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Adultery हर ख्वाहिश पूरी की
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दीदी अपनी चुचि को मेरे बाजू से रगड़ कर कान में फुसफुसाई… अपनी जिप खोल ना भाई..

मे – क्या करोगी…?

वो – मुझे देखना है तेरा वो कैसा है…!

मे – यहाँ अंधेरे में क्या दिखेगा… ?

वो – अरे यार तू भी ना, बहुत पकाता है.. तू खोल तो सही मे अपने हाथ में लेकर देखना चाहती हूँ..! प्लीज़ यार ! खोल दे…

मे – रूको एक मिनिट.. और मेने सीट से पीठ सटकर कमर को उचकाया और अपना बेल्ट और जिप खोल दिया..

उसने तुरंत अपना हाथ जीन्स के अंदर डाल दिया और फ्रेंची के उपर से ही मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया…

मे – अह्ह्ह्ह… कैसा है..?

वो – हाईए.. छोटू ! ये तो बड़ा तगड़ा है…यार !

मे – क्यों तुम्हें अच्छा नही लगा…? तो वो झेंप गयी और शर्म से अपना गाल मेरे बाजू पर सटा दिया…

वो उसे हौले-2 सहलाने लगी और उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपने बूब पर रख दिया…और बोली – तू भी इसे प्रेस करना !

मेने कहा रूको, और फिर मेने अपना बाजू उसके सर के पीछे से लेजा कर उसके दूसरी साइड वाले बूब के उपर रख दिया और धीरे-2 दबाने लगा…

मेने उसके गाल को चूमते हुए उसके कान में कहा- तुम भी अपनी जिप खोलो ना दीदी !

तो उसने झट से अपनी जीन्स खोल दी और मेने अपना हाथ उसकी पेंटी के उपर रख कर उसकी मुनिया को सहला दिया…

सीईईईईई…. हल्की सी सिसकी उसके मूह से निकल गयी, उसकी पेंटी थोड़ी-2 गीली हो रही थी.. और अब मेरे दो तरफ़ा हमले से उसकी और हालत खराब होने लगी…

हम दोनो मस्ती में एक दूसरे के अंगों से खेल रहे थे, कि तभी इंटेरवाल हो गया, और जल्दी से अपने सीटो पर सही से बैठकर अपने-2 कपड़े दुरुस्त किए और बाहर चल दिए…

इंटेरवाल के बाद भी हम दोनो ऐसे ही मस्ती करते रहे, और इस दौरान वो एक बार झड भी चुकी थी..

मेरा भी लंड फूलकर फटने की स्थिति में पहुँच गया था..

मूवी ख़तम होने के बाद हम घर लौट लिए, रास्ते भर हम दोनो चुप ही रहे, वो मुझसे नज़र चुरा रही थी, और मन ही मन मुस्कुराए जा रही थी.

मेने गाड़ी की पिच्छली सीट पर बैठे ही उससे पुछा – क्या हुआ दीदी, बात क्यों नही कर रही..?

वो – भाई देख यहाँ अब कुच्छ मत करना, वरना ड्राइवर को शक़ हो जाएगा …

मेने कहा – तो बात तो कर ही सकती हो.. फिर वो इधर-उधर की बातें करने लगी..

घर पहुँच कर फ्रेश हुए, थोड़ा टीवी देखा और कुच्छ देर बाद भैया आ गये…

एजेन्सी वाला बुलेट की डेलिवरी घर पर कर गया था, भैया ने सब पेपर चेक कर लिए..

रात देर तक हम तीनो बेहन भाई देर तक बात-चीत करते रहे.. भैया ने हमने दिन में क्या-2 किया वो सब पुछा.. और फिर अपने-2 बिस्तर पर जाकर सो गये..

दूसरे दिन हम निकलने वाले थे, भैया ने सुबह ही पंप पर जाकर बुलेट का टॅंक फुल करा दिया था, निकलने से पहले भैया बोले –

छोटू ! रास्ते में एक बहुत अच्छी जगह है, जंगलों के बीच झरना सा है, झील है.. देखने लायक जगह है..

अगर देखना हो तो किसी से भी पुच्छ कर चले जाना.. बहुत मज़ा आएगा तुम दोनो को..

फिर हम दोनो भैया से गले मिलकर चल दिए अपने घर की तरफ

डग-डग-डग….. बुलेट अपनी मस्त आवाज़ के साथ हाइवे पर दौड़ी चली जा रही थी..

जो मेने कभी सपने में भी नही सोचा था, आज मुझे मिल गया था..… मेरी पसंदीदा बाइक जिसे दूसरों को चलाते देख बस सोचता था, कि काश ये मेरे पास भी होती.

और आज भाभी की वजह से मेरे हाथों में थी, मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था इस वक़्त…

भैया के घर से निकलते वक़्त दीदी एक सलवार सूट में थी… शहर से निकल कर जैसे ही हमारी बुलेट रानी मैं हाइवे पर आई, दीदी ने मुझे गाड़ी एक साइड में खड़ी करने को कहा..

मेने सोचा इसको सू सू आ रही होगी, सो मेने एक पेड़ के नीचे बुलेट रोक दी और पुछा – क्या हुआ दीदी.. गाड़ी क्यों रुकवाई..?

उसने कोई जबाब नही दिया और मुस्कराते हुए अपने कपड़े उतारने लगी…! मेने कहा- अरे दीदी ऐसे सरेआम कपड़े क्यों निकाल रही हो.. पागल हो गयी हो क्या ?

फिर भी उसने कोई जबाब नही दिया और अपनी कमीज़ उतार दी…

मेरी आँखें फटी रह गयी.. वो उसके नीचे एक हल्के रंग की पतली सी टीशर्ट पहने थी..

फिर वो अपनी सलवार का नाडा खोलने लगी.. और उसे जैसे ही नीचे सरकाया, तो उसके नीचे एक स्लेक्स की टाइट फिट घुटने तक की पिंक कलर की लिंगरी पहने थी..

उसके दोनो कपड़े इतने हल्के थे कि उसकी ब्रा और पेंटी उनमें से दिखाई दे रही थी, वो इन कपड़ों में एकदम शहर की पटाखा माल लग रही थी.

ब्रा में कसे उसके 32 साइज़ के गोरे-2 बूब और पेंटी में कसी उसकी 33-34 की गांद देखकर मेरा पापुआ उछल्ने लगा.

मे भी इस समय एक हल्की सी टीशर्ट और एक होजरी का पाजामा ही पहने था, जो कि काफ़ी कंफर्टबल था रास्ते के लिए.

पाजामा में मेरा तंबू सा बनने लगा था.. लेकिन मे अभी भी बुलेट की सीट पर ही बैठा था, इसलिए वो उसको नही दिखा.

मेने मन ही मन कहा.. हे प्रभु आज किसी तरह इससे बचा लेना…!

ऐसा नही था, कि मे दीदी के साथ फ्लर्ट नही करना चाहता था, लेकिन जिस तरह वो दिनो-दिन मेरे साथ खुलती जा रही थी,

इसी से पता चल रहा था कि अब हम ज़्यादा दिन दूर नही रह पाएँगे..

मे जैसे ही आगे बढ़ने की कोशिश करता, मेरे मन में कहीं ना कहीं ये सवाल उठने लगता., कि नही यार ! ये तेरी बेहन है.. और बेहन के साथ……ये ग़लत होगा.

लेकिन उसके कोमल मन को कॉन समझाए…?

और अब तो उसने मेरे हथियार के दर्शन भी कर लिए थे…
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RE: हर ख्वाहिश पूरी की - by nitya.bansal3 - 14-08-2020, 05:52 PM



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