06-03-2019, 01:58 PM
UPDATE 12
कहानी अब तक :
खेर ये हँसी-मजाक चलता रहा और अगले तीन-चार दिन नीतू ने मेरा बहुत ख़याल रखा और उस मालिश वाले ने जम कर मेरी हड्डियां ढीली कीं| पाँचवे दिन मैं पंद्रह आने ठीक हुआ तो भाभी बीमार पड़ गई!
अब आगे....
सुबह का समय था और मैं कपडे पहन के तैयार हो रहा था, मुझे अपने दोस्त को मिलने जाना था| तभी नीतू मुझे बुलाने आई; "चाचू... माँ को बहुत तेज बुखार है|" आमतौर पर ये सुन कर मैं भाग कर उनके पास पहुँच जाया करता था पर आज मैंने बाल बनाते हुए कहा; "ठीक है... आता हूँ|" मेरा जवाब सुन नीतू को बहुत बुरा लगा ये उसकी उत्तरी हुई शक्ल बता रही थी| नीतू वहांसे गई नहीं और मेरी तरफ देखती रही जैसे पूछ रही हो की क्यों आपको मेरी माँ की कदर नहीं रही| मैंने बाल बनाये और पीछे मुड़ा और नीतू की तरफ देख कर ऐसे बोलै जैसे मुझे कोई फर्क ही नहीं पड़ा; "क्या हुआ? आ रहा हूँ ना ....चल तू!" पर नीतू वहां से हिली नहीं| मुझे एहसास होने लगा की उसका सब्र का बाँध टूटने वाला है ... जो टूट भी गया| "आपको क्या होगया है चाचू? जब से आप का एक्सीडेंट हुआ है आपने माँ से बात-चीत करना बंद कर दिया है? आज माँ बीमार है तब भी आपको कुछ फर्क नहीं पड़ रहा?"
"नीतू समय आने पर आपको सब पता चल जायेगा|" मैंने इतना बोला और चारपाई पर बैठ जूते पहनने लगा| मेरा ये रवैय्या देख नीतू वहाँ से पाँव-पटकते हुए वापस चली गई| मैंने आराम से जूते पहने और आराम से टहलते हुए भाभी के पास पहुँचा| भाभी चारपाई पर लेती थी और उन्होंने एक चादर ओढ़ राखी थी| अम्मा उन्हीं के पास बैठी थी और उनसे हाल-चाल पूछ रही थी| मैं जब कमरे में घुसा तो मुझे जानी-पहचानी सी सुंगंध आई और मैं साड़ी बात समझ गया| मैं वहाँ पहुँच कर जेब में हाथ डाले खड़ा था और मेरा बर्ताव ऐसा था जैसे मुझे कुछ फर्क ही नहीं पड़ रहा| "नीतू ... तेरी माँ ने कुछ खाया-पीया है? बहुत कमजोर लग रही है!" अम्मा ने चिंतित होते हुए कहा| "नहीं अम्मा... माँ ने पिछले तीन दिन से कुछ नहीं खाया|" नीतू ने ये मेरी तरफ देखते हुए कहा जैसे की कह रही हो की अब तो पिघल जा! पर ये सुन कर भी मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ा और मैं जेब में हाथ डाले खड़ा रहा| अम्मा भाभी से उनके खाना ना खाने का कारन पूछने लगी तो भाभी बात को घुमाने लगी ये कह के; "मेरा मन नहीं करता कुछ खाने को|" अम्मा कुछ कहती उससे पहले ही मैंने अपनी पहली चाल चली; "अम्मा होता है ऐसा... अब माँ को ही तो सबसे ज्यादा दुःख होता है की उसकी बेटी दूसरे घर जा रही है| कितने नाजों से माँ पालती है अपनी बेटी को और फिर एक दिन उसे दूसरे घर जाता देख मन तो दुखता ही है|" मैंने भाभी का बचाव करते हुए कहा| मेरी बात अम्मा को जाची और वो भाभी को समझाने लगी; "अरे पगली बेटी तो होती है पराया धन, आज नहीं तो कल तो उसे जाना ही होता है| उसके चक्कर में तू अपनी तबियत ख़राब कर लेगी तो कैसे चलेगा! चल अब और जिद्द मत कर और खाना खा ले| नीतू चल मेरे साथ मैं कुछ बना देती हूँ|" ये बोल कर अम्मा नीतू को अपने साथ ले गई और अब कमरे में बस मैं और भाभी ही रह गए| मैं भी जाने लगा तो भाभी ने लेटे-लेटे ही मेरा हाथ पकड़ लिया और रोने लगी| "मुनना... मुझे माफ़ कर दो! मैं.... मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ| उस दिन .... सब मेरी गलती थी .... तुमने इतने दिन से मुझसे बात नहीं की थी इसलिए मैं तुम्हारे प्यार के लिए प्यासी हो गई थी ... और इसी अंधी प्यास के चलते मैंने ....वो गोली..... खाली! ये सब जो कुछ हुआ वो सब उस गोली के कारन हुआ... सच्ची .... वर्ण तुम्हें तो पता है की मैं ऐसी नहीं हूँ| मैं तो तुमसे कितना प्यार करती हूँ....." भाभी इतना ही बोल पाई थी की नीतू सत्तू ले आई और उसे देख भाभी एक दम से चुप हो गई जैसे की उन्हें कोई सांप सूंघ गया हो| नीतू के हाथ में थाली थी और थाली में सत्तू, हमारे यहाँ नाश्ते में सत्तू और प्याज खाते हैं| मैंने नीतू से पूछा; "बेटा आप प्याज तो लाये ही नहीं! खेर कोई बात नहीं प्याज मैं ला देता हूँ|" ये कहते हुए मैंने भाभी के ऊपर से चादर खेंच दी और उनकी कांख (बगल) में दबे हुए प्याज उजागर हो गए| मैंने दोनों प्याज बाहर निकाले और नीतू को देते हुए कहा; "ये ले... और हाँ भाभी ..... मुझे पता है की आप मुझसे कितना प्यार करते हो| ये (प्याज) गवाह हैं|" मैंने बस इतना कहा और नखरे वाली मुस्खूरहत के साथ वहाँ से चला गया|
मैं पैदल ही अपने दोस्त के घर चल दिया और पूरे रास्ते यही सोच रहा था की मैंने भाभी की क्या गत बना दी उन्हीं की बेटी के सामने, और मुझे अपनी सैतानी हरकत पर बहुत हसीं आई| सच है की बदले का स्वाद बहुत जबरदस्त होता है….. पर मेरा बदला अभी पूरा नहीं हुआ था! ये तो पहली ही किश्त थी .....!!!
दोस्त के घर से वापस आते-आते मुझे रात हो गई थी और खाने का समय भी हो चूका था| मैंने सोच लिया था की मुझे अब क्या करना और मैंने आते ही अपने प्लान पर काम करना शुरू कर दिया| मैं सीधा अपने घर पहुंचा और नहाने लगा और जैसे ही मेरा नहाना खत्म हुआ नीतू आ गई| उसे देख कर मैं थोड़ा नाराज हो गया क्योंकि सुबह सुने मुझसे बहुत उखड के बात की थी| "sorry चाचू! मुझे सब पता चल गया की कैसे आपको चोट लगी और......" नीतू इतना कहते हुए चुप हो गई|उसकी आँखों में मुझे पछतावा नजर आ रहा था इसलिए मेरा दिल पिघल गया और मैंने उसे कहा; "कोई बात नहीं बेटा... आपकी कोई गलती नहीं थी|"
"पर माँ ने आपके साथ इस तरह जबरदस्ती क्यों की? मतलब आप उन्हें हमेशा प्यार ....." नीतू की झिझक उसके शब्दों में साफ़ दिख रही थी| एक बात जो मुझे महसूस हुई वो थी 'जलन'| जब उसने कहा 'आप उन्हें हमेशा प्यार....' और फिर बिना बात पूरे किये ही चुप हो गई| "बेटा हर चीज को पाने का तरीका जबरदस्ती नहीं होता| कुछ चीजें प्यार से भी पाई जा सकती हैं| पर काम अग्नि में जल रहा इंसान सिर्फ जबरदस्ती ही जानता है|" मैंने इतना खा और अपने कमरे में घुस के कपडे बदल कर आया| मैंने बाहर आकर देखा तो नीतू स्नानघर के पास थी और मेरे उतारे हुए कच्छे को छू कर कुछ कर रही थी| दरअसल नीतू मेरे कच्छे के सामने वाले हिस्से, जहाँ पर लंड बाहर निकलने का छेड़ होता है वहां लगे मेरे रास की बूंदों को हाथ से छू रही थी और कुछ सूंघने की कोशिश कर रही थी| "नीतू ये क्या कर रही हो?" मैंने उसे हड़काते हुए पूछा| "वो....वो... मैं ... इसे धो ....ने जारही थी|" नीतू ने सकपकाते हुए कहा| "नीतू ये गलत...." मेरे आगे कुछ बोलने से पहले ही भैया आ गए| "चलो मुनना खाना खाते हैं और तू कपडे धो कर आजा जल्दी से, जब देखो सारा दिन खाली बैठी मखियाँ मारती रहती है|" इतना कह भैया मुझे अपने साथ ले गए और मैं मन ही मन सोच रहा था की नीतू मेरे कच्छे के साथ क्या कर रही होगी?
आँखें बंद किये हुए उस कपडे को अपने नथुनों के पास लाकर सूंघना.... मदहोश कर देने वाली लंड की खुशबु को अपने मन में बसा लेना.... अपने गुलाबी होठों से कपडे को चूमना..... जीभ से चाटना.... कच्छे में लिप्त मेरी पिशाब की बूंदों की महक को सूंघ कर मदहोश हो जाना.... मेरे लंड की पसीने बूंदों का नमकीन स्वाद..... ये सब नीतू को पागल बना रहा होगा ये सोच कर ही मेरे मन में अजीब सी बेचैनी होने लगी थी|
खाना परोसा गया पर मैं भाभी से कुछ बात नहीं कर रहा था| खाना परोसने के 20 मिनट बाद नीतू भी वहां आ गई और उसके चेहरे पर मुझे संतोष नजर आने लगा था| जैसे की उसकी मन की मुराद पूरी हो गई हो! खाना खा के मैं अपने घर आ गया, भैया और बाप्पा अपने-अपने बिस्तर पर चले गए और उनके बीच कुछ बातें होने लगी| मैं कुछ देर तक पाने घर के बाहर ही छिप कर खड़ा रहा और करीब आधे घंटे बाद मैं नांद (जहाँ बैलों को बाँधा जाता है|) के पास आकर छिप गया| मुझे पता था की भाभी रोज की तरह खाना खाके, बचा हुआ खाना बैलों को डालने के लिए नांद पर आएगी| नांद वाली जगह तीन तरफ से ढकी हुई थी और ऊपर छत थी ताकि जानवरों को धुप और बारिश से बचाया जा सके| रात होने के कारन अंदर अँधेरा था और कोई अगर वहां छुप जाए तो उसे देख पाना मुश्किल था| जब भाभी वहां अपनी थाली ले कर आई तो मैं डीएम साढ़े वहां छुप कर खड़ा रहा और जब उन्होंने बचा हुआ खाना बैलों को डाल दिया और मुड के जाने लगी तो मैंने उन्हें पीछे से दबोच लिया| सीधे हाथ से उनका मुंह बंद कर दिया ताकि वो चिल्ला ना सके और बाएं हाथ से उनकी कमर के ऊपर से होते हुए खुद से चिपका लिया| मेरा अकड़ा हुआ लंड उनकी गांड पर अपना दबाव डालने लगा था| "मैं हूँ मुनना.... चिल्लाना मत|" इतना कह कर मैंने उनका विश्वास हासिल किया और भाभी शिथिल पड़ गई| फिर उनकी गर्दन पर अपने होंठ रख कर मैं उन्हें चूमने लगा और भाभी का कसमसाना शुरू हो गया| मेरे दाएं हाथ ने उनके चुचों को धीरे-धीरे मसलना शुरू किया और बाएं हाथ से मैंने उनकी बुर को साडी के ऊपर से टटोलना शुरू कर दिया| भाभी की सिसकारियां फूटने लगी; "सससस.....मम..."| मैंने उनके कान के पास अपने होठों को ले गया और फिर धीरे से काट लिया और भाभी की प्यार भरी आह निकल गयी| "आह!!!"
मैंने खुसफुसाते हुए कहा; "साढ़े बारह बजे ....सससस..... मैं... इंतजार करूँगा...!" ये सुन कर तो जैसे भाभी की साड़ी इच्छा पूरी हो गई| "मुझे माफ़......" भाभी खुसफुसाते हुए बोलना चाह रही थी पर मैंने उनके होठों पर अपनी बीच वाली रख दी और उन्हें अपनी तरफ घुमाया और; "खाना तो खा लिया अब थोड़ा मीठा भी खालो|" मैंने भाभी का हाथ अपने तननाये हुए लंड पर रखते हुए कहा| "मुनना..... मैंने अभी खाना खाया है| कहीं उलटी न हो जाये! मैं आउंगी ना रात को तब जो चाहे.कर लेना|" इतना सुन में गुस्से में जाने लगा तो भाभी समझ गई की मुझे गुस्सा आ गया है| उन्होंने मुझे रोका और नीच बैठ गई और पाजामे से मेरा लंड बहार निकल कर एक ही सांस में निगल गई
to be continued!!! [img]file:///images/smilies/smile.gif[/img]
कहानी अब तक :
खेर ये हँसी-मजाक चलता रहा और अगले तीन-चार दिन नीतू ने मेरा बहुत ख़याल रखा और उस मालिश वाले ने जम कर मेरी हड्डियां ढीली कीं| पाँचवे दिन मैं पंद्रह आने ठीक हुआ तो भाभी बीमार पड़ गई!
अब आगे....
सुबह का समय था और मैं कपडे पहन के तैयार हो रहा था, मुझे अपने दोस्त को मिलने जाना था| तभी नीतू मुझे बुलाने आई; "चाचू... माँ को बहुत तेज बुखार है|" आमतौर पर ये सुन कर मैं भाग कर उनके पास पहुँच जाया करता था पर आज मैंने बाल बनाते हुए कहा; "ठीक है... आता हूँ|" मेरा जवाब सुन नीतू को बहुत बुरा लगा ये उसकी उत्तरी हुई शक्ल बता रही थी| नीतू वहांसे गई नहीं और मेरी तरफ देखती रही जैसे पूछ रही हो की क्यों आपको मेरी माँ की कदर नहीं रही| मैंने बाल बनाये और पीछे मुड़ा और नीतू की तरफ देख कर ऐसे बोलै जैसे मुझे कोई फर्क ही नहीं पड़ा; "क्या हुआ? आ रहा हूँ ना ....चल तू!" पर नीतू वहां से हिली नहीं| मुझे एहसास होने लगा की उसका सब्र का बाँध टूटने वाला है ... जो टूट भी गया| "आपको क्या होगया है चाचू? जब से आप का एक्सीडेंट हुआ है आपने माँ से बात-चीत करना बंद कर दिया है? आज माँ बीमार है तब भी आपको कुछ फर्क नहीं पड़ रहा?"
"नीतू समय आने पर आपको सब पता चल जायेगा|" मैंने इतना बोला और चारपाई पर बैठ जूते पहनने लगा| मेरा ये रवैय्या देख नीतू वहाँ से पाँव-पटकते हुए वापस चली गई| मैंने आराम से जूते पहने और आराम से टहलते हुए भाभी के पास पहुँचा| भाभी चारपाई पर लेती थी और उन्होंने एक चादर ओढ़ राखी थी| अम्मा उन्हीं के पास बैठी थी और उनसे हाल-चाल पूछ रही थी| मैं जब कमरे में घुसा तो मुझे जानी-पहचानी सी सुंगंध आई और मैं साड़ी बात समझ गया| मैं वहाँ पहुँच कर जेब में हाथ डाले खड़ा था और मेरा बर्ताव ऐसा था जैसे मुझे कुछ फर्क ही नहीं पड़ रहा| "नीतू ... तेरी माँ ने कुछ खाया-पीया है? बहुत कमजोर लग रही है!" अम्मा ने चिंतित होते हुए कहा| "नहीं अम्मा... माँ ने पिछले तीन दिन से कुछ नहीं खाया|" नीतू ने ये मेरी तरफ देखते हुए कहा जैसे की कह रही हो की अब तो पिघल जा! पर ये सुन कर भी मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ा और मैं जेब में हाथ डाले खड़ा रहा| अम्मा भाभी से उनके खाना ना खाने का कारन पूछने लगी तो भाभी बात को घुमाने लगी ये कह के; "मेरा मन नहीं करता कुछ खाने को|" अम्मा कुछ कहती उससे पहले ही मैंने अपनी पहली चाल चली; "अम्मा होता है ऐसा... अब माँ को ही तो सबसे ज्यादा दुःख होता है की उसकी बेटी दूसरे घर जा रही है| कितने नाजों से माँ पालती है अपनी बेटी को और फिर एक दिन उसे दूसरे घर जाता देख मन तो दुखता ही है|" मैंने भाभी का बचाव करते हुए कहा| मेरी बात अम्मा को जाची और वो भाभी को समझाने लगी; "अरे पगली बेटी तो होती है पराया धन, आज नहीं तो कल तो उसे जाना ही होता है| उसके चक्कर में तू अपनी तबियत ख़राब कर लेगी तो कैसे चलेगा! चल अब और जिद्द मत कर और खाना खा ले| नीतू चल मेरे साथ मैं कुछ बना देती हूँ|" ये बोल कर अम्मा नीतू को अपने साथ ले गई और अब कमरे में बस मैं और भाभी ही रह गए| मैं भी जाने लगा तो भाभी ने लेटे-लेटे ही मेरा हाथ पकड़ लिया और रोने लगी| "मुनना... मुझे माफ़ कर दो! मैं.... मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ| उस दिन .... सब मेरी गलती थी .... तुमने इतने दिन से मुझसे बात नहीं की थी इसलिए मैं तुम्हारे प्यार के लिए प्यासी हो गई थी ... और इसी अंधी प्यास के चलते मैंने ....वो गोली..... खाली! ये सब जो कुछ हुआ वो सब उस गोली के कारन हुआ... सच्ची .... वर्ण तुम्हें तो पता है की मैं ऐसी नहीं हूँ| मैं तो तुमसे कितना प्यार करती हूँ....." भाभी इतना ही बोल पाई थी की नीतू सत्तू ले आई और उसे देख भाभी एक दम से चुप हो गई जैसे की उन्हें कोई सांप सूंघ गया हो| नीतू के हाथ में थाली थी और थाली में सत्तू, हमारे यहाँ नाश्ते में सत्तू और प्याज खाते हैं| मैंने नीतू से पूछा; "बेटा आप प्याज तो लाये ही नहीं! खेर कोई बात नहीं प्याज मैं ला देता हूँ|" ये कहते हुए मैंने भाभी के ऊपर से चादर खेंच दी और उनकी कांख (बगल) में दबे हुए प्याज उजागर हो गए| मैंने दोनों प्याज बाहर निकाले और नीतू को देते हुए कहा; "ये ले... और हाँ भाभी ..... मुझे पता है की आप मुझसे कितना प्यार करते हो| ये (प्याज) गवाह हैं|" मैंने बस इतना कहा और नखरे वाली मुस्खूरहत के साथ वहाँ से चला गया|
मैं पैदल ही अपने दोस्त के घर चल दिया और पूरे रास्ते यही सोच रहा था की मैंने भाभी की क्या गत बना दी उन्हीं की बेटी के सामने, और मुझे अपनी सैतानी हरकत पर बहुत हसीं आई| सच है की बदले का स्वाद बहुत जबरदस्त होता है….. पर मेरा बदला अभी पूरा नहीं हुआ था! ये तो पहली ही किश्त थी .....!!!
दोस्त के घर से वापस आते-आते मुझे रात हो गई थी और खाने का समय भी हो चूका था| मैंने सोच लिया था की मुझे अब क्या करना और मैंने आते ही अपने प्लान पर काम करना शुरू कर दिया| मैं सीधा अपने घर पहुंचा और नहाने लगा और जैसे ही मेरा नहाना खत्म हुआ नीतू आ गई| उसे देख कर मैं थोड़ा नाराज हो गया क्योंकि सुबह सुने मुझसे बहुत उखड के बात की थी| "sorry चाचू! मुझे सब पता चल गया की कैसे आपको चोट लगी और......" नीतू इतना कहते हुए चुप हो गई|उसकी आँखों में मुझे पछतावा नजर आ रहा था इसलिए मेरा दिल पिघल गया और मैंने उसे कहा; "कोई बात नहीं बेटा... आपकी कोई गलती नहीं थी|"
"पर माँ ने आपके साथ इस तरह जबरदस्ती क्यों की? मतलब आप उन्हें हमेशा प्यार ....." नीतू की झिझक उसके शब्दों में साफ़ दिख रही थी| एक बात जो मुझे महसूस हुई वो थी 'जलन'| जब उसने कहा 'आप उन्हें हमेशा प्यार....' और फिर बिना बात पूरे किये ही चुप हो गई| "बेटा हर चीज को पाने का तरीका जबरदस्ती नहीं होता| कुछ चीजें प्यार से भी पाई जा सकती हैं| पर काम अग्नि में जल रहा इंसान सिर्फ जबरदस्ती ही जानता है|" मैंने इतना खा और अपने कमरे में घुस के कपडे बदल कर आया| मैंने बाहर आकर देखा तो नीतू स्नानघर के पास थी और मेरे उतारे हुए कच्छे को छू कर कुछ कर रही थी| दरअसल नीतू मेरे कच्छे के सामने वाले हिस्से, जहाँ पर लंड बाहर निकलने का छेड़ होता है वहां लगे मेरे रास की बूंदों को हाथ से छू रही थी और कुछ सूंघने की कोशिश कर रही थी| "नीतू ये क्या कर रही हो?" मैंने उसे हड़काते हुए पूछा| "वो....वो... मैं ... इसे धो ....ने जारही थी|" नीतू ने सकपकाते हुए कहा| "नीतू ये गलत...." मेरे आगे कुछ बोलने से पहले ही भैया आ गए| "चलो मुनना खाना खाते हैं और तू कपडे धो कर आजा जल्दी से, जब देखो सारा दिन खाली बैठी मखियाँ मारती रहती है|" इतना कह भैया मुझे अपने साथ ले गए और मैं मन ही मन सोच रहा था की नीतू मेरे कच्छे के साथ क्या कर रही होगी?
आँखें बंद किये हुए उस कपडे को अपने नथुनों के पास लाकर सूंघना.... मदहोश कर देने वाली लंड की खुशबु को अपने मन में बसा लेना.... अपने गुलाबी होठों से कपडे को चूमना..... जीभ से चाटना.... कच्छे में लिप्त मेरी पिशाब की बूंदों की महक को सूंघ कर मदहोश हो जाना.... मेरे लंड की पसीने बूंदों का नमकीन स्वाद..... ये सब नीतू को पागल बना रहा होगा ये सोच कर ही मेरे मन में अजीब सी बेचैनी होने लगी थी|
खाना परोसा गया पर मैं भाभी से कुछ बात नहीं कर रहा था| खाना परोसने के 20 मिनट बाद नीतू भी वहां आ गई और उसके चेहरे पर मुझे संतोष नजर आने लगा था| जैसे की उसकी मन की मुराद पूरी हो गई हो! खाना खा के मैं अपने घर आ गया, भैया और बाप्पा अपने-अपने बिस्तर पर चले गए और उनके बीच कुछ बातें होने लगी| मैं कुछ देर तक पाने घर के बाहर ही छिप कर खड़ा रहा और करीब आधे घंटे बाद मैं नांद (जहाँ बैलों को बाँधा जाता है|) के पास आकर छिप गया| मुझे पता था की भाभी रोज की तरह खाना खाके, बचा हुआ खाना बैलों को डालने के लिए नांद पर आएगी| नांद वाली जगह तीन तरफ से ढकी हुई थी और ऊपर छत थी ताकि जानवरों को धुप और बारिश से बचाया जा सके| रात होने के कारन अंदर अँधेरा था और कोई अगर वहां छुप जाए तो उसे देख पाना मुश्किल था| जब भाभी वहां अपनी थाली ले कर आई तो मैं डीएम साढ़े वहां छुप कर खड़ा रहा और जब उन्होंने बचा हुआ खाना बैलों को डाल दिया और मुड के जाने लगी तो मैंने उन्हें पीछे से दबोच लिया| सीधे हाथ से उनका मुंह बंद कर दिया ताकि वो चिल्ला ना सके और बाएं हाथ से उनकी कमर के ऊपर से होते हुए खुद से चिपका लिया| मेरा अकड़ा हुआ लंड उनकी गांड पर अपना दबाव डालने लगा था| "मैं हूँ मुनना.... चिल्लाना मत|" इतना कह कर मैंने उनका विश्वास हासिल किया और भाभी शिथिल पड़ गई| फिर उनकी गर्दन पर अपने होंठ रख कर मैं उन्हें चूमने लगा और भाभी का कसमसाना शुरू हो गया| मेरे दाएं हाथ ने उनके चुचों को धीरे-धीरे मसलना शुरू किया और बाएं हाथ से मैंने उनकी बुर को साडी के ऊपर से टटोलना शुरू कर दिया| भाभी की सिसकारियां फूटने लगी; "सससस.....मम..."| मैंने उनके कान के पास अपने होठों को ले गया और फिर धीरे से काट लिया और भाभी की प्यार भरी आह निकल गयी| "आह!!!"
मैंने खुसफुसाते हुए कहा; "साढ़े बारह बजे ....सससस..... मैं... इंतजार करूँगा...!" ये सुन कर तो जैसे भाभी की साड़ी इच्छा पूरी हो गई| "मुझे माफ़......" भाभी खुसफुसाते हुए बोलना चाह रही थी पर मैंने उनके होठों पर अपनी बीच वाली रख दी और उन्हें अपनी तरफ घुमाया और; "खाना तो खा लिया अब थोड़ा मीठा भी खालो|" मैंने भाभी का हाथ अपने तननाये हुए लंड पर रखते हुए कहा| "मुनना..... मैंने अभी खाना खाया है| कहीं उलटी न हो जाये! मैं आउंगी ना रात को तब जो चाहे.कर लेना|" इतना सुन में गुस्से में जाने लगा तो भाभी समझ गई की मुझे गुस्सा आ गया है| उन्होंने मुझे रोका और नीच बैठ गई और पाजामे से मेरा लंड बहार निकल कर एक ही सांस में निगल गई
to be continued!!! [img]file:///images/smilies/smile.gif[/img]