06-03-2019, 02:38 AM
हम दोनों साड़ी निकालने लगे। कमरे के दोनों तरफ बिस्तर होने के कारण बीच में बहुत कम जगह थी.. तो दीदी ने कहा- एक काम करो.. दोनों बिस्तर मिला दो ताकि अच्छी जगह हो जाए।
मैंने वैसा ही किया.. दीदी सोच रही थी कि कहाँ से शुरूआत करूँ।
मैंने दीदी से पूछा- क्या सोच रही हो?
उसने कहा- मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि कहाँ से शुरूआत करूँ।
मैंने कहा- मैं कुछ मदद करूँ?
तो उसने मना कर दिया और कहा- मैं खुद ही ट्राई करती हूँ।
ये सुन कर मैं उदास हो गया.. दीदी नाइटी के ऊपर से ही साड़ी पहनने लगी। लेकिन नाइटी सिल्की होने के वजह से वो ठीक से पहन नहीं पा रही थी। उसने मेरी ओर देखा.. और मैं हँस पड़ा।
मैं उसे चिढ़ाने लगा- इतनी बड़ी हो गई और साड़ी भी पहनना नहीं आता।
वो गुस्सा हो गई और मुझसे रिक्वेस्ट करने लगी- प्लीज़ मेरी हेल्प करो.. मैंने पहले कभी साड़ी नहीं पहनी है।
मैं बोला- एक काम करो.. माँ से ही पूछ लो।
तो उसने कहा- नहीं.. मैं उन्हें सरप्राइज देना चाहती हूँ.. अब तुम ही मेरी मदद करो।
मैंने कहा- ठीक है एक काम करो.. पहले साड़ी को कमर पर लपेट लो।
दीदी बोली- वो ही तो कर रही हूँ.. पर ठीक से बैठी ही नहीं।
मैं बोला- माँ कैसे पहनती हैं?
दीदी बोली- वो पहले नीचे पेटीकोट पहनती हैं उसकी वजह से साड़ी को ग्रिप अच्छी मिलती है।
मैं- तो तुम भी पहन लो।
दीदी- मेरे पास पेटीकोट नहीं है.. मैं नया पेटीकोट लेना ही भूल गई।
मैं- तो अब क्या करें..
दीदी- चलो एक बार फिर से ट्राई करते हैं.. तुम मेरी मदद करो.. साड़ी को कमर पर पकड़ कर रखो.. मैं ट्राइ करती हूँ। अब दीदी साड़ी को कमर पर लपेटने लगी थी और मैंने धीरे से दीदी की कमर पर हाथ रख दिया। हाथ रखते ही मेरे दिल में कुछ होने लगा।
दीदी बोली- अरे मुझे लपेटने तो दो..
फिर दीदी ने साड़ी को कमर पर लपेट लिया और मैं आगे से उसकी कमर से साड़ी पकड़ कर खड़ा हो गया।
दीदी बोली- अरे बुद्धू आगे नहीं.. पीछे खड़े रहो.. ताकि मैं साड़ी अच्छे से पहन लूँ।
मैं पीछे जा कर खड़ा हो गया। दीदी आगे से थोड़ी झुकी.. साड़ी का पल्लू लेने तो उसकी गाण्ड मेरे तने हुए लंड से टकराई और मुझे झटका लगा।
मेरे हाथ से साड़ी गिर गई और दीदी गुस्सा हो गई, उसने गुर्रा कर कहा- ठीक से पकड़ो..
मैंने कहा- आपकी नाइटी बहुत सिल्की है.. तो मैं क्या करूँ?
दीदी सोच में पड़ गई और फिर बोली- एक काम करती हूँ.. तू लाइट बन्द कर दे.. मैं नाइटी निकाल देती हूँ.. फिर ट्राई करेंगे।
मैंने कहा- ठीक है.. लेकिन अंधेरे में मुझे दिखेगा कैसे?
दीदी बोली- तुझे मैं जितना बोलूँ तू उतना ही करना..
मैंने कहा- ठीक है..
मैंने लाइट बन्द कर दी।
मैंने वैसा ही किया.. दीदी सोच रही थी कि कहाँ से शुरूआत करूँ।
मैंने दीदी से पूछा- क्या सोच रही हो?
उसने कहा- मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि कहाँ से शुरूआत करूँ।
मैंने कहा- मैं कुछ मदद करूँ?
तो उसने मना कर दिया और कहा- मैं खुद ही ट्राई करती हूँ।
ये सुन कर मैं उदास हो गया.. दीदी नाइटी के ऊपर से ही साड़ी पहनने लगी। लेकिन नाइटी सिल्की होने के वजह से वो ठीक से पहन नहीं पा रही थी। उसने मेरी ओर देखा.. और मैं हँस पड़ा।
मैं उसे चिढ़ाने लगा- इतनी बड़ी हो गई और साड़ी भी पहनना नहीं आता।
वो गुस्सा हो गई और मुझसे रिक्वेस्ट करने लगी- प्लीज़ मेरी हेल्प करो.. मैंने पहले कभी साड़ी नहीं पहनी है।
मैं बोला- एक काम करो.. माँ से ही पूछ लो।
तो उसने कहा- नहीं.. मैं उन्हें सरप्राइज देना चाहती हूँ.. अब तुम ही मेरी मदद करो।
मैंने कहा- ठीक है एक काम करो.. पहले साड़ी को कमर पर लपेट लो।
दीदी बोली- वो ही तो कर रही हूँ.. पर ठीक से बैठी ही नहीं।
मैं बोला- माँ कैसे पहनती हैं?
दीदी बोली- वो पहले नीचे पेटीकोट पहनती हैं उसकी वजह से साड़ी को ग्रिप अच्छी मिलती है।
मैं- तो तुम भी पहन लो।
दीदी- मेरे पास पेटीकोट नहीं है.. मैं नया पेटीकोट लेना ही भूल गई।
मैं- तो अब क्या करें..
दीदी- चलो एक बार फिर से ट्राई करते हैं.. तुम मेरी मदद करो.. साड़ी को कमर पर पकड़ कर रखो.. मैं ट्राइ करती हूँ। अब दीदी साड़ी को कमर पर लपेटने लगी थी और मैंने धीरे से दीदी की कमर पर हाथ रख दिया। हाथ रखते ही मेरे दिल में कुछ होने लगा।
दीदी बोली- अरे मुझे लपेटने तो दो..
फिर दीदी ने साड़ी को कमर पर लपेट लिया और मैं आगे से उसकी कमर से साड़ी पकड़ कर खड़ा हो गया।
दीदी बोली- अरे बुद्धू आगे नहीं.. पीछे खड़े रहो.. ताकि मैं साड़ी अच्छे से पहन लूँ।
मैं पीछे जा कर खड़ा हो गया। दीदी आगे से थोड़ी झुकी.. साड़ी का पल्लू लेने तो उसकी गाण्ड मेरे तने हुए लंड से टकराई और मुझे झटका लगा।
मेरे हाथ से साड़ी गिर गई और दीदी गुस्सा हो गई, उसने गुर्रा कर कहा- ठीक से पकड़ो..
मैंने कहा- आपकी नाइटी बहुत सिल्की है.. तो मैं क्या करूँ?
दीदी सोच में पड़ गई और फिर बोली- एक काम करती हूँ.. तू लाइट बन्द कर दे.. मैं नाइटी निकाल देती हूँ.. फिर ट्राई करेंगे।
मैंने कहा- ठीक है.. लेकिन अंधेरे में मुझे दिखेगा कैसे?
दीदी बोली- तुझे मैं जितना बोलूँ तू उतना ही करना..
मैंने कहा- ठीक है..
मैंने लाइट बन्द कर दी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
