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Incest दीदी, बरसात आने वाली है
#2
मेरे पति एक सफ़ल व्यापारी हैं। अपने पापा के कारोबार को इन्होंने बहुत आगे बढ़ा दिया है। घर पर बस हम तीन व्यक्ति ही थे, मेरी सास, मेरे पति और और मैं स्वयं। घर उन्होंने बहुत बड़ा बना लिया है। पुराने मुहल्ले में हमारा मकान बिल्कुल ही वैसे ही लगता था जैसे कि टाट में मखमल का पैबन्द ! हमारे मकान भी आपस में एक दूसरे से मिले हुए हैं।
दिन भर मैं घर पर अकेली रहती थी। यह तो आम बात है कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। औरों की भांति मैं भी अपने कमरे में अधिकतर इन्टर्नेट पर ब्ल्यू फ़िल्में देखा करती थी। कभी मन होता तो अपने पति से कह कर सीडी भी मंगा लेती थी। पर दिन भर वासना के नशे में रहने के बाद चुदवाती अपने पति से ही थी। वासना में तड़पता मेरा जवान शरीर पति से नुचवा कर और साधारण से लण्ड से चुदवा कर मैं शान्त हो जाती थी।
पर कब तक... !!
मेरे पति भी इस रोज-रोज की चोदा-चोदी से परेशान हो गए थे... या शायद उनका काम बढ़ गया था, वो रात को भी काम में रहते थे। मैं रात को चुदाई ना होने से तड़प सी जाती थी और फिर बिस्तर पर लोट लगा कर, अंगुली चूत में घुसा कर किसी तरह से अपने आप को बहला लेती थी। मेरी ऐशो-आराम की जिन्दगी से मैं कुछ मोटी भी हो गई थी। चुदाई कम होने के कारण अब मेरी निगाहें घर से बाहर भी उठने लगी थी।
मेरा पहला शिकार बना मोनू !!!
बस वही एक था जो मुझे बड़े प्यार से छुप-छुप के देखता रहता था और डर के मारे मुझे दीदी कहता था।
मुझे बरसात में नहाना बहुत अच्छा लगता है। जब भी बरसात होती तो मैं अपनी पेन्टी उतार कर और ब्रा एक तरफ़ फ़ेंक कर छत पर नहाने चली जाती थी। सामने पड़ोस के घर में ऊपर वाला कमरा बन्द ही रहता था। वहाँ मोनू नाम का एक जवान लड़का पढ़ाई करता था। शाम को अक्सर वो मुझसे बात भी करता था। चूंकि मेरे स्तन भारी थे और बड़े बड़े भी थे सो उसकी नजर अधिकतर मेरे स्तनों पर ही टिकी रहती थी। मेरे चूतड़ जो अब कुछ भारी से हो चुके थे और गदराए हुए भी थे, वो भी उसे शायद बहुत भाते थे। वो बड़ी प्यासी निगाहों से मेरे अंगों को निहारता रहता था। मैं भी यदा-कदा उसे देख कर मुस्करा देती थी।
मैं जब भी सुखाए हुए कपड़े ऊपर तार से समेटने आती तो वो किसी ना किसी बहाने मुझे रोक ही लेता था। मैं मन ही मन सब समझती थी कि उसके मन में क्या चल रहा है?
मैंने खिड़की से झांक कर देखा, आसमान पर काले काले बादल उमड़ रहे थे। मेरे मन का मयूर नाच उठा यानि बरसात होने वाली थी। मैं तुरन्त अपनी पेण्टी और ब्रा उतार कर नहाने को तैयार हो गई। तभी ख्याल आया कि कपड़े तो ऊपर छत पर सूख रहे हैं। मैं जल्दी से छत पर गई और कपड़े समेटने लगी।
तभी मोनू ने आवाज दी,"दीदी, बरसात आने वाली है ..."
"हाँ, जोर की आयेगी देखना, नहायेगा क्या ?" मैंने उसे हंस कर कहा।

"नहीं, दीदी, बरसात में डर लगता है..."
"अरे पानी से क्या डरना, मजा आयेगा." मैंने उसे देख कर उसे लालच दिया।
कुछ ही पलों में बूंदा-बांदी चालू हो गई। मैंने समेटे हुए कपड़े सीढ़ियों पर ही डाल दिए और फिर से बाहर आ गई। मोटी मोटी बून्दें गिर रही थी। हवा मेरे पेटीकोट में घुस कर मुझे रोमांचित कर रही थी। मेरी चूत को इस हवा का मधुर सा अहसास सा हो रहा था। लो कट ब्लाऊज में मेरे थोड़े से बाहर झांकते हुए स्तनों पर बूंदें गिर कर मुझे मदहोश बनाने में लगी थी। जैसे पानी नहीं अंगारे गिर रहे हो। बरसात तेज होने लगी थी।
मैं बाहर पड़े एक स्टूल पर नहाने बैठ गई। मैं लगभग पूरी भीग चुकी थी और हाथों से चेहरे का पानी बार बार हटा रही थी। मोनू मंत्रमुग्ध सा मुझे आंखे फ़ाड़ फ़ाड़ कर देख रहा था। मेरे उभरे हुए कट गीले कपड़ों में से शरीर के साथ नजारा मार रहे थे। मोनू का पजामा भी उसके भीगे हुए शरीर से चिपक गया था और उसके लटके हुए और कुछ उठे हुए लण्ड की आकृति स्पष्ट सी दिखाई दे रही थी। मेरी दृष्टि ज्यों ही मोनू पर गई, मैं हंस पड़ी।
"तू तो पूरा भीग गया है रे, देख तेरा पजामा कैसे चिपक गया है?" मैं मोनू की ओर बढ़ गई।
"दीदी, वो... वो... अपके कपड़े भी तो कैसे चिपके हुए हैं..." मोनू भी झिझकते हुए बोला।
मुझे एकदम एहसास हुआ कि मेरे कपड़े भी तो ... मेरी नजरें जैसे ही अपने बदन पर गई। मैं तो बोखला गई। मेरा तो एक एक अंग साफ़ ही दृष्टिगोचर हो रहा था। सफ़ेद ब्लाऊज और सफ़ेद पेटीकोट तो जैसे बिलकुल पारदर्शी हो गए थे। मुझे लगा कि मैं नंगी खड़ी हूँ।
"मोनू, इधर मत देख, मुझे तो बहुत शरम आ रही है।" मैंने बगलें झांकते हुए कहा।
उसने अपनी कमीज उतारी और कूद कर मेरी छत पर आ गया। अपनी शर्ट मेरी छाती पर डाल दी।
"दीदी, छुपा लो, वर्ना किसी की नजर लग जायेगी।"
मेरी नजरें तो शरम से झुकी जा रही थी। पीछे घूमने में भी डर लग रहा था कि मेरे सुडौल चूतड़ भी उसे दिख जायेंगे।
"तुम तो अपनी अपनी आँखें बन्द करो ना...!!" मुझे अपनी हालत पर बहुत लज्जा आने लगी थी। पर मोनू तो मुझे अब भी मेरे एक एक अंग को गहराई से देख रहा था।
"कोई फ़ायदा नहीं है दीदी, ये तो सब मेरी आँखों में और मन में बस गया है।" उसका वासनायुक्त स्वर जैसे दूर से आता हुआ सुनाई दिया। अचानक मेरी नजर उसके पजामे पर पड़ी। उसका लण्ड उठान पर था। मेरे भी मन का शैतान जाग उठा। उसकी वासना से भरी नजरें मेरे दिल में भी उफ़ान पैदा करने लगी। मैंने अपनी बड़ी बड़ी गुलाबी नजरें उसके चेहरे पर गड़ा दी। उसके चेहरे पर शरारत के भाव स्पष्ट नजर आ रहे थे। मेरा यूँ देखना उसे घायल कर गया। मेरा दिल मचल उठा, मुझे लगा कि मेरा जादू मोनू पर अनजाने में चल गया है।
मैंने शरारत से एक जलवा और बिखेरा ..."लो ये अपनी कमीज, जब देख ही लिया है तो अब क्या है, मैं जाती हूँ।" मेरे सुन्दर पृष्ट उभारों को उसकी नजर ने देख ही लिया। मैं ज्योंही मुड़ी, मोनू के मुख से एक आह निकल गई।
मैंने भी शरारत से मुड़ कर उसे देखा और हंस दी। उसकी नजरें मेरे चूतड़ों को बड़ी ही बेताबी से घूर रही थी। उसका लण्ड कड़े डन्डे की भांति तन गया था। उसने मुझे खुद के लण्ड की तरफ़ देखता पाया तो उसने शरारतवश अपने लण्ड को हाथ से मसल दिया।
मुझे और जोर से हंसी आ गई। मेरे चेहरे पर हंसी देख कर शायद उसने सोचा होगा कि हंसी तो फ़ंसी... उसने अपने हाथ मेरी ओर बढ़ा दिये। बरसात और तेज हो चुकी थी। मैं जैसे शावर के नीचे खड़ी होकर नहा रही हूँ ऐसा लग रहा था।
उसने अपना हाथ ज्यों ही मेरी तरफ़ बढाया, मैंने उसे रोक दिया,"अरे यह क्या कर रहे हो ... हाथ दूर रखो... क्या इरादा है?" मैं फिर से जान कर खिलखिला उठी।
मैं मुड़ कर दो कदम ही गई थी कि उसने मेरी कमर में हाथ डाल कर अपनी ओर खींच लिया।
"नहीं मोनू नहीं ... " उसके मर्द वाले हाथों की कसावट से सिहर उठी।
"दीदी, देखो ना कैसी बरसात हो रही है ... ऐसे में..." उसके कठोर लण्ड के चुभन का अहसास मेरे नितम्बों पर होने लगा था। उसके हाथ मेरे पेट पर आ गये और मेरे छोटे से ब्लाऊज के इर्द गिर्द सहलाने लगे। मुझे जैसे तेज वासनायुक्त कंपन होने लगी। तभी उसके तने हुआ लण्ड ने मेरी पिछाड़ी पर दस्तक दी। मैं मचल कर अपने आप को इस तरह छुड़ाने लगी कि उसके मर्दाने लण्ड की रगड़ मेरे चूतड़ों पर अच्छे से हो जाये। मैं उससे छूट कर सामने की दीवार से चिपक कर उल्टी खड़ी हो गई, शायद इस इन्तज़ार में कि मोनू मेरी पीठ से अभी आकर चिपक जायेगा और अपने लण्ड को मेरी चूतड़ की दरार में दबा कर मुझे स्वर्ग में पहुँचा देगा !
पर नहीं ... ! वो मेरे पास आया और मेरे चूतड़ों को निहारा और एक ठण्डी आह भरते हुए अपने दोनों हाथों से मेरे नंगे से चूतड़ो की गोलाइयों को अपने हाथो में भर लिया। मेरे दोनों नरम चूतड़ दब गये, मोनू की आहें भी निकलने लगी, मेरे मुख से भी सिसकारी निकल गई। वो चूतड़ों को जोर जोर से दबाता चला गया। मेरे शरीर में एक मीठी सी गुदगुदी भरने लगी।
"मोनू, बस कर ना, कोई देख लेगा ..." मेरी सांसें तेज होने लगी थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: दीदी, बरसात आने वाली है - by neerathemall - 06-03-2019, 01:31 AM



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