06-03-2019, 03:59 AM
दूसरे दिन दोपहर को संगीता दीदी और मैं उसकी ननद के घर जाने के लिए तैयार हो रहे थे . संगीता दीदी ने हमेशा की तरह बिना संकोच मेरे सामने कपडे बदल लिए और मैंने भी अपनी आदत के अनुसार उसके अधनंगे बदन का चुपके से दर्शन लिया . बहुत दिनों के बाद मैंने अपनी बहन को ब्रा में देखा . उफ !! कितनी बड़ी बड़ी लग रही थी उसकी चूचियां ! देखते ही मेरा लंड उठने लगा और मेरे मन में जंगली ख्याल आने लगे कि चर्र से उसकी ब्रा फाड़ दूँ और उसकी भरी हुई चूचियां कस के दबा दूँ . लेकिन मेरी गांड में उतना दम नहीं था .
बाद में तैयार होकर हम बस से उसकी ननद के घर गए और मेरे भांजे यानी मेरी बहन के लडके को हम वहां मिले . अपने मामा को देखकर वो खुश हो गया . हम मामा -भांजे काफी देर तक खेलते रहे . मैंने जब उसे पूछा की अपने नाना , नानी को मिलने वो हमारे घर आएगा क्या तो उसने 'नहीं ' कहा . उसके जवाब से हम सब हंस पड़े . दीदी ने उसे बताया कि वो आठ दिन के लिए मुंबई जा रही है और उसे अपनी आंटी के साथ ही रहना है तो वो हंस के तैयार हो गया . बाद में मैं और दीदी बस से उसके पति की दुकान पर गए . एक आध घंटा हमलोग वहां पर रुके और फिर वापस घर आये . बस में चढ़ते , उतरते और भीड़ में खड़े रहते मैंने अपनी बहन के मांसल बदन का भरपूर स्पर्शसुख लिया .
घर आने के बाद वापस संगीता दीदी का कपडे बदलने का प्रोग्राम हो गया और वफादार दर्शक की तरह मैंने उसे कामुक नजर से चुपके से निहार लिया . जब से मैं अपनी बहन के घर आया था तब से मैं कामुक नजरसे उसका वस्त्रहरण करके उसे नंगा कर रहा था और उसे चोदने के सपने देख रहा था . मुझे मालूम था कि ये संभव नहीं है लेकिन यही मेरा सपना था , मेरा टाइमपास था , मेरा मूठ मारने का साधन था .
बाद में तैयार होकर हम बस से उसकी ननद के घर गए और मेरे भांजे यानी मेरी बहन के लडके को हम वहां मिले . अपने मामा को देखकर वो खुश हो गया . हम मामा -भांजे काफी देर तक खेलते रहे . मैंने जब उसे पूछा की अपने नाना , नानी को मिलने वो हमारे घर आएगा क्या तो उसने 'नहीं ' कहा . उसके जवाब से हम सब हंस पड़े . दीदी ने उसे बताया कि वो आठ दिन के लिए मुंबई जा रही है और उसे अपनी आंटी के साथ ही रहना है तो वो हंस के तैयार हो गया . बाद में मैं और दीदी बस से उसके पति की दुकान पर गए . एक आध घंटा हमलोग वहां पर रुके और फिर वापस घर आये . बस में चढ़ते , उतरते और भीड़ में खड़े रहते मैंने अपनी बहन के मांसल बदन का भरपूर स्पर्शसुख लिया .
घर आने के बाद वापस संगीता दीदी का कपडे बदलने का प्रोग्राम हो गया और वफादार दर्शक की तरह मैंने उसे कामुक नजर से चुपके से निहार लिया . जब से मैं अपनी बहन के घर आया था तब से मैं कामुक नजरसे उसका वस्त्रहरण करके उसे नंगा कर रहा था और उसे चोदने के सपने देख रहा था . मुझे मालूम था कि ये संभव नहीं है लेकिन यही मेरा सपना था , मेरा टाइमपास था , मेरा मूठ मारने का साधन था .
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
