06-03-2019, 01:28 PM
अब भाभी का जिस्म और ज्यादा मचलने लगा था और वो मेरी बांहों में पिघलने लगी थी| जब उनकी देह की गर्मी उन्हें झुलसने लगी तो खुदबखुद उनके हाथों ने अपने शिकार को ढूँढना शुरू कर दिया| भाभी ने मेरी जीभ को अपने होठों से आजाद किया और मेरी ओर देखते हुए बोली;
भाभी: मुन्ना...बस ... अह्ह्ह... अब और नहीं सहा जाता|
मैं: ऐसी बात है तो ये लो....
मैंने भाभी को नई-नवेली ढुलान की तरह अपनी गोद में उठाया और अपने पलंग पर ले आया| पलंग पर उन्हें लिटाया ही था की उन्होंने जल्दी दिखाते हुए अपनी साडी खुद-बा-खुद ऊपर उठा ली और अपनी सफाचट बुर के दर्शन करा दिए| भाभी ने पेंटी भी नहीं पहनी थी, सिर्फ साडी और पेटीकोट पहना था| मेरी आँखें उनकी बुर से चिपक गई थीं, मैंने अपने पाजामे का नाद खोल और वो सरक कर नीचे जा गिरा| मेरी नाक उनकी बुर की खुशबु की तरफ मुझे ले जाने लगी, पर इससे पहले की मैं वो अमृत चख पाता भाभी नेमुझे रोक दिया;
बड़ी भाभी: नहीं मुन्ना.... आज नहीं| आज मेरी जलती हुई भट्टी में और तेल ना डालो| इसे जल्दी से अपने लंड से भर दो!
मैंने कुछ नहीं कहा और सीधा उनके ऊपर आ गया, भाभी ने अपनी टांगें तो पहले से ही चौड़ी कर रखी थी| भाभी का उतावलापन इस कदर था की उन्होंने जल्दी से अपना हाथ ले जा कर मेरा लंड अपनी बुर के ऊपर रखो और बड़ी तरसती हुई आँखों से मेरी ओर देखने लगी| उनके चेहरे के इन भाव को देख मुझे उन पर प्यार आने लगा और मैंने अपने लंड का दबाव उनकी बुर पर बढ़ दिया| मेरा लंड धीरे-धीरे उनकी बुर में समाने लगा| जैसे-जैसे लंड अंदर जा रहा था भाभी के चेहरे के भाव बदल के संतुष्टि का रूप लेने लगे थे|
जब पूरा लंड अंदर समा गया तो भाभी की भट्टी की तपिश मुझे अपने लंड पर महसूस होने लगी और मैं बिना हिले-डुले उनपर पड़ा रहा| इधर भाभी ने अपनी दोनों टांगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया| उनकी एड़ी ने जब मेरे कूल्हे पर थपकी मारी तब मुझे होश आया| ये मेरे लिए सिग्नल था, जैसे की घुड़सवार अपने घोड़े को आगे चलने के लिए उसकी कमर या पेट पर अपनी एड़ी से चोट करता है, ठीक उसी तकनीक का उपयोग भाभी ने किया| मैंने अपना लंड पूरा बाहर निकाला और फिर दो सेकंड का विराम लिया| अपने अंदर खाली-खाली महसूस कर भाभी की आँखें जो आनंद के मारे बंद थी वो खुल गईं और वो बोली;
बड़ी भाभी: सच्ची बहुत जालिम हो तुम!
मैं मुस्कुरा दिया और फिर एक झटके में पूरा लंड अंदर जड़ तक बाढ़ दिया| लंड के उनकी बुर में सरपट घुसते ही भाभी चिहुंक उठी;
बड़ी भाभी: आईईईईई ..... मुन्ना... आअह्ह्ह!
मैं: तुमने ही तो कहा मैं जालिम हूँ! तो अब भुगतो|
ये सुन दोनों की हंसी छूट गई| भाभी ने अपने नीचले होंठ को दांतों तले दबाया और मुझे उतेजना की और हाँक दिया| अब मैंने उनके ऊपर झुक कर अपनी कमर को लय बद्ध तरीके से लंड को अंदर-बाहर करना जारी किया| मेरे हर धक्के में भाभी की "आह!" निकल रही थी| अपनी उत्तेजना और बढ़ने के लिए भाभी ने अपने भगनासा को छेड़ना शुरू कर दिया| अब भाभी दोहरे आनंद का मज़ा ले रही थी| भाभी के मुँह से अपनी आहें और सिसकारियां निकलने लगी थी| साफ़ था की वो उत्तेजना के शिखर पर पहुँच चुकी हैं और किसी भी समय अपने रस की धार बहाने वाली है| हैरानी की बात ये थी की भाभी मेरे साथ हमेशा 25 मिनट तक साथ दिया करती थी| पर आज वो 10 मिनुत में ही मेरा साथ छोड़ने जा रही थी| मैंने सोचा नहीं ... ये मेरा वहम होगा.....
पर मेरी सोच सही निकली, अगले ही पल उन्होंने जोरदार धार मारी और निढाल हो के लाश के सामान लेट गई| उनकी साँसों की गति तेज हो चली थी, ब्लाउज में ढकी उनकी छातियाँ धोकनी की तरह ऊपर-नीचे हो रही थी| उनका ऐसा व्यवहार देख मेरे सारी उत्तेजना काफूर हो गई| मैंने भाभी की चुदाई पर पूरी तरह विराम लगा दिया और अपना लंड बाहर निकाल मैं अपने पंजों पर बैठ गया| मैं अब भी तक-ताकि बांधे भाभी की ओर देख रहा था की वो कुछ बोलेगी.... अब बोलेगी.... अब बोलेगी.... पर नहीं वो कुछ नहीं बोली| दारु का नशा तो कब का उत्तर गया था अब गुस्से का गुबार अंदर बनने लगा था| आखिर पाँच मिनुत बाद वो बोली;
भाभी: मुन्ना...बस ... अह्ह्ह... अब और नहीं सहा जाता|
मैं: ऐसी बात है तो ये लो....
मैंने भाभी को नई-नवेली ढुलान की तरह अपनी गोद में उठाया और अपने पलंग पर ले आया| पलंग पर उन्हें लिटाया ही था की उन्होंने जल्दी दिखाते हुए अपनी साडी खुद-बा-खुद ऊपर उठा ली और अपनी सफाचट बुर के दर्शन करा दिए| भाभी ने पेंटी भी नहीं पहनी थी, सिर्फ साडी और पेटीकोट पहना था| मेरी आँखें उनकी बुर से चिपक गई थीं, मैंने अपने पाजामे का नाद खोल और वो सरक कर नीचे जा गिरा| मेरी नाक उनकी बुर की खुशबु की तरफ मुझे ले जाने लगी, पर इससे पहले की मैं वो अमृत चख पाता भाभी नेमुझे रोक दिया;
बड़ी भाभी: नहीं मुन्ना.... आज नहीं| आज मेरी जलती हुई भट्टी में और तेल ना डालो| इसे जल्दी से अपने लंड से भर दो!
मैंने कुछ नहीं कहा और सीधा उनके ऊपर आ गया, भाभी ने अपनी टांगें तो पहले से ही चौड़ी कर रखी थी| भाभी का उतावलापन इस कदर था की उन्होंने जल्दी से अपना हाथ ले जा कर मेरा लंड अपनी बुर के ऊपर रखो और बड़ी तरसती हुई आँखों से मेरी ओर देखने लगी| उनके चेहरे के इन भाव को देख मुझे उन पर प्यार आने लगा और मैंने अपने लंड का दबाव उनकी बुर पर बढ़ दिया| मेरा लंड धीरे-धीरे उनकी बुर में समाने लगा| जैसे-जैसे लंड अंदर जा रहा था भाभी के चेहरे के भाव बदल के संतुष्टि का रूप लेने लगे थे|
जब पूरा लंड अंदर समा गया तो भाभी की भट्टी की तपिश मुझे अपने लंड पर महसूस होने लगी और मैं बिना हिले-डुले उनपर पड़ा रहा| इधर भाभी ने अपनी दोनों टांगों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया| उनकी एड़ी ने जब मेरे कूल्हे पर थपकी मारी तब मुझे होश आया| ये मेरे लिए सिग्नल था, जैसे की घुड़सवार अपने घोड़े को आगे चलने के लिए उसकी कमर या पेट पर अपनी एड़ी से चोट करता है, ठीक उसी तकनीक का उपयोग भाभी ने किया| मैंने अपना लंड पूरा बाहर निकाला और फिर दो सेकंड का विराम लिया| अपने अंदर खाली-खाली महसूस कर भाभी की आँखें जो आनंद के मारे बंद थी वो खुल गईं और वो बोली;
बड़ी भाभी: सच्ची बहुत जालिम हो तुम!
मैं मुस्कुरा दिया और फिर एक झटके में पूरा लंड अंदर जड़ तक बाढ़ दिया| लंड के उनकी बुर में सरपट घुसते ही भाभी चिहुंक उठी;
बड़ी भाभी: आईईईईई ..... मुन्ना... आअह्ह्ह!
मैं: तुमने ही तो कहा मैं जालिम हूँ! तो अब भुगतो|
ये सुन दोनों की हंसी छूट गई| भाभी ने अपने नीचले होंठ को दांतों तले दबाया और मुझे उतेजना की और हाँक दिया| अब मैंने उनके ऊपर झुक कर अपनी कमर को लय बद्ध तरीके से लंड को अंदर-बाहर करना जारी किया| मेरे हर धक्के में भाभी की "आह!" निकल रही थी| अपनी उत्तेजना और बढ़ने के लिए भाभी ने अपने भगनासा को छेड़ना शुरू कर दिया| अब भाभी दोहरे आनंद का मज़ा ले रही थी| भाभी के मुँह से अपनी आहें और सिसकारियां निकलने लगी थी| साफ़ था की वो उत्तेजना के शिखर पर पहुँच चुकी हैं और किसी भी समय अपने रस की धार बहाने वाली है| हैरानी की बात ये थी की भाभी मेरे साथ हमेशा 25 मिनट तक साथ दिया करती थी| पर आज वो 10 मिनुत में ही मेरा साथ छोड़ने जा रही थी| मैंने सोचा नहीं ... ये मेरा वहम होगा.....
पर मेरी सोच सही निकली, अगले ही पल उन्होंने जोरदार धार मारी और निढाल हो के लाश के सामान लेट गई| उनकी साँसों की गति तेज हो चली थी, ब्लाउज में ढकी उनकी छातियाँ धोकनी की तरह ऊपर-नीचे हो रही थी| उनका ऐसा व्यवहार देख मेरे सारी उत्तेजना काफूर हो गई| मैंने भाभी की चुदाई पर पूरी तरह विराम लगा दिया और अपना लंड बाहर निकाल मैं अपने पंजों पर बैठ गया| मैं अब भी तक-ताकि बांधे भाभी की ओर देख रहा था की वो कुछ बोलेगी.... अब बोलेगी.... अब बोलेगी.... पर नहीं वो कुछ नहीं बोली| दारु का नशा तो कब का उत्तर गया था अब गुस्से का गुबार अंदर बनने लगा था| आखिर पाँच मिनुत बाद वो बोली;