06-03-2019, 01:31 PM
UPDATE 2
कहानी अब तक:
हम बाग़ के पास पहुँच ही थे की नीतू बोली; "चाचू मुझे....जाना है|" ये सुन पहले तो मैं सोचने लगा की उसे कहाँ जाना है, फिर याद आया की उसे पेशाब लगी है| "ठीक है ... उधर झाड़ी के पास... मैं वहाँ पेड़ के पास बैठा हूँ|" ये बोल मैं थोड़ा दूर आम के पेड़ के पास दूसरी तरफ मुंह कर खड़ा हो गया और मोबाइल में गेम खेलने लगा| अगले ही पल मुझे एक जोरदार सीटी की आवाज सुनाई दी....
अब आगे:
ये सीटी थी नीतू के मूतने की| मुझे लगा वो दूर जा कर मूत रही होगी पर वो मेरे से करीब दस कदम दूर ही झाडी में बैठी मूत रही थी| आवाज सुन में समझ तो गया ही था की ये किसकी आवाज है पर मैं पलट नहीं सकता था| 2 मिनट बाद जब नीतू लौटी तो मैंने उसे थोड़ा गुस्से में बोला; "मैंने आपको उधर दूर झाडी के पास बोला था ना? फिर मेरे इतने नजदीक काने में शर्म नहीं आई?" मेरा गुस्सा देख नीतू ठिठक गई और सर झुका कर बोली; "चाचू... वो .... वहाँ किसी ने हग (टट्टी) रखा था... इसलिए...." ये सुन मैं थोड़ा शांत हुआ और कहा; "तो बेटा कहीं और दूर चले जाते|" अब नीतू सामान्य हो बोली; "पर चाचू आप से कैसी शर्म? आपने तो बचपन में मुझे देखा है ना?" "बदमाश... तब आप छोटे थे| अब आप बड़े हो गए हो.. शादी हो रही है आपकी| चलो छोडो ... और दुबारा ऐसी गलती मत करना|" इतना कह हम दोनों घर लौट आये|
घर पहुँच के मुझे शीला भाभी कुऍं से पानी भरती नजर आई| मेरी ओर देख उन्होंने कटीली मुस्कान दी पर मेरे मन में रात गुस्सा अभी भी था तो मैंने उनको ज्यादा तवज्जो नहीं दी| मैं और नीतू ने सीधे अम्मा के पास जा कर हाज़री लगाईं; "अरे, तुम दोनों इतनी जल्दी लौट आये?" अम्मा ने उत्सुकता वश पूछा| "हाँ अम्मा..." मैं आगे कुछ कहने ही वाला था की अम्मा बोल पड़ी; "अच्छा मुनना सुन, अपनी भाभी को दवाखाने ले जा|" ये सुन कर मैं अचंभित हो गया क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही तो मैंने देखा था| "पर उन्हें क्या हुआ? अच्छी-भली तो हैं|" मैंने थोड़ा गुस्से में कहा क्योंकि मुझे लगा ये भाभी का कोई नया ड्रामा होगा| "वो तुझे नहीं बता सकते| तू इसे बस बाजार ले जा ये अपने आप बात कर लेगी|" अम्मा तो थोड़ा झेंपते हुए बोला| पर भाभी ने बोल पड़ी; "अम्मा कोई बात नहीं आज नहीं तो कल मुनना को भी ये सब पता ही चल जायेगा| आखिर उसकी भी तो शादी होगी!" ये बात भाभी ने एक अलग अंदाज में कही, जैसे की वो मुझे चिढ़ा रही हो| "हम्म्म... ये तो सही है कहा तूने| बेटा तेरी भाभी को सफ़ेद पानी की शिकायत है|" ये सब बड़की अम्मा के मुख से सुन बुरी तरह झेंप गया और मुझे अब भाभी का चिढ़ाने का अंदाज समझा आया| पर ये सब सुन कर मैं भी चिंतित हो गया, क्योंकि भले ही उनसे नाराज रहता था पर उनकी सेहत की परवाह भी सब से ज्यादा करता था| मैंने गंभीर आवाज में भाभी से कहा; "चलो भाभी... आप तैयार हो जाओ| मैं जाके साइकल निकालता हूँ|" साडी बदल भाभी आ गेन और मैं उन्हें सायकल पर पीछे बिठा कर चल दिया| मेरे चेहरे पर अब भी गंभीरता थी और अंदर ही अंदर मैं उनके लिए परेशान भी था| गाँव से थोड़ा दूर पहुँच कर भाभी बोली; "क्या बात है मुनना सुबह तो इतना गुस्सा थे और अब देखो मेरी चिंता में आधे हुए जा रहे हो? अब भी कहोगे की मुझसे प्यार नहीं करते?"
"चिंता करने का मतलब ये तो नहीं की आपसे प्यार करता हूँ... हाँ परवाह करता हूँ आपकी| गुस्सा होता हूँ पर सबसे ज्यादा चिंता भी आप की ही करता हूँ|" मैंने जवाब दिया|
"देखो इतनी चिंता करने वाले को भी मैं खुश नहीं कर पाती| धिक्कार है मुझ पर!" भाभी ने अपने को कोसते हुए कहा| "जो हुआ उसमें आपकी गलती नहीं थी.... अब बुढ़ापा होता ही ऐसा है!" मैंने ये बात कह कर थोड़ी चुटकी ली| "अच्छा ? मैं बूढी हो गई हूँ?" भाभी ने थोड़ा चिढ कर कहा| "कल रात आप ही ने तो कहा था!" मैंने उन्हें चिढ़ाने के लिए थोड़ी और आग लगा दी| "अच्छा? आज बताती हूँ की कितनी बूढी हो गई हूँ! आज तुम्हारा तेल ना निकाल दिया तो कहना!" भाभी ने बिदक के कहा| "अरे भाभी मैं तो मजाक कर रहा था, आप खामखा गुस्सा हो गए| अभी आपकी तबियत ठीक नहीं है, पहले ठीक हो जाओ फिर चाहे मुझे जिन्दा खा जाना| पर जब तक पूरी तरह ठीक नहीं होते तब तक शांत रहो|" ये सुनकर भाभी थोड़ी शांत हुई और हम हंसी-मजाक करते हुए शहर पहुँचे| दवाखाने के सामने पहुँच भाभी ने मुझे वहीँ रुकने को कहा और खुद अंदर चली गई| दवाखाने के बाहर औरतों के इलाज की अलग लाइन थी और मर्दों की दूसरी तरफ थी| मैंने देखा भाभी लाइन में नहीं लगीं बल्कि सीधा अंदर चली गईं| मुझे लगा भाभी बड़ी दबंग हैं! 5 मिनट में ही वो बहार आ गईं और उनके हाथ में कुछ भी नहीं दिख रहा था, न दवाई न कोई परचा! मैं सोच में पद गया की ये यहाँ करने क्या आई थीं? तभी वो मेरे पास आईं और बोलीं, "मुनना एक बोतल पानी ला दो|" मैंने सायकल स्टैंड पर कड़ी की और जा के पानी की बोतल खरीद लाया| तभी भाभी ने अपने ब्लाउज के अंदर हाथ डाला और मैंने अपनी आँखें फेर लीं| ये देख भाभी हँस दी और बोली; "आँखें क्यों फेर ली?" "तो क्या घुस जाऊँ उधर?" मैंने झूठा गुस्सा दिखते हुए कहा| ये सुन भाभी खिलखिलाकर हँस पड़ी और आने जाने वालों की नजर हम पर टिक गई|
खेर भाभी ने अपने ब्लाउज में से अपना बटुआ निकाला और उसमें एक दवाई का पत्ता था जिसकी एक गोली उन्होंने मेरे सामने पानी से खा ली| मुझे लगा की डॉक्टर ने दवाई दी होगी| दवाई खा कर भाभी ने मुझे घर जाने के लिए कच्चा रास्ता लेने को कहा, जब मैंने वजह जननी चाही तो वो बोलीं की उन्हें किसी से मिल कर शादी का न्योता देना है| मैंने भाभी की बात मान ली और हम कच्चे रस्ते के लिए मुख्य सड़क से उतर आये| दोपहर के दो बजे होंगे और धुप में मैं और भाभी हँसते-मुस्कुराते हुए बात किये जा रहे थे की तभी अचानक भाभी बोली; "मुनना... सायकल रोक!" भाभी की आवाज में कुछ अजीब था और मेरा ध्यान उनकी आवाज समझने में लग गया की तभी भाभी फिर बोली; "रोक....रोक ना|" मैंने सायकल रोक दी और उतर के पीछे मुड़ा; "क्या हुआ भाभी? सब ठीक तो है?" भाभी के चेहरे पर अजब सी मुस्कराहट फ़ैल गई और वो बोली; "मेरे साथ चल|" और मेरा हाथ खींच के रास्ते के किनारे एक बाग़ की तरफ जाने लगी| "अरे पर ले कर कहाँ जा रही हो ?" मैंने फिर से पूछा पर वो कुछ नहीं बोली| ये देख मेरे दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे थे| मैं समझ गया था की ये जर्रूर कल रात का अधूरा काम ख़तम करने मुझे ले जा रही हूँ और मन ही मन मैं ठान चूका था की इनकी बीमारी के चलते मैं इन्हें छूने वाला भी नहीं हूँ| बाग़ के अंदर एक तरफ एक आधा कटा हुआ पेड़ था और झाड़ियाँ भी थी, वहाँ पहुँच कर शीला भाभी रूक गई और अपनी बढ़ी हुई साँसों को थामते हुए बोली; "कल रात मैंने अपने सजना को बहुत आहात किया था|" मैंने भाभी की बात वहीँ काट दी; "ठीक है... पर इस सब की कोई जर्रूरत नहीं है| अभी आप बीमार हो, पहले ठीक हो जाओ फिर ...|" मैंने बात पूरी नहीं की पर ये सुन कर भाभी हंसने लगी| उनकी हंसी देख मुझे समझते देर नहीं लगी की ये बिमारी-वीमारी कुछ नहीं बल्कि ढोंग था उनका| मैंने अपने माथे पर हाथ मरते हुए बोला; "तो ये सब आपने ड्रामा खेला था?" मेरी बात सुन उनका सर झुक गया था और मेरा पारा चढ़ने लगा था| "यहाँ मैं खुद को मन ही मन गालियाँ दे रहा था की मैंने आपके साथ कल रात इतना बुरा व्यवहार किया और आप यहाँ ...." मैंने बात अधूरी छोड़ दी और भाभी की तरफ देखना बंद कर दिया था और उनसे नजरें फेरे खड़ा था| तभी भाभी बोली; "मैंने ये सब तुम्हारे लिए किया| कल रात मैंने तुम्हें अतृप्त छोड़ दिया था और तब से मैं खुद को माफ़ नहीं कर पा रही थी| सुबह जब तुमने मेरी तरफ देखना भी ठीक नहीं समझा तो मैंने सोच लिया की मुझे क्या करना है| मैंने दवाखाने से दवाई ली और ....." दवाई का नाम सुन मेरे कान खड़े हगो गए थे| "कैसी दवाई?" मैंने पूछा तो जवाब में वो बोली; "जोश बढ़ने वाली| आज मैंनेतुम्हेँ छका न दिया तो कहना?" मैं मन ही मन सोच में पढ़ गया की ऐसी दवाइयाँ तो मर्दों के लिए होती हैं, भला औरतों को इसकी क्या जर्रूरत? इधर भाभी के तपते जिस्म ने उनकी हरकतों को मजबूर कर दिया था| भाभी ने अपना हाथ मेरे लंड पर रखा और पैंट के ऊपर से दबाने लगी| "ये क्या कर रही हो? पागल हो क्या? यहाँ खुले में? कोई देख लेगा तो?" मैंने उनके हाथों की पकड़ से अपने लंड को आजाद करते हुए कहा| एक बात मैंने गौर की वो ये की भाभी की सांसें भारी हो चली थीं और ये साफ़ था की भाभी के ऊपर दवाई का असर दिखने लगा था| भाभी ने गुस्से से मेरी कमीज के कालर पकड़ते हुए बोली; "डर गए.. की कहीं आज तुम्हारी सिटी-पित्ती गुल्ल हो गई तो? कहीं आज तुम्हारा ये औजार कमजोर पड़ गया तो?"
ये शब्द सुन कर तो नामर्द के लंड में भी अकड़न आ जाए मैं तो फिर भी मर्द था! म आईने भाभी की कमर में हाथ डाला और उन्हें अपने नजदीक खींच लिया और उनके थिरकते होटों पर अपने होंठ रख दिए| उनके नीचे वाले होंठ को मैंने अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा| इधर भाभी ने भी अपने दोनों हाथों से मेरे सिर के पीछे बालों में चलना शुरू कर दिया था| उनकी नाखून मेरे सिर में एक अजीब सा एहसास करा रहे थे| मैंने नीचले होंठ को छोड़ के उनके ऊपरी होंठ को अपने मुँह में दबोच लिया और चूसने लगा|भाभी की उत्तेजना अब उफान मारने लगी थी, शायद ये दवाई का असर था|उनके हाथों ने मेरे लंड पर पकड़ बनानी शुरू कर दी थी, उँगलियाँ मेरी पैंट की ज़िप पर घूमने लगी और उन्होंने जल्द ही मेरी पैंट की कैद से मेरे लंड को आजाद कर दिया| जी भर के भाभी के होंठों का रसपान करने के बाद जब मैंने उन्हें आजाद किया तो देखा की भाभी की सांसें धोकनी की तरह चल रही थीं| मुझे समझते देर न लगी की भाभी की कामाग्नि उन्हें जला रही है| मैंने आस-पास देखने लगा की लेटने का कुछ जुगाड़ हो सके| तभी भाभी ने उस आधे कटे हुए पेड़ की तरफ इशारा किया| मैंने अपनी पैंट उतारी और मैं उस कटे हुए पेड़ के तने के ऊपर लेट गया| मेरी सिर्फ कमर और थोड़ी सी पीठ ही उस तने पर थी बाकी का शरीर हवा में था जो मेरी टांगों के सहारे था| भाभी ने अपनी साडी और पेटीकोट ऊपर किया और मेरी कमर के ऊपर आ गईं और लंड को अपनी पनियाई हुई बुर के ऊपर सेट किया और धीरे-धीरे लंड पर बैठने लगीं| उनकी बुर अंदर से बुरी तरह गीली थी| लंड पूरा अंदर जा चूका था और भाभी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव झलकने लगे थे| भाभी ने ऊपर-नीचे होना शुरू किया और मैंने महसूस किया की जब भाभी ऊपर उठती तो उनकी बुर अंदर से मेरे लंड को जकड़ने लगती, जैसे की मेरे लंड को निचोड़ना चाहती हो| भाभी की गति बहुत बढ़ चुकी थी और उनके मुख से आनंदमई सुर आने लगे थे; "सससस....उम्मम्मम.... आआह......आनमममम" इधर मुझे भी बहुत आननद आ रहा था| मेरी नजरें भाभी के ब्लाउज में कैद चुचों को आनंद लेने में व्यस्त थीं जो भाभी की रफ़्तार से लय बांधने लगे थे और ऊपर-नीचे हिलने लगे थे| पर जब भाभी लंड पर नीचे आती तो मेरी कमर में पेड़ की लकड़ी चुभने लगती| मैंने भाभी को रोकना चाहा पर तभी भाभी जोर से झड़ने लगीं और उनके बुर का सारा रस मेरे लंड के साथ बहता बहता बाहर आने लगा पर भाभी थी की रुकने का नाम नहीं ले रही थी| जबतक उनके अंदर रस की सारी धार बाहर नहीं बाह गई वो ऊपर-नीचे कूदती रही| आखिर कार थक कर वो रुकीं और मेरे ऊपर से हट गईं| भाभी की सांसें बहुत तेजी से चल रही थी और उनकी प्यास आँखों से बयान हो रखी थी| मैंने उनको एक पेड़ के पास खड़ा किया उनकी दायीं टांग को उठाया और पीछे से अपना लंड अंदर पेल दिया| लंड फिसलता हुआ अंदर घुस गया| अब मेरे अंदर के ट्रक ने पूरी हार्सपावर से काम करना शुरू कर दिया था| मैंने बहुत तेज-तेज झटके मारना शुरू कर दिया था और गति कुछ इस कदर बढ़ चुकी थी कली भाभी को खुद को गिरणसे से सँभालने के लिए पेड़ का सहारा लेना पड़ा| उनके मुख से लगातार चींखें निकलने लगी थी; आआह.....न्नन्न....ममममम.....ससससस.....हाय...ह्ह्हम्मम्मम्म ....मममममम ...." ये तो शुक्र था की बाग़ के आस पास कोई गाँव-घर नहीं था वर्ण आज वहां जमावड़ा लग जाता| मेरी रगों में जोश बढ़ने लगा था और मेरी चुदाई की रफ़्तार पूरे चरम पर थी| ३-४ धक्के और भाभी फिर से झड़ गईं और हाफने लगीं| भाभी की बुर का रास उनकी बुर से निकल कर थाई से होता हुआ नीचे बहने लगा| पर मैं अब भी संतुष्ट नहीं था, इतने समय बात छूट मिली थी की क्या बताऊँ!
भाभी मेरी तरफ पलटीं और मेरे मन में ख्याल आया की ये जर्रूर अब बोलेंगी की मैं थक गई हूँ| पर हुआ उससे उलट! "सससस....मु...नननन...अअअ.... खड़े-खड़े मैं थक गईं हूँ अब मुझे लेटने दे| मैं थोड़ा हैरान हुआ पर चुदाई का भूत सर पर सवार था तो ज्यादा ध्यान नहीं गया| अब भाभी उस कटे हुए पेड़ के तने पर पीठ के बल लेट गईं और मैंने उनकी दोनों टांगें खोलीं और बीच में आ गया| एक झटके में लैंड अंदर पेल दिया और थोड़ी बेरहमी दिखते हुए उन्हें चोदने लगा| जैसे ही मैं लंड अंदर पेलता भाभी के चुचे ऊपर को उछाल जाते और जब बाहर निकालता तो वो नीचे को वापस आ जाते| मुझसे उनके ये छलते हुए चुचों को ब्लाउज में कैद देखना मुश्किल हो रहा था सो मैंने भाभी के ब्लाउज का हुक खोल दिया और पाया की भाभी ने ब्रा नहीं पहनी थी| यानी आज भाभी पूरी तैयारी कर के आई थी चुदाई की| मैंने अपने दोनों हाथों से भाभी के चुचों को थामा और दबाना शुरू किया| मैंने उन पर इस कदर पकड़ बना ली थी की वो अब मेरे धक्कों के प्रभाव से उछाल नहीं पा रहे थे| इधर भाभी के मुंह से सिर्फ सिसकारियां ही फुट रही थीं| १५ मिनट की म्हणत और की, कि तभी भाभी को मेरे चेहरे पर संतुष्ट होने के भाव नजर आने लगे| मतलब की मैं झड़ने वाला था और भाभी जानती थी की मैं हमेशा अपना वीर्य बाहर निकालता था| पर इससे पहले की मैं लंड बाहर निकालता भाभी ने अपनी दोनों टांगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द कास लिया और बोलीं; "अंदर छोड़ दो... मैंने गर्भ निरोधक गोली खरीदी है|" ये सुन कर मैंने अपना लंड बाहर नहीं खींचा और ४-५ धक्के मारता हुआ उनके भीतर ही झड़ गया| मेरे रस के साथ-साथ भाभी ने फिर से अपना रस छोड़ दिया और वो भी संतुष्ट हो कर मुझसे लिपट गईं|
to be continued
कहानी अब तक:
हम बाग़ के पास पहुँच ही थे की नीतू बोली; "चाचू मुझे....जाना है|" ये सुन पहले तो मैं सोचने लगा की उसे कहाँ जाना है, फिर याद आया की उसे पेशाब लगी है| "ठीक है ... उधर झाड़ी के पास... मैं वहाँ पेड़ के पास बैठा हूँ|" ये बोल मैं थोड़ा दूर आम के पेड़ के पास दूसरी तरफ मुंह कर खड़ा हो गया और मोबाइल में गेम खेलने लगा| अगले ही पल मुझे एक जोरदार सीटी की आवाज सुनाई दी....
अब आगे:
ये सीटी थी नीतू के मूतने की| मुझे लगा वो दूर जा कर मूत रही होगी पर वो मेरे से करीब दस कदम दूर ही झाडी में बैठी मूत रही थी| आवाज सुन में समझ तो गया ही था की ये किसकी आवाज है पर मैं पलट नहीं सकता था| 2 मिनट बाद जब नीतू लौटी तो मैंने उसे थोड़ा गुस्से में बोला; "मैंने आपको उधर दूर झाडी के पास बोला था ना? फिर मेरे इतने नजदीक काने में शर्म नहीं आई?" मेरा गुस्सा देख नीतू ठिठक गई और सर झुका कर बोली; "चाचू... वो .... वहाँ किसी ने हग (टट्टी) रखा था... इसलिए...." ये सुन मैं थोड़ा शांत हुआ और कहा; "तो बेटा कहीं और दूर चले जाते|" अब नीतू सामान्य हो बोली; "पर चाचू आप से कैसी शर्म? आपने तो बचपन में मुझे देखा है ना?" "बदमाश... तब आप छोटे थे| अब आप बड़े हो गए हो.. शादी हो रही है आपकी| चलो छोडो ... और दुबारा ऐसी गलती मत करना|" इतना कह हम दोनों घर लौट आये|
घर पहुँच के मुझे शीला भाभी कुऍं से पानी भरती नजर आई| मेरी ओर देख उन्होंने कटीली मुस्कान दी पर मेरे मन में रात गुस्सा अभी भी था तो मैंने उनको ज्यादा तवज्जो नहीं दी| मैं और नीतू ने सीधे अम्मा के पास जा कर हाज़री लगाईं; "अरे, तुम दोनों इतनी जल्दी लौट आये?" अम्मा ने उत्सुकता वश पूछा| "हाँ अम्मा..." मैं आगे कुछ कहने ही वाला था की अम्मा बोल पड़ी; "अच्छा मुनना सुन, अपनी भाभी को दवाखाने ले जा|" ये सुन कर मैं अचंभित हो गया क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही तो मैंने देखा था| "पर उन्हें क्या हुआ? अच्छी-भली तो हैं|" मैंने थोड़ा गुस्से में कहा क्योंकि मुझे लगा ये भाभी का कोई नया ड्रामा होगा| "वो तुझे नहीं बता सकते| तू इसे बस बाजार ले जा ये अपने आप बात कर लेगी|" अम्मा तो थोड़ा झेंपते हुए बोला| पर भाभी ने बोल पड़ी; "अम्मा कोई बात नहीं आज नहीं तो कल मुनना को भी ये सब पता ही चल जायेगा| आखिर उसकी भी तो शादी होगी!" ये बात भाभी ने एक अलग अंदाज में कही, जैसे की वो मुझे चिढ़ा रही हो| "हम्म्म... ये तो सही है कहा तूने| बेटा तेरी भाभी को सफ़ेद पानी की शिकायत है|" ये सब बड़की अम्मा के मुख से सुन बुरी तरह झेंप गया और मुझे अब भाभी का चिढ़ाने का अंदाज समझा आया| पर ये सब सुन कर मैं भी चिंतित हो गया, क्योंकि भले ही उनसे नाराज रहता था पर उनकी सेहत की परवाह भी सब से ज्यादा करता था| मैंने गंभीर आवाज में भाभी से कहा; "चलो भाभी... आप तैयार हो जाओ| मैं जाके साइकल निकालता हूँ|" साडी बदल भाभी आ गेन और मैं उन्हें सायकल पर पीछे बिठा कर चल दिया| मेरे चेहरे पर अब भी गंभीरता थी और अंदर ही अंदर मैं उनके लिए परेशान भी था| गाँव से थोड़ा दूर पहुँच कर भाभी बोली; "क्या बात है मुनना सुबह तो इतना गुस्सा थे और अब देखो मेरी चिंता में आधे हुए जा रहे हो? अब भी कहोगे की मुझसे प्यार नहीं करते?"
"चिंता करने का मतलब ये तो नहीं की आपसे प्यार करता हूँ... हाँ परवाह करता हूँ आपकी| गुस्सा होता हूँ पर सबसे ज्यादा चिंता भी आप की ही करता हूँ|" मैंने जवाब दिया|
"देखो इतनी चिंता करने वाले को भी मैं खुश नहीं कर पाती| धिक्कार है मुझ पर!" भाभी ने अपने को कोसते हुए कहा| "जो हुआ उसमें आपकी गलती नहीं थी.... अब बुढ़ापा होता ही ऐसा है!" मैंने ये बात कह कर थोड़ी चुटकी ली| "अच्छा ? मैं बूढी हो गई हूँ?" भाभी ने थोड़ा चिढ कर कहा| "कल रात आप ही ने तो कहा था!" मैंने उन्हें चिढ़ाने के लिए थोड़ी और आग लगा दी| "अच्छा? आज बताती हूँ की कितनी बूढी हो गई हूँ! आज तुम्हारा तेल ना निकाल दिया तो कहना!" भाभी ने बिदक के कहा| "अरे भाभी मैं तो मजाक कर रहा था, आप खामखा गुस्सा हो गए| अभी आपकी तबियत ठीक नहीं है, पहले ठीक हो जाओ फिर चाहे मुझे जिन्दा खा जाना| पर जब तक पूरी तरह ठीक नहीं होते तब तक शांत रहो|" ये सुनकर भाभी थोड़ी शांत हुई और हम हंसी-मजाक करते हुए शहर पहुँचे| दवाखाने के सामने पहुँच भाभी ने मुझे वहीँ रुकने को कहा और खुद अंदर चली गई| दवाखाने के बाहर औरतों के इलाज की अलग लाइन थी और मर्दों की दूसरी तरफ थी| मैंने देखा भाभी लाइन में नहीं लगीं बल्कि सीधा अंदर चली गईं| मुझे लगा भाभी बड़ी दबंग हैं! 5 मिनट में ही वो बहार आ गईं और उनके हाथ में कुछ भी नहीं दिख रहा था, न दवाई न कोई परचा! मैं सोच में पद गया की ये यहाँ करने क्या आई थीं? तभी वो मेरे पास आईं और बोलीं, "मुनना एक बोतल पानी ला दो|" मैंने सायकल स्टैंड पर कड़ी की और जा के पानी की बोतल खरीद लाया| तभी भाभी ने अपने ब्लाउज के अंदर हाथ डाला और मैंने अपनी आँखें फेर लीं| ये देख भाभी हँस दी और बोली; "आँखें क्यों फेर ली?" "तो क्या घुस जाऊँ उधर?" मैंने झूठा गुस्सा दिखते हुए कहा| ये सुन भाभी खिलखिलाकर हँस पड़ी और आने जाने वालों की नजर हम पर टिक गई|
खेर भाभी ने अपने ब्लाउज में से अपना बटुआ निकाला और उसमें एक दवाई का पत्ता था जिसकी एक गोली उन्होंने मेरे सामने पानी से खा ली| मुझे लगा की डॉक्टर ने दवाई दी होगी| दवाई खा कर भाभी ने मुझे घर जाने के लिए कच्चा रास्ता लेने को कहा, जब मैंने वजह जननी चाही तो वो बोलीं की उन्हें किसी से मिल कर शादी का न्योता देना है| मैंने भाभी की बात मान ली और हम कच्चे रस्ते के लिए मुख्य सड़क से उतर आये| दोपहर के दो बजे होंगे और धुप में मैं और भाभी हँसते-मुस्कुराते हुए बात किये जा रहे थे की तभी अचानक भाभी बोली; "मुनना... सायकल रोक!" भाभी की आवाज में कुछ अजीब था और मेरा ध्यान उनकी आवाज समझने में लग गया की तभी भाभी फिर बोली; "रोक....रोक ना|" मैंने सायकल रोक दी और उतर के पीछे मुड़ा; "क्या हुआ भाभी? सब ठीक तो है?" भाभी के चेहरे पर अजब सी मुस्कराहट फ़ैल गई और वो बोली; "मेरे साथ चल|" और मेरा हाथ खींच के रास्ते के किनारे एक बाग़ की तरफ जाने लगी| "अरे पर ले कर कहाँ जा रही हो ?" मैंने फिर से पूछा पर वो कुछ नहीं बोली| ये देख मेरे दिमाग के घोड़े दौड़ने लगे थे| मैं समझ गया था की ये जर्रूर कल रात का अधूरा काम ख़तम करने मुझे ले जा रही हूँ और मन ही मन मैं ठान चूका था की इनकी बीमारी के चलते मैं इन्हें छूने वाला भी नहीं हूँ| बाग़ के अंदर एक तरफ एक आधा कटा हुआ पेड़ था और झाड़ियाँ भी थी, वहाँ पहुँच कर शीला भाभी रूक गई और अपनी बढ़ी हुई साँसों को थामते हुए बोली; "कल रात मैंने अपने सजना को बहुत आहात किया था|" मैंने भाभी की बात वहीँ काट दी; "ठीक है... पर इस सब की कोई जर्रूरत नहीं है| अभी आप बीमार हो, पहले ठीक हो जाओ फिर ...|" मैंने बात पूरी नहीं की पर ये सुन कर भाभी हंसने लगी| उनकी हंसी देख मुझे समझते देर नहीं लगी की ये बिमारी-वीमारी कुछ नहीं बल्कि ढोंग था उनका| मैंने अपने माथे पर हाथ मरते हुए बोला; "तो ये सब आपने ड्रामा खेला था?" मेरी बात सुन उनका सर झुक गया था और मेरा पारा चढ़ने लगा था| "यहाँ मैं खुद को मन ही मन गालियाँ दे रहा था की मैंने आपके साथ कल रात इतना बुरा व्यवहार किया और आप यहाँ ...." मैंने बात अधूरी छोड़ दी और भाभी की तरफ देखना बंद कर दिया था और उनसे नजरें फेरे खड़ा था| तभी भाभी बोली; "मैंने ये सब तुम्हारे लिए किया| कल रात मैंने तुम्हें अतृप्त छोड़ दिया था और तब से मैं खुद को माफ़ नहीं कर पा रही थी| सुबह जब तुमने मेरी तरफ देखना भी ठीक नहीं समझा तो मैंने सोच लिया की मुझे क्या करना है| मैंने दवाखाने से दवाई ली और ....." दवाई का नाम सुन मेरे कान खड़े हगो गए थे| "कैसी दवाई?" मैंने पूछा तो जवाब में वो बोली; "जोश बढ़ने वाली| आज मैंनेतुम्हेँ छका न दिया तो कहना?" मैं मन ही मन सोच में पढ़ गया की ऐसी दवाइयाँ तो मर्दों के लिए होती हैं, भला औरतों को इसकी क्या जर्रूरत? इधर भाभी के तपते जिस्म ने उनकी हरकतों को मजबूर कर दिया था| भाभी ने अपना हाथ मेरे लंड पर रखा और पैंट के ऊपर से दबाने लगी| "ये क्या कर रही हो? पागल हो क्या? यहाँ खुले में? कोई देख लेगा तो?" मैंने उनके हाथों की पकड़ से अपने लंड को आजाद करते हुए कहा| एक बात मैंने गौर की वो ये की भाभी की सांसें भारी हो चली थीं और ये साफ़ था की भाभी के ऊपर दवाई का असर दिखने लगा था| भाभी ने गुस्से से मेरी कमीज के कालर पकड़ते हुए बोली; "डर गए.. की कहीं आज तुम्हारी सिटी-पित्ती गुल्ल हो गई तो? कहीं आज तुम्हारा ये औजार कमजोर पड़ गया तो?"
ये शब्द सुन कर तो नामर्द के लंड में भी अकड़न आ जाए मैं तो फिर भी मर्द था! म आईने भाभी की कमर में हाथ डाला और उन्हें अपने नजदीक खींच लिया और उनके थिरकते होटों पर अपने होंठ रख दिए| उनके नीचे वाले होंठ को मैंने अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा| इधर भाभी ने भी अपने दोनों हाथों से मेरे सिर के पीछे बालों में चलना शुरू कर दिया था| उनकी नाखून मेरे सिर में एक अजीब सा एहसास करा रहे थे| मैंने नीचले होंठ को छोड़ के उनके ऊपरी होंठ को अपने मुँह में दबोच लिया और चूसने लगा|भाभी की उत्तेजना अब उफान मारने लगी थी, शायद ये दवाई का असर था|उनके हाथों ने मेरे लंड पर पकड़ बनानी शुरू कर दी थी, उँगलियाँ मेरी पैंट की ज़िप पर घूमने लगी और उन्होंने जल्द ही मेरी पैंट की कैद से मेरे लंड को आजाद कर दिया| जी भर के भाभी के होंठों का रसपान करने के बाद जब मैंने उन्हें आजाद किया तो देखा की भाभी की सांसें धोकनी की तरह चल रही थीं| मुझे समझते देर न लगी की भाभी की कामाग्नि उन्हें जला रही है| मैंने आस-पास देखने लगा की लेटने का कुछ जुगाड़ हो सके| तभी भाभी ने उस आधे कटे हुए पेड़ की तरफ इशारा किया| मैंने अपनी पैंट उतारी और मैं उस कटे हुए पेड़ के तने के ऊपर लेट गया| मेरी सिर्फ कमर और थोड़ी सी पीठ ही उस तने पर थी बाकी का शरीर हवा में था जो मेरी टांगों के सहारे था| भाभी ने अपनी साडी और पेटीकोट ऊपर किया और मेरी कमर के ऊपर आ गईं और लंड को अपनी पनियाई हुई बुर के ऊपर सेट किया और धीरे-धीरे लंड पर बैठने लगीं| उनकी बुर अंदर से बुरी तरह गीली थी| लंड पूरा अंदर जा चूका था और भाभी के चेहरे पर संतुष्टि के भाव झलकने लगे थे| भाभी ने ऊपर-नीचे होना शुरू किया और मैंने महसूस किया की जब भाभी ऊपर उठती तो उनकी बुर अंदर से मेरे लंड को जकड़ने लगती, जैसे की मेरे लंड को निचोड़ना चाहती हो| भाभी की गति बहुत बढ़ चुकी थी और उनके मुख से आनंदमई सुर आने लगे थे; "सससस....उम्मम्मम.... आआह......आनमममम" इधर मुझे भी बहुत आननद आ रहा था| मेरी नजरें भाभी के ब्लाउज में कैद चुचों को आनंद लेने में व्यस्त थीं जो भाभी की रफ़्तार से लय बांधने लगे थे और ऊपर-नीचे हिलने लगे थे| पर जब भाभी लंड पर नीचे आती तो मेरी कमर में पेड़ की लकड़ी चुभने लगती| मैंने भाभी को रोकना चाहा पर तभी भाभी जोर से झड़ने लगीं और उनके बुर का सारा रस मेरे लंड के साथ बहता बहता बाहर आने लगा पर भाभी थी की रुकने का नाम नहीं ले रही थी| जबतक उनके अंदर रस की सारी धार बाहर नहीं बाह गई वो ऊपर-नीचे कूदती रही| आखिर कार थक कर वो रुकीं और मेरे ऊपर से हट गईं| भाभी की सांसें बहुत तेजी से चल रही थी और उनकी प्यास आँखों से बयान हो रखी थी| मैंने उनको एक पेड़ के पास खड़ा किया उनकी दायीं टांग को उठाया और पीछे से अपना लंड अंदर पेल दिया| लंड फिसलता हुआ अंदर घुस गया| अब मेरे अंदर के ट्रक ने पूरी हार्सपावर से काम करना शुरू कर दिया था| मैंने बहुत तेज-तेज झटके मारना शुरू कर दिया था और गति कुछ इस कदर बढ़ चुकी थी कली भाभी को खुद को गिरणसे से सँभालने के लिए पेड़ का सहारा लेना पड़ा| उनके मुख से लगातार चींखें निकलने लगी थी; आआह.....न्नन्न....ममममम.....ससससस.....हाय...ह्ह्हम्मम्मम्म ....मममममम ...." ये तो शुक्र था की बाग़ के आस पास कोई गाँव-घर नहीं था वर्ण आज वहां जमावड़ा लग जाता| मेरी रगों में जोश बढ़ने लगा था और मेरी चुदाई की रफ़्तार पूरे चरम पर थी| ३-४ धक्के और भाभी फिर से झड़ गईं और हाफने लगीं| भाभी की बुर का रास उनकी बुर से निकल कर थाई से होता हुआ नीचे बहने लगा| पर मैं अब भी संतुष्ट नहीं था, इतने समय बात छूट मिली थी की क्या बताऊँ!
भाभी मेरी तरफ पलटीं और मेरे मन में ख्याल आया की ये जर्रूर अब बोलेंगी की मैं थक गई हूँ| पर हुआ उससे उलट! "सससस....मु...नननन...अअअ.... खड़े-खड़े मैं थक गईं हूँ अब मुझे लेटने दे| मैं थोड़ा हैरान हुआ पर चुदाई का भूत सर पर सवार था तो ज्यादा ध्यान नहीं गया| अब भाभी उस कटे हुए पेड़ के तने पर पीठ के बल लेट गईं और मैंने उनकी दोनों टांगें खोलीं और बीच में आ गया| एक झटके में लैंड अंदर पेल दिया और थोड़ी बेरहमी दिखते हुए उन्हें चोदने लगा| जैसे ही मैं लंड अंदर पेलता भाभी के चुचे ऊपर को उछाल जाते और जब बाहर निकालता तो वो नीचे को वापस आ जाते| मुझसे उनके ये छलते हुए चुचों को ब्लाउज में कैद देखना मुश्किल हो रहा था सो मैंने भाभी के ब्लाउज का हुक खोल दिया और पाया की भाभी ने ब्रा नहीं पहनी थी| यानी आज भाभी पूरी तैयारी कर के आई थी चुदाई की| मैंने अपने दोनों हाथों से भाभी के चुचों को थामा और दबाना शुरू किया| मैंने उन पर इस कदर पकड़ बना ली थी की वो अब मेरे धक्कों के प्रभाव से उछाल नहीं पा रहे थे| इधर भाभी के मुंह से सिर्फ सिसकारियां ही फुट रही थीं| १५ मिनट की म्हणत और की, कि तभी भाभी को मेरे चेहरे पर संतुष्ट होने के भाव नजर आने लगे| मतलब की मैं झड़ने वाला था और भाभी जानती थी की मैं हमेशा अपना वीर्य बाहर निकालता था| पर इससे पहले की मैं लंड बाहर निकालता भाभी ने अपनी दोनों टांगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द कास लिया और बोलीं; "अंदर छोड़ दो... मैंने गर्भ निरोधक गोली खरीदी है|" ये सुन कर मैंने अपना लंड बाहर नहीं खींचा और ४-५ धक्के मारता हुआ उनके भीतर ही झड़ गया| मेरे रस के साथ-साथ भाभी ने फिर से अपना रस छोड़ दिया और वो भी संतुष्ट हो कर मुझसे लिपट गईं|
to be continued