06-03-2019, 03:58 AM
समय गुजर रहा था और मैं 22 साल का हो गया था . संगीता दीदी भी 28 साल की हो गयी थी . संगीता दीदी की उम्र बढ़ रही थी लेकिन उसके गदराये बदन में कुछ बदलाव नहीं आया था . मुझे तो समय के साथ वो ज्यादा ही हसीन और जवान होती नजर आ रही थी . कभी कभी मुझे उसके पति से ईर्ष्या होती थी के वो कितना नसीबवाला है जो उसे संगीता दीदी जैसी हसीन और जवान बीवी मिली है . लेकिन असलियत तो कुछ और ही थी . मुझे संगीता दीदी के कहने से मालूम पड़ा कि वो अपनी शादीशुदा जिंदगी से खुश नहीं है . उसके बड़ी उम्र के पति के साथ उसका काम जीवन भी आनंददायक नहीं है . शादी के बाद शुरू शुरू में उसके पति ने उसे बहुत प्यार दिया . उसी दौरान वो गर्भवती रही और उन्हें लड़का हुआ . लेकिन बाद में वो अपने बच्चे में व्यस्त होती गयी और उसके पति अपने धंधे में उलझते गए . इस वजह से उनके कामजीवन में एक दरार सी पड़ गयी थी जिसे मिटाने की कोशिश उसके पति नहीं कर रहे थे . एक दूसरे से समझौता , यही उनका जीवन बन रहा था और धीरे धीरे संगीता दीदी को ऐसे जीवन की आदत होते जा रही थी . दिखने में तो उनका वैवाहिक जीवन आदर्श लगा रहा था लेकिन अंदर की बात ये थी कि संगीता दीदी उससे खुश नहीं थी .
भले ही मेरे मन में संगीता दीदी कि बारे में काम भावना थी लेकिन आखिर मैं उसका सगा भाई था इसलिए मुझे उसकी हालत से दुःख होता था और उस पर मुझे तरस आता था . इसलिए मैं उसे हमेशा तसल्ली देता था और उसकी आशाएँ बढ़ाते रहता था . उसे अलग अलग जोक्स , चुटकुले और मजेदार बातें बताते रहता था . मैं हमेशा उसे हंसाने की कोशिश करता रहता था और उसका मूड हमेशा आनंददायक और प्रसन्न रहे इस कोशिश में रहता था . जब वो हमारे घर आती थी या फिर मैं उसके घर जाता था , तब मैं उसे बाहर घुमाने ले जाया करता था . कभी शॉपिंग के लिए तो कभी सिनेमा देखने के लिए तो फिर कभी हम ऐसे ही घूमने जाया करते थे . कई बार मैं उसे अच्छे रेस्टारेंट में खाना खाने लेके जाया करता था . संगीता दीदी के पसंदीदा और उसे खुश करने वाली हर वो बात मैं करता था , जो असल में उसके पति को करनी चाहिए थी .
भले ही मेरे मन में संगीता दीदी कि बारे में काम भावना थी लेकिन आखिर मैं उसका सगा भाई था इसलिए मुझे उसकी हालत से दुःख होता था और उस पर मुझे तरस आता था . इसलिए मैं उसे हमेशा तसल्ली देता था और उसकी आशाएँ बढ़ाते रहता था . उसे अलग अलग जोक्स , चुटकुले और मजेदार बातें बताते रहता था . मैं हमेशा उसे हंसाने की कोशिश करता रहता था और उसका मूड हमेशा आनंददायक और प्रसन्न रहे इस कोशिश में रहता था . जब वो हमारे घर आती थी या फिर मैं उसके घर जाता था , तब मैं उसे बाहर घुमाने ले जाया करता था . कभी शॉपिंग के लिए तो कभी सिनेमा देखने के लिए तो फिर कभी हम ऐसे ही घूमने जाया करते थे . कई बार मैं उसे अच्छे रेस्टारेंट में खाना खाने लेके जाया करता था . संगीता दीदी के पसंदीदा और उसे खुश करने वाली हर वो बात मैं करता था , जो असल में उसके पति को करनी चाहिए थी .
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.