07-08-2020, 07:35 PM
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दूसरे दिन चाय नाश्ता करके हम तीनो बेहन भाई, भैया के ऑफीस की गाड़ी से उनके शहर की तरफ निकल लिए…
मे आगे ड्राइवर के बगल में बैठा था और दीदी-भैया पीछे की सीट पर बातें करते हुए अपना समय पास करते जा रहे थे..
वो दोनो भी कुच्छ सालों पहले एक साथ कॉलेज जाना, साथ खेलना बैठना काफ़ी सालों तक रहा था, आज वो दोनो अपनी पुरानी बातों, साथ बिताए लम्हों को याद करते जा रहे.
उनकी बातें सुनकर मुझे पता चला कि हम भाइयों और बेहन के बीच कितना प्रेम है एक दूसरे के लिए..
शायद इसकी एक वजह माँ की असमय मृत्यु भी थी, जिसकी वजह से सब जल्दी ही अपनी ज़िम्मेदारियाँ समझने लगे थे.
उनकी पोस्टिंग जिस शहर में थी, वो हमारे गाओं से तकरीबन 100-110 किमी दूर था,
गाओं से कुच्छ दूर मैं हाइवे तक सिंगल और खराब रास्ता ही था, लेकिन उसके बाद हाइवे अच्छा था.
बातों-2 में समय का पता ही नही चला और कोई 3 घंटे बाद हम उनके शहर पहुँच गये..
भैया पहले सीधे अपने ऑफीस गये, वहाँ अपने स्टाफ से हमें मिलवाया फिर अपने ऑफीस के काम का अपडेट लेकर हम तीनों शॉपिंग के लिए निकल गये..
पहले मेरे लिए एक बुलेट बुक कराई, जो कल तक मिलने वाली थी, फिर हम दोनो के लिए कपड़े वैगैरह खरीदे.. इसी में शाम हो गयी..
दूसरे दिन भैया हमें एक सिनिमा हॉल की टिकेट देकर अपने ऑफीस निकल गये..
अपने ऑफीस की ही एक गाड़ी हमारे लिए रख दी जो हमें पूरे दिन घुमाने वाली थी..
3 से 6 वेल शो हम दोनो मूवी देखने हॉल में घुस गये.. अक्षय कुमार की कोई अच्छी मूवी लगी थी..
दीदी ने नये खरीदे कपड़ों में से एक पिंक कलर की टीशर्ट और एक ब्लू लीन्स पहन रखी थी, मे भी एक वाइट टीशर्ट और जीन्स पहने हुए था..
इस ड्रेस में दीदी क्या ग़ज़ब लग रही थी, मे तो उन्हें देखता ही रह गया.. और मेरे मूह से निकल गया.. वाउ ! दीदी क्या लग रही हो …
वो एकदम से शर्मा गयी, और फिर बोली – सच बता भाई.. मे अच्छी लग रही हूँ ना..!
मे – ग़ज़ब दीदी ! आप तो एकदम से बदल गयी हो… कोई कह नही सकता कि ये कोई गाओं की लड़की होगी..
वो – तू भी किसी हीरो से कम नही लग रहा… देखना कहीं कोई लड़की गश ख़ाके ना गिर पड़े…
मे – अब आप मेरी टाँग खींच रही हो..
वो – नही सच में.. और आगे बढ़के मेरे गाल पर किस कर लिया.. मे तो अचानक उनके किस करने से गन-गन गया…!
हॉल में अंधेरा था, कुच्छ वॉल साइड की लाइट्स थी जिससे हल्का-2 उजाला फैला हुआ था. हम अपने नंबर की सीट जो बाल्कनी में सबसे उपर की रो में थी बैठ गये.
अच्छी मूवी होने की वजह से कुछ देर में ही हॉल फुल हो गया.. और कुच्छ ही देर में सभी लाइट्स ऑफ हो गयी.. और एक दो आड के बाद मूवी स्टार्ट हो गयी.
हॉल में अंधेरा इतना था, कि हमें अपने बाजू वाले की भी पहचान नही हो रही थी कि कॉन बैठा है..
मूवी शुरू हुए अभी कुच्छ ही मिनिट हुए थे कि दीदी का हाथ मेरी जाँघ पर महसूस हुआ..
मे चुपचाप बैठा मूवी देखता रहा.. अब धीरे-2 वो मेरी जाँघ को सहलाने लगी.. और उसे उपर जांघों के बीच ले आई…
अब उनकी उंगलिया मेरे लंड से टच हो रही थी… वो टाइट जीन्स में क़ैद बेचारा ज़ोर मारने लगा..
लेकिन जीन्स इतनी टाइट थी कि कुच्छ ज़ोर नही चल रहा था उसका…
दीदी का हाथ और कुच्छ हरकत करता उससे पहले मे थोड़ा सीधा हो गया और अपनी सीट पर आगे को खिसक गया… !
दीदी ने फ़ौरन अपना हाथ खींच लिया और मेरे मूह की तरफ देखने लगी.. लेकिन मे मूवी देखने में ही लगा रहा…
मे थोड़ा आगे होकर दीदी की साइड वाले अपने बाजू को थोड़ा उनकी सीट की तरफ चौड़ा दिया,
अब हॅंडल पर आगे मेरा बाजू टिका हुआ था और मेरे पीछे ही दीदी ने भी अपना बाजू टिका लिया और मेरी सीट की तरफ को होगयि…
पोज़िशन ये होगयि.. कि अगर मे ज़रा भी पीछे को होता तो मेरा बाजू उनके बूब को प्रेस करता…!
हम दोनो कुच्छ देर यूँही बैठे रहे.. उसको ज़्यादा देर चैन कहाँ पड़ने वाला था.. सो अपना हाथ मेरी बॉडी और बाजू के बीच से होकर फिर मेरी जाँघ पर रख दिया, और फिर वही पहले वाली हरकतें…!
मे उन्हें बोलने के लिए पीछे की तरफ होकर उनकी ओर को हुआ… मेरा बाजू एल्बो से उपर का हिस्सा उनके बूब पर रख गया…!
जैसे ही मुझे इस बात का एहसास हुआ, और मे अलग होने ही वाला था कि उसने मेरा बाजू थाम लिया और उसे और ज़ोर्से अपनी चुचि पर दबा दिया…!
आह्ह्ह्ह… क्या नरम एहसास था, रूई जैसी मुलायम उसकी चुचि मेरी बाजू से दबी हुई थी.. मुझे रोमांच भी हो रहा था,
लेकिन मेरे मन में हमेशा ही उनके प्रति एक भाई-बेहन वाली फीलिंग पैदा हो जाती थी और मे आगे बढ़ने से अपने को रोक लेता था…!
दीदी ने अपना गाल भी मेरे बाजू से सटा रखा था…मेने उनके कान के पास मूह लेजा कर कहा – दीदी ये आप क्या कर रही हो..?
वो – मे क्या कर रही हूँ..?
मे – यही ! अभी आप ऐसे चिपकी हो मेरे से, कभी मेरी जाँघ सहलाती हो… ये
सब…. क्या ठीक है..?
वो – क्यों ! तुझे कोई प्राब्लम है इस सबसे..?
मे – हां ! हम बेहन-भाई हैं, और ये सब हमारे रिस्ते में ठीक नही है..
वो – अच्छा ! और भाभी देवर के रिस्ते में ये सब ठीक है..?
मे – क्या..?? आप कहना क्या चाहती हो..? साफ-साफ कहो…!
वो – आजकल तेरे और भाभी के बीच जो भी हो रहा है ना ! वो मुझे सब पता है.. यहाँ तक कि तेरे बर्थ’डे वाली सारी रात उनके कमरे में जो हुआ वो भी..
मे एक दम से सकपका गया.. और हैरत से उनकी तरफ देखने लगा…..
वो - ऐसे क्या देख रहा है…? क्या ये भी बताऊ, कि कब-कब, तुम दोनो ने क्या-क्या किया और कहाँ किया है..?
लेकिन तू फिकर मत कर मे किसी को कुच्छ नही कहूँगी…बस थोड़ा सा मेरे बारे में भी सोच…!
अब मेरे पास बोलने के लिए कुच्छ नही था… सो जैसे गूंगी औरत लंड की तरफ देखती है ऐसे ही बस उसे देखता ही रहा…!
वो – अब चुप क्यों है ! कुच्छ तो बोल… ?
मे – ठीक है दीदी ! आप जैसा चाहती हैं वैसा ही होगा, लेकिन अभी यहाँ कुच्छ मत करो… वरना मुझे कुच्छ -2 होने लगता है…!
वो – तो फिर कहाँ और कैसे होगा.. ? यहाँ भी कुच्छ तो मज़े कर ही सकते हैं ना !
मेने पूरी तरह हथियार डाल दिए और अपने आपको उसके हवाले कर दिया….
दूसरे दिन चाय नाश्ता करके हम तीनो बेहन भाई, भैया के ऑफीस की गाड़ी से उनके शहर की तरफ निकल लिए…
मे आगे ड्राइवर के बगल में बैठा था और दीदी-भैया पीछे की सीट पर बातें करते हुए अपना समय पास करते जा रहे थे..
वो दोनो भी कुच्छ सालों पहले एक साथ कॉलेज जाना, साथ खेलना बैठना काफ़ी सालों तक रहा था, आज वो दोनो अपनी पुरानी बातों, साथ बिताए लम्हों को याद करते जा रहे.
उनकी बातें सुनकर मुझे पता चला कि हम भाइयों और बेहन के बीच कितना प्रेम है एक दूसरे के लिए..
शायद इसकी एक वजह माँ की असमय मृत्यु भी थी, जिसकी वजह से सब जल्दी ही अपनी ज़िम्मेदारियाँ समझने लगे थे.
उनकी पोस्टिंग जिस शहर में थी, वो हमारे गाओं से तकरीबन 100-110 किमी दूर था,
गाओं से कुच्छ दूर मैं हाइवे तक सिंगल और खराब रास्ता ही था, लेकिन उसके बाद हाइवे अच्छा था.
बातों-2 में समय का पता ही नही चला और कोई 3 घंटे बाद हम उनके शहर पहुँच गये..
भैया पहले सीधे अपने ऑफीस गये, वहाँ अपने स्टाफ से हमें मिलवाया फिर अपने ऑफीस के काम का अपडेट लेकर हम तीनों शॉपिंग के लिए निकल गये..
पहले मेरे लिए एक बुलेट बुक कराई, जो कल तक मिलने वाली थी, फिर हम दोनो के लिए कपड़े वैगैरह खरीदे.. इसी में शाम हो गयी..
दूसरे दिन भैया हमें एक सिनिमा हॉल की टिकेट देकर अपने ऑफीस निकल गये..
अपने ऑफीस की ही एक गाड़ी हमारे लिए रख दी जो हमें पूरे दिन घुमाने वाली थी..
3 से 6 वेल शो हम दोनो मूवी देखने हॉल में घुस गये.. अक्षय कुमार की कोई अच्छी मूवी लगी थी..
दीदी ने नये खरीदे कपड़ों में से एक पिंक कलर की टीशर्ट और एक ब्लू लीन्स पहन रखी थी, मे भी एक वाइट टीशर्ट और जीन्स पहने हुए था..
इस ड्रेस में दीदी क्या ग़ज़ब लग रही थी, मे तो उन्हें देखता ही रह गया.. और मेरे मूह से निकल गया.. वाउ ! दीदी क्या लग रही हो …
वो एकदम से शर्मा गयी, और फिर बोली – सच बता भाई.. मे अच्छी लग रही हूँ ना..!
मे – ग़ज़ब दीदी ! आप तो एकदम से बदल गयी हो… कोई कह नही सकता कि ये कोई गाओं की लड़की होगी..
वो – तू भी किसी हीरो से कम नही लग रहा… देखना कहीं कोई लड़की गश ख़ाके ना गिर पड़े…
मे – अब आप मेरी टाँग खींच रही हो..
वो – नही सच में.. और आगे बढ़के मेरे गाल पर किस कर लिया.. मे तो अचानक उनके किस करने से गन-गन गया…!
हॉल में अंधेरा था, कुच्छ वॉल साइड की लाइट्स थी जिससे हल्का-2 उजाला फैला हुआ था. हम अपने नंबर की सीट जो बाल्कनी में सबसे उपर की रो में थी बैठ गये.
अच्छी मूवी होने की वजह से कुछ देर में ही हॉल फुल हो गया.. और कुच्छ ही देर में सभी लाइट्स ऑफ हो गयी.. और एक दो आड के बाद मूवी स्टार्ट हो गयी.
हॉल में अंधेरा इतना था, कि हमें अपने बाजू वाले की भी पहचान नही हो रही थी कि कॉन बैठा है..
मूवी शुरू हुए अभी कुच्छ ही मिनिट हुए थे कि दीदी का हाथ मेरी जाँघ पर महसूस हुआ..
मे चुपचाप बैठा मूवी देखता रहा.. अब धीरे-2 वो मेरी जाँघ को सहलाने लगी.. और उसे उपर जांघों के बीच ले आई…
अब उनकी उंगलिया मेरे लंड से टच हो रही थी… वो टाइट जीन्स में क़ैद बेचारा ज़ोर मारने लगा..
लेकिन जीन्स इतनी टाइट थी कि कुच्छ ज़ोर नही चल रहा था उसका…
दीदी का हाथ और कुच्छ हरकत करता उससे पहले मे थोड़ा सीधा हो गया और अपनी सीट पर आगे को खिसक गया… !
दीदी ने फ़ौरन अपना हाथ खींच लिया और मेरे मूह की तरफ देखने लगी.. लेकिन मे मूवी देखने में ही लगा रहा…
मे थोड़ा आगे होकर दीदी की साइड वाले अपने बाजू को थोड़ा उनकी सीट की तरफ चौड़ा दिया,
अब हॅंडल पर आगे मेरा बाजू टिका हुआ था और मेरे पीछे ही दीदी ने भी अपना बाजू टिका लिया और मेरी सीट की तरफ को होगयि…
पोज़िशन ये होगयि.. कि अगर मे ज़रा भी पीछे को होता तो मेरा बाजू उनके बूब को प्रेस करता…!
हम दोनो कुच्छ देर यूँही बैठे रहे.. उसको ज़्यादा देर चैन कहाँ पड़ने वाला था.. सो अपना हाथ मेरी बॉडी और बाजू के बीच से होकर फिर मेरी जाँघ पर रख दिया, और फिर वही पहले वाली हरकतें…!
मे उन्हें बोलने के लिए पीछे की तरफ होकर उनकी ओर को हुआ… मेरा बाजू एल्बो से उपर का हिस्सा उनके बूब पर रख गया…!
जैसे ही मुझे इस बात का एहसास हुआ, और मे अलग होने ही वाला था कि उसने मेरा बाजू थाम लिया और उसे और ज़ोर्से अपनी चुचि पर दबा दिया…!
आह्ह्ह्ह… क्या नरम एहसास था, रूई जैसी मुलायम उसकी चुचि मेरी बाजू से दबी हुई थी.. मुझे रोमांच भी हो रहा था,
लेकिन मेरे मन में हमेशा ही उनके प्रति एक भाई-बेहन वाली फीलिंग पैदा हो जाती थी और मे आगे बढ़ने से अपने को रोक लेता था…!
दीदी ने अपना गाल भी मेरे बाजू से सटा रखा था…मेने उनके कान के पास मूह लेजा कर कहा – दीदी ये आप क्या कर रही हो..?
वो – मे क्या कर रही हूँ..?
मे – यही ! अभी आप ऐसे चिपकी हो मेरे से, कभी मेरी जाँघ सहलाती हो… ये
सब…. क्या ठीक है..?
वो – क्यों ! तुझे कोई प्राब्लम है इस सबसे..?
मे – हां ! हम बेहन-भाई हैं, और ये सब हमारे रिस्ते में ठीक नही है..
वो – अच्छा ! और भाभी देवर के रिस्ते में ये सब ठीक है..?
मे – क्या..?? आप कहना क्या चाहती हो..? साफ-साफ कहो…!
वो – आजकल तेरे और भाभी के बीच जो भी हो रहा है ना ! वो मुझे सब पता है.. यहाँ तक कि तेरे बर्थ’डे वाली सारी रात उनके कमरे में जो हुआ वो भी..
मे एक दम से सकपका गया.. और हैरत से उनकी तरफ देखने लगा…..
वो - ऐसे क्या देख रहा है…? क्या ये भी बताऊ, कि कब-कब, तुम दोनो ने क्या-क्या किया और कहाँ किया है..?
लेकिन तू फिकर मत कर मे किसी को कुच्छ नही कहूँगी…बस थोड़ा सा मेरे बारे में भी सोच…!
अब मेरे पास बोलने के लिए कुच्छ नही था… सो जैसे गूंगी औरत लंड की तरफ देखती है ऐसे ही बस उसे देखता ही रहा…!
वो – अब चुप क्यों है ! कुच्छ तो बोल… ?
मे – ठीक है दीदी ! आप जैसा चाहती हैं वैसा ही होगा, लेकिन अभी यहाँ कुच्छ मत करो… वरना मुझे कुच्छ -2 होने लगता है…!
वो – तो फिर कहाँ और कैसे होगा.. ? यहाँ भी कुच्छ तो मज़े कर ही सकते हैं ना !
मेने पूरी तरह हथियार डाल दिए और अपने आपको उसके हवाले कर दिया….