो चाह कर भी अपनी नजर कामया की चूचियों पर से नहीं हटा पा रहा था, और न ही उसके शरीर पर से उठ रही खुशबू से दूर जा पा रहा था, वो किसी बुत की तरह खड़ा हुआ अपने हाथ टेबल पर रखे हुए थोड़ा सा आगे की ओर झुका हुआ कामया की ओर एकटक टकटकी लगाए हुए देख रहा था, और अपने गले के नीचे थूक को निगलता जा रहा था। उसका गला सूख रहा था। उसने जिंदगी में भी कभी इस बात की कल्पना भी नहीं की थी की उसको कामया जैसी लड़की एक बड़े घर की बहू इस तरह से अपना यौवन देखने की छूट देगी, और वो इस तरह से उसके पास खड़ा हुआ इस यौवन का लुत्फ उठा सकता था। देखना तो दूर, आज तक उसने कभी कल्पना भी नहीं किया था।

नजर उठाकर देखना तो दूर नजर जमीन से ऊपर तक नहीं उठाई थी उसने कभी। और आज तो जैसे जन्नत के सफर में था वो, एक अप्सरा उसके सामने बैठी थी। वो उसकी आधी खुली हुई चूचियों को मन भर के देख रहा था, उसकी खुशबू सूंघ सकता था, और शायद हाथ भी लगा सकता था। पर हिम्मत नहीं हो रही थी। तभी कामया की आवाज उसके कानों में टकराई।
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RE: कामया बहू से कामयानी देवी - by jaunpur - 06-03-2019, 09:00 PM



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