Thread Rating:
  • 5 Vote(s) - 2.8 Average
  • 1
  • 2
  • 3
  • 4
  • 5
Incest दीदी, बरसात आने वाली है
#4
"तेरी भोसड़ी कौन चोदेगा फिर ... चल सीधी हो जा।" उसकी गालियाँ उसका उतावलापन दर्शाने लगी थी। मैं जल्दी से सीधी हो गई। मुझे मेरी "तेरी भोसड़ी कौन चोदेगा फिर ... चल सीधी हो जा।" उसकी गालियाँ उसका उतावलापन दर्शाने लगी थी। मैं जल्दी से सीधी हो गई। मुझे मेरी चूत में लण्ड के बिना खाली खाली सा लगने लगा था। मोनू की आँखें वासना से गुलाबी हो गई थी। मेरा भी हाल कुछ कुछ वैसा ही था। मैंने अपने पांव पसार दिए और अपनी चूत बेशर्मी से खोल दी। मोनू मेरे ऊपर चढ़ गया और मेरे शरीर पर अपना भार डाल दिया, मेरे अधरों से अपने अधर मिला दिये, नीचे लण्ड को मेरी चूत पर घुसाने का यत्न करने लगा।
मेरे स्तन उसकी छाती से भिंच गये। उसका तेलयुक्त लण्ड मेरी चूत के आस पास फ़िसल रहा था। मैं अपनी चूत भी उसके निशाने पर लाने यत्न कर रही थी। उसने मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से सहलाया और मेरी आँखों में देखा।
"दीदी, तू बहुत प्यारी है ... अब तक तेरी चुदाई क्यूँ नहीं की..."
"मोनू, हाय रे ... तुझे देख कर मैं कितना तड़प जाती थी ... तूने कभी कोई इशारा भी नहीं किया ... और मेरा इशारा तो तू समझता ही नहीं..."
"दीदी, ना रे ...तूने कभी भी इशारा नहीं किया ... वर्ना अब तक जाने कितनी बार चुदाई कर चुके होते।"
"बुद्धू राम, ओह्ह्... अब चोद ले, आह घुसा ना... आईईईई मर गई ... धीरे से ... लग जायेगी।"
उसका मोटा लण्ड मेरी चूत में उतर चुका था। शरीर में एक वासना भरी मीठी सी उत्तेजना भरने लगी। वो लण्ड पूरा घुसाने में लगा था और मैं अपनी चूत उठा कर उसे पूरा निगल लेना चाह रही थी। हम दोनों के अधर फिर से मिल गए और इस जहां से दूर स्वर्ग में विचरण करने लगे। उसके शरीर का भार मुझे फ़ूलों जैसा लग रहा था। वो कमर अब तेजी से मेरी चूत पर पटक रहा था। उसकी गति के बराबर मेरी चूत भी उसका साथ दे रही थी। कैसा सुहाना सा मधुर आनन्द आ रहा था।
आनन्द के मारे मेरी आँखें बंद हो गई और टांगें पसारे जाने कितनी देर तक चुदती रही। उसके मर्दाने हाथ मेरे उभारों को बड़े प्यार से दबा रहे थे, सहला रहे थे, मेरे तन में वासना का मीठा मीठा जहर भर भर रहे थे। सारा शरीर मेरा उत्तेजना से भर चुका था। मेरा एक एक अंग मधुर टीस से लौकने लगा था। यूँ लग रहा था काश मुझे दस बारह मर्द आकर चोद जाएँ और मेरे इस जहर को उतार दें। अब समय आ गया था मेरे चरम बिन्दु पर पहुंचने का। मेरे शरीर में ऐठन सी होने लगी थी। तेज मीठी सी गुदगुदी ने मुझे आत्मविभोर कर दिया था। सारा जहां मेरी चूत में सिमट रहा था। तभी जैसे मेरी बड़ी बड़ी आँखें उबल सी पड़ी ... मैं अपने आपको सम्भाल नहीं पाई और जोर से स्खलित होने लगी। मेरा रज छूट गया था ... मैं झड़ने लगी थी।
तभी मोनू भी एक सीत्कार के साथ झड़ने को हो गया,"दीदी मैं तो गया..." उसकी उखड़ी हुई सांसें उसका हाल दर्शा रही थी।
"बाहर निकाल अपना लण्ड ... जल्दी कर ना..." मैंने उसे अपनी ओर दबाते हुए कहा।
उसने ज्यों ही अपना लौड़ा बाहर निकाला ... उसके लण्ड से एक तेज धार निकल पड़ी।
"ये... ये ... हुई ना बात ... साला सही मर्द है ... निकला ना ढेर सारा..."
"आह ... उफ़्फ़्फ़्फ़्... तेरी तो ... मर गया तेरी मां की चूत ... एह्ह्ह्ह्ह्ह"
"पूरा निकाल दे ... ला मैं निचोड़ दूँ ..." मैंने उसके लण्ड को गाय का दूध निकालने की तरह दुह कर उसके वीर्य की एक एक बूंद बाहर निकाल दी। बाहर का वातावरण शान्त हो चुका था। तेज हवाएँ बादल को उड़ा कर ले गई थी। अब शान्त और मधुर हवा चल रही थी।
"अरे कहां चली जाती है बहू ... कितनी देर से आवाज लगा रही हूँ !"
"अरे नहा कर आ रही हूँ माता जी ..." हड़बड़ाहट में जल्दी से पानी डाल कर अपने बदन पर एक बड़ा सा तौलिया लपेट कर नीचे आ गई।
मेरी सास ने मुझे आँखें फ़ाड़ कर ऊपर से नीचे तक शक की निगाहों से देखा और बड़बड़ाने लगी,"जरा देखो तो इसे, जवानी तो देखो इसी मुई पर आई हुई है ?"
"जब देखो तब बड़बड़ाती रहती हो, बोलो क्या काम है, यूँ तो होता नहीं कि चुपचाप बिस्तर पर पड़ी रहो, बस जरा जरा सी बात पर...।"
सास बहू की रोज रोज वाली खिच-खिच आरम्भ हो चुकी थी ... पर मेरा ध्यान तो मोनू पर था। हाय, क्या भरा पूरा मुस्टण्डा था, साले का लण्ड खाने का मजा आ गया। जवानी तो उस पर टूट कर आई थी। भरी वर्षा में उसकी चुदाई मुझे आज तक याद आती है। काश आज पचास की उमर में भी ऐसा ही कोई हरा भरा जवान आ कर मुझे मस्त चोद डाले ... मेरे मन की आग बुझा दे में लण्ड के बिना खाली खाली सा लगने लगा था। मोनू की आँखें वासना से गुलाबी हो गई थी। मेरा भी हाल कुछ कुछ वैसा ही था। मैंने अपने पांव पसार दिए और अपनी चूत बेशर्मी से खोल दी। मोनू मेरे ऊपर चढ़ गया और मेरे शरीर पर अपना भार डाल दिया, मेरे अधरों से अपने अधर मिला दिये, नीचे लण्ड को मेरी चूत पर घुसाने का यत्न करने लगा।
मेरे स्तन उसकी छाती से भिंच गये। उसका तेलयुक्त लण्ड मेरी चूत के आस पास फ़िसल रहा था। मैं अपनी चूत भी उसके निशाने पर लाने यत्न कर रही थी। उसने मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से सहलाया और मेरी आँखों में देखा।
"दीदी, तू बहुत प्यारी है ... अब तक तेरी चुदाई क्यूँ नहीं की..."
"मोनू, हाय रे ... तुझे देख कर मैं कितना तड़प जाती थी ... तूने कभी कोई इशारा भी नहीं किया ... और मेरा इशारा तो तू समझता ही नहीं..."
"दीदी, ना रे ...तूने कभी भी इशारा नहीं किया ... वर्ना अब तक जाने कितनी बार चुदाई कर चुके होते।"
"बुद्धू राम, ओह्ह्... अब चोद ले, आह घुसा ना... आईईईई मर गई ... धीरे से ... लग जायेगी।"
उसका मोटा लण्ड मेरी चूत में उतर चुका था। शरीर में एक वासना भरी मीठी सी उत्तेजना भरने लगी। वो लण्ड पूरा घुसाने में लगा था और मैं अपनी चूत उठा कर उसे पूरा निगल लेना चाह रही थी। हम दोनों के अधर फिर से मिल गए और इस जहां से दूर स्वर्ग में विचरण करने लगे। उसके शरीर का भार मुझे फ़ूलों जैसा लग रहा था। वो कमर अब तेजी से मेरी चूत पर पटक रहा था। उसकी गति के बराबर मेरी चूत भी उसका साथ दे रही थी। कैसा सुहाना सा मधुर आनन्द आ रहा था।
आनन्द के मारे मेरी आँखें बंद हो गई और टांगें पसारे जाने कितनी देर तक चुदती रही। उसके मर्दाने हाथ मेरे उभारों को बड़े प्यार से दबा रहे थे, सहला रहे थे, मेरे तन में वासना का मीठा मीठा जहर भर भर रहे थे। सारा शरीर मेरा उत्तेजना से भर चुका था। मेरा एक एक अंग मधुर टीस से लौकने लगा था। यूँ लग रहा था काश मुझे दस बारह मर्द आकर चोद जाएँ और मेरे इस जहर को उतार दें। अब समय आ गया था मेरे चरम बिन्दु पर पहुंचने का। मेरे शरीर में ऐठन सी होने लगी थी। तेज मीठी सी गुदगुदी ने मुझे आत्मविभोर कर दिया था। सारा जहां मेरी चूत में सिमट रहा था। तभी जैसे मेरी बड़ी बड़ी आँखें उबल सी पड़ी ... मैं अपने आपको सम्भाल नहीं पाई और जोर से स्खलित होने लगी। मेरा रज छूट गया था ... मैं झड़ने लगी थी।
तभी मोनू भी एक सीत्कार के साथ झड़ने को हो गया,"दीदी मैं तो गया..." उसकी उखड़ी हुई सांसें उसका हाल दर्शा रही थी।
"बाहर निकाल अपना लण्ड ... जल्दी कर ना..." मैंने उसे अपनी ओर दबाते हुए कहा।
उसने ज्यों ही अपना लौड़ा बाहर निकाला ... उसके लण्ड से एक तेज धार निकल पड़ी।
"ये... ये ... हुई ना बात ... साला सही मर्द है ... निकला ना ढेर सारा..."
"आह ... उफ़्फ़्फ़्फ़्... तेरी तो ... मर गया तेरी मां की चूत ... एह्ह्ह्ह्ह्ह"
"पूरा निकाल दे ... ला मैं निचोड़ दूँ ..." मैंने उसके लण्ड को गाय का दूध निकालने की तरह दुह कर उसके वीर्य की एक एक बूंद बाहर निकाल दी। बाहर का वातावरण शान्त हो चुका था। तेज हवाएँ बादल को उड़ा कर ले गई थी। अब शान्त और मधुर हवा चल रही थी।
"अरे कहां चली जाती है बहू ... कितनी देर से आवाज लगा रही हूँ !"
"अरे नहा कर आ रही हूँ माता जी ..." हड़बड़ाहट में जल्दी से पानी डाल कर अपने बदन पर एक बड़ा सा तौलिया लपेट कर नीचे आ गई।
मेरी सास ने मुझे आँखें फ़ाड़ कर ऊपर से नीचे तक शक की निगाहों से देखा और बड़बड़ाने लगी,"जरा देखो तो इसे, जवानी तो देखो इसी मुई पर आई हुई है ?"
"जब देखो तब बड़बड़ाती रहती हो, बोलो क्या काम है, यूँ तो होता नहीं कि चुपचाप बिस्तर पर पड़ी रहो, बस जरा जरा सी बात पर...।"
सास बहू की रोज रोज वाली खिच-खिच आरम्भ हो चुकी थी ... पर मेरा ध्यान तो मोनू पर था। हाय, क्या भरा पूरा मुस्टण्डा था, साले का लण्ड खाने का मजा आ गया। जवानी तो उस पर टूट कर आई थी। भरी वर्षा में उसकी चुदाई मुझे आज तक याद आती है। काश आज पचास की उमर में भी ऐसा ही कोई हरा भरा जवान आ कर मुझे मस्त चोद डाले ... मेरे मन की आग बुझा दे
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
Like Reply


Messages In This Thread
RE: दीदी, बरसात आने वाली है - by neerathemall - 06-03-2019, 01:38 AM



Users browsing this thread: 3 Guest(s)