06-03-2019, 02:05 PM
UPDATE 13
कहानी अब तक:
मैंने खुसफुसाते हुए कहा; "साढ़े बारह बजे ....सससस..... मैं... इंतजार करूँगा...!" ये सुन कर तो जैसे भाभी की साड़ी इच्छा पूरी हो गई| "मुझे माफ़......" भाभी खुसफुसाते हुए बोलना चाह रही थी पर मैंने उनके होठों पर अपनी बीच वाली रख दी और उन्हें अपनी तरफ घुमाया और; "खाना तो खा लिया अब थोड़ा मीठा भी खालो|" मैंने भाभी का हाथ अपने तननाये हुए लंड पर रखते हुए कहा| "मुनना..... मैंने अभी खाना खाया है| कहीं उलटी न हो जाये! मैं आउंगी ना रात को तब जो चाहे.कर लेना|" इतना सुन में गुस्से में जाने लगा तो भाभी समझ गई की मुझे गुस्सा आ गया है| उन्होंने मुझे रोका और नीच बैठ गई और पाजामे से मेरा लंड बहार निकल कर एक ही सांस में निगल गई|
अब आगे:
मैंने भी ताव में आ कर अपना पूरा लंड इनके गले उतार दिया| मेरी जबरदस्ती करने से भाभी को लगभग उलटी आ गई, पर जैसे -तैसे उन्होंने अपने पर काबू पाया और उलटी रोक ली और मेरी तरफ गुस्से से देखने लगी| मैंने उनके गुस्से को अनदेखा कर अपना लंड फिर उनके मुंह के आगे लहरा दिया| पर भाभी उसको मुंह में नहीं ले रही थी क्योंकि उनको उससे अब मेरे पेशाब की महक आने लगी थी| दरअसल उनके आने से पहले ही मैंने धार मारी थी और जान-बुझ कर लंड साफ़ नहीं किया था| भाभी गंदा सा मुंह बनाते हुए मेरी ओर देखने लगी और मैं भी समझ गया था की पेशाब की बदबू जर्रूर उनके नथुनों में भर गई होगी| फिर आगे जो मैंने किया उससे तो भाभी की हालत और भी ख़राब हो गई| मैंने अपने लंड को खोला और सुपाड़ा पूरी तरह बाहर निकला| सुपाडे के पीछे और नीचे गीला वीर्य लगा हुआ था| दरअसल काफी समय से मैंने अपने लंड की सफाई नहीं की थी... शायद आज ही के दिन के लिए! उसे देखते ही भाभी को उलटी जैसा मन हो आया और उस सूखे वीर्य की बदबू से भाभी बेहाल होने लगी और उन्होंने अपनी नाक पर हाथ रख लिया| मैं उनकी तरफ बड़ी हैरानी से देखने लगा जैसे की कह रहा हूँ की इससे क्या बदबू आ रही है? उस समय भाभी के मन में सेक्स के जितने भी कीड़े थे सब मर गए थे| उनका मुंह ऐसा बिदका हुआ था जैसे कोई मरा हुआ सांप देख लिया हो जिसमें से बदबू आ रही है|
"क्या सोच रही हो? प्यार करती हो ना मुझसे?" मैंने उन्हें याद दिलाया| "मुनना सच्ची बहुत गंधात है!" भाभी ने मुंह बिदकाते हुए कहा| "ठीक है..." इतना कहते हुए मैंने भाभी को अपना जूठा गुस्सा फिर दिखाया| भाभी ने मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया; "सच्ची मुनना... वरना मैं कभी मन करती हूँ?" भाभी ने मुझसे विनती की पर मैंने उनकी एक न सुनी और जाने लगा| "अच्छा ठीक है... मैंने भी गलती की है, उसकी सज़ा समझ कर कर लेती हूँ|" ऐसा कह कर उन्होंने मुझे रोका और मेरे पहले से ही बाहर लटक रहे लंड को हाथ में लिया और अपनी आँखें बंद की और अपनी उँगलियों से मेरे सुपाडे को बाहर निकाला| उनका मुंह अब भी बिदका हुआ था और साफ़ पता चल रहा था की वो ये सब बेमन से कर रही हैं| "मन नहीं है तो छोड़ दो! मैं ने आजतक आप के साथ जबरदस्ती नहीं की है और आज भी नहीं करूँगा| जाने दो मुझे!" मैंने रूखे मन से कहा| पर मैं जानता था की भाभी हार मान जायेगी| उनके हार मानने का कारण मुझसे प्यार करना नहीं था बल्कि अपनी गलती की सजा भुगतना था! सो भाभी ने पहले तो नीचे धरती की तरफ देखा और फिर जब मेरी तरफ देखा तो उनके चेहरे पर वही कातिल मुस्कान थी| मुझे लगने लगा जैसे की भाभी जानबूझ कर मेरे साथ ड्रामा कर रही थी| भाभी ने अपने नीचले होंठ को दबाया और अपनी आँखें बड़ी की और अपना मुंह बड़ा सा खोल कर सिर्फ सुपाडे को अपने मुंह में भर लिया| मैंने महसूस किया की उनके मुंह में ढेर सारा थूक भरा हुआ था और जैसे ही मेरा सुपाड़ा उनके मुंह में पहुँचा, उन्होंने अपने होंठ से उसे अंदर ही सील कर दिया| उनके मुंह में मौजूद थूक को वो अपनी जीभ से मेरे लंड पर मलने लगी जैसे की किसी bottom load washing machine में कपडे घूमते हैं वैसे ही उनकी जुबान मेरे सुपाडे के इर्द-गिर्द घूम रही थी और वो अपनी जीभ की नोक से मेरे सुपाडे पर लगे सूखे वीर्य को निकालने लगी| मैं समझ गया था की भाभी इसे जल्द ही उगल देंगी इस लिए मैं भी हरकत में आ गया और अपने सुपाडे को और अंदर धकेलने लगा| मानो मैं उनके मुख को छूट समझ कर छोड़ रहा हूँ!
मैंने भाभी की तरफ देखा और कहा; "सब पी जाना ... एक बूँद भी बर्बाद मत करना|" ये शब्द उनके लिए आदेश था जिनका पालन उन्हें अवश्य करना था! "भाभी...धीरे-धीरे दांतों से काटो सुपाडे को|" मैंने भाभी से कहा और भाभी ने ठीक वैसा ही किया| जिससे मेरे अंदर आनंद की लहरें भरने लगी, भाभी के दांत मेरे लंड पर गाड़ने लगे और वो मादक दर्द मुझे संतुष्ट करने लगा| मैंने अपने लंड को उनके मुंह के भीतर गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया और जब उनके दांत मेरे लंड से टकराते तो बहुत मजा आता| ये मजा अब बर्दाश्त से बहार होने लगा था सो मैंने अपना पूरा लंड उनके गले में तेल दिया और दो-तीन झटके और मेरा सारा रास उनके गले में उतरने लगा| मैंने मस्ती में इतना भर गया था की मुझे ये भी महसूस नहीं हुआ की मेरे लंड अंदर तेल देने से भाभी की हालत ख़राब हो गई है क्योंकि उन्हें सांस नहीं मिल रही थी| भाभी; "गुं..गुं...." कर छटपटा रही थी| शुक्र है की मेरा ये आनंद अनुभव ५-७ सेकंड ही चला वरना भाभी 'टें' बोल जाती!!!! खेर भाभी ने मेरा सारा रस और 'सूखी मलाई निगल ली थी और एक भी बूँद बहार नहीं बहाई थी!
मैंने जब अपना लंड बाहर निकाला तो देखा भाभी बुरी तरह हाँफ रही थी... वो जमीन पर पसर गईं! मैंने उन्हें जबरदस्ती उठा के खड़ा किया और देखा तो भाभी बोली; "मेरी जान लेना चाहते हो क्या?" "अब भला आपकी जान ले कर मुझे क्या मिलेगा?" मेरा जवाब सुन भाभी समझ गई थी की मैंने उन्हें अभी तक माफ़ नहीं किया है| वो कुछ बोलने को हुई की मैंने अपनी ऊँगली उनके होठों पर रख दी; "श..श...श... रात साढ़े बारह बजे मैं आपका इंतजार करूँगा और हाँ ब्रश कर के आना!! पर याद रहे साढ़े बारह बजे न एक मिनट ऊपर न एक मिनट नीचे! साढ़े बारह!!!!" मेरे ये शब्द उनके लिए फरमान थे जिसे सुन भाभी खुश हो गई क्योंकि अब उन्हें कहीं न कहीं ये विश्वास हो गया था की मैंने उन्हें माफ़ कर दिया था|
इतना कह कर मैं सबसे छुपकर घर आगया और घर में घुसने ही वाला था की मुझे कुछ याद आया! मैं वापस घर आया पर इस बार छिपते हुए नहीं बल्कि खुल्ले में! दरअसल मैं ये देखने आया था की नीतू क्या कर रही है? कहीं उसने फिर से भाभी को मेरे पास आते देख लिया तो मुसीबत हो जायेगी| मैंने देखा नीतू अपने कमरे की तरफ जा रही थी और मुझे देख एकदम से मेरे पास आ गई| नीतू बहुत खुश दिख रही थी; "क्या हुआ इतना खुश क्यों हो?" तो नीतू ने कुछ जवाब नहीं दिया और हँसते हुए good night बोल कर चली गई| मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरा कच्छा सूंघ कर उसे ये तृप्ति मिली है और इसीलिए वो इतनी खुश है| नीतू के जाने के बाद मैं भैया को ढूंढने लगा| भैया मुझे खेत से निकल कर आते हुए नजर आये तो मैंने उनसे कहा; "भैया एक काम था आपका!" भैया मेरा मतलब समझ गए और बोलै; "तुम चलो मैं आता हूँ|" मैं वापस आ गया पांच मिनट बाद भैया आगये और इधर मैंने अपना छोटा और भैया का पटियाला पेग बना कर रेडी कर दिया| भैया अपने साथ कटे हुए प्याज और सूखे मसाले से बानी आम की चटनी ले आये|
to be continued
कहानी अब तक:
मैंने खुसफुसाते हुए कहा; "साढ़े बारह बजे ....सससस..... मैं... इंतजार करूँगा...!" ये सुन कर तो जैसे भाभी की साड़ी इच्छा पूरी हो गई| "मुझे माफ़......" भाभी खुसफुसाते हुए बोलना चाह रही थी पर मैंने उनके होठों पर अपनी बीच वाली रख दी और उन्हें अपनी तरफ घुमाया और; "खाना तो खा लिया अब थोड़ा मीठा भी खालो|" मैंने भाभी का हाथ अपने तननाये हुए लंड पर रखते हुए कहा| "मुनना..... मैंने अभी खाना खाया है| कहीं उलटी न हो जाये! मैं आउंगी ना रात को तब जो चाहे.कर लेना|" इतना सुन में गुस्से में जाने लगा तो भाभी समझ गई की मुझे गुस्सा आ गया है| उन्होंने मुझे रोका और नीच बैठ गई और पाजामे से मेरा लंड बहार निकल कर एक ही सांस में निगल गई|
अब आगे:
मैंने भी ताव में आ कर अपना पूरा लंड इनके गले उतार दिया| मेरी जबरदस्ती करने से भाभी को लगभग उलटी आ गई, पर जैसे -तैसे उन्होंने अपने पर काबू पाया और उलटी रोक ली और मेरी तरफ गुस्से से देखने लगी| मैंने उनके गुस्से को अनदेखा कर अपना लंड फिर उनके मुंह के आगे लहरा दिया| पर भाभी उसको मुंह में नहीं ले रही थी क्योंकि उनको उससे अब मेरे पेशाब की महक आने लगी थी| दरअसल उनके आने से पहले ही मैंने धार मारी थी और जान-बुझ कर लंड साफ़ नहीं किया था| भाभी गंदा सा मुंह बनाते हुए मेरी ओर देखने लगी और मैं भी समझ गया था की पेशाब की बदबू जर्रूर उनके नथुनों में भर गई होगी| फिर आगे जो मैंने किया उससे तो भाभी की हालत और भी ख़राब हो गई| मैंने अपने लंड को खोला और सुपाड़ा पूरी तरह बाहर निकला| सुपाडे के पीछे और नीचे गीला वीर्य लगा हुआ था| दरअसल काफी समय से मैंने अपने लंड की सफाई नहीं की थी... शायद आज ही के दिन के लिए! उसे देखते ही भाभी को उलटी जैसा मन हो आया और उस सूखे वीर्य की बदबू से भाभी बेहाल होने लगी और उन्होंने अपनी नाक पर हाथ रख लिया| मैं उनकी तरफ बड़ी हैरानी से देखने लगा जैसे की कह रहा हूँ की इससे क्या बदबू आ रही है? उस समय भाभी के मन में सेक्स के जितने भी कीड़े थे सब मर गए थे| उनका मुंह ऐसा बिदका हुआ था जैसे कोई मरा हुआ सांप देख लिया हो जिसमें से बदबू आ रही है|
"क्या सोच रही हो? प्यार करती हो ना मुझसे?" मैंने उन्हें याद दिलाया| "मुनना सच्ची बहुत गंधात है!" भाभी ने मुंह बिदकाते हुए कहा| "ठीक है..." इतना कहते हुए मैंने भाभी को अपना जूठा गुस्सा फिर दिखाया| भाभी ने मेरा हाथ पकड़ के रोक लिया; "सच्ची मुनना... वरना मैं कभी मन करती हूँ?" भाभी ने मुझसे विनती की पर मैंने उनकी एक न सुनी और जाने लगा| "अच्छा ठीक है... मैंने भी गलती की है, उसकी सज़ा समझ कर कर लेती हूँ|" ऐसा कह कर उन्होंने मुझे रोका और मेरे पहले से ही बाहर लटक रहे लंड को हाथ में लिया और अपनी आँखें बंद की और अपनी उँगलियों से मेरे सुपाडे को बाहर निकाला| उनका मुंह अब भी बिदका हुआ था और साफ़ पता चल रहा था की वो ये सब बेमन से कर रही हैं| "मन नहीं है तो छोड़ दो! मैं ने आजतक आप के साथ जबरदस्ती नहीं की है और आज भी नहीं करूँगा| जाने दो मुझे!" मैंने रूखे मन से कहा| पर मैं जानता था की भाभी हार मान जायेगी| उनके हार मानने का कारण मुझसे प्यार करना नहीं था बल्कि अपनी गलती की सजा भुगतना था! सो भाभी ने पहले तो नीचे धरती की तरफ देखा और फिर जब मेरी तरफ देखा तो उनके चेहरे पर वही कातिल मुस्कान थी| मुझे लगने लगा जैसे की भाभी जानबूझ कर मेरे साथ ड्रामा कर रही थी| भाभी ने अपने नीचले होंठ को दबाया और अपनी आँखें बड़ी की और अपना मुंह बड़ा सा खोल कर सिर्फ सुपाडे को अपने मुंह में भर लिया| मैंने महसूस किया की उनके मुंह में ढेर सारा थूक भरा हुआ था और जैसे ही मेरा सुपाड़ा उनके मुंह में पहुँचा, उन्होंने अपने होंठ से उसे अंदर ही सील कर दिया| उनके मुंह में मौजूद थूक को वो अपनी जीभ से मेरे लंड पर मलने लगी जैसे की किसी bottom load washing machine में कपडे घूमते हैं वैसे ही उनकी जुबान मेरे सुपाडे के इर्द-गिर्द घूम रही थी और वो अपनी जीभ की नोक से मेरे सुपाडे पर लगे सूखे वीर्य को निकालने लगी| मैं समझ गया था की भाभी इसे जल्द ही उगल देंगी इस लिए मैं भी हरकत में आ गया और अपने सुपाडे को और अंदर धकेलने लगा| मानो मैं उनके मुख को छूट समझ कर छोड़ रहा हूँ!
मैंने भाभी की तरफ देखा और कहा; "सब पी जाना ... एक बूँद भी बर्बाद मत करना|" ये शब्द उनके लिए आदेश था जिनका पालन उन्हें अवश्य करना था! "भाभी...धीरे-धीरे दांतों से काटो सुपाडे को|" मैंने भाभी से कहा और भाभी ने ठीक वैसा ही किया| जिससे मेरे अंदर आनंद की लहरें भरने लगी, भाभी के दांत मेरे लंड पर गाड़ने लगे और वो मादक दर्द मुझे संतुष्ट करने लगा| मैंने अपने लंड को उनके मुंह के भीतर गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया और जब उनके दांत मेरे लंड से टकराते तो बहुत मजा आता| ये मजा अब बर्दाश्त से बहार होने लगा था सो मैंने अपना पूरा लंड उनके गले में तेल दिया और दो-तीन झटके और मेरा सारा रास उनके गले में उतरने लगा| मैंने मस्ती में इतना भर गया था की मुझे ये भी महसूस नहीं हुआ की मेरे लंड अंदर तेल देने से भाभी की हालत ख़राब हो गई है क्योंकि उन्हें सांस नहीं मिल रही थी| भाभी; "गुं..गुं...." कर छटपटा रही थी| शुक्र है की मेरा ये आनंद अनुभव ५-७ सेकंड ही चला वरना भाभी 'टें' बोल जाती!!!! खेर भाभी ने मेरा सारा रस और 'सूखी मलाई निगल ली थी और एक भी बूँद बहार नहीं बहाई थी!
मैंने जब अपना लंड बाहर निकाला तो देखा भाभी बुरी तरह हाँफ रही थी... वो जमीन पर पसर गईं! मैंने उन्हें जबरदस्ती उठा के खड़ा किया और देखा तो भाभी बोली; "मेरी जान लेना चाहते हो क्या?" "अब भला आपकी जान ले कर मुझे क्या मिलेगा?" मेरा जवाब सुन भाभी समझ गई थी की मैंने उन्हें अभी तक माफ़ नहीं किया है| वो कुछ बोलने को हुई की मैंने अपनी ऊँगली उनके होठों पर रख दी; "श..श...श... रात साढ़े बारह बजे मैं आपका इंतजार करूँगा और हाँ ब्रश कर के आना!! पर याद रहे साढ़े बारह बजे न एक मिनट ऊपर न एक मिनट नीचे! साढ़े बारह!!!!" मेरे ये शब्द उनके लिए फरमान थे जिसे सुन भाभी खुश हो गई क्योंकि अब उन्हें कहीं न कहीं ये विश्वास हो गया था की मैंने उन्हें माफ़ कर दिया था|
इतना कह कर मैं सबसे छुपकर घर आगया और घर में घुसने ही वाला था की मुझे कुछ याद आया! मैं वापस घर आया पर इस बार छिपते हुए नहीं बल्कि खुल्ले में! दरअसल मैं ये देखने आया था की नीतू क्या कर रही है? कहीं उसने फिर से भाभी को मेरे पास आते देख लिया तो मुसीबत हो जायेगी| मैंने देखा नीतू अपने कमरे की तरफ जा रही थी और मुझे देख एकदम से मेरे पास आ गई| नीतू बहुत खुश दिख रही थी; "क्या हुआ इतना खुश क्यों हो?" तो नीतू ने कुछ जवाब नहीं दिया और हँसते हुए good night बोल कर चली गई| मुझे ऐसा लगने लगा जैसे मेरा कच्छा सूंघ कर उसे ये तृप्ति मिली है और इसीलिए वो इतनी खुश है| नीतू के जाने के बाद मैं भैया को ढूंढने लगा| भैया मुझे खेत से निकल कर आते हुए नजर आये तो मैंने उनसे कहा; "भैया एक काम था आपका!" भैया मेरा मतलब समझ गए और बोलै; "तुम चलो मैं आता हूँ|" मैं वापस आ गया पांच मिनट बाद भैया आगये और इधर मैंने अपना छोटा और भैया का पटियाला पेग बना कर रेडी कर दिया| भैया अपने साथ कटे हुए प्याज और सूखे मसाले से बानी आम की चटनी ले आये|
to be continued