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Non-erotic चक्रव्यहू by Jayprakash Pawar 'The Stranger'
#6
"देख, तू जो कोई भी हैं, तूने हमसे दुश्मनी मोल लेकर अपनी मौत को दावत दीं हैं। हमारे साथी भागे नहीं हैं, वे हमारे दूसरे साथियों को खबर करने गए हैं। हमारा सत्तर लोगों का गैंग हैं। अब वे पूरे एक साथ आकर इस घर पर हमला करेंगे और तुझे मारकर हम लोगों को छुड़ाकर ले जाएँगे।" गैंग के लीडर ने करण के सवाल का जवाब देकर उसे क्रोध और दर्द मिश्रित स्वर में धमकाने का प्रयास किया, लेकिन करण उसकी बात सुनकर वैसे हीं मुस्कराया, जैसे किसी कुत्ते के भौकने पर राह चलता हाथी मुस्कराता हैं। उसने उस युवक से ध्यान हटाकर पिछला द्वार बंद किया और पिछले दरवाजे की ओर देखकर कहा- "मेरे मना करने के बावजूद आप लोग मेरे कहने से पहले अपने कमरे से बाहर क्यों निकल गए ?"

         "मैंने भी इसे मना किया था, लेकिन ये गोली चलने की आवाज सुनते हीं गेट खोलकर बाहर आ गई, इसलिए मुझे भी इसके पीछे-पीछे आना पड़ा।" जवाब में सुलेखा का स्वर सुनाई दिया।

         "मिस्टर करण, आर यू ओके ?" सुलेखा की बात पर करण के कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करने से पहले ही निहारिका का सवाल सुनाई दिया।

          "नहीं मैडम जी, मैं बिलकुल भी ओके नहीं हूँ क्योंकि इन सालों ने मेरे सारे अरमानो पर पानी फेर दिया। मैंने सोचा था कि इनके साथ मुकाबले में मुझे कुछ चोटें आएगी और मैं उन पर आपके कोमल हाथों से पट्टी करवाऊँगा, पर ये आपके सातो भाई एकदम ही कमजोर निकल गए। सालों ने मुझे बड़ी चोट पहुँचाना तो दूर, एक हल्की-सी खरोच तक नहीं पहुँचाई। आप जल्दी पुलिस को खबर कीजिए, मेरा इन गधे के बच्चों को देख-देखकर दिमाग खराब हो गया हैं।"

         "मैं इन लोगों के आते ही पुलिस को खबर कर चुकी हूँ, पुलिस पहुँचने में होगी। आप दरवाजा खोलिए, हम लोग भी उस कमरे में आना चाह रहें हैं।"

          "नहीं मैडम जी, पुलिस के आने से पहले इस कमरे में आप लोगों को इन्ट्री नहीं मिलेगी। क्या अपनी बहन को सामने देखकर इन लोगों को फिर से जोश आ जाए और ये लोग एक साथ मुझ पर हमला करके मेरी चटनी बना दे।"

           "स्नीकी आर्मी मेन।"

           "मैडम जी, हिन्दी में बोलिए। मेरा अंग्रेजी में हाथ थोड़ा तंग हैं, इसलिए आपकी बात मेरे पल्ले नहीं पड़ी।"

           "मैंने कहा था, 'डरपोक फौजी।"

           "तारीफ के लिए शुक्रिया।" कहने के बाद करण उसी पुरानी कुर्सी पर बैठ गया, जिस पर वह लुटेरो के आने से पहले बैठा हुआ था।

          कुछ देर बाद पुलिस ने आकर उन गुण्डों को उठाकर ले गई, जिन्हें करण ने अपनी जाँबाजी से मार-पीटकर अपनी कस्टडी में स्टोर रूम अवरुद्ध करके रखा था। पुलिस के आने के बाद काॅलोनी जो कुछ लोग घर में आए थे, वे पुलिस टीम के रवाना होने के दस मिनट बाद एक-एक करके चलें गए।

          फिर सुलेखा और निहारिका के साथ कुछ देर बातचीत करके करण भी उस कमरे में जाकर सो गया, जिसमें हर्षित सोया हुआ, लेकिन निहारिका और सुलेखा सुबह तक कई अलग-अलग विषयों पर बातचीत करती रहीं। उनकी बातचीत में थोड़ी देर के लिए विघ्न तब हुआ, जब सुलेखा के पति ने रात के करीब ढहाई बजे घर आकर उन दोनों ये खबर दी कि कालिया और उसके साथियों ने ये स्वीकार कर लिया हैं कि उन्होंने सामान्य लूटपाट के इरादे से नहीं, बल्कि सुलेखा के जेठ-जेठानी के कहने पर सुलेखा और उसके बेटे की हत्या करने के इरादे से उनके घर में प्रवेश किया था। इसके आधार पर पुलिस टीम ने रात में सुलेखा के जेठ-जेठानी और उनके मददगार नौकर-नौकरानी को अपनी हिरासत में लेकर उनसे भी उनके जुर्म कबूल करवा लिए हैं। कुछ देर बाद पुलिस टीम आकर निहारिका, सुलेखा और करण के बयान लेने सुबह आनेवाली हैं।

          सुबह पुलिस टीम के आकर इन तीनों बयान ले लेने के बाद निहारिका अपने घर चली गई।
                             ................

         "आज इतनी जल्दी क्यों आ गई तुम, अभी सवा दस हीं बजे हैं।" करीब दो घंटे बाद निहारिका दुबारा सुलेखा के घर आयी तो सुलेखा ने कहा।

         "हर्षित काफी धीमा चलता हैं न, इस वजह से कभी-कभी लेट हो जाते हैं न, इसलिए आज सोचा कि थोड़ा जल्दी निकल जाते हैं।" जवाब में निहारिका बोली।

          "तो मुझे कल शाम को बताना था न, मैं हर्षित को जल्दी तैयार कर देती।"

          "आपने उसे अब तक तैयार नहीं किया क्या ?"

          "तैयार तो कर दिया हैं, पर अभी खाना खा रहा हैं और उसे खाना खाने में काफी टाइम लगेगा, क्योंकि वो जितना धीमा चलता हैं, उससे भी धीमी गति से खाना खाता हैं।"

          "खाने दीजिए, मैं तब तक बैठकर आपके साथ गप-शप मार लेती हूँ।"

           "ठीक हैं, आओ, बैठो।"

           "आपके भाई साहब चले गए क्या ?" निहारिका ने सुलेखा के बगल में बैठने के बाद सवाल किया।

            "हाँ, आज सुबह हीं गया।"

            "क्यूँ ? आई मीन, बहन के यहाँ आए थे तो कम से कम चार-पाँच दिन रूकना चाहिए था।"

           "उसे इस बार काफी दिनों के बाद छुट्टी मिली हैं और वो अपने घर न जाकर सीधा मुझसे मिलने आ गया था, इसलिए उसके एक दिन से ज्यादा यहाँ रूकने पर चाचा-चाची नाराज हो सकते थे।"

           "यानि, वे आपके सगे भाई न होकर आपके चाचा-चाची के बेटे हैं ?"

          "समाजिक दृष्टिकोण से देखे तो मेरे चाचा-चाची का भी बेटा नहीं हैं।"

           "मतलब ?"

           "मतलब, ये हैं कि उसके माँ-बाप या उसके साथ मेरा कोई भी ब्लड रिलेशन नहीं हैं। वे लोग मेरी कास्ट के भी नहीं हैं। वे तो तुम्हारी कास्ट के हैं। सिर्फ वे लोग और मैं एक हीं गाँव के होने की वजह से मैं उसी तरह उसके माँ-बाप को चाचा-चाची और उसे भाई मानती हूँ, जैसे हम लोग एक हीं काॅलोनी होने की वजह से तुम हर्षित के पापा को भैया, मुझे भाभी और हर्षित को अपना भतीजा समझती हो।

         "अरे, लेकिन आप लोगों का आपसी लगाव देखकर तो कोई मान हीं नहीं सकता कि आप दोनों सगे भाई-बहन नहीं हैं।"

          "हाँ, जिसे पता न हो, वो तो हम दोनों को सगे भाई-बहन हीं समझता हैं।"

          "ये बात जानकर मुझे बहुत खुशी भी हुई और अचम्भा भी हुआ कि आप दोनों के बीच दूर का भी ब्लड रिलेशन न होने के बावजूद भी सगे भाई-बहन से ज्यादा गहरा प्यार हैं।"

         "ये बात जानकर खुशी होने की बात तो मेरी समझ में आ गई, लेकिन तुम्हें अचम्भा क्यों हुआ, ये मेरी समझ में नहीं आया ?"

          "भाभी, इतनी सिम्पल सी बात आपकी समझ में नहीं आयी ? अरे, आज के स्वार्थी जमाने में जहाँ लोग अपनी सगी बहन के लिए अपनी जान दाॅव पर नहीं लगाते हैं, वहाँ किसी शख्स का अपनी मुँहबोली बहन के लिए जान दाॅव पर लगाना अचम्भे की बात नहीं हैं तो क्या हैं ?"

          "किसी और के लिए ये अचम्भे की बात हो सकती हैं, लेकिन तुम्हारे लिए तो ये अचम्भे की बात नहीं होनी चाहिए।"

          "क्यूँ ?"

         "क्योंकि तुमने भी तो हम लोगों के साथ कोई खून का रिश्ता न होने के बावजूद हम दोनों माँ-बेटे के लिए अपनी जान दाॅव पर लगा दीं थीं।"

          "अरे भाभी, लेकिन मैंने तो कुछ किया हीं नहीं।"

          "किसी का कुछ करना या न करना उतना मायने नहीं रखता, जितना उसका भावनात्मक लगाव मायने रखता हैं।  तुम परसो रात को हम दोनों माँ-बेटे की सुरक्षा के लिए जिस तरह से परेशान हो रही थीं और हम दोनों भाई-बहन को केयरलेस समझकर हम पर जिस तरह से बिफर रही थी, वो देखकर मेरे साथ-साथ भाई भी हैरान हो गया। वो तुम्हारे जाने के बाद कह भी रहा था, 'दीदी, इस लड़की को आप दोनों माँ-बेटे से जितना लगाव हैं, उतना तो शायद मुझे भी आप लोगों से लगाव नहीं होगा।"

         "फिर तो आपके भाई साहब वाकई बहुत अच्छे हैं क्योंकि मैंने उस रात गुस्से में उनके बारे में कितना कुछ कह दिया और वे मेरी बुराई करने के बदले तारीफ करके गए।"

         "इसका मतलब ये हुआ कि तुम्हें मेरा भाई भा गया ?"

         "भाभी, इस टाइप से नहीं भाए, जैसा आप समझ रही हैं।"

         "साॅरी, मुझे लगा कि .......। चलो, जाने दो। कुछ और बोलूँगी तो तुम और ज्यादा बुरा मान जाओगी, इसलिए दूसरी बात करते हैं।"

         "अरे भाभी, बता तो दीजिए कि आपको क्या लगा। आई प्राॅमिश टू यू कि मैं आपकी कोई भी बात का बुरा नहीं मानूँगी।"

         "तो ठीक हैं, बता देती हूँ। दरअसल, मुझे लगा कि तुम दोनों एक-दूसरे पसंद करने लगे हो, इसलिए सोच रहीं थीं कि दोनों के माता-पिता से मिलकर तुम लोगों का स्थायी गठबंधन करा देती हूँ। भाई को तो तुम पसंद आ गई हो, पर तुम्हें भाई पसंद नहीं आया तो जाने दो।"

         "भाभी, आप एक मिनट मेरी बात सुनिए। आपको ऐसा लगता हैं न कि आपका भाई मेरे लायक परफेक्ट हैं ?"

          "हाँ, इसीलिए तो मैं बात आगे बढ़ाने के बारे में सोच रही थीं। मैं इतनी स्वार्थी तो हूँ नहीं कि सिर्फ अपने भाई को एक प्यारी-सी दुल्हन मिल जाए, इसलिए उसके तुम्हारे लायक न होने पर भी मैं तुम्हारी उसके साथ शादी तय कराने की बात सोचती।"

          "ऐसा हैं तो मेरी पसंद-नापसंद के बारे में सोचना छोड़िए और बात आगे बढ़ा दीजिए।"

          "नहीं, मैं ये बात आगे बढ़ाऊँगी, क्योंकि ये तुम्हारे लिए कोई ड्रेस खरीदने का फैसला नहीं हैं कि मैं तुम पर अपनी पसंद थोप दूँ।"

          "अरे भाभी, आज के दौर में भी हम जैसी साधारण परिवार की लड़कियों की च्वाइस नहीं पूछी जाती हैं। मेरी माँ आलरेडी एक बार अपनी च्वाइस का रिश्ता मुझ पर थोप चुकी हैं, बट मेरी किस्मत अच्छी थीं इसलिए उन लोगों ने हीं अनर्गल माँग रखकर वो रिश्ता तोड़ दिया।"

         "हाँ, पर मैं तुम्हारी माँ जैसी सोच वाली नहीं हूँ इसलिए मैं उसी लड़के के साथ अपनी इस खूबसूरत ननद की शादी करवाने की कोशिश करूँगी, जो इसका दिल चुरा लें। तुम बैठो, मैं देखकर आती हूँ कि हर्षित को कोई चीज की जरूरत तो नहीं हैं।" कहकर सुलेखा उठकर अंदर चली गई।

       "निहारिका, तूने भाव खाने के चक्कर में बहुत बड़ी गलती कर दीं। ये तेरी भाभी तो हिन्दी सीरियलों की आइडियल भाभी को तरह बिहेवियर कर रही हैं। लगता नहीं कि अब ये तुझे अपने भाई से शादी करने के लिए कन्वेंस करने की कोशिश करेंगी और बैठें-बिठाए उस फौजी की हमसफर बनकर अपनी नागिन जैसी खतरनाक मम्मी से पीछा छुड़ाने का मौका मिल जाएगा। अब तो एक हीं उपाय हैं कि तू अपनी इस भाभी से कह दे कि तू खुद उनके भाई को अपना हमसफर बनाना चाहती हैं।" 

      "अरे, ये मैं कैसे कह सकती हूँ, भाभी मुझे बहुत हीं संस्कारी लड़की समझती हैं। मैं अपने मुँह से अपने दिल की बात कह दूँगी तो उनकी नजरों में इमेज खराब हो जाएगी, इसलिए मैं ऐसा नहीं करूँगी।"

        "तो तू अपनी जिंदगी का को यूँ हीं दुनिया के समंदर में बिना पतवार की किश्ती की तरह भटकने के लिए छोड़ दे।"

        "अरे ऐसे अपनी जिंदगी को भटकने के लिए नहीं छोड़ुँगी मैं, क्योंकि मुझे मेरे कान्हा जी का सहारा हैं जो हर्षित का रूप लेकर मेरा दुख हरने आया हैं।"

         "अरे निहारिका, लेकिन वो तो बच्चा हैं।"

         "तो क्या हुआ, उन्होंने पिछले जन्म में बच्चे के रूप में हीं कितने बड़े-बड़े कारनामो को अंजाम दिया था। मुझे यकीन हैं कि ......, अब चुप हो जा मेरी भाभी आ रही हैं।" 

         दो प्रकार की आवाज में कुछ देर बड़बड़ करने के बाद निहारिका एकदम से चुप हो गई।
                               ..................

         "हर्षित, तुम्हारी मम्मा कह रही थी कि मुझे तुम्हारे मामा के साथ शादी कर लेनी चाहिए।" ये बात कहते समय निहारिका ने चेहरे पर कुछ इस तरह के भाव थे, जैसे उसे शब्दों के चयन में काफी मशक्कत करनी पड़ रहीं हो।

        "ये बात मुझे आररेडी पता थी, क्योंकि मैंने डायनिंग रूम में खाना खाते समय आप दोनों की सारी बातें सुन ली थीं। " हर्षित ने काफी लापरवाही के साथ निहारिका की बात पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की।

        "तुम्हारा इस मैटर पर क्या कहना हैं।"

        "वही जो मम्मा ने कहा था।"

        "यानि ?"

        "आपको इस बात को भूलकर ऐसे लड़के का वेट करना चाहिए जो आपका दिल चुरा ले।"

         "ओह गाॅड ! निहारिका, लगता हैं कि यहाँ भी तेरी दाल नहीं गलनेवाली हैं। तुझे लग रहा था कि ये लड़का तेरी बात सुनते हीं कहने लगेगा, 'मिस, मेरी मम्मा की बात मान लीजिए, लेकिन ये भी अपनी माँ की तरह हीं डिप्लोमेटिक बातें कर रहा हैं। लगता हैं कि इसे लालीपाॅप दिखाना पड़ेगा। हर्षित, मुझे लगता हैं कि मुझे तुम्हारी मम्मा की बात मान लेनी चाहिए। इससे हम दोनों को एक बड़ा बेनीफिट ये होगा कि मेरे शादी कर लेने के बाद भी हम दोनों को अपनी फ्रेंडशीप कन्टिन्यु रखने में कोई प्राॅब्लम नहीं होगी, क्योंकि तुम्हारे मामा तुमसे बहुत प्यार करते हैं, इसलिए उन्हें उनकी वाइफ का कुछ टाइम तुम्हें देना बिलकुल बुरा नहीं लगेगा।"

          "बट, सिर्फ इस रिजन की वजह से आपको मामा के साथ शादी नहीं करनी चाहिए। कल शाम को मम्मा और मामा भी यही कह रहे थे।"

          "वे लोग किस बात को लेकर ऐसा कह रहे थे ?"

         "कल शाम को मम्मा ने मामा से पूछा था, 'क्या तुम निहारिका के साथ शादी करोगे' तो मामा ने उनसे कहा, मुझे तो कोई प्राॅब्लम नहीं हैं, पर मुझे लगता नहीं हैं कि वो लड़की मेरे साथ शादी करने के लिए तैयार हो जाएगी।"

        "ओ गाॅड, ये इस छुटके का मामा मुझे क्यूँ इतनी वीआईपी लड़की समझ रहा हैं ? मैंने कभी सोचा नहीं था कि मुझे कभी किसी का वीआईपी समझना भी बुरा लगेगा। बेटा, आगे की बात बताओ।"

        "फिर मम्मा ने कहा, मुझे भी उसके तैयार होने की उम्मीद कम हैं, क्योंकि तुम्हारे साथ शादी करनेवाली लड़की को तुम्हारे घर पर देहाती माहौल में रहना पड़ेगा और निहारिका शहर में पली-बढ़ी लड़की होने की वजह से देहाती माहौल में रहना पसंद नहीं करेंगी। ऊपर से तुम्हारे आर्मी में होने की वजह से उसे तुम्हारे रिटायर होते तक ज्यादातर समय तुम्हारे बिना हीं बिताना पड़ेगा, जो वो शायद हीं पसंद करेंगी।' इस पर मामा ने कहा, 'ऐसा हैं तो बात आगे मत बढ़ाइए।"

         "कसम से यार, आज तो मुझे ऐसे लोगों से हद से ज्यादा चिढ़ होने लगी हैं, जो सामनेवाले से पूछे बिना खुद ही डिसाइड कर लेते हैं कि सामनेवाला क्या पसंद करेगा और क्या नहीं। बेटा, मेरी समझ में ये नहीं आया कि इन बातों से तुम्हें ये कैसे पता चल गया कि सिर्फ हम दोनों की फ्रेंडशीप कन्टिन्यु रखने के लिए मुझे तुम्हारे मामा के साथ शादी नहीं करनी चाहिए।"

          "उनकी इन बातों से जब मुझे ये बात पता हीं नहीं चली तो आपके समझ में कहाँ से कुछ आएगा।"

          "तो जिन बातों से तुम्हें ये बात पता चली, वो बताओ न। बेमतलब की बातें करके टाइम पास क्यूँ कर रहे हो ?"

          "अरे मिस, आपने हीं तो कहा था कि आते-जाते कोई भी बातचीत करते रहना चाहिए, इससे सफर में बोरियत और थकान महसूस नहीं होती।"

           "उस बात को भूल जाओ और जो मैंने पूछा, वो बताओ।"

           "ठीक हैं। मुझे ये बात तब पता चली, जब मैंने मम्मा से कहा कि प्लीज मिस के साथ मामा की शादी करवा दीजिए क्योंकि इससे मिस को मेरे साथ फ्रेंडशीप कन्टिन्यु रखने में कोई प्राॅब्लम नहीं होगी, तब मम्मा ने कहा था कि ये मिस के साथ मामा की शादी करवाने का राइट रिजन नहीं हैं क्योंकि शादी जैसा रिश्ता जोड़ने के लिए लड़का-लड़की का एक-दूसरे को लाइक करना सबसे ज्यादा जरूरी हैं और उसके बाद मामा ने भी यही कहा।"

         "मन तो हो रहा हैं कि उन दोनों बहन-भाई का आज गला हीं दबा दूँ, पर गला दबाने से भी तो कुछ हासिल नहीं होगा। समझ नहीं आ रहा हैं कि क्या करूँ ? इस छुटके से बहुत उम्मीदें थीं, बट इसने भी सारी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। ये हाँ कह देता तो इसी की हाँ को बेस बनाकर भाभी को बात आगे बढ़ाने के लिए कह देती। निहारिका, लगता हैं कि तुझे लाज-शर्म का नकाब उतारना हीं पड़ेगा, तभी कुछ हो पाएगा। बहुत हो गया, अब मैं शाम को भाभी के घर ट्यूशन पढ़ाने जाऊँगी तो साफ-साफ शब्दों में कह दूँगी कि मुझे उनका भाई पसंद हैं।"
                                       .............

         "भाभी, मैं एक बहुत बड़ी परेशानी में बुरी तरह से फँस चुकी हूँ। प्लीज, मेरा उस परेशानी से पीछा छुड़ा दीजिए।" निहारिका ने सुलेखा की बगल में बैठकर उसे बेहद चिंतित स्वर में बताया।

        "क्या हुआ ?" निहारिका की बात सुनकर सुलेखा ने सवाल किया।

         "पहले आप प्राॅमिश कीजिए कि इस प्राॅब्लम से निकालने में आप मेरी हेल्प करेगी।"

         "ओके बाबा, मैं तुमसे प्राॅमिश करती हूँ कि मैं तुम जिस किसी प्राॅब्लम में फँसी होगी, मैं उससे बाहर निकालने में तुम्हारी हेल्प करूँगी। अब तो बता दो कि हुआ क्या हैं ?"

          "मेरे मम्मी-पापा ने मेरी शादी एक ऐसे लड़के के साथ तय कर दीं हैं, जिसे मैंने देखा तक नहीं।"

           "अच्छा तो तुम इसीलिए स्कूल से घर वापस लौटते ही बिना फ्रेश हुए ही भागकर मेरे पास आ गई ?"

            "हाँ भाभी।"

            "तुम मुझसे कैसी मदद की अपेक्षा रख रहीं हो ?"

            "आप अभी के अभी मेरे साथ चलकर मेरे मम्मी-पापा से मिलिए और मेरी उस अनजान लड़के के शादी कैंसिल कराकर अपने भाई के साथ तय करा दीजिए।"

           "निहारिका, मैं तुम्हारे मम्मी-पापा से कहकर जिस किसी लड़के के साथ उन्होंने तुम्हारी शादी तय की हैं, कैसिंल कराने की कोशिश तो कर सकती हूँ पर तुम्हारी शादी अपने भाई के साथ तय नहीं करा सकती।"

           "आपने सुबह जो रिजन बताया था, उसकी वजह से ?"

          "नहीं, उसकी शादी आज शाम के करीब चार बजे ही कहीं और तय हो चुकी हैं, इसलिए।"

           "इतनी जल्दी ?"

           "हाँ, क्योंकि हम दोनों भाई-बहन ने लड़की पहले से ही देखी थीं, बस चाचा-चाची को उस लड़की के माँ-बाप से मुलाकात करवानी थीं जो आज करा दीं और दोनों पक्षों को रिश्ता पसंद आ गया तो रिश्ता भी पक्का करा दिया। लड़की बिलकुल तुम्हारे जैसी ही हैं। तुम उसकी तस्वीर देखोगी तो तुम्हें यकीन नहीं होगा कि किसी का चेहरा तुम्हारे साथ इतना मैच हो सकता हैं। ये लो, देखकर बताओ कि वो हू-ब-हू तुम्हारे जैसी हैं या नहीं ?"

           "ये तो मेरी हीं तस्वीर हैं।"

           "वाकई ?"

           "भाभी, आप बहुत गंदी हैं।"

           "मैं कैसी हूँ, ये छोड़ो और ये बताओ कि तुम्हें मजा आया या नहीं ? मुझे तो बहुत मजा आया।"

          "अच्छी बात हैं, लेकिन आप भी याद रखना कि मैं आपको इस शरारत के लिए छोड़नेवाली नहीं हूँ। कभी ऐसा सबक सिखाऊँगी न कि आप जिंदगी भर नहीं भूलेगी। अब मैं जा रहीं हूँ।"

          "ट्यूशन पढ़ाने आओगी न ?"

          "नहीं।"

          "क्यों, ससुराल जाने के लिए आज से तैयारी शुरू करनी हैं, इसलिए ?"

          "नहीं, मुझे आप जैसे गंदे लोगों की हेल्प का शौक नहीं हैं, इसलिए।"

           "ठीक हैं, मत आना, पर ये तो पूछ लो कि मुझे कैसे पता चला कि तुम इस रिश्ते के लिए तैयार हो ?"

          "बिना पूछे नहीं बता सकती क्या ?"

          "हाँ, बता सकती हूँ।"

          "तो बताइए न।"

          "मुझे सुबह तुम्हारी अकेले में की गई बड़बड़ से ये बात पता चली।"

          "मिस, आप सुबह मम्मा के अंदर आने के बाद खुद से इतना लाउडली बातें कर रही थीं कि मम्मा के साथ-साथ मैंने भी सुन लीं थीं।" सामने बैठकर होमवर्क कर रहे हर्षित ने अचानक अपना चेहरा ऊपर उठाकर निहारिका को बताया तो उसके चेहरे पर छाई लालिमा और गहरा गई। वह अपनी नजरें नीचे करके कमरे के फर्श को कुछ इस तरह से देखने लगी, जैसे कहना चाह रही हो कि फर्श के नीचे की जमीन फटकर उसे अपने भीतर समा ले और माँ-बेटे की शरारती मुस्कराहटों से पीछा छुड़ा दे।

           "और इसके बावजूद भी तुम स्कूल जाते और स्कूल से घर आते समय इस बात को छुपाकर इस तरह बातें करते रहें कि जैसे तुमने मेरी बातें सुनी हीं नहीं ?" जब धरती माँ ने निहारिका की बात नहीं सुनी तो उसने अपने मन की शर्म को दिखावटी क्रोध के आवरण से ढकने का प्रयास करते हुए कहा।

          "साॅरी मिस, मुझे आपके साथ चीटिंग नहीं करनी चाहिए थीं, बट मुझे मम्मा ने आपसे इस बात को सीक्रेट रखने लिए कहा था, इसलिए मैंने ये बात आपको नहीं बताई।"

          "तो ठीक हैं बेटा, अब कल से अपनी मम्मा के साथ हीं स्कूल जाना।" कहकर निहारिका बनावटी गुस्से का इजहार करती हुई घर से बाहर निकल गई।

           आठ दिन बाद निहारिका और करण की सादगी के साथ शादी हुई। शादी की सारी रस्मे शांति के साथ निपट गई, लेकिन विदाई के समय निहारिका के हर्षित असामान्य लगाव की वजह दोनों पक्षों के लिए परेशानी खड़ी हो गई। वह हर्षित को सीने से लगाकर काफी देर तक रोती रहीं और कई लोगों के समझाने पर भी हर्षित को छोड़कर ससुराल जाने के लिए तैयार नहीं हुई। आखिर में सुलेखा और करण को उसे हर्षित से अलग करने के लिए ये आश्वासन देना पड़ा कि उसे हर्षित से उसे सिर्फ कुछ समय के लिए अलग किया जा रहा हैं, स्थायी रूप से कभी अलग नहीं किया जाएगा। 

       कुछ दिनों बाद जब निहारिका ससुराल से वापस आयी तो उसने सुलेखा को ये खुशखबरी दी कि करण और उसके माता-पिता ने बिना उसके कुछ कहे हीं उससे ये कह दिया कि जब तक करण छुट्टियों में गाँव पर रहेगा, तब तक और उसके न होने पर कुछ खास त्योहारों या पारिवारिक कार्यक्रमों के होने पर हीं निहारिका को अपने ससुराल में रहना होगा, बाकी समय वो अपनी नेटिव सिटी में रहकर अपना टीचरशीप का जाॅब कन्टिन्यु रख सकती हैं। ये खुशखबरी सुनकर हर्षित सबसे ज्यादा खुश हुआ, पर उसकी माँ ने ये कहकर उसकी खुशी को कुछ फीका कर दिया कि उसे अब निहारिका को बुआ नहीं मामी कहना होगा, क्योंकि वो निहारिका को अपनी बुआ या टीचर के अलावा कुछ मानने के लिए तैयार नहीं था।

        "मैं तो हर्षित को अपना भतीजा या स्टूडेंट भी नहीं मान सकती, बिकाॅज ये मेरा बेटा हैं।" निहारिका ने ये कहकर सुनकर और ज्यादा टेन्शन बढ़ा दिया।

         लेकिन सुलेखा भी एक काफी सुलझी हुई महिला थीं और उसने अपने परिपक्वता का परिचय देते हुए ये कहकर निहारिका को सरप्राइज कर दिया- "ये कहलाएगा तो मेरा हीं बेटा, पर माँ हमेशा तुम्हें हीं समझेगा।

        "थैंक्स भाभी।" कहकर निहारिका तुरंत सुलेखा के गले लग गई।
Images/gifs are from internet & any objection, will remove them.
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RE: चक्रव्यहू by Jayprakash Pawar 'The Stranger' - by pastispresent - 06-03-2019, 06:58 PM



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