10-08-2020, 12:48 AM
मधु झुक के सोफे पर इत्मिनान से बैठी पान का आनन्द उठा रहीं थी ओर वसंत भी हल्का टेढा टैंगो को फ़ैलाये आराम से मधु के झूठे पान को चबाता जा रहा था कि मधु ने अपने पाव को वसंत के पैरों पर रगड़ा और उसके पायल बजने लगें ,वसंत सब्र करता मधु के एहसास को ख़ुद पे महसूस करता रहा लेकिन वो ज़्यादा देर इस सहलाहट को झेल न सका और झुक कर मधु के तलवें को हाथों से पकड़ कर अपने गोद मे उठा लिया जिसकी वज़ह से मधु थोड़ी असंतुलित हो गई और कोहनी के सहारे खुद को सम्हाली ।
मधु के वक्चस्थल से पल्लू सरक गया और गदराई कोमल बड़ी बड़ी चुचिया दिखने लगी, वसंत की नज़रे वहाँ अटक गई और वो मधु के तलवों को उँगलियों से सहलात्ते मधु के बदन मे एक सिहरन उठा बैठा ।
मधु आँखे मुद सर को सोफे की हैंडल पर लगा ऐसे लेट गई जैसे एक प्यासी औरत अपने मर्द को रिझाने के लिए लेट जाती हैं । तेज़ सासों की वज़ह से मधु का उभार ऊपर निचे होने लगा और बिना किसी पर्दे के गले से नीचे कमर तक उसका योवन वसंत के सामने इठलाने लगा और वो तलवों को आहिस्ता आहिस्ता सहलाता मधु को बसीभूत करता तड़पाने लगा ।
वसंत ने मधु के बाएं पैर को अपने फंफ़नाते लड़ पर रख कर मोड़ा और दूसरे पाव को सहलाते रहा, मधु पैरों की उँगलियी से वसंत के मर्दाना लड़ को दबाने लगी और उँगलियों से ही लंबाई चौड़ाई का अंदाज़ा लगाने लगी लेकिन पिजड़े मैं कैद सख्त लड़ को नापना इतना आसान नही इस वज़ह से वो बस दबाब बनाती खुद को उतेजित करने लगी ।
शेरनी ख़ुद शिकारी की जाल मैं फ़स सी गई और वो भी इस कदर की बचने या पासा अपने हाथों में लेने का भी रास्ता ही नही बचा ।
वसंत ने चतुराई से एक हाथ को तलवे सहलाने मे व्यस्त कर दूसरे हाथ से मुड़े पाव के पायल को छूता धीरे से ऊपर की और बढ़ाने लगा और जल्द ही मधु के निचले झाग तक जा पहुँचा ।
मधु दोनों हाथों को सर के ऊपर उठाकर अपनी पसीने से लतपत काँखों को दिखाने लगी जिससे वसंत भटक गया ,मधु भले ही जाल में थी लेकिन पासे को उसने ग़ुलाम बना लिया था ।
वसंत पहले भी मधु के चिकने काँख को छू कर फ़िसल गया था और अभी भी वो फ़िसल ही गया ।
मधु ने चालाकी से दोनों पाव को मोड़ लिया और वसंत को तरसाते अपने पैर के अंग्गूठे से सहलाती मदहोश आंखों से देखती मानो कह रहीं हो चढ़ जाओ और रौंद डालो लेकिन पसोपेश मे फ़सा वसंत अलग ही अंदाज़ मे झुक कर पाव के अंग्गूठे को चुसने लगा ।
उइईई माँ मधु बोलती चित्कारिया मारने लगी और वसंत ने मन मुताबिक वापस दोनों मुड़े टांगों को गोद मे खिंच लिया और साड़ी को थोड़ा ऊपर सरका कर होटो से चूमने लगा । मधु की सासे बहुत तेज़ी से चलने लगी और वो मचलती इठलाती कमर हिलाती वसंत के नर्म होटो का साथ देने लगी ।
मधु के चेहरे को देख मैं समझ गया ज़्यादा से ज़्यादा दस मिनट ही वो अपनी आग दबा पाएंगी फिर खुद ही वसंत के लिए टाँगे फैला देगी ।
वसंत कोई बच्चा तोह है नही उसने भी वक़्त के नज़ाकत को भाँप लिया और साड़ी को घुटनों के पास तक उठा होटो से चूमने लगा ।
मधु की चुदासी चुत चित्कारिया मारने लगी जिसे देख मेरा मूंगफली सा लड़ पानी पानी होने को बेताब हो गया ।
मधु ने सच ही कहा था इस दफ़े गाढ़ा मुठ निकलेगा , अति उत्साह, रोमांच मेरे बदन मैं समा गया और मानो मेरा लड़ लोहे सा कड़क हो गया हो ।
मधु के वक्चस्थल से पल्लू सरक गया और गदराई कोमल बड़ी बड़ी चुचिया दिखने लगी, वसंत की नज़रे वहाँ अटक गई और वो मधु के तलवों को उँगलियों से सहलात्ते मधु के बदन मे एक सिहरन उठा बैठा ।
मधु आँखे मुद सर को सोफे की हैंडल पर लगा ऐसे लेट गई जैसे एक प्यासी औरत अपने मर्द को रिझाने के लिए लेट जाती हैं । तेज़ सासों की वज़ह से मधु का उभार ऊपर निचे होने लगा और बिना किसी पर्दे के गले से नीचे कमर तक उसका योवन वसंत के सामने इठलाने लगा और वो तलवों को आहिस्ता आहिस्ता सहलाता मधु को बसीभूत करता तड़पाने लगा ।
वसंत ने मधु के बाएं पैर को अपने फंफ़नाते लड़ पर रख कर मोड़ा और दूसरे पाव को सहलाते रहा, मधु पैरों की उँगलियी से वसंत के मर्दाना लड़ को दबाने लगी और उँगलियों से ही लंबाई चौड़ाई का अंदाज़ा लगाने लगी लेकिन पिजड़े मैं कैद सख्त लड़ को नापना इतना आसान नही इस वज़ह से वो बस दबाब बनाती खुद को उतेजित करने लगी ।
शेरनी ख़ुद शिकारी की जाल मैं फ़स सी गई और वो भी इस कदर की बचने या पासा अपने हाथों में लेने का भी रास्ता ही नही बचा ।
वसंत ने चतुराई से एक हाथ को तलवे सहलाने मे व्यस्त कर दूसरे हाथ से मुड़े पाव के पायल को छूता धीरे से ऊपर की और बढ़ाने लगा और जल्द ही मधु के निचले झाग तक जा पहुँचा ।
मधु दोनों हाथों को सर के ऊपर उठाकर अपनी पसीने से लतपत काँखों को दिखाने लगी जिससे वसंत भटक गया ,मधु भले ही जाल में थी लेकिन पासे को उसने ग़ुलाम बना लिया था ।
वसंत पहले भी मधु के चिकने काँख को छू कर फ़िसल गया था और अभी भी वो फ़िसल ही गया ।
मधु ने चालाकी से दोनों पाव को मोड़ लिया और वसंत को तरसाते अपने पैर के अंग्गूठे से सहलाती मदहोश आंखों से देखती मानो कह रहीं हो चढ़ जाओ और रौंद डालो लेकिन पसोपेश मे फ़सा वसंत अलग ही अंदाज़ मे झुक कर पाव के अंग्गूठे को चुसने लगा ।
उइईई माँ मधु बोलती चित्कारिया मारने लगी और वसंत ने मन मुताबिक वापस दोनों मुड़े टांगों को गोद मे खिंच लिया और साड़ी को थोड़ा ऊपर सरका कर होटो से चूमने लगा । मधु की सासे बहुत तेज़ी से चलने लगी और वो मचलती इठलाती कमर हिलाती वसंत के नर्म होटो का साथ देने लगी ।
मधु के चेहरे को देख मैं समझ गया ज़्यादा से ज़्यादा दस मिनट ही वो अपनी आग दबा पाएंगी फिर खुद ही वसंत के लिए टाँगे फैला देगी ।
वसंत कोई बच्चा तोह है नही उसने भी वक़्त के नज़ाकत को भाँप लिया और साड़ी को घुटनों के पास तक उठा होटो से चूमने लगा ।
मधु की चुदासी चुत चित्कारिया मारने लगी जिसे देख मेरा मूंगफली सा लड़ पानी पानी होने को बेताब हो गया ।
मधु ने सच ही कहा था इस दफ़े गाढ़ा मुठ निकलेगा , अति उत्साह, रोमांच मेरे बदन मैं समा गया और मानो मेरा लड़ लोहे सा कड़क हो गया हो ।