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Thriller कामुक अर्धांगनी
#65
वसंत मुझे छोड़ बिस्तर पर मधु को अपनी बाहों मैं दबोच कर फुसलाने लगा और मधु मेरे लड़ को नोचती उसके बदन से लिपटी बोली बताओ कहीं कोई ऐसा मर्द होगा जो इतनी बार बस कुछ सेकंड मे झड़ जाएं , इस भड़वे के साथ मे सात सालों से विहाई हुई हु और हर रात उँगलियों ओर जीभ के सहारे गुज़रती रहीं और आज जा के ये पहली बार इतने दफ़े कड़क हुआ और देखो हर बार की तरह फिर झड़ गया , वसंत बालों को सहलात्ते मधु से बोला भाभी जी क्या करोगी ये ऐसे ही है इनका लड़ बस मूतने के लिए बना है और अब रो क्यों रहीं हो , मैं तेरी जवानी के लिए ही पैदा लिया हूँ , सच कहता हूँ तुझे ज़िंदगी भर प्यार दूँगा ,इतने बरसों तक तुम प्यासी रही लेकिन अब हर रोज तेरी जवानी नोचूंगा और तुझे अपने लड़ की प्यासी बना दूँगा ।

मधु ने वसंत को कस कर पकड़ रखा था और रोती बिलखती बोली अब देखना मे कैसे बीच बाज़ार तेरे साथ घुमुंगी ओर दुनिया कहेंगी देखो वसंत की रखैल को और इस भड़वे को मुँह दिखाने लायक नही रहने दूँगी ।

वसंत ने हँसते हुए बोला दुनिया कहे न कहे तुम तोह मेरी रखेल हो न भाभी ।

वसंत की बातों से मधु हँसने लगी और वसंत ने दोनों आँखों से आँसू पोछ कर उसके लबों को चूमते बिस्तर पर लेट गया और मधु अपनी टांग वसंत के कमर पर रख दी ।

वसंत अपनी उंगलियों को मधु के नाज़ुक जिस्म पर फेरता कमर पर चिट्कोरी काटने लगा और मधु कसमसाती बोली देवर जी उफ्फ्फ आप तोह बड़े सरारती हैं, वसंत कमर के चमड़ी को खींच कर बोला भाभी तेरी कमर बरसों से देख यहीं सोचता था कब ऐसे छेड़ दु , मधु बोली पहले छेड़ लेते तोह दुकान की वो बैंच आज चर चर आवाज़ करती , मधु दिल खोल हँसने लगी और वसंत गाँड सहलाते बोला फिर यू खुल के गांडू के सामने मस्ती कैसे होती मेरी भाभी ।

मधु धत तेरी की बोलती वसंत के होटो को चुसने लगी और वो हाथ गाँड पर फेरता सहलाने लगा ।

मधु की झाघो पर हाथ फेरता उसने आहिस्ता से मधु की टांग को ऊपर उठाने लगा और अपनी उँगलियों को अंदरूनी झाघो पर फेरता बोला ऐसे ही टांग उठा कर रखो भाभी , मधु अपनी हाथ से बेशर्म की तरह टांग पकड़ वसंत के होटो का रसपान करती चली गईं और वसंत ने अपने उँगलियी को झाघो पर फेरता उसके जिस्म को उतेजित करता एक धन्नाटेदार चाँटा उसकी उभरी हुई चुत पर जड़ दिया और मधु चीख़ती उठ बैठी और बिलखती अपनी चुत सहलाने लगी ।

वसंत हँसते बोला क्यों रे मेरी रांड क्या हुआ , मधु तिरछी नज़र से देखती आंखों से आशु पोछती बोली कुछ नहीं देवर जी और वापस वैसे ही लेट टांग उठा कर बोली तेरी रांड हैं ये मधु और ये जिस्म तेरी है नोच खाओ ।

वसंत हँसते हुए बोला भाभी सच कहूँ मुझे सीधे साधे कमुक संभोग पसंद नहीं , तेरी ये चमड़ी लाल कर के दर्द दे के लूटने से ही मुझे खुशी मिलती हैं , मधु टांग उठा कर बोली तेरे लिए हर दर्द सहूँगी देवर जी , जैसे चाहो वैसे सुख भोगने दूँगी ।

वसंत उतेजित हो एक तगड़ा चाटा मधु के उभारो वाली चुत पर जड़ दिया और मधु बिस्तर पर इठलाती टांगो को कस के आपस मे मिला छटपटाती उफ्फ्फ वासिम्म्म्म्म कहती सुबकने लगी और ये देख वसंत ने मधु के निप्पलों को मसलते बोला साथ दे पाओगी मेरी ऐसी हरक़तों मे , सह पाओगी मेरी द्वारा दी गईं दर्द को , समर्पित कर पाओगी अपनी जिस्म की ये चमड़ी मेरे सुख के लिए , ख़ुद को ऐसा बना पाओगी की अगर मे कुछ पल दर्द न दु तोह ख़ुद गिड़गिड़ा कर दर्द के लिए भिक्षु बन भिक मांगोगी ।

मधु के निप्पलों को वसंत बेदर्दी से मसलते रहा ओर मधु छटपटाती चीख़ती बोली नहीं वसंत उफ्फ्फ नहीं बहुत दर्द हो रहा हैं प्लीज वासिम्म्म्म्म अहह ,मधु ऐसी हालत मे भी वसंत के हाथों को हाथ नहीं लगाई और बिस्तर को पकड़ बस तड़पती रही , वसंत निप्पलों को ज़ोर से खिंचते पूछा क्या तुम मेरी रखैल नही हो, क्या ये तेरी तड़पती जिस्म मेरे लिए नहीं जल रही , क्या तुम मेरे लड़ की दासी नहीं हों , मधु चीख़ती अपने निप्पल्स की दर्द को किसी तरह बर्दास्त करती बोली हा मैं मधु तेरी रखैल हूँ मुझे तेरे लड़ से सुख भोगना है , तेरे चुदाई से झड़ना हैं , हा मैं तेरी रांड हुँ वसंत ।


वसंत ये सुनते दोनों निप्पलों को बेदर्दी से मसल छोर देता है और अपनी उँगलियी को निप्पलों पर फेरने लगता है , मधु के निप्पल्स फड़फड़ा जाते है वो बिस्तर पर उतेजना और दर्द से तप रहीं होती है और वसंत झुक कर मधु के स्तनपान करने लगता है , यू जलती दर्द से बिलखती निप्पल्स पर जीभ के स्पर्श को महसूस कर मधु की सिसकिया फुट जाती है और वो गर्दन उठा कर कामुक्ता के बसीभूत इठलाने लगती है और वसंत टांगो के बीच हाथ को रखता है और मधु स्वतः अपनी टांग चौड़ी कर देती है और वसंत के स्पर्श को प्राप्त कर कमर उठा देती है ।

मधु किसी चरित्रहीन गंदी फिल्मों की प्यासी अप्सरा सी गर्दन उठाये अपने उभारो को तेज़ सासों से छलकाती एक फ़िसलन सी कमर पर बनातीं अपनी टांगों को खोले वसंत को अपने उतेजित चुचियों के रस को पिलातीं उसके उँगलियों को चिट्कोरी मारती अपनी चुत पर महसूस करती होंठो से उफ्फ्फ अहह उफ्फ्फ भर्ती आँखों को मुदे पड़ी थीं ।

ये वो झण था जब वसंत की खुमारी सिर चढ़ मधु को बेताब किये जा रहीं थीं और उसके नुखिले नाख़ून बिस्तर पर रगड़ मार रहे थे ।

वसंत हल्की थपकी चुत के ऊपर मार मधु को ओर उतेजना के सागर मे डुबोये जा रहा था और वो बेसक लड़ की प्यास को मचलती जा रही थी , मधु की सासे बहुत तेज़ चल रहीं थीं और उसके उभार निरंतर ऊपर नीचे होते और एक सिहरण सी उसके जिस्म पर दौड़ लगा रहीं थी , मधु के हिलते सर को बिस्तर पर गढ़ते देख मालूम हो रहा था कि वो हवस की आंधी से लड़ रही हों और वसंत बड़ी बेदर्दी से उसकी चुत को सहलात्ते जा रहा था ।


हल्की फुल्की थप थप तेज़ होने लगी थीं और मधु छटपट करती कसमकश के आगे ख़ुद को समर्पित करती , उसके मुख से उतेजना के स्वर फूटे जा रहें थे ।

वसंत की उँगलियों ने रिसाव को महसूस किया और उँगलियों को एक साथ मोड़ कर दरारें के दरवाज़े को भेदने लगा और इधर मधु की क़मर चीख़ मरती उठ गईं और वो सकपकाती बोली नहीं देवर जी नहीं अहह उफ्फ्फ दर्द हो रहा है निकालिए और वसंत की उँगलियी धसती रही और मधु की कमर स्वतः उसके उँगलियी पर हिचकौले मरती थोड़ी ही देर मे निढ़ाल बिस्तर पर आ गिरी और वसंत जुड़े उँगलियों को झड़े दरार से खीच मधु के होंठो पर रख दिया और बोला देख मेरी जान इस दर्द से भी तू मज़ा लेना सिख गईं अब चाट और बता क्या तू ये नकार सकती है कि तुझे मेरे दर्द से मज़ा नही मिला ।

मधु के होंठ खुल गये वो जीभ से वसंत की एक एक उँगलियों को चुसने लगी और बोली देवर जी तेरी ये कसमकश हरकतें मेरी जिस्म को भड़काने लगी है , ना जाने क्या हो रहा है मुझे ।
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RE: कामुक अर्धांगनी - by kaushik02493 - 14-08-2020, 11:11 AM
RE: कामुक अर्धांगनी - by Bhavana_sonii - 24-11-2020, 11:46 PM



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