06-03-2019, 01:43 PM
UPDATE 8
कहानी अब तक:
"प्यार तो आप माँ से भी नहीं करते पर फिर भी उनकी ख़ुशी के लिए आप उन्हें प्यार तो 'देते' हो न, और उम्र में तो माँ भी आपसे बड़ी हैं फिर उनके साथ आपको .... 'करने' में कोई दुःख नहीं!" नीतू के शब्दों में उसका क्रोध साफ़ दिख रहा था पर उसके जवाब ने मेरे अंदर की क्रोध की ज्वाला को और भड़का दिया था| मैंने खींच के एक और झापड़ उसे रसीद किया; "बहुत जुबान लड़ाने लग गई है तू! शादी तो तेरे अच्छे भी करेंगे और अगर तू ने ना नुकुर की तो मैं ये सब बातें अम्मा-बप्पा के सामने रख दूँगा! ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? मुझे घर से निकाल देंगे, पर तेरी शादी तो तय है क्योंकि उन्हें अपनी 'नाक' ज्यादा प्यारी है| और मेरा क्या है मैं किसी दूसरे शहर चला जाऊँगा, नई जिंदगी शुरू करूँगा ..... और हो सकता है की तेरी माँ मेरे साथ भाग आये! फिर तो हम दोनों एक साथ रह भी सकते हैं, और तू सड़ती रहना अपने ससुराल में!" इतना कह कर मैं बाहर निकला तो भाभी दरवाजे पर टकटकी बांधें खड़ी थी|
अब आगे....
मैंने भाभी से कुछ नहीं कहा और सीधा अपने घर की ओर चल दिया| भाभी ने पीछे से मुझे कई बार पुकारा पर मैं कुछ नहीं बोला| जैसे ही मैंने अपने घर में घुसा भाभी पीछे से आगे ओर बोली; "कुछ तो बताओ?" मैंने उनसे नीतू की कही हुई बात छुपाई क्योंकि जानता था की ये सुन कर वो नीतू की चमड़ी उधेड़ देंगी| "मैंने उसे समझा दिया है! आगे से वो ऐसी कोई हरकत नहीं करेगी|" ये सब मैंने इतने यकीन से इसलिए कहा क्योंकि मैं समझ चूका था की मेरी गीदड़ भबकी से नीतू बुरी तरह डर गई है| मेरी बात सुन कर भाभी को दिलासा हो गया था की सब कुछ ठीक हो जायेगा| "पर तुम मुझसे इतना उखड़े-उखड़े क्यों रहते हो?" मैंने भाभी की बात का कोई जवाब नहीं दिया ओर आकर सीढ़ी पर बैठ गया| भाभी मेरे और नजदीक आई, मेरा दिमाग पहले ही बहुत गर्म था और भाभी के सवाल ने तो मेरी क्रोधाग्नि को और भड़का दिया; "माँ-बेटी मिल कर मेरे दो टुकड़े कर लो! एक आप रख लो और एक उसे दे दो!" ये सुन कर एक पल के लिए भाभी दहल गई थी| ये ही नहीं उनके पीछे नीतू भी मेरी आवाज सुन कर सहम गई और वापस चली गई| मेरी नजर नीतू पर देर से पड़ी थी सो मैं ने उसे जोर से आवाज लगा कर पुकारा| नीतू डर के मारे दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई और सर झुका कर खड़ी हो गई और और नीचे झुकाये हुए बोली; "चाचू मुझे माफ़ कर दो! मैं दुबारा ऐसी कोई हरकत नहीं करुँगी|" ये सुन कर भाभी भी हैरान रह गई की मेरा इतना खौफ है? मैंने आगे कुछ नहीं खा बस नीतू के सर पर हाथ रख कर उसे माफ़ कर दिया| इससे ज्यादा मैं उसे क्या कहता? मेरे लिए इतना ही काफी था की नीतू को अकाल आ गई है!
नीतू आगे कुछ नहीं बोली और जाने लगी, तभी मैंने उसे पुकारा और कहा; "बेटा आज भरता खाने का मन है|" "जी चाचू" उसने मुस्कुराते हुए कहा और फिर खाना बनाने की तैयारी करने चली गई| ये सब मैंने चेक करने के लिए किया था की कहीं वो मेरे सामने ड्रामा तो नहीं कर रही अच्छा बनने का| मुझे तसल्ली हो गई थी की अब सब कुछ ठीक है| इधर जब मेरी नजर भाभी पर पड़ी तो वो ऐसे घूर रही थी जैसे कह रही हो उससे तो प्यार से बात करते हो पर मुझे घास तक नहीं डालते| मैं उनके मन के विचारों को भांप चूका था पर मेरे अंदर थोड़ा गुस्सा उनके प्रति भी था| खेर भाभी ने मुझे कुछ नहीं कहा और मुँह टेढ़ा करके चली गई| थोड़ी देर बाद घर पर प्रधान की बहु आई, उसके साथ चार आदमी भी थे जो ट्रेक्टर में हमारे घर का सामान ले कर आये थे| वे लोग गलती से उनके घर पहुँच गए थे और प्रधान की बहु उन्हें मेरे पास ले आई थी| सारा सामान उतार कर मैंने उन लोगों को पैसे दिए और वे लोग चले गए| अब मैं और प्रधान की बहु रह गए थे| “कब आये शहर से बताया भी नहीं?" उसने पूछा| "मैं तो आपको जानता भी नहीं हूँ, फिर भला आपको क्यों बताऊँ?" "है हमहीं से सब लेना देना और हमें ही नहीं बताओगे!" वो बुदबुदाते हुए बोली| "क्या?" मैंने पूछा तो वो बात पलटते हुए बोली; "हम कह रहे थे की, हम बहुत सुने हैं आपके बारे में!" उसने छेड़खानी भरे अंदाज में कहा| "मेरे बारे में? अच्छा...किस्से?" मैंने पूछा| "उमा से!" ये सुनते ही मैं समझ गया की इसने क्या सुना होगा| "क्या-क्या सुना मेरे बारे में" मैंने भी उसी के अंदाज में पूछा| ".............." वो आगे कुछ बोल पाती की तभी भाभी आ गई और मुझे ऐसे घूर रही थी जैसे मेरी चोरी पकड़ ली हो! "अच्छा तुम आई हो! तभी मैं कहूं ...." भाभी को वहां देख तो प्रधान की बहु के प्राण सूख गए और वो अच्छा चलती हूँ बोल कर निकल गई|
भाभी मेरी ओर गुस्से से देखने लगी और बुदबुदाते हुए बोली; "मुझमें क्या काटें लगे हैं|" मैंने ये सुन लिया और थोड़ा जोर से बोला; "और क्या" ये सुन कर भाभी और गुस्सा हो गई और पैर पटक कर वहां से चली गई| दोपहर को खाने के समय घर पर मैं, भाभी और नीतू ही थे| अम्मा, बप्पा और भैया शाम को आने वाले थे| मैंने नीतू और भाभी को भी साथ खाने के लिए कहा क्योंकि बहुत दिन से हम तीनों के बीच दिवार सी खड़ी हो गई थी| खाना खाने के समय मैं ही बातों का सञ्चालन कर रहा था और कोशिश कर रहा था की नीतू अपनी माँ से पुनः बात करना शुरू कर दे और भाभी भी नीतू से बात करना शुरू कर दें| हमने काफी देर तक इधर-उधर की बातें की और तभी मुझे भैया का फ़ोन आया और मुझे काम बताया गया जिसके लिए मुझे घर से थोड़ा दूर जाना था| मुझे ये भी बताय गाया की जेवर अभी तक पूरे नहीं बने हैं सो वे सभी शहर चले गए है और उन्हें आने में रात हो जाएगी| मैंने उन्हें रात को जेवर घर नहीं लाने की सलाह दी और उन्होंने मान भी ली| मैं पैसे ले कर घर से निकला और फटा-फट पेडल मारते हुए अपनी साईकिल दौड़ा दी| आधे घंटे का रास्ता २० मिनट में पूरा किया और वहां पहुँच कर भैया के बताये हुए आदमी से उनकी बात कराई और उसे पैसे दिए| मैं लौटने लगा तो नीतू का फ़ोन आया और उसने चॉकलेट लाने की फरमाइश की और भाभी ने घर जल्दी आने की फरमाइश! मैंने चॉकलेट खरीदी और वापस आ रहा था की तभी भाभी का फोन आया और वो मुझसे बतियाने लगी| जो बात मुझे अटपटी सी लगी वो ये की वो बार-बार मुझसे पूछ रही थी की मैं कहाँ तक पहुँचा| जब मैं घर से करीब दस मिनट दूर था तभी वो बोली की मैं हमारे खेत वाले रस्ते से आऊं और खेत से गन्ना तोड़ लाऊँ क्योंकि नीतू गन्ना खाना चाहती है| सो मैंने अपनी साईकिल दूसरी तरफ घुमा ली और सायकिल खेत के बरा-बर खड़ी कर अंदर घुस गया | जैसे ही मैं खेत के बीचों बीच पहुँचा तो देखा…….
to be continued......
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"प्यार तो आप माँ से भी नहीं करते पर फिर भी उनकी ख़ुशी के लिए आप उन्हें प्यार तो 'देते' हो न, और उम्र में तो माँ भी आपसे बड़ी हैं फिर उनके साथ आपको .... 'करने' में कोई दुःख नहीं!" नीतू के शब्दों में उसका क्रोध साफ़ दिख रहा था पर उसके जवाब ने मेरे अंदर की क्रोध की ज्वाला को और भड़का दिया था| मैंने खींच के एक और झापड़ उसे रसीद किया; "बहुत जुबान लड़ाने लग गई है तू! शादी तो तेरे अच्छे भी करेंगे और अगर तू ने ना नुकुर की तो मैं ये सब बातें अम्मा-बप्पा के सामने रख दूँगा! ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? मुझे घर से निकाल देंगे, पर तेरी शादी तो तय है क्योंकि उन्हें अपनी 'नाक' ज्यादा प्यारी है| और मेरा क्या है मैं किसी दूसरे शहर चला जाऊँगा, नई जिंदगी शुरू करूँगा ..... और हो सकता है की तेरी माँ मेरे साथ भाग आये! फिर तो हम दोनों एक साथ रह भी सकते हैं, और तू सड़ती रहना अपने ससुराल में!" इतना कह कर मैं बाहर निकला तो भाभी दरवाजे पर टकटकी बांधें खड़ी थी|
अब आगे....
मैंने भाभी से कुछ नहीं कहा और सीधा अपने घर की ओर चल दिया| भाभी ने पीछे से मुझे कई बार पुकारा पर मैं कुछ नहीं बोला| जैसे ही मैंने अपने घर में घुसा भाभी पीछे से आगे ओर बोली; "कुछ तो बताओ?" मैंने उनसे नीतू की कही हुई बात छुपाई क्योंकि जानता था की ये सुन कर वो नीतू की चमड़ी उधेड़ देंगी| "मैंने उसे समझा दिया है! आगे से वो ऐसी कोई हरकत नहीं करेगी|" ये सब मैंने इतने यकीन से इसलिए कहा क्योंकि मैं समझ चूका था की मेरी गीदड़ भबकी से नीतू बुरी तरह डर गई है| मेरी बात सुन कर भाभी को दिलासा हो गया था की सब कुछ ठीक हो जायेगा| "पर तुम मुझसे इतना उखड़े-उखड़े क्यों रहते हो?" मैंने भाभी की बात का कोई जवाब नहीं दिया ओर आकर सीढ़ी पर बैठ गया| भाभी मेरे और नजदीक आई, मेरा दिमाग पहले ही बहुत गर्म था और भाभी के सवाल ने तो मेरी क्रोधाग्नि को और भड़का दिया; "माँ-बेटी मिल कर मेरे दो टुकड़े कर लो! एक आप रख लो और एक उसे दे दो!" ये सुन कर एक पल के लिए भाभी दहल गई थी| ये ही नहीं उनके पीछे नीतू भी मेरी आवाज सुन कर सहम गई और वापस चली गई| मेरी नजर नीतू पर देर से पड़ी थी सो मैं ने उसे जोर से आवाज लगा कर पुकारा| नीतू डर के मारे दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई और सर झुका कर खड़ी हो गई और और नीचे झुकाये हुए बोली; "चाचू मुझे माफ़ कर दो! मैं दुबारा ऐसी कोई हरकत नहीं करुँगी|" ये सुन कर भाभी भी हैरान रह गई की मेरा इतना खौफ है? मैंने आगे कुछ नहीं खा बस नीतू के सर पर हाथ रख कर उसे माफ़ कर दिया| इससे ज्यादा मैं उसे क्या कहता? मेरे लिए इतना ही काफी था की नीतू को अकाल आ गई है!
नीतू आगे कुछ नहीं बोली और जाने लगी, तभी मैंने उसे पुकारा और कहा; "बेटा आज भरता खाने का मन है|" "जी चाचू" उसने मुस्कुराते हुए कहा और फिर खाना बनाने की तैयारी करने चली गई| ये सब मैंने चेक करने के लिए किया था की कहीं वो मेरे सामने ड्रामा तो नहीं कर रही अच्छा बनने का| मुझे तसल्ली हो गई थी की अब सब कुछ ठीक है| इधर जब मेरी नजर भाभी पर पड़ी तो वो ऐसे घूर रही थी जैसे कह रही हो उससे तो प्यार से बात करते हो पर मुझे घास तक नहीं डालते| मैं उनके मन के विचारों को भांप चूका था पर मेरे अंदर थोड़ा गुस्सा उनके प्रति भी था| खेर भाभी ने मुझे कुछ नहीं कहा और मुँह टेढ़ा करके चली गई| थोड़ी देर बाद घर पर प्रधान की बहु आई, उसके साथ चार आदमी भी थे जो ट्रेक्टर में हमारे घर का सामान ले कर आये थे| वे लोग गलती से उनके घर पहुँच गए थे और प्रधान की बहु उन्हें मेरे पास ले आई थी| सारा सामान उतार कर मैंने उन लोगों को पैसे दिए और वे लोग चले गए| अब मैं और प्रधान की बहु रह गए थे| “कब आये शहर से बताया भी नहीं?" उसने पूछा| "मैं तो आपको जानता भी नहीं हूँ, फिर भला आपको क्यों बताऊँ?" "है हमहीं से सब लेना देना और हमें ही नहीं बताओगे!" वो बुदबुदाते हुए बोली| "क्या?" मैंने पूछा तो वो बात पलटते हुए बोली; "हम कह रहे थे की, हम बहुत सुने हैं आपके बारे में!" उसने छेड़खानी भरे अंदाज में कहा| "मेरे बारे में? अच्छा...किस्से?" मैंने पूछा| "उमा से!" ये सुनते ही मैं समझ गया की इसने क्या सुना होगा| "क्या-क्या सुना मेरे बारे में" मैंने भी उसी के अंदाज में पूछा| ".............." वो आगे कुछ बोल पाती की तभी भाभी आ गई और मुझे ऐसे घूर रही थी जैसे मेरी चोरी पकड़ ली हो! "अच्छा तुम आई हो! तभी मैं कहूं ...." भाभी को वहां देख तो प्रधान की बहु के प्राण सूख गए और वो अच्छा चलती हूँ बोल कर निकल गई|
भाभी मेरी ओर गुस्से से देखने लगी और बुदबुदाते हुए बोली; "मुझमें क्या काटें लगे हैं|" मैंने ये सुन लिया और थोड़ा जोर से बोला; "और क्या" ये सुन कर भाभी और गुस्सा हो गई और पैर पटक कर वहां से चली गई| दोपहर को खाने के समय घर पर मैं, भाभी और नीतू ही थे| अम्मा, बप्पा और भैया शाम को आने वाले थे| मैंने नीतू और भाभी को भी साथ खाने के लिए कहा क्योंकि बहुत दिन से हम तीनों के बीच दिवार सी खड़ी हो गई थी| खाना खाने के समय मैं ही बातों का सञ्चालन कर रहा था और कोशिश कर रहा था की नीतू अपनी माँ से पुनः बात करना शुरू कर दे और भाभी भी नीतू से बात करना शुरू कर दें| हमने काफी देर तक इधर-उधर की बातें की और तभी मुझे भैया का फ़ोन आया और मुझे काम बताया गया जिसके लिए मुझे घर से थोड़ा दूर जाना था| मुझे ये भी बताय गाया की जेवर अभी तक पूरे नहीं बने हैं सो वे सभी शहर चले गए है और उन्हें आने में रात हो जाएगी| मैंने उन्हें रात को जेवर घर नहीं लाने की सलाह दी और उन्होंने मान भी ली| मैं पैसे ले कर घर से निकला और फटा-फट पेडल मारते हुए अपनी साईकिल दौड़ा दी| आधे घंटे का रास्ता २० मिनट में पूरा किया और वहां पहुँच कर भैया के बताये हुए आदमी से उनकी बात कराई और उसे पैसे दिए| मैं लौटने लगा तो नीतू का फ़ोन आया और उसने चॉकलेट लाने की फरमाइश की और भाभी ने घर जल्दी आने की फरमाइश! मैंने चॉकलेट खरीदी और वापस आ रहा था की तभी भाभी का फोन आया और वो मुझसे बतियाने लगी| जो बात मुझे अटपटी सी लगी वो ये की वो बार-बार मुझसे पूछ रही थी की मैं कहाँ तक पहुँचा| जब मैं घर से करीब दस मिनट दूर था तभी वो बोली की मैं हमारे खेत वाले रस्ते से आऊं और खेत से गन्ना तोड़ लाऊँ क्योंकि नीतू गन्ना खाना चाहती है| सो मैंने अपनी साईकिल दूसरी तरफ घुमा ली और सायकिल खेत के बरा-बर खड़ी कर अंदर घुस गया | जैसे ही मैं खेत के बीचों बीच पहुँचा तो देखा…….
to be continued......