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Adultery कामया बहू से कामयानी देवी
#5
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यह कहानी एक बड़े ही मध्यम वर्गीय परिवार की लड़की की है नाम है कामया। कामया एक बहुत ही खूबसूरत और पढ़ी लिखी लड़की है। पापा उसके प्रोफेसर थे और माँ बैंक की कर्मचारी। शादी भी कामया की एक बहुत बड़े घर में हुई थी, जो की उस शहर के बड़े ज़्वेलर थे। बड़ा घर… घर में सिर्फ 4 लोग थे, कामया के ससुरजी, सासू माँ, कामेश और कामया बस।

बाकी नौकर भीमा, जो की खाना बनाता था और घर का काम करता था, और घर में ही ऊपर छत पर बने हुए कमरे में रहता था। ड्राइवर लक्खा, पापाजी और मम्मीजी का पुराना ड्राइवर था, जो की बाहर मंदिर के पास एक कमरे में, जो ससुरजी ने बनाकर दिया था, रहता था।

कामेश के पास दूसरा ड्राइवर था भोला, जो की बाहर ही रहता था। रोज सुबह भोला और लक्खा आते थे और गाड़ी साफ करके बाहर खड़े हो जाते थे, घर का छोटा-मोटा काम भी करते थे। कभी भी पापाजी और मम्मीजी या फिर कामेश को किसी काम के लिये ना नहीं किया था। गेट पर एक चौकीदार था जो की कंपाउंड में ही रहता था आउटहाउस में, उसकी पत्नी घर में झाड़ू पोंछा और घर का काम जल्दी ही खतम करके दुकान पर चली जाती थी, साफ-सफाई करने।

पापाजी और मम्मीजी सुबह जल्दी उठ जाते थे और अपने पूजा पाठ में लग जाते थे। नहा धोकर कोई 11:00 बजे पापाजी दुकान के लिये निकल जाते थे और मम्मीजी दिन भर मंदिर के काम में लगी रहती थी। (घर पर ही एक मंदिर बना रखा था उन्होंने, जो की पापाजी और मम्मीजी के कमरे के पास ही था)। मम्मीजी के जोड़ों में दर्द रहता था इसलिये ज्यादा चल फिर नहीं पाती थी, इसलिए हमेशा पूजा पाठ में मस्त रहती थी। घर के काम की कोई चिंता थी नहीं, क्योंकी भीमा सब संभाल लेता था।

भीमा को यहां काम करते हुए लगभग 30 साल हो गये थे। कामेश उनके सामने ही जन्मा था इसलिये कोई दिक्कत नहीं थी। पुराने नौकर थे तभी सब बेफिक्र थे। वैसे ही लक्खा था, बात निकालने से पहले ही काम हो जाता था।

सुबह से ही घर का महौल बिल्कुल व्यवस्थित होता था। हर कोई अपने काम में लगा रहता था। फ्री होती थी तो बस कामया। कोई काम नहीं था बस पति के पीछे-पीछे घूमती रहती थी और कुछ ना कुछ डिमांड करती रहती थी, जो की शाम से पहले ही पूरी हो जाती थी।

कामेश और कामया की सेक्स लाइफ भी मस्त चल रही थी, कोई शिकायत नहीं थी दोनों को। जमकर घूमते फिरते थे और खाते पीते थे और रात को सेक्स। सब कुछ बिल्कुल मन के हिसाब से, ना कोई रोकने वाला, ना कोई टोकने वाला।

पापाजी को सिर्फ दुकान से मतलब था, मम्मीजी को पूजा पाठ से।

कामेश को अपने बिज़नेस को और बढ़ाने की धुन थी। छोटी सी दुकान से कामेश ने अपनी दुकान को बहुत बड़ा बना लिया था। पढ़ा-लिखा ज्यादा नहीं था पर सोने चाँदी के उत्तरदाइत्वों को वो अच्छे से देख लेता था और प्राफिट भी कमा लेता था। अब तो उसने रत्नों का काम भी शुरू कर दिया था। हीरा, रूबी, मोती और बहुत से।

घर भर में एक बात सबको मालूम थी की कामया के आने के बाद से ही उनके बिज़नेस में चाँदी हो गई थी, इसलिए सभी कामया को बहुत इज्जत देते थे। पर कामया दिन भर घर में बोर हो जाती थी, ना किचेन में काम और ना ही कोई और जिम्मेदारी। जब मन हुआ तो शापिंग चली जाती थी। कभी किसी दोस्त के पास, तो कभी पापा मम्मी से मिलने, तो कभी कुछ, तो कभी कुछ। इसी तरह कामया की शादी के 10 महीने गुजर गये। कामेश और पापाजी जी कुछ पहले से ज्यादा बिजी हो गये थे।

पापाजी हमेशा ही यह कहते थे की कामया तुम्हारे आते ही हमारे दिन फिर गये हैं। तुम्हें कोई भी दिक्कत हो तो हमें बताना, क्योंकी घर की लक्ष्मी को कोई दिक्कत नहीं होना चाहिए। सभी हँसते और खुश होते। कामया भी बहुत खुश होती और फूली नहीं समाती।

घर के नौकर तो उससे आखें मिलाकर बात भी नहीं करते थे।

अगर वो कुछ कहती तो बस- “जी बहू रानी…” कहकर चल देते और काम हो जाता।

लेकिन कामया के जीवन में कुछ खालीपन था जो वो खुद भी नहीं समझ पाती थी की क्या? सब कुछ होते हुए भी उसकी आखें कुछ तलाशती रहती थीं। क्या? पता नहीं? पर हाँ कुछ तो था जो वो ढूँढ़ती थी। कई बार अकेले में कामया बिलकुल खाली बैठी शून्य को निहारती रहती, पर ढूँढ़ कुछ ना पाती। आखिर एक दिन उसके जीवन में वो घटना भी हो गई। (जिस पर यह कहानी लिखी जा रही है।)

***** *****
उस दिन घर पर हमेशा की तरह घर में कामया मम्मीजी और भीमा थे। कामवाली झाड़ू पोंछा करके निकल गई थी। मम्मीजी पूजा घर में थी कामया ऊपर से नीचे उतर रही थी। शायद उसे किचेन की ओर जाना था, भीमा से कुछ कहने के लिये। लेकिन सीढ़ी उतरते हुए उसका पैर आखिरी सीढ़ी में लचक खाकर मुड़ गया।

दर्द के मारे कामया की हालत खराब हो गई। वो वहीं नीचे, आखिरी सीढ़ी में बैठ गई और जोर से भीमा को आवाज लगाई- “भीमा चाचा, जल्दी आओ…”

भीमा दौड़ता हुआ आया और कामया को जमीन पर बैठा देखकर पूछा- क्या हुआ बहू रानी?

कामया- “उफफ्फ़…” और कामया अपनी एंड़ी पकड़कर भीमा की ओर देखने लगी।

भीमा जल्दी से कामया के पास जमीन पर ही बैठ गया और नीचे झुक कर वो कामया की एंड़ी को देखने लगा।

कामया- “अरे देख क्या रहे हो? कुछ करो, बहुत दर्द हो रहा है…”

भीमा- पैर मुड़ गया क्या?

कामया- “अरे हाँ… ना… प्लीज चाचा, बहुत दर्द हो रहा है…”

भीमा जो की कामया के पैर के पास बैठा था कुछ कर पाता, तब तक कामया ने भीमा का हाथ पकड़कर हिला दिया, और कहा- क्या सोच रहे हो, कुछ करो की कामेश को बुलाऊँ?

भीमा- “नहीं नहीं, मैं कुछ करता हूँ, रुकिये। आप उठिए और वहां चेयर पर बैठिये…” और साइड होकर खड़ा हो गया।

कामया- “क्या चाचा… थोड़ा सपोर्ट तो दो…”

भीमा थोड़ा सा आगे बढ़ा और कामया के बाजू को पकड़कर उठाया और थोड़ा सा सहारा देकर डाइनिंग चेयर तक ले जाने लगा। कामया का दर्द अब भी वैसा ही था। लेकिन बड़ी मुश्किल से वो भीमा का सहारा लिए चेयर तक पहुँची और धम्म से चेयर पर बैठ गई। उसके पैरों का दर्द अब भी वैसा ही था। वो चाहकर भी दर्द को सहन नहीं कर पा रही थी, और बड़ी ही दयनीय नजरों से भीमा की ओर देख रही थी।

भीमा भी कुछ करने की स्थिति में नहीं था। जिसने आज तक कामया को नजर उठाकर नहीं देखा था, वो आज कामया की बाहें पकड़कर चेयर तक लाया था। कितना नरम था कामया का शरीर, कितना मुलायम और कितना चिकना। भीमा ने आज तक इतनी मुलायम, चिकनी और नरम चीज नहीं छुआ था। भीमा अपने में गुम था की उसे कामया की आवाज सुनाई दी।

कामया- “क्या चाचा, क्या सोच रहे हो?” और कामया ने अपनी साड़ी को थोड़ा सा ऊपर कर दिया और भीमा की ओर देखते हुए अपने एंड़ी की ओर देखने लगी।

भीमा अब भी कामया के पास नीचे जमीन पर बैठा हुआ कामया की चिकनी टांगों की ओर देख रहा था। इतनी गोरी है बहू रानी और कितनी मुलायम? भीमा अपने को रोक ना पाया, उसने अपने हाथों को बढ़ाकर कामया के पैरों को पकड़ ही लिया और अपने हाथों से उसकी एंड़ी को धीरे-धीरे दबाने लगा।

हल्के हाथों से उसकी एंड़ी के ऊपर तक ले जाता, फिर नीचे की ओर ले आता था, और जोर लगाकर एंड़ी को ठीक करने की कोशिश करने लगा। भीमा एक अच्छा मालिश करने वाला था। उसे पता था की मोच का इलाज कैसे होता है? वो यह भी जानता था की कामया को कहां चोट लगी है, और कहां दबाने से ठीक होगा? पर वो तो अपने हाथों में बहू रानी की सुंदर टांगों में इतना खोया हुआ था की उसे यह तक पता नहीं चला की वो क्या कर रहा था? भीमा अपने आप में खोया हुआ कामया के पैरों की मालिश कर रहा था और कभी-कभी जोर लगाकर कामया की एंड़ी में लगी मोच को ठीक कर रहा था।

कुछ देर में ही कामया को आराम मिल गया और वो बिल्कुल दर्द मुक्त हो गई। उसे जो शांती मिली, उसकी कोई मिशाल नहीं थी। जो दर्द उसकी जान लेने को था अब बिल्कुल गायब था।

इतने में पूजा घर से आवाज आई और मम्मी पूजा छोड़कर धीरे-धीरे लंगड़ाती हुई बाहर आई और पूछा- “क्या हुआ बहू?”

कामया- मम्मीजी, कुछ नहीं सीढ़ी उतरते हुए जरा एंड़ी में मोच आ गई थी।

मम्मीजी- “अरे… कहीं ज्यादा चोट तो नहीं आई?”

तब तक मम्मीजी भी डाइनिंग रूम में दाखिल हो गई और कामया को देखा की वो चेयर पर बैठी है, और भीमा उसकी एंड़ी को धीरे-धीरे दबाकर मालिश कर रहा था।

मम्मीजी ने कामया से कहा- “जरा देखकर चला कर बहू। वैसे भीमा को बहुत कुछ आता है। दर्द का एक्सपर्ट डाक्टर है मालीश भी बहुत अच्छी करता है। क्यों भीमा?”

भीमा- “जी माँ जी, अब बहू रानी ठीक हैं…” कहते हुए उसने कामया के एंड़ी को छूते हुए धीरे से नीचे रख दिया और चला गया। उसने नजर उठाकर भी कामया की ओर नहीं देखा।

लेकिन भीमा के शरीर में एक अजीब तरह की हलचल मच गई थी। आज पता नहीं उसका मन उसके काबू में नहीं था। कामेश और कामया की शादी के इतने दिन बाद आज पता नहीं भीमा जाने क्यों कुछ बिचलित था। बहू रानी के मोच के कारण जो भी उसने आज किया, उसके मन में एक ग्लानि सी थी। क्यों उसका मन बहू की टांगों को देखकर इतना बिचलित हो गया था? उसे नहीं मालूम। लेकिन जब वो वापस किचेन में आया तो उसका मन कुछ भी नहीं करने को हो रहा था। उसके जेहन में बहू की एंड़ी और घुटने तक की टाँगें घूम रही थीं, कितना गोरा रंग था बहू का, कितना सुडौल था, कितना नरम और कोमल था उसका शरीर? सोचते हुए वो ना जाने क्या करता जा रहा था। इतने में किचेन का इंटरकाम बजा।

मम्मीजी- अरे भीमा जरा हल्दी और दूध ला दे, बहू को कहीं दर्द ना बढ़ जाए।

भीमा- “जी माँजी, अभी लाया…” और भीमा फिर से वास्तविकता में लौट आया। फिर दूध और हल्दी मिलाकर वापस डाइनिंग रूम में आया। मम्मीजी और बहू वहीं बैठे हुए आपस में बातें कर रहे थे।

भीमा के अंदर आते ही कामया ने नजर उठाकर भीमा की ओर देखा। पर भीमा तो नजर झुकाए हुए डाइनिंग टेबल पर दूध का ग्लास रखकर वापस किचेन की ओर चल दिया।

कामया- भीमा चाचा थैंक्स।

भीमा- जी… अरे इसमें क्या मैं तो इस घर का नौकर हूँ। थैंक्स क्यों बहू जी?

कामया- “अरे आपको क्या बताऊँ कितना दर्द हो रहा था। लेकिन आप तो कमाल के हो फट से ठीक कर दिया…” ऐसा कहती हुई वो भीमा की ओर बढ़ी और अपना हाथ बढ़ाकर भीमा की ओर किया और आखें उसकी भीमा की ओर ही थीं।

भीमा कुछ नहीं समझ पाया पर हाथ आगे करके- बहू क्या चाहती हो?

कामया- “अरे हाथ मिलाकर थैंक्स करते हैं…” और एक मदहोश करने वाली हँसी पूरे डाइनिंग रूम में गूँज उठी।

माँ जी भी वहीं बैठी हुई मुश्कुरा रही थी। उनके चेहरे पर भी कोई सिकन नहीं थी की बहू उससे हाथ मिलाना चाहती थी।

बड़े ही डरते हुए भीमा ने अपना हाथ आगे किया और धीरे से बहू की हथेली को थाम लिया। कामया ने भी झट से भीमा चाचा की हथेली को कसकर अपने दोनों हाथों से जकड़ लिया, और मुश्कुराते हुए जोर-जोर से हिलाने लगी और थैंक्स कहा।

भीमा जो की अब तक किसी सपने में ही था, और भी गहरे सपने में उतरते हुए उसे दूर बहुत दूर से कुछ थैंक्स जैसा सुनाई दिया। उसके हाथों में अब भी कामया की नाजुक हथेली थी, जो की उसे किसी रूई की तरह लग रही थी, और उसकी पतली-पतली उंगलियां, जो की उसके मोटे और पत्थर जैसी हथेली से रगड़ खा रही थीं, उसे किसी स्वप्नलोक में ले जा रही थी। भीमा की नजर कामया की हथेली से ऊपर उठी, तो उसकी नजर कामया की दाईं चूची पर टिक गई, जो की उसके महीन लाइट ब्लू कलर की साड़ी के बाहर आ गई थी, और डार्क ब्लू कलर के लो-कट ब्लाउज़ से बहुत सा हिस्सा बाहर की ओर दिख रहा था।

कामया अब भी भीमा का हाथ पकड़े हुए हँसते हुए भीमा को थैंक्स कहकर मम्मीजी की ओर देख रही थी और अपनी दोनों नाजुक हथेलियों से भीमा की हथेली को सहला रही थी। कामया ने कहा- “अरे हमें तो पता ही नहीं था, आप तो जादूगर निकले…”

भीमा अपनी नजर कामया के उभारों पर ही जमाए हुए, उसकी सुंदरता को अपने अंदर उतार रहा था और अपनी ही दुनियां में सोचते हुए घूम रहा था।

तभी कामया की नजर भीमा चाचा की नजर से टकराई और उसकी नजर का पीछा करती हुई जब उसने देखा की भीमा की नजर कहां है, तो वो अवाक रह गई, उसके शरीर में एक अजीब सी सनसनी फैल गई। वो भीमा चाचा की ओर देखते हुए, जब मम्मीजी की ओर देखी तो पाया की मम्मीजी उठकर वापस अपने पूजा घर की ओर जा रही थी।

कामया का हाथ अब भी भीमा के हाथ में ही था। कामया भीमा की हथेली की कठोरता को अपनी हथेली पर महसूस कर पा रही थी। उसकी नजर जब भीमा की हथेली के ऊपर उसके हाथ की ओर गई तो, वो और भी सन्न रह गई। मजबूत और कठोर और बहुत से सफेद और काले बालों का समूह था वो। देखते ही पता चलता था की कितना मजबूत और शक्तिशाली है भीमा का शरीर। कामया के पूरे शरीर में एक उत्तेजना की लहर दौड़ गई, जो की अब तक उसके जीवनकाल में नहीं उठ पाई थी, ना ही उसे ये उत्तेजना अपने पति के साथ कभी महसूस हुई थी, और न ही कभी उसके इतने जीवन में।

ना जाने क्या सोचते हुए कामया ने कहा- “कहां खो गये चाचा?” और धीरे से अपना हाथ भीमा के हाथ से अलग कर लिया।

भीमा जैसे नींद से जागा था। झट से कामया का हाथ छोड़कर नीचे चेहरा करते हुए- “अरे बहू रानी, हम तो सेवक हैं। आपके हुकुम पर कुछ भी कर सकते हैं, इस घर का नमक खाया है…” और सिर नीचे झुकाए हुए तेज गति से किचेन की ओर मुड़ गया। मुड़ते हुए उसने एक बार फिर अपनी नजर कामया के उभारों पर टिकाया, और मुड़कर चला गया।

कामया भीमा को जाते हुए देखती रही। ना जाने क्यों वो चाह कर भी भीमा की नजर को भूल नहीं पा रही थी? उसकी नजर में जो भूख कामया ने देखी थी, वो आज तक कामया ने किसी पुरुष के नजर में नहीं देखी थी। ना ही वो भूख उसने कभी अपने पति की ही नजरों में देखी थी। जाने क्यों कामया के शरीर में एक सनसनी सी फैल गई। उसके पूरे शरीर में चिटी सी रेगने लगी थी। उसके शरीर में अजीब सी ऐंठन सी होने लगी थी। अपने आपको भूलने के लिए, उसने अपने सिर को एक झटका दिया और मुड़कर अपने कमरे में आ गई। दरवाजा बंद करके धम्म से बिस्तर पर पड़ गई, और शून्य की ओर एकटक देखती रही।

भीमा चाचा फिर से उसके जेहन पर छा गये थे। फिर से कामया को उसकी नीचे की हुई नजर याद आ गई थी। अचानक ही कामया एक झटके से उठी और ड्रेसिंग टेबल के सामने आ गई, और अपने को मिरर में देखने लगी। साड़ी लेटने के कारण अस्त-व्यस्त थी ही, उसके ब्लाउज़ के ऊपर से भी हट गई थी। गोरे रंग के ऊपर से टाइट कसे हुए ब्लाउज़ और साड़ी के अस्त-व्यस्त होने की वजह से कामया एक बहुत ही सेक्सी औरत दिख रही थी। वो अपने हाथों से अपने शरीर को टटोलने लगी, अपनी कमर से लेकर गोलाई तक। वो जब अपने हाथों को उपर की ओर उठाकर अपने शरीर को छू रही थी, तो अपने अंदर उठने वाली उत्तेजना की लहर को वो रोक नहीं पाई थी। कामया अपने को मिरर में निहारती हुई अपने पूरे बदन को अब एक नई नजरिए से देख रही थी।

आज की घटना ने उसे मजबूर कर दिया था की वो अपने को ठीक से देखे। वो यह तो जानती थी की वो सुंदर दिखती है। पर आज जो भी भीमा चाचा की नजर में था, वो किसी सुंदर लड़की या फिर सुंदर घरेलू औरत के लिए ऐसी नजर कभी भी नहीं हो सकती थी। वो तो सयाद किसी सेक्सी लड़की और फिर औरत के लिए ही हो सकती थी।

क्या वो सेक्सी दिखती है? वैसे आज तक कामेश ने तो उससे नहीं कहा था। वो तो हमेशा ही उसके पीछे पड़ा रहता था, पर आज तक उसने कभी भी कामया को सेक्सी नहीं कहा था। न ही उसने अपने पूरे जीवन काल में ही अपने को इस नजरिए से देखा ही था। पर आज की बात कुछ अलग थी। आज ना जाने क्यों कामया को अपने को मिरर में देखने में बड़ा ही मजा आ रहा था।

वो अपने पूरे शरीर को एक बड़े ही नाटकीय तरीके से कपड़ों के ऊपर से देख रही थी, और हर उभार और गहराई में अपने उंगलियों को चला रही थी। उसने कुछ सोचते हुए अपने साड़ी को उतारकर फेंक दिया और सिर्फ पेटीकोट और ब्लाउज़ में ही मिरर के सामने खड़ी होकर देखती रही। उसके चेहरे पर हल्की सी मुश्कान थी। जब उसकी नजर अपने उभारों पर गई, तो वो और भी खुश हो गई।

उसने आज तक कभी भी इतने गौर से अपने को नहीं देखा था। शायद शादी के बाद जब भी नहाती थी या फिर कामेश तारीफ करता था तो, शायद उसने कभी देखा हो। पर आज जब उसकी नजर अपने उभारों पर पड़ी तो वो दंग रह गई। शादी के बाद वो कुछ और भी ज्यादा गोल और उभर गये थे। शेप और साइज का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता था की करीब 25% हिस्सा उसका ब्लाउज़ से बाहर की ओर था, और 75% जो की अंदर था। एक बहुत ही आकर्षक और सेक्सी महिला के लिए काफी था।

कामया ने जल्दी से अपने ब्लाउज़ और पेटीकोट को भी उतारकर झट से फेंक दिया, और अपने को फिर से मिरर में देखने लगी। पतली सी कमर और फिर लम्बी-लम्बी टांगों के बीच में फँसी हुई उसकी पैंटी, गजब की लग रही थी। देखते-देखते कामया धीरे-धीरे अपने शरीर पर अपना हाथ पूरे शरीर पर घुमाने लगी, ब्रा और पैंटी के उपर से। आआह्ह… क्या सुकून है उसके शरीर को? कितना अच्छा लग रहा था?

अचानक ही उसे भीमा चाचा के कठोर हाथ याद आ गये, और वो और भी बिचलित हो उठी। ना चाहते हुए भी उसके हाथों की उंगलियां उसकी योनि की ओर बढ़ चली, और धीरे-धीरे वो अपने योनि को पैंटी के ऊपर से सहलाने लगी। एक हाथ से वो अपनी चूचियों को धीरे-धीरे दबा रही थी, और दूसरे हाथ से अपनी योनि पर सहला रही थी। उसकी सांसें तेज हो चली थी, खड़े हो पाना दूभर हो गया था, टाँगें कांपने लगी थी, मुख से ‘स्स्शह और आअह्ह’ की आवाजें अब थोड़ी सी तेज हो गई थी। शायद उसे सहारे की जरूरत है, नहीं तो वो गिर जाएगी। वो हल्के से घूमकर बिस्तर की ओर बढ़ी ही थी की अचानक उसके रूम का इंटरकोम बज उठा।

कामया- जी।

मम्मीजी- अरे बहू, चाल आ जा। खाना खा ले। क्या कर रही है ऊपर?

कामया- “जी मम्मीजी। कुछ नहीं, बस आई…” कहकर कामया ने जल्दी से अपने कपड़े पहने और जल्दी से नीचे की ओर भागी।

जब वो नीचे पहुँची तो मम्मीजी डाइनिंग टेबल पर आ चुकी थी, और कामया का ही इंतेजार हो रहा था। वो जल्दी से ठीक-ठाक तरीके से अपनी सीट पर जम गई। पर ना जाने क्यों वो अपनी नजर नहीं उठा पा रही थी। क्यों पता नहीं? शायद इसलिए की आज जो भी उसने अपने कमरे में अकेले में किया।, उससे उसके मन में एक ग्लानि सी उठ रही थी। या कुछ और? क्या पता? इसी उधेड़बुन में वो खाना खाती रही और मम्मीजी की बातों का भी हूँ हाँ में जबाब भी देती रही। लेकिन नजर नहीं उठा पाई। खाना खतम हुआ और वो अपने कमरे की ओर पलटी। तो ना जाने क्यों उसने पलटकर भीमा चाचा की ओर देखा, जो की उसी की तरफ देख रहे थे, जब वो सीढ़ी चढ़ रही थी। और जैसे ही कामया की नजर से टकराई तो। जल्दी से नीचे भी हो गई। कामया पलटकर अपने कमरे की ओर चल दी। और जाकर आराम करने लगी।

सोचते-सोचते पता नहीं कब उसे नींद लग गई। फिर शाम को इंटरकोम की घंटी ने ही उसे उठाया, चाय के लिए। कामया कपड़े बदल कर नीचे आई और चाय पीकर मम्मीजी के साथ टीवी देखने लगी। सुबह की घटना अब उसके दिमाग में नहीं चल रही थी। 8:30 बजे के बाद पापाजी और कामेश घर आ जाते थे दुकान बढ़ाकर।
दोनों के आते ही घर का माहौल कुछ चेंज हो जाता था। सब कुछ जल्दी बाजी में होता था। खाना और फिर थोड़ी बहुत बातें और फिर सभी अपने कमरे की ओर चल देते थे। घर भर में सन्नाटा छा जाता था।

कमरे में पहुँचते ही कामेश कामया से लिपट गया। कामया का पूरा शरीर जल रहा था। वो जाने क्यों आज बहुत उत्तेजित थी। कामेश के लिपटते ही कामया पूरे जोश के साथ कामेश का साथ देने लगी। कामेश को भी कामया का इस तरह से उसका साथ देना कुछ अजीब सा लगा, पर वो तो उसका पति ही था उसे यह पसंद था। पर कामया हमेशा से ही कुछ झिझक सा लिए हुए उसका साथ देती थी। पर आज का अनुभब कुछ अलग सा था। कामेश कामया को उठाकर बिस्तर पर ले गया और जल्दी से कामया को कपड़ों से आजाद करने लगा।

कामेश भी आज पूरे जोश में था। पर कामया कुछ ज्यादा ही जोश में थी, आज लगता था की वो कामेश को खा जाएगी। उसके होंठ कामेश के होंठों को छोड़ते ही नहीं थे, और अपने मुख में लिए जम के चूस रही थी। कभी ऊपर के तो, कभी नीचे के होंठ कामया की जीभ और होंठों के बीच पिस रहे थे। कामेश भी कामया के शरीर पर टूट पड़ा था। जहां भी हाथ जाता कसकर दबाता था, और जितना जोर उसमें था उसका वो इश्तेमाल कर रहा था। कामेश के हाथ कामया की जांघों के बीच में पहुँच गये थे, और अपनी उंगलियों से वो कामया के योनि को टटोल रहा था।

कामया पूरी तरह से तैयार थी। उसकी योनि पूरी तरह से गीली थी। बस जरूरत थी तो कामेश के आगे बढ़ने की। कामेश अपने होंठों को कामया से छुड़ाकर अपने होंठों को कामया की चूचियों पर रख दिया और खूब जोर-जोर से चूसने लगा। कामया धनुष की तरह ऊपर की और उठ गई, और अपने हाथों का दबाब पूरे जोर से उसने कामेश के सिर पर कर दिया। कामेश का पूरा चेहरा उसकी चूचियों से धक गया था। कामेश को सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी, पर किसी तरह से उसने अपनी नाक में थोड़ा सा हवा भरा और फिर जुट गया वो कामया के चूचियों पर।

कामया जो की बस इंतेजार में थी की कामेश उसपर छा जाए। किसी भी तरह से बस उसके शीरीर को खा जाए। और उसके अंदर उठ रहे ज्वार को शांत कर दे। कामेश भी कहां देर करने वाला था। झट से अपने को कामया की गिरफ़्त से आजाद किया और अपने को कामया की जांघों के बीच में पोजीशन किया और दन्न से अंदर।

“आआह्ह्ह…” कामया के मुख से एक जबरदस्त आऽ निकली, और कामेश से चिपक गई, और फिर अपने होंठों को कामेश के होंठों से जोड़ दिया। और अपनी सांसें भी कामेश के मुख के अंदर ही छोड़ने लगी।

कामेश आवेश में तो था ही, पूरे जोश के साथ कामया के अंदर-बाहर हो रहा था। आज उसने कोई भी रहम या ढील नहीं दी थी। बस किसी जंगली की तरह से वो कामया पर टूट पड़ा था। पता नहींक्यों कामेश को आज कामया का जोश पूरी तरह से नया लग रहा था। वो अपने को नहीं संभाल पा रहा था। उसने कभी भी कामया से इस तरह से संभोग करने की नहीं सोची थी। वो उसकी पत्नी थी, सुंदर और पढ़ी लिखी। वो भी एक अच्छे घर का लड़का था, संस्कारी और ऊँचे घर का। उसने हमेशा ही अपनी पत्नी को एक पत्नी की तरह ही प्यार किया था। किसी जंगली या फिर हबसी की तरह नहीं।

कामया नाम के आनुरूप ही सुंदर और नाजुक थी। कामेश ने बड़ा ही संभाल कर ही उसे इश्तेमाल किया था। पर आज कामया के जोश को देखकर वो भी जंगली बन गया था, अपने को रोक नहीं पाया था। धीरे-धीरे दोनों का जोश ठंडा हुआ तो, दोनों बिस्तर पर चित्त लेटकर जोर-जोर से अपने साँसे छोड़नै लगे और किसी तरह अपनी सांसों पर नियंत्रण पाने की कोशिश करने लगे। दोनों थोड़ा सा संभले तो एक दूसरे की ओर देखकर मुश्कुराए।

कामेश कामया की ओर देखता ही रहा गया। आज ना तो उसने अपने को ढकने की कोशिश की और न ही अपने को छुपाने की। वो अब भी बिस्तर पर वैसे ही पड़ी हुई थी, जैसा उसने छोड़ा था। बल्की उसके होंठों पर मुश्कान ऐसी थी की जैसे आज उसको बहुत मजा आया हो।

कामेश ने पलटकर कामया को अपनी बाहों में भर लिया और कहा- क्या बात है, आज कुछ खास बात है क्या?

कामया- “उंह्ह… हूँ…”

कामेश- फिर? आज कुछ बदली हुई सी लगी।

कामया- अच्छा। कैसे?

कामेश- नहीं बस यूं ही। कोई फिल्म वगैरह देखा था क्या?

कामया- नहीं तो। क्यों?

कामेश- “नहीं। आज कुछ ज्यादा ही मजा आया, इसलिए…” और हँसते हुए उठकर बाथरूम की ओर चला गया।

कामया वैसे ही बिस्तर पर बिल्कुल नंगी ही लेटी रही, और अपने और कामेश के बारे में सोचने लगी की कामेश को भी आज उसमें चेंज दिखा है। क्या चेंज? आज का सेक्स तो मजेदार था। बस ऐसा ही होता रहे तो क्या बात है? आज कामेश ने भी पूरा साथ दिया था कामया का। इतने में उसके ऊपर चादर गिर पड़ी, और वो अपनी सोच से बाहर आ गई।

कामेश- चलो उठो।

कामया कामेश की ओर देख रही थी। क्यों उसने उसे ढक दिया। क्या वो उसे इस तरह नहीं देखना चाहता? क्या वो सुंदर नहीं है? क्या वो बस सेक्स के खेल के समय ही उसे नंगा देखना चाहता है, और बाकी समय बस ढक कर रहे वो। क्यों? क्यों नहीं चाहता कामेश उसे नंगा देखना? क्यों नहीं वो चादर को खींचकर गिरा देता है? और फिर उसपर चढ़ जाता है। क्यों नहीं करता वो यह सब? क्या कमी है उसमें?
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RE: कामया बहू से कामयानी देवी - by jaunpur - 06-03-2019, 08:59 PM



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