06-03-2019, 01:30 PM
UPDATE 1
अगले दिन मैं थोड़ा लेट उठा और नहा-धो कर तैयार हो गया और चाय पीने पहुँचा| रसोई में सिर्फ अम्मा और शीला भाभी ही थी| बाकी सब कुछ न कुछ काम से चले गए थे| नीतू ने मुझे चाय ला कर दी और कॉलेज जाने की बात याद दिलाते हुए इशारा किया| इधर मैं इस फिराक में था की कैसे नेहा को कॉलेज ले जाने की बात शुरू करूँ| चाय की पहली चुस्की लेते ही मुझे एक उपाय सूझ गया;
“अम्मा... वो कॉलेज के मास्टर साहब को न्योता पहुँच गया क्या?" मैंने बात शुरू की| "नहीं बेटा...तेरा और तेरा पिताजी का इंतजार कर-कर के इतनी देर हो गई की आज से सब जगह न्योता जाना शुरू हुआ है| तेरे बप्पा और भैया सुबह जल्दी निकले हैं न्योता देने|" मैं थोड़ा सोचने का नाटक करने लगे और फिर चाय की अगली चुस्की भरते हुए बोलै; "अम्मा.. तो मैं दे आऊँ उन्हें न्योता?" अम्मा बोली; "ठीक है... तू दे आ|" अब मेरी बारी थी नीतू को साथ ले जाने की बात करने की| "अम्मा नीतू को साथ ले जाऊँ?" मैंने सवाल तो छोड़ दिया था और जानता था की जवाब में भी एक और सवाल पूछा जायेगा| "ये वहाँ क्या करेगी? शादी-व्याह का घर है और ऐसे में लड़की जात का यूँ बाहर घूमना ठीक नहीं|" अम्मा के सवाल का जवाब मैं देना जानता था; "अम्मा मास्टर साहब मुझे जानते नहीं हैं और ऐसे में अगर नीतू साथ हुई तो आसानी होगी| और फिर हम दोनों को आने जाने में पोना घंटा ही लगेगा| जल्दी आ जायेंगे|" अम्मा के हाव-भाव देख कर लग रहा था की उन्होंने ना ही करनी है की तभी शीला भाभी बोल पड़ी; "जाने दो ना अम्मा| अपने चाचा के साथ ही तो जा रही है और फिर कॉलेज कौनसा दूर है? ये तो रहा ... घर से दिख जाता है|" ये सुन कर आखिर कर अम्मा ने जाने की अनुमति दे दी| (हमारे घर से कॉलेज साफ़ नजर आता था|)
नीतू जाने की बात सुन कर बहुत खुश हुई और हम दोनों घर से कॉलेज की ओर चल पड़े| कॉलेज का रास्ता खेतों में से हो कर जाता था और आधे रास्ते में वहाँ एक छोटा सा बाग़ भी था जहाँ आम के २-४ पेड़ लगे थे| गर्मी से राहत पाने के लिए लोग कई बार यहाँ रूक के साँस लेते थे| उस बाग़ को देख नीतू बोली; "चाचू... याद है उस पेड़ पर आप चढ़ कर आम तोडा करते थे?" ये सुन मुझे वो दिन याद आने लगे और हम दोनों उसी पेड़ के नीचे खड़े हो कर बातें याद करने लगे| 5 मिनट बाद हम वहाँ से चल दिए और कॉलेज पहुँचे, वहाँ जो मैंने देखा उसे देख मैं हैरान रह गया| कक्षा के बाहर लड़के खड़े हो कर सिगरेट फूँक रहे थे| एक कक्षा के अंदर कोई भी नहीं था बस कोने में एक युगल जोड़ा जो की लगभग नीतू की उम्र के होंगे एक दूसरे से चिपटे हुए चुम्मा-चाटी कर रहे थे| ये सब देख मैंने नीतू की तरफ देखा तो वो मेरी तरफ ही देख रही थी पर मैं समझ नहीं पा रहा था की उसके मन में क्या चल रहा है? मैं थोड़ा जल्दी चलने लगा क्योंकि ये सब देख मेरे लंड में कुछ होने लगा था और मैं नहीं चाहता की वो अकड़ जाए और नीतू के सामने मुझे शर्म आये| हम जल्दी से मास्टर साहब के कमरे में पहुँचे और उन्हें न्योता दिया और तुरंत ही वहाँ से निकल पड़े| कॉलेज से थोड़ा दूर आने पर मैंने नीतू से पूछा; "ये सब होता है तुम्हारे कॉलेज में?" मेरा सवाल सुन नीतू का सर झुक गया| "कहीं तुम भी तो?" मैंने पूरी बात नहीं बोली पर नजाने नीतू को क्या ठेस लगी वो एक दम से बोली; "कभी नहीं चाचू.... मैं तो आपको...." बस इतना बोल कर वो चुप हो गई, पर मेरे लिए अब ये बात जानना आवश्यक हो गया था| "आपको...मतलब?" नीतू सर झुका कर कुछ सोचने लगी और फिर बोली; "चाचू ...आपको इतना मानती हूँ की मैं इन चक्करों में कभी नहीं पड़ी| आपने इतनी मुश्किल से मेरा कॉलेज में दाखिला कराया और मैं इन चक्करों में पढ़ कर आपके सपनों को ख़राब नहीं करना चाहती थी|" ये सुन मुझे विश्वास हो गया की मेरी भतीजी बहुत समझदार है| हम बाग़ के पास पहुँच ही थे की नीतू बोली; "चाचू मुझे....जाना है|" ये सुन पहले तो मैं सोचने लगा की उसे कहाँ जाना है, फिर याद आया की उसे पेशाब लगी है| "ठीक है ... उधर झाड़ी के पास... मैं वहाँ पेड़ के पास बैठा हूँ|" ये बोल मैं थोड़ा दूर आम के पेड़ के पास दूसरी तरफ मुंह कर खड़ा हो गया और मोबाइल में गेम खेलने लगा| अगले ही पल मुझे एक जोरदार सीटी की आवाज सुनाई दी....
अगले दिन मैं थोड़ा लेट उठा और नहा-धो कर तैयार हो गया और चाय पीने पहुँचा| रसोई में सिर्फ अम्मा और शीला भाभी ही थी| बाकी सब कुछ न कुछ काम से चले गए थे| नीतू ने मुझे चाय ला कर दी और कॉलेज जाने की बात याद दिलाते हुए इशारा किया| इधर मैं इस फिराक में था की कैसे नेहा को कॉलेज ले जाने की बात शुरू करूँ| चाय की पहली चुस्की लेते ही मुझे एक उपाय सूझ गया;
“अम्मा... वो कॉलेज के मास्टर साहब को न्योता पहुँच गया क्या?" मैंने बात शुरू की| "नहीं बेटा...तेरा और तेरा पिताजी का इंतजार कर-कर के इतनी देर हो गई की आज से सब जगह न्योता जाना शुरू हुआ है| तेरे बप्पा और भैया सुबह जल्दी निकले हैं न्योता देने|" मैं थोड़ा सोचने का नाटक करने लगे और फिर चाय की अगली चुस्की भरते हुए बोलै; "अम्मा.. तो मैं दे आऊँ उन्हें न्योता?" अम्मा बोली; "ठीक है... तू दे आ|" अब मेरी बारी थी नीतू को साथ ले जाने की बात करने की| "अम्मा नीतू को साथ ले जाऊँ?" मैंने सवाल तो छोड़ दिया था और जानता था की जवाब में भी एक और सवाल पूछा जायेगा| "ये वहाँ क्या करेगी? शादी-व्याह का घर है और ऐसे में लड़की जात का यूँ बाहर घूमना ठीक नहीं|" अम्मा के सवाल का जवाब मैं देना जानता था; "अम्मा मास्टर साहब मुझे जानते नहीं हैं और ऐसे में अगर नीतू साथ हुई तो आसानी होगी| और फिर हम दोनों को आने जाने में पोना घंटा ही लगेगा| जल्दी आ जायेंगे|" अम्मा के हाव-भाव देख कर लग रहा था की उन्होंने ना ही करनी है की तभी शीला भाभी बोल पड़ी; "जाने दो ना अम्मा| अपने चाचा के साथ ही तो जा रही है और फिर कॉलेज कौनसा दूर है? ये तो रहा ... घर से दिख जाता है|" ये सुन कर आखिर कर अम्मा ने जाने की अनुमति दे दी| (हमारे घर से कॉलेज साफ़ नजर आता था|)
नीतू जाने की बात सुन कर बहुत खुश हुई और हम दोनों घर से कॉलेज की ओर चल पड़े| कॉलेज का रास्ता खेतों में से हो कर जाता था और आधे रास्ते में वहाँ एक छोटा सा बाग़ भी था जहाँ आम के २-४ पेड़ लगे थे| गर्मी से राहत पाने के लिए लोग कई बार यहाँ रूक के साँस लेते थे| उस बाग़ को देख नीतू बोली; "चाचू... याद है उस पेड़ पर आप चढ़ कर आम तोडा करते थे?" ये सुन मुझे वो दिन याद आने लगे और हम दोनों उसी पेड़ के नीचे खड़े हो कर बातें याद करने लगे| 5 मिनट बाद हम वहाँ से चल दिए और कॉलेज पहुँचे, वहाँ जो मैंने देखा उसे देख मैं हैरान रह गया| कक्षा के बाहर लड़के खड़े हो कर सिगरेट फूँक रहे थे| एक कक्षा के अंदर कोई भी नहीं था बस कोने में एक युगल जोड़ा जो की लगभग नीतू की उम्र के होंगे एक दूसरे से चिपटे हुए चुम्मा-चाटी कर रहे थे| ये सब देख मैंने नीतू की तरफ देखा तो वो मेरी तरफ ही देख रही थी पर मैं समझ नहीं पा रहा था की उसके मन में क्या चल रहा है? मैं थोड़ा जल्दी चलने लगा क्योंकि ये सब देख मेरे लंड में कुछ होने लगा था और मैं नहीं चाहता की वो अकड़ जाए और नीतू के सामने मुझे शर्म आये| हम जल्दी से मास्टर साहब के कमरे में पहुँचे और उन्हें न्योता दिया और तुरंत ही वहाँ से निकल पड़े| कॉलेज से थोड़ा दूर आने पर मैंने नीतू से पूछा; "ये सब होता है तुम्हारे कॉलेज में?" मेरा सवाल सुन नीतू का सर झुक गया| "कहीं तुम भी तो?" मैंने पूरी बात नहीं बोली पर नजाने नीतू को क्या ठेस लगी वो एक दम से बोली; "कभी नहीं चाचू.... मैं तो आपको...." बस इतना बोल कर वो चुप हो गई, पर मेरे लिए अब ये बात जानना आवश्यक हो गया था| "आपको...मतलब?" नीतू सर झुका कर कुछ सोचने लगी और फिर बोली; "चाचू ...आपको इतना मानती हूँ की मैं इन चक्करों में कभी नहीं पड़ी| आपने इतनी मुश्किल से मेरा कॉलेज में दाखिला कराया और मैं इन चक्करों में पढ़ कर आपके सपनों को ख़राब नहीं करना चाहती थी|" ये सुन मुझे विश्वास हो गया की मेरी भतीजी बहुत समझदार है| हम बाग़ के पास पहुँच ही थे की नीतू बोली; "चाचू मुझे....जाना है|" ये सुन पहले तो मैं सोचने लगा की उसे कहाँ जाना है, फिर याद आया की उसे पेशाब लगी है| "ठीक है ... उधर झाड़ी के पास... मैं वहाँ पेड़ के पास बैठा हूँ|" ये बोल मैं थोड़ा दूर आम के पेड़ के पास दूसरी तरफ मुंह कर खड़ा हो गया और मोबाइल में गेम खेलने लगा| अगले ही पल मुझे एक जोरदार सीटी की आवाज सुनाई दी....