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Thriller कामुक अर्धांगनी
#71
मधु होले होले वसंत के लिंग को जीभ से सहलाती दाँतो तले लिंग के सुपाड़े को दबाती हुई अपनी बरसों पुरानी की गईं गलती को सुधारती योवन के सुख को बाली उमर सी अठखेलियां करतीं खुद से ही शर्माती झेंपते किसी अलग दुनिया मे खोई थी , न जाने किस सोच मैं डूबी मेरी अर्धांगनी ऐसी भाव बिखेरीं जा रहीं थी कि देख मेरा मन मचल रहा था और जी कर रहा था कि मधु को बाहों मैं कस कर दबोच उसके होंठो को चूस लू फिर मेरी नज़र खुद के मुंफली पर पड़ी जो मेरी अर्धांगनी के नाखूनों से लहूलुहान जलन से तड़प रहे थे और मेरी अण्डे सूज कर कदू की तरह गोल हुए पड़े थे ।

मेरी ख्वाइशों को मधु बेसक कोड़ी के भाव मसल देती और जलील कर मुझे मेरी औक़ात दिखा वसंत के सामने शर्मिंदा कर रुसवा करती जो मैं सह ना पता इशलिये खुद के अरमानों को दिल मे दबा कर मैं बस उन दोनों के काम कला को देखकर संतुष्ट होना उचित समझ बिस्तर पर निर्जीव लाश की तरह पड़ा था ।

मधु के रसीले चुत के इर्द गिर्द वसंत की जीभ लहरा रही थी और उसके मर्दाना हाथों से मधु की मटकती गोल चुत्तर दबी पड़ी थी और अंघुठे के अतिरिक्त दबाब से गाँड की कसमसाई छेद सुगबुगाति स्वतः ही उतेजना से खुल कर सिकुड़ रहे थे ।

ये मनोरम दृश्य अद्भुत जान पड़ता जिसमें दो प्यासे बदन आपस मे खोए अपनी अपनी कामवासना खुल कर खेले जा रहे थे , मधु की चित्कारिया कामुक्ता  के स्वर बरसाए अपने योन प्रेमी को उत्साहित करती उसके लिंग को चूस कर आनंदमयी किये जा रहीं थी , और थूक की लतपत परत से प्रेमी के लिंग का सृंगार कर अपने गीले चुत के लिए सजाए जा रही थी वहीं प्रेमी भी अपने दाँतो से बाहरी परत को काट कर अपनी उतेजना प्रेमिका को महसूस कराएं जा रहा था , चूंकि दोनों पहले ही अद्भुत सहवास का सुख भोग चुके थे इश्लिये दोनों मैं कोई जल्दबाज़ी थी ही नहीं और वो बस एक दूसरे के बदन के उस हिस्से को मुँख सुख दे रहे थे जो अगर उतेजित अवस्ता प्राप्त कर ले तोह ये बिस्तर हिचकोले भरने लग जाएं और तगड़े लिंग के थप्पड़े से मधु के टांगो के बीच वसंत के निचले भाग का मिलन हो जाए और फच फच की गूंज के साथ इठलाती मधु की कमर उठ उठ कर प्रेमी के लिंग को अपने गहरे छिद्र मे समाने को मचल जाए और खुद के डोलते स्तनों को यू मचलते देख प्रेमी के हाथों से मसलवाने को आतुर हो जाये और निढ़ाल पड़ा मैं एक बार फिर खुद को लज्जित करता वीर्य त्यार शर्म से पानी पानी हो जाऊ।


मधु मुँह के गहराई तक वसंत का लिंग स्वतः लेती आंशु बहाती खुद को लिंग पर दबाती मुख मिथुन को बड़े चाव से खेले जा रही थी और वसंत के अंडकोष को थूक से नहला सहलाती लबों से ईश ईश करती वसंत के दाँतो से चुत की चमड़ी खिंचे जाने को महसूस करती अपनी कमर नागिन सी लहराते जाती और वसंत भी खुल कर मधु को मुख मैथुन करता उतेजित करने को संघर्ष किये जाता , काफी सयंम और मुख सुख भोगने के बाद मेरी प्यासी अर्धग्नि कामुक्ता के वसीभूत होती बोली देवर जी अब कितना चाटोगे , वसंत जीभ फेरते जबाब देता बोला बस भाभी ज़रा और , मधु कमर मुख पर दबाती बोली आपका ये लड़ पूरी तरह तैयार कर दी हूँ अब इसे मेरी चुत के गहराईयों मैं डाल कर चर्मसुख दो ना, वसंत हौले से मधु के झाघो को हवा मैं उठा कर मधु की और झांकते बोला क्या रसीली चुत है भाभी जितना नोच खा रहा हूँ उतनी भूख बढ़े जा रहीं हैं ।


मधु शर्मा सी जाती है और खुद के सूजे निप्पल को सहलाते बोलती हैं वहीं मेरी भी हालत है देवर जी लिंग चूस चूस कर थक गई पर फिर भी दिल कहता हैं थोड़ी देर और चूस लू फिर ये सख्त निप्पलों से अवाज़ आती हैं , क्या कहते है ये निप्पल्स भाभी , ये कह रहे कब से दबी पड़ी हुँ कोई तोह चूस कर आनन्द दे दो , वसंत हँसते मधु को बिस्तर पर पलट देता हैं और फौरन मधु के जिस्म पर लेट अपने होठों को उसके होंठो पर रख खुद को उठा हाथों से बड़ी बड़ी चुचियों को जकड़ लेता है और मधु अपनी टांगो को खोल वसंत के कमर पर कस कर फ़सा लेती है और उसके लिंग को अपनी नाभी के ऊपर दबते महसूस करते चुम्बनों की दावत उड़ाने लगती हैं , मधु खुद कमर उठा उठा कर वसंत को इशारे से अपनी तड़पन से अवगत कराती रहती हैं ।

एक लिंग और एक चुत के रास से सने दो अलग जीभ आपस मे टकरा कर एक दुज़े के मुँह मे मुख मैथुन का रस घोले चले जा रहे थे , कभी वसंत मधु के जीभ को चुसता कभी मधु वसंत के जीभ को चूसती और दोनों के मुँह का लार एक दुज़े के मुँह मैं घुल जाता और थूक की एक डोरी खिंच जाती परन्तु दोनों हवस के बसीभूत एक दूसरे की होठों को चुसते काट खाते बस खोए थे ।

आखिर थोड़ी देर बाद वसंत नीचे सरक मधु के कड़क निप्पलों को एक साथ दबा जीभ फेरने लगा और मधु वसंत को देखती सर के बालों को उँगलियों से सहलाते इठलाने लगी और बोली देवर जी थोड़ा दबाओ भी क्या बस चूसे जा रहे हो, पेहले तोह बढ़ा दबा कर दर्द दिया था अब जब लत सी लगने लगी है तोह तड़पा क्यों रहे हो , वसंत रुक कर दोनों हाथों से चुचियों को बेदर्दी से मसलने लगा और मधु हाथों को सर के ऊपर उठा कर बिस्तर खिंचती बोली उफ्फ्फ देवर जी अहह देवर जी कैसे पहन पाऊँगी ब्लाउज अब मे , वसंत और ज़ोर लगाते बोला नंगी ही रहा करो भाभी वैसे भी अगर कुछ पहन भी लोगो तोह कपड़े का हल्का स्पर्श भी मेरी ही याद दिलाएगा , मधु सर को बिस्तर पर उठा तेज़ साँस भर्ती बोली बस यहीं तोह चाहिए मुझे अपने देवर का तपता योवन अपनी तड़पती जिस्म पर हर पल , वसंत के हाथों से चुचियों का बुरा हाल बना हुआ था पर मेरी अर्धांगनी ऐसी अवस्था पर भी वसंत का साथ देती मानो मुझे धितकारति लजीत करती कह रहीं हो , पहले रोकी थी मैं आपको अब रोक नहीं सकती खुद को और वसंत के जीभ को निप्पल पर महसूस करती कमर उठा उठा कर सिसकियाँ भर्ती बोलने लगी देवर जी लड़ डाल दो अब आपकी रांड सह नहीं सकती , वसंत हँसते बोलता है बस थोड़ा और ऐसे ही तड़पते देख लू तुझे मेरी भाभी फिर मेरे लड़ को मज़ा आएगा तेरी चुत के गहराईयों मैं धक्के मारने का और मधु के मुँह से बस वासिम्म्म्म्म मेरे प्यारे देवर जी चोदो ना चोदो ना अपनी भाभी को बोलती काँपते होठों से गिड़गिड़ाती कमर मटकाती तड़पती बिलखती बिस्तर पर अपने देवर के जिस्म से दबी उसके दाँतो को निप्पलों पर महसूस करती जा रहीं थी ।
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RE: कामुक अर्धांगनी - by kaushik02493 - 15-08-2020, 11:42 PM
RE: कामुक अर्धांगनी - by Bhavana_sonii - 24-11-2020, 11:46 PM



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