06-03-2019, 07:00 PM
चक्रव्यहू (6th Part)
"आंटी, आज निक्की काॅलेज क्यों नहीं आयी थीं ?" गेट खोलने वाली महिला से हर्षित ने पूछा तो उसने एक तरफ हटते हुए जवाब में कहा- "पहले तुम अंदर आ जाओ, फिर बताती हूँ।"
"बेटा, अच्छा हुआ कि तुम आ गए। मैं खुद तुम्हें बुलाने वाली थीं, पर मेरे पास तुम्हारा कोई काॅन्टेक्ट नम्बर भी नहीं था और मुझे तुम्हारा घर भी पता नहीं था, इसलिए मेरे पास तुम्हारा वेट करने के अलावा कोई चारा नहीं था।" हर्षित के अंदर आने के बाद गेट खोलने वाली महिला ने उसे बताया।
"क्यों, क्या हुआ ?"
"निक्की कल रात को तुम्हारे जाने के बाद से बहुत अजीब बर्ताव कर रही हैं। वो रात को बिना खाना खाएँ अपने कमरे में चली गई और तब से अभी तक उस कमरे से बाहर नहीं निकली। उसने दरवाजा अंदर से बंद कर रखा हैं और मेरी बात का 'हाँ' और 'ना' के अलावा कोई जवाब भी नहीं दे रही हैं। उसके पापा ने भी ऑफिस जाने से पहले उससे बात करने की काफी कोशिशें की, लेकिन उनकी कोशिशों का भी कोई नतीजा नहीं निकला। समझ में नहीं आ रहा हैं कि इस लड़की का क्या करूँ ?"
"डोंट वरी आंटी, मैं उससे बात करके देखता हूँ।" कहकर हर्षित ने एक कमरे के सामने जाकर उसके दरवाजे पर दस्तक दी और बोला- "निक्की, प्लीज ओपन द डोर।"
"हर्षित, तुम चले जाओं, मैं गेट नहीं खोलूँगी।" उसे अंदर से जवाब मिला।
"अरे यार, तुम क्यों इस तरह बेवजह आंटी को परेशान कर रहीं हो ?"
"तुम्हें अपनी आंटी की इतनी चिंता हैं तो उनकी केयर करने के लिए अपने घर ले जाओ। मेरा सर क्यूँ खा रहे हो ?"
"अरे, लेकिन बताओ तो सही कि तुम गुस्सा किस वजह से हो ?"
"देखो, तुम वजह पता होने के बावजूद अनजान बनने का ड्रामा करके मुझे परेशान करोगे तो मैं मम्मी के सामने हीं वजह बता दूँगी।"
"तुम्हें अपने गले को तकलीफ देने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि मैं खुद हीं तुम्हारी कल रात से की जा रही इस नौटंकी की वजह आंटी को बता रहा हूँ।"
"ओके, बता दो।"
"क्या बात हैं बेटा ?" गेट खोलने वाली महिला ने हर्षित से पूछा।
"आंटी, ये बात सुनने में आपको बहुत अजीब लगेगी बट मेरे पास इसे आपके साथ शेयर करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं हैं, इसलिए बता रहा हूँ। एक्चुअली बात ये हैं कि निक्की को एक लड़के से प्यार हो गया हैं और .....।"
"बस, अब तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नहीं हैं। तुम सिर्फ कैसे भी करके इस दरवाजे को तोड़ दो और चले जाओ। इसके बाद मैं पाँच मिनट के अंदर उसका प्यार का भूत उतार दूँगी।"
"आंटी, आपको निक्की को लेकर परेशान होने या उसे सबक सिखाने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि उसे जिस लड़के प्यार हुआ हैं, वो मैं हीं हूँ और मैंने उसका प्रपोजल एक्सेप्ट भी नहीं किया।"
"अच्छा, इसलिए ये कल रात से भूखी-प्यासी रहकर तुम पर अपना प्रपोजल एक्सेप्ट करने के लिए प्रेशर बना रहीं हैं।"
"हाँ, क्योंकि मुझे पता था कि ये महाशय कल रात से यहीं रूके हुए हैं।" कमरे का गेट खोलकर निक्की ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा।
"ये यहाँ रूका हुआ नहीं था, पर तुम्हें पता था कि तुम्हारे आज काॅलेज न जाने और इसकी काॅल रिसीव न करने पर ये तुम्हारे बारे में पूछने जरूर आएगा और मुझसे इसे तुम्हारी कल रात से अभी तक की गई नौटंकी के बारे में पता चल जाएगा।"
"हाँ, मुझे ये पता था, पर मुझे इस बात की उम्मीद बिलकुल नहीं थी कि हर्षित और आप मेरे सच्चे प्यार को नौटंकी कहेगी।"
"क्या जमाना आ गया हैं ? दूध के दाँत टूटते नहीं और लोगों को प्यार हो जाता हैं। हर्षित, तुमने इसकी अनर्गल माँग को ठुकराकर बहुत सही किया। आज से तुम मेरे बेटे हो और ये ...........।"
"मेरी बहू हैं, यही कहना चाह रही थीं न आप ?"
" हे भगवान, कितनी बेशर्म हैं ये लड़की ? ऐसी लड़की देने से तो अच्छा था कि .....।"
"मुझे हर्षित जैसा एक बेटा दे देते, ताकि मैं इसे अपनी बहू बनाकर उम्रभर इस पर ताने मार-मारकर अपना खाना पचाती रहती, पर अफसोस की बात हैं कि गायत्री देवी की न हर्षित पुत्र रत्न पाने की इच्छा पूरी हुई और न निक्की जैसी किसी मासूम-सी लड़की को अपनी बहू बनाकर जिंदगी भर उस पर तंज कसते रहने की, बाय।" कहकर निक्की ने दुबारा अपने कमरे का गेट बंद कर लिया।
"आन्टी, आप उसे समझा-बुझाकर गेट खुलवा लीजिएगा और कुछ खिला-पिला दीजिएगा। मैं जा रहा हूँ।" माँ-बेटी की बातचीत के दौरान हीं काफी असहज हो चुके हर्षित ने निक्की के गेट बंद करते हीं वहाँ से खिसक जाने की कोशिश की।
"इसे कुछ समझाने-बुझाने या खिलाने-पिलाने के लिए मुझसे मत कहो क्योंकि घंटों खुशामद करके इसे मनाना मेरे बस की बात नहीं हैं।"
"कोई बात नहीं, मैं उसे मना लूँगा।"
"बेटा, मेरी नेक सलाह मानो और उसे उसके हाल पर छोड़ दो। जब भूख उसके बर्दाश्त से बाहर हो जाएगी तो खुद हीं कुछ खा-पी लेगी। तुमने आज यदि उसकी खुशामद करके उसे सर पर चढ़ा लिया तो वो हमेशा तुम्हें वैसे ही अपने इशारो पर नचाएगी, जैसे उसके पापा को नचाती हैं।"
"नचाने दो आंटी, नादान की दोस्ती की हैं तो उसकी सजा तो भुगतनी हीं पड़ेगी।"
"ठीक हैं, तुम नहीं मान रहे तो फिर नाचों इसकी उंगलियों के इशारों पर।" कहकर गायत्री दूसरे कमरे में चली गई।
................
"तुम्हारी स्कूटी में कोई प्राॅब्लम आ गई क्या ?" अगले दिन हर्षित ने निक्की के कमरे में दाखिल होते हुए सवाल किया।
"नहीं।" निक्की ने अपना काॅलेज का बैग पैक करते हुए जवाब दिया।
"तो मुझे काॅल करके क्यों कहा कि तुम आज मेरे साथ काॅलेज जाओगी ?"
"क्योंकि मुझे आज तुम्हारे साथ काॅलेज जाना हैं। तुम्हें मुझे अपने साथ लेकर जाने में कोई प्राॅब्लम हैं ?"
"मुझे कोई प्राॅब्लम नहीं हैं, बट मेरी मम्मा ने तुम्हें मेरी बाइक पर बैठकर जाते देख लिया तो फिर हम दोनों कभी नहीं मिल पाएँगे।"
"क्यूँ ?"
"उन्हें मेरी किसी भी सेम एज गर्ल के साथ नजदीकियाँ पसंद नहीं हैं।"
"ओके, बट व्हाय ?"
"इसका रिजन मुझे नहीं पता। बाइ द वे, आज तुम डेली की तरह अपनी स्कूटी से काॅलेज न जाकर मेरे साथ क्यों जाना चाहती हो।"
"क्योंकि मैं आज से लड़कियों की तरह रहना शुरू कर रही हूँ और मैं इसकी शुरुआत अपनी स्कूटी से कहीं भी अकेले आना-जाना बंद करके करना चाह रही थीं।"
"ओह ! इसका मतलब ये हुआ कि मैडम ने मेरी कल शाम को मजाक में कही बात को दिल पर ले लिया।"
"हाँ, और अब मैं हमेशा ट्रेडिशनल इंडियन गर्ल्स की तरह ही रहूँगी।
"ओके, बट तुमसे ये किसने कह दिया कि ट्रेडिशनल इंडियन गर्ल्स की तरह रहने के लिए अपने व्हीकल से कहीं अकेले आना-जाना बंद करना जरूरी हैं ?"
"तो क्या करना जरूरी हैं ?"
"कुछ खास नहीं, बस माथे पर बिंदी और आँखों में काजल, कान में कुण्डल, हाथों में कंगन और पाँवो में पायल, चेहरे पर सौम्यता और व्यवहार में विनम्रता होनी चाहिए।"
"यार, मानसी ने तो कभी ऐसा कुछ नहीं किया, फिर भी तुमने उसे अपने दिल में जगह दे दी थीं और मुझे दिल में जगह देने के लिए इतनी सारी कंडिशन्स रख रहे हो। कहीं इसकी वजह ये तो नहीं हैं कि वो बहुत हाई क्लास फेमिली की लड़की हैं और मैं लोअर मिडिल क्लास फेमिली की लड़की हूँ ?"
"ऐसा कुछ नहीं हैं और तुम्हारी ये सोच भी गलत हैं कि मैं तुम्हें अपने दिल में जगह देने के लिए तुम्हारे सामने कोई कंडिशन रख रहा हूँ क्योंकि मैंने तुम्हें ये जो कुछ बताया, वो मेरा प्यार पाने की कंडिशन्स नहीं हैं बल्कि ट्रेडिशनल इंडियन गर्ल्स की क्वालिटिज हैं जो तुम्हारे मुझसे पूछने की वजह से मैंने तुम्हें बताई, न कि मैंने तुम्हें तुम्हारी मर्जी न होने के बावजूद भी अपनाने के लिए बताई। तुम्हारी ये बात भी गलत हैं कि मानसी हाई क्लास फेमिली की हैं, इसलिए मैंने उसके सामने बिना कोई कंडिशन रखें उसे अपने दिल में जगह दे दीं थीं और तुम एक जनरल फेमिली की लड़की हो, इसलिए मैं तुम्हें अपने दिल में जगह देने के लिए तुम्हारे सामने इतनी सारी कंडिशन्स रख रहा हूँ। मैंने मानसी के सामने सिर्फ एक हीं कंडिशन रखी थीं और वही तुम्हारे सामने रख रहा हूँ जो ये हैं कि कभी ऐसा कोई काम मत करना, जिसके वजह से मेरे और तुम्हारे रास्ते अलग हो जाए क्योंकि ऐसा होने पर मजबूरन मुझे अपना रास्ता छोड़कर तुम्हारे पीछे आने की जगह तुम्हारा साथ छोड़ने का विकल्प चुनना पड़ेगा।"
"हर्षित, मैं तुमसे प्राॅमिश करतीं हूँ कि मैं कभी ऐसा कोई काम नहीं करूँगी, जिसकी वजह तुम्हारे और मेरे रास्ते अलग हो जाएँगे और तुम्हें मेरा साथ छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ेगा, पर तुम मेरी एक इतनी-सी रिक्वेस्ट एक्सेप्ट कर लो कि मुझसे अनजाने में कभी कोई भूल हो गई तो मुझे उसका अहसास दिलाकर मुझे कोई भी सजा दे देना, पर मेरा साथ मत छोड़ना।"
"डोंट वरी, मैं बिना वार्निंग दिए तुम्हारा साथ नहीं छोड़ूँगा।"
"बट तुमने मानसी साथ तो उसे वार्निंग दिए बिना हीं छोड़ दिया था।"
"तुम गलत बोल रही हो। मानसी का साथ मैंने नहीं छोड़ा, बल्कि उसने खुद मेरे रास्ते से अलग रास्ता चुनकर मेरा साथ छोड़ दिया।"
"पर ऐसा कभी नहीं करूँगी।"
"थैंक्स।"
"थैंक्स नहीं, वो सेंटेंस कहो जिसे सुनने के लिए मेरे सदियों से कान तरस रहें हैं।"
"सदियों से ?"
"हाँ यार। मेरी ख्वाहिश हैं तो ढहाई-तीन साल ही पुरानी, पर ऐसा लग रहा हैं कि मेरी ये ख्वाहिश सदियों पुरानी हैं क्योंकि जब हमें किसी से प्यार हो जाता हैं तो उसके साथ पाने के लिए बिताए गए इंतजार के एक-एक पल बरसों से भी ज्यादा और एक-एक दिन सदियों से भी ज्यादा लम्बे लगते हैं।"
"एक कोश्चन करूँ ?"
"श्योर।"
"यदि मानसी का इगो हम दोनो के प्यार के बीच नहीं आता और वो मेरा साथ नहीं छोड़ती तो तुम क्या करती ?"
"वही जो ढहाई-तीन साल से करती आ रही थीं।"
"यानी ?"
"अकेले में आँसू बहाकर मन का बोझ हल्का करती रहती।"
"ये आँसू बहाने की आदत तुम्हारे अंदर कब से आ गई ?"
"जबसे मुझे मेरे लड़की होने का अहसास हुआ।"
"यानि, ढहाई-तीन साल से ?"
"हाँ।"
"तुम परसो रात को भी रोई थीं क्या ?"
"हाँ।"
"साॅरी यार, मैंने तुम्हें तुम्हारे बर्थडे के दिन खुशियाँ देने की जगह रूलाया।"
"बर्थडे के दिन नहीं, बर्थडे की रात में तुमने मुझे रूलाया। बर्थडे के दिन दिनभर तो मैं ये सोचकर खुश थीं कि आज मेरी सदियों पुरानी तमन्ना पूरी हो जाएगी।"
"अब तो तुम्हारी वो तमन्ना पूरी हो गई न ?"
"कहाँ यार, तुमने मुझसे अपने प्यार का इजहार किया हीं नहीं तो मेरी तमन्ना कैसे पूरी हो जाएगी ?"
"कर तो दिया यार। डायरेक्ट भले ही नहीं किया, पर इनडायरेक्ट तो मैं कल हीं तुमसे अपने प्यार का इजहार कर चुका हूँ।"
"बट मैं डायरेक्ट तुम्हारे मुँह से सुनना चाहती हूँ।"
"निक्की, बिना कहे ऐसे हीं समझ लो न।"
"अरे, पर तुम कह दोगे तो क्या नुकसान हो जाएगा ?"
"नुकसान तो कुछ नहीं होगा, पर मुझे कहने में झिझक हो रही हैं।"
"हर्षित, तुम इतने शर्मिले क्यूँ हो ?"
"क्योंकि ये एक संस्कारी लड़का हैं, तुम्हारी तरह ढीठ और बेशर्म नहीं हैं।" गायत्री ने कमरे में दाखिल होते हुए निक्की के सवाल का जवाब दिया तो निक्की ने बुरा-सा मुँह बनाकर दोनों हाथों से अपना सिर पकड़ लिया।
"सुनो, तुम तो बिगड़ हीं गई हो, अब तुम अपने बराबर इसे मत बिगाड़ों। तुम्हें ये मैं लास्ट बार वार्निंग दे रही हूँ। इसके बाद भी मुझे तुम्हारी ऐसी हरकत नजर आयी तो मुझे इस लड़के को बिगड़ने से बचाने के लिए तुम्हारा इससे मिलना बंद कराना पड़ेगा। बात समझ में आयी या नहीं ?"
"आ गई।" कहने के साथ हीं निक्की अपना बैग और स्कूटी की चाबी उठाकर बाहर निकल गई।
"साॅरी आंटी।" कहने के साथ हीं हर्षित के चेहरे पर अफसोस के भाव उभर आएँ।
"बेटा, तुम क्यों साॅरी बोल रहे हो ? तुमने तो कुछ गलत किया हीं नहीं।"
"जी आंटी, बट निक्की के पैर फिसलने की वजह तो मैं हूँ न ?"
"हाँ, लेकिन ये तो अच्छा हुआ बेटा कि उसका पैर सेफ जगह पर फिसला।"
"बट आंटी ....।"
"कुछ मत बोलो बेटा, बस इतना समझ लो कि निक्की अब तुम्हारी जिम्मेदारी हैं। हाँ, पर यदि तुम निक्की को अपने लायक नहीं समझते हो तो मुझे बता दो, मैं उसे समझा-बुझाकर तुमसे दूर कर दूँगी।"
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