13-08-2020, 02:21 PM
अब उसने अपना ब्लाउस भी नीचे गीरा दिया और वो केवल लहंगे और ब्रा में मेरे ठीक सामने खड़ी थी। मेंरा ऎसा मन हुआ की अभी उसके कमरे में जा कर उसको चोद डालूं। ब्लाउस नीचे गीरा देने के बाद उसने t.v. देखते हुए अपना हाथ अपने लहंगे के नाडे पर रखा और धीरे से नाड़ा खोल कर उसे छोड़ दिया उसका लहंगा अपने आप नीचे गीर गया । अब एक अनिद्द सुंदरी मेरे सामने केवल पेन्टी और ब्रा में खड़ी थी और मैं उसे देखने के अलावा कुछ भी कर पाने की स्थीति में नही था। मैंने अपने लंड़ को जोर से दबा लिया । केले के पत्तों की तरह चिकनी जांघ और कमर में फ़ंसी गुलाबी पेन्टी उसकी खुबसूरती को और बढा रहे थे।चूंकी वो खिड़की के काफ़ी करीब खड़ी इसलिये मुझे सब साफ़ साफ़ दिखई दे रहा था। उसकी गुलाबी पेन्टी से उसकी चूत का उभार साफ़ साफ़ दिखई दे रहा था। अब क्लाईमेक्स शुरु होने वाला था, उसने अपने हाथों से अपनी ब्रा की पट्टी को कंधो से नीचे गीरा दिया और इधर मेंरे दिल की धड़्कन तेज होने लगी। अब उसने अपनी ब्रा को हाथों से घुमाते हुए उसके पिछले हिस्से आगे कर लिया याने ब्रा के हुक सामने आ गये इस्के कारण अब वो लगभग नंगी हो चुकी थी उसके विशाल तने हुए स्तन मेंरी नजरों के सामने झूल रहे थे और मेंरी जवानी को ललकार रहे थे। अब उसने अपने ब्रा के हुक को खोला और अपनी छातीयों ब्रा के बंधन से अजाद कर दिया। अब वो मेंरे सामने जवानी के रस से भरपूर अपनी गदराइ हुई छातीयों को खोले हुए नंगी खड़ी थी।
मैं बदहवास हो अपनी इस नग्न सुंदरी को देख रहा था, अब मैं खुद को रोक पाने में असमर्थ था, मेंरे लण्ड़ के लिये अब पेन्ट के अन्दर रहना अस्मर्थ हो गया था वो अपने संपूर्ण रुप में आ चुका था और उसे पेन्ट के अन्दर संभाल पाना मेरे लिये सम्भव नहीं था। मैं थोड़ा पिछे हटा और अपने पेन्ट को खोल कर निकाल फ़ेंका अब मेरा लण्ड़ काफ़ी आजाद मह्सूस कर रहा था,मैने देखा वो अपने आप झटके मार रहा था और कामवासना की अधीकता के कारण मेंरा पूरा शरीर गरम हो चुका था और मेंरे पैर थरथरा रहे थे। छत पर किसी के आने का कोई खतरा नही था इसलिये मै पूरी तरह से नंगा हो गया, अब मैंने अपना लंड़ अपने हाथो मे जोर से पकड़ लिया और मै फ़िर से रश्मी के नंगे जिस्म को देखने के लिये कूलर के छेद में आंख गड़ाकर बैठ़ गया।
मैं बदहवास हो अपनी इस नग्न सुंदरी को देख रहा था, अब मैं खुद को रोक पाने में असमर्थ था, मेंरे लण्ड़ के लिये अब पेन्ट के अन्दर रहना अस्मर्थ हो गया था वो अपने संपूर्ण रुप में आ चुका था और उसे पेन्ट के अन्दर संभाल पाना मेरे लिये सम्भव नहीं था। मैं थोड़ा पिछे हटा और अपने पेन्ट को खोल कर निकाल फ़ेंका अब मेरा लण्ड़ काफ़ी आजाद मह्सूस कर रहा था,मैने देखा वो अपने आप झटके मार रहा था और कामवासना की अधीकता के कारण मेंरा पूरा शरीर गरम हो चुका था और मेंरे पैर थरथरा रहे थे। छत पर किसी के आने का कोई खतरा नही था इसलिये मै पूरी तरह से नंगा हो गया, अब मैंने अपना लंड़ अपने हाथो मे जोर से पकड़ लिया और मै फ़िर से रश्मी के नंगे जिस्म को देखने के लिये कूलर के छेद में आंख गड़ाकर बैठ़ गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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