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Non-erotic चक्रव्यहू by Jayprakash Pawar 'The Stranger'
#3
"कांग्रेचुलेशंस सर।" एक साथ कई टीचर्स ने एकसाथ कहा।

           "थैंक्स फाॅर इट एंड स्पेशल थैंक्स फाॅर स्ट्राइक।"

           "सर, इस बार का बेस्ट टीचर का अवार्ड किसको मिलने वाला हैं ?" एक युवा शिक्षिका ने सवाल किया।

            "मिस कल्पना, मुझे बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा हैं कि आप अब से करीब पाँच मिनट पहले तक इस अवार्ड की मेन दावेदार आप थीं, क्योंकि आपके अथक प्रयासों की वजह से इंडिपेंडेस डे पर हमारे काफी स्टूडेंट्स पुलिस ग्राउंड पर आयोजित कल्चर एक्टीविटिज में फर्स्ट प्राइज विन करने में कामयाब हो पाए। लेकिन मेरी इन पाँच मिनट के भीतर मेरी अंतरात्मा ने मुझे इस बात के लिए कन्वेंस कर लिया कि इस अवार्ड की असली हकदार हमारे स्कूल की सबसे यंग टीचर मिस निहारिका हीं असली हकदार हैं। क्या आप सब मेरे इस डिसिजन से एग्री करते हैं ?"

           "यस सर।" अधिकांश शिक्षक-शिक्षिकाओं ने एक स्वर में जवाब दिया, जिसमें कल्पना भी शामिल थीं।

           "मिस निहारिका, शायद आप मेरे इस डिसिजन से डिसएग्री कर रही हैं, क्योंकि आपने मेरे सवाल का कोई जवाब नहीं दिया।"

           "यस सर, आपकी गेसिंग परफेक्ट हैं। मेरे विचार इस अवार्ड की असली हकदार कल्पना मिस हीं हैं।" निहारिका ने जवाब दिया।

          "सर, आई कम्प्लिटली डिसएग्री टू निहारिका मिस। बिकास सी इज योर राइट च्वाइस फाॅर दिस अवार्ड।" कल्पना ने जल्दी से अपनी बात रखी।

          "सर, आप इनकी बात पर ध्यान मत दीजिए और अवार्ड इन्हें हीं दीजिए।"

            "प्लीज मिस निहारिका एंड मिस कल्पना, आप शांति बनाए रखे। ये हमारे स्कूल का सबसे ग्रेटेस्ट मोमेंट हैं क्योंकि आज यहाँ पहली बार दो लोग इस बात के लिए लड़ रहे हैं कि किसी अवार्ड वो नहीं सामने वाला डिजर्व करता हैं जबकि इससे पहले मैंने हमेशा यहाँ लोगों को अवार्ड हासिल करने के लिए हीं लड़ते देखा। मिस निहारिका एंड मिस कल्पना, मैंने आप दोनों की प्राॅब्लम का साॅलुशन खोज लिया हैं। बेस्ट टीचर का अवार्ड मिस कल्पना को दिया जाएगा और मिस निहारिका को स्पेशल टीचर का अवार्ड दिया जाएगा। हैप्पी नाऊ आल आॅफ यू ?"

           "यस सर।" एक स्वर में जवाब देने वालों में निहारिका और कल्पना शामिल नहीं थीं क्योंकि दोनों एकदूसरे को बधाईया देने में व्यस्त थीं।
                              ................

        "क्या हुआ, आप दोनों इतने परेशान क्यूँ नजर आ रहे हैं ?" घर में कदम रखते हीं निहारिका की नजर अपने माता-पिता पर पड़ी तो ये सवाल अपने आप हीं उसके मुँह से निकल गया।

         "क्योंकि हम दोनों परेशान हैं।" जवाब निहारिका की माँ ने दिया।

          "हाँ, लेकिन आप लोग परेशान क्यूँ हैं ?"

          "तुम्हारे एक कारनामे की वजह से।"

          "निहाल की माँ, इससे ऐसे बात क्यों कर हो ? इसने जान-बूझकर तो हमारे लिए परेशानी खड़ी नहीं की न ?"

          "आप बीच में मत बोलिए, आपके अनुचित लाड़-प्यार और इसकी हर सही-गलत हरकत को सही ठहराने की आदत की वजह से ही ये लड़की हाथ से निकलती जा रही हैं, इसलिए आज मैं आपको बीच में एक शब्द नहीं बोलने दूँगी। आप चुपचाप बैठिए और चुपचाप बैठना नहीं हो रहा हैं तो बाहर घूमने चले जाइए।" निहारिका के पिता के बीच में हस्तक्षेप करने पर निहारिका की माँ का पारा और ऊपर चढ़ गया।

        "मुझसे तुम्हारी बकवास यहाँ बैठे-बैठे चुपचाप बर्दाश्त तो होगी नहीं और मैं बीच में बोला तो तुम बवाल खड़ा किए बिना मानोगी नहीं, इसलिए मैं बाहर चला जाता हूँ।" कहकर चेहरे पर आक्रोश के भाव लिए निहारिका के पिता घर से बाहर निकल गए।

         "इस नाकारा आदमी से कोई भी जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद रखना बेकार हैं। मैं न रहूँ तो ये आदमी इस घर को चिड़ियाघर और घर के लोगों को जानवर बनाकर रख देगा। जिसकी जो मर्जी हो ......।"

         "मम्मी, पापा को कोसना बंद करों और साफ शब्दों में मुझे बताओ कि मैंने किया क्या हैं ?" निहारिका के सब्र का बाँध टूट गया तो उसने अपनी को टोकते हुए अपना सवाल उनके सामने रख दिया।

         "तेरे कल अपने स्कूल के मास्टर-मास्टरनियों को भड़काकर मोहित के पापा को स्कूल बुलवाने की वजह से तेरा रिश्ता टूटने की कगार पर आ गया हैं और मैडम बड़े आराम से पूछ रही हैं कि मैंने किया क्या हैं।"

        "मोहित के पापा को स्कूल में बुलवाने की वजह से मेरा रिश्ता टूटने का क्या कनेक्शन हैं ?"

        "मुझसे सात कक्षाएँ ज्यादा पढ़ने के बावजूद तुझे इतनी-सी भी अक्ल नहीं आयी कि जो आदमी लड़के वालों के तुझे देखने आने से लेकर रिश्ता पक्का होने तक साथ रहा हो, उसका लड़के वालों के साथ कुछ न कुछ खास नाता तो होगा हीं न, कोई किसी ऐरे-गैरे को तो ऐसे मौकों पर अपने चुनिंदा लोगों के साथ लेकर आता नहीं हैं।"

        "मम्मी, मैं तुमसे पहले कह चुकी हूँ कि जो बात हैं, वो मुझे साफ शब्दों में बताओ, लेकिन फिर भी तुम बात को जलेबी की तरह गोल-गोल घुमा रही हो। क्या इस बात का जरा-सा भी अहसास नहीं हैं कि तुम्हारी बेटी पूरे पाँच घंटे खड़े-खड़े बच्चों को पढ़ाने के साथ-साथ डेढ़ किलोमीटर पैदल चलकर स्कूल जाने और डेढ़ किलोमीटर पैदल चलकर आने की वजह से काफी थकी हुई होगी ?"

        "तू ये सब करके मुझ पर कोई अहसान नहीं कर रही हैं। मैंने पहले ही तुझसे कहा था कि ये कम तनख्वाह में ज्यादा मेहनत वाली नौकरी मत कर, किसी कम्पनी के आॅफिस में कोई बैठे-बैठे काम करने वाली नौकरी ढूँढ ले। मेरी बात मान लेती तो न पैदल आने-जाने की नौबत आती, न खड़े रहकर काम करना पड़ता और न तुझे इतनी थकान होतीं, लेकिन तुझ पर तो मास्टरनी बनकर बच्चों के भविष्य निर्माण करने का शौक चढ़ा था। अब भुगत इसकी सजा।"

       "मम्मी, मैं फिलहाल तो तुम्हारी बेटी होने की सजा भुगत रहीं हूँ पर मैं अब और ज्यादा देर तक यहाँ खड़ी रहकर ये सजा भुगतने की हालत में नही हूँ। तुम दो मिनट के अंदर अपनी बात पूरी कर दो, अदरवाइज मुझे तुम्हारी पूरी बात सुने बिना ही अपने कमरे में जाना पड़ेगा।"

      "खड़ी रहना नहीं हो रहा हैं तो बैठ जा।"

      "बैठ गई तो तुम्हारा लैक्चर और लम्बा हो जाएगा, इसलिए मैं खड़े-खड़े हीं तुम्हारी बात सुन लेती हूँ और तुम एक बार टाॅपिक छोड़ देने के बाद उस टाॅपिक पर दुबारा जल्दी से आओगी भी नहीं, इसलिए मैं ही पूछ लेती हूँ। बताओ, जिस लड़के के साथ मेरा रिश्ता तय हुआ हैं, मोहित के पापा उसके कोई करीबी रिश्तेदार हैं क्या ?"

       "नहीं, लेकिन मोहित के पापा उस लड़के और उसके माँ-बाप के लिए करीबी रिश्तेदार से ज्यादा मायने रखते हैं क्योंकि उन लोगों के कारोबार में मोहित के पापा की काफी पूँजी लगीं हुई हैं। अब आयी कुछ बात तेरी समझ में या पूरी रामकथा सुनाऊँ ?"

         "पूरी रामकथा सुनाने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि मेरी समझ में पूरी कथा आ चुकी हैं। मोहित के पापा को मेरी डिमांड पर प्रिंसिपल ने मोहित की हरकतों के लिए खरी-खोटी सुनाई तो उसने अमित के डैड के कारोबार में अपने पैसे लगे होने का मिसयूज करके अमित के माँ-बाप पर इस बात के लिए प्रेशर डाला कि वे लोग मुझसे स्कूल के प्रिंसिपल को ये कहने के लिए बाध्य करे कि मैंने मोहित की झूठी शिकायत की थीं, ताकि प्रिंसिपल मोहित के पापा को दुबारा स्कूल बुलाकर खुद भी माफी मांगे और मुझे भी माफी मांगने के लिए मजबूर कर सकें। शायद ये प्लान मोहित के पापा के दिमाग में कल प्रिंसिपल के आॅफिस में अपने बेटे की करतूतो के लिए जलील होते समय हीं बन चुका था, इसीलिए उसने आॅफिस से बाहर निकलते ही मुझसे पूरे काॅन्फिडेंस कह दिया था कि तीन दिन के अंदर मैं और मेरे स्कूल का प्रिंसिपल उसे बुलाकर माफी मांगेंगे, पर उस इडियट को ये नहीं पता हैं कि वो ऐसी ओछी हरकत करके मुझे अगले सात जन्मों तक भी नहीं झुका पाएगा।"

       "बचकानी बातें छोड़ और मोहित के पापा जो चाहते हैं, वहीं कर, नहीं तो तेरा और अमित का रिश्ता टूट जाएगा। अमित ने मुझसे साफ-साफ कह दिया हैं कि कल तूने तेरे स्कूल के हैंड मास्टर के सामने मोहित की झूठी शिकायत करने की गलती कबूल नहीं की तो उनके पास ये रिश्ता तोड़ने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचेगा, क्योंकि मोहित के पापा की ये मांग पूरी न होने की स्थिति में वे ये रिश्ता नही तोड़ते हैं तो पर वो उनके कारोबार में लगा अपना सारा पैसा वापस लेकर उन्हें सड़क पर ला देगा और तू न दुनिया की आखिरी लड़की नहीं हैं और न तेरे बाप की उनके सड़क पर आने से बचाने की औकात हैं, जो वे लोग तेरे उनकी बात न मानने पर तुझे अपने परिवार की बहू बनाकर सड़क पर आने का जोखिम उठाएँगे।"

        "मैं भी ऐसे परिवार की बहू बनने का जोखिम नहीं उठा सकती, जिनके लिए अपनी होनेवाली बहू के आत्म-सम्मान से ज्यादा अपने कारोबारी हित मायने रखते हैं।"

         "बेटी, ठंडे दिमाग से काम ले। ये आत्म-सम्मान, आदर्श और सिद्धांत जैसी चीजें की आज के जमाने में कोई अहमियत नहीं हैं। आज के जमाने में जिसके पास पैसा हैं, उसी की इज्जत होती हैं। मोहित के पापा को ही देखो, सभी को पता हैं कि वो एक नम्बर का मक्कार, बेईमान और मौकापरस्त आदमी हैं, लेकिन फिर भी हर कोई उसकी जी-हुजूरी करता हैं जबकि तेरे बाप के ईमानदार और नेक इंसान के बावजूद लोग उन्हें देखकर भी अनदेखा कर देते हैं। बेटी, बहुत दिनों की कोशिशों के बावजूद बड़ी मुश्किल से ये बिना दहेज की मांग वाला रिश्ता हमारे हाथ आया हैं। ये रिश्ता टूट गया तो उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि बड़े लोग हैं, इसलिए उन्हें कोई भी लड़की दे देगा, पर हमें बहुत दिक्कत होगी। हमारे सारे रिश्तेदार उनके लाए रिश्तों में तुम दोनों बाप-बेटी के मीन-मेख निकालने की वजह से हमसे पहले दूर हो चुके हैं। समाज में भी हमारी इतनी ज्यादा अहमियत नहीं हैं, इसलिए कोई हमारे घर रिश्ता लेकर नहीं आता हैं। इसलिए उन लोगों की बात मान ले और उस स्कूल की नौकरी छोड़ दे। वैसे भी तुझे ढाई-तीन माह बाद ये घर और वो स्कूल छोड़कर ऐसी जगह जाना हैं, जहाँ से तू उस स्कूल में पढ़ाने नहीं आ पाएगी।"

         "मैं ......।"

         "मिस, एक मिनट के लिए बाहर आइए।" घर के बाहर आयी हर्षित की आवाज सुनकर निहारिका अपनी बात अधूरी छोड़कर बाहर निकल गईं।

         "बेटा, मैं अभी तुमसे कोई बात नहीं कर सकती। तुम्हारी जो भी प्राॅब्लम हैं, मैं कल स्कूल जाते समय सुनूँगी।" बाहर निकलते हीं निहारिका ने जमीन पर एक पैर टिकाकर अपनी छोटी-सी साइकिल पर बैठे हर्षित से कहा।

        "अरे मिस, ......।"

        "जो बच्चे एक बार में बड़ों की बात नहीं मानते, वो मुझे बिलकुल पसंद नहीं हैं, इसलिए तुम बिना कोई आर्गुमेंट किए अपने घर वापस चले जाओं, अदरवाइज मैं कल से तुम्हें अपने साथ स्कूल ले जाना बंद कर दूँगी। डू यू अंडरस्टैंड ?"

       "यस मिस।"  हर्षित ने डरी-सहमी आवाज में जवाब दिया, जिसे सुनकर निहारिका अपने घर में वापस चली गईं।

                                      .............

        "बेटा, तुम आज मेरा वेट किए बिना हीं अकेले ही स्कूल क्यूँ आ गए ?" निहारिका ने स्कूल परिसर में खड़े हर्षित से पूछा।

       "अब मुझे मोहित तंग नहीं करता हैं, इसलिए सोचा कि अकेले ही चला जाता हूँ।" जवाब देते समय हर्षित के चेहरे पर ऐसे भाव उभरे, जैसे उसे न चाहते हुए भी बात करनी पड़ रहीं हो।

        "इसका मतलब ये हुआ कि तुम्हें मेरे साथ आना-जाना पसंद नहीं हैं, तुम सिर्फ मोहित के सताने के डर की वजह से मेरे साथ आना-जाना करते थे, हैं न ?"

       "नो मिस, ऐसी कोई बात नहीं हैं।"

       "तो फिर अब कभी मुझे छोड़कर तो स्कूल नहीं आओगे न ?"

        "नो मिस, मैं अब डेली अकेले हीं आऊँगा-जाऊँगा।"

        "बट व्हाय ?"

       "आपको मेरी वजह से धीरे-धीरे चलना पड़ता हैं और अब तो आपको वाॅकिंग करके आने-जाने जरूरत भी नहीं हैं क्योंकि कल ही आपने बताया था कि स्कूल के सारे टीचर्स के लिए बस फ्री कर दी गई हैं।"

       "हाँ, लेकिन मैंने तुम्हें ये भी बताया था कि मैं बस से अप-डाउन फ्री कर देने के बाद भी तुम्हारे साथ वाॅकिंग करके आना-जाना कन्टिन्यू रखूँगी, क्योंकि मुझे वाॅकिंग करना पसंद हैं, ये बात भूल गए क्या ?"

       "नहीं, याद हैं।"

       "तो फिर ऐसी बात क्यूँ कर रहे हो ?

       "वो मैं आपको बाद में बताऊँगा। अभी मैं विवेक के साथ खेलने जा रहा हूँ, वो मुझे काफी देर से इशारे से बुला रहा हैं।"

        "बेटा, क्यूँ झूठ बोल रहे हो ? मैं जबसे तुम्हारे साथ खड़ी हूँ तबसे उसने तुम्हारी ओर देखा भी नहीं और तुम कह रहे हो कि वो तुम्हें इशारे बुला रहा हैं। कहीं तुम मेरी कल शाम की डॉट की वजह से गुस्सा होकर तो मुझसे दूर नहीं भाग रहे हो ?"

        "नो मिस, मुझे किसी की भी कोई भी बात पर गुस्सा नहीं आता हैं।"

        "क्यूँ , आई मीन इंसान को किसी के गुस्सा आनेवाली बात कहने पर गुस्सा भी होना चाहिए, फिर तुम्हें गुस्सा आनेवाली बात पर गुस्सा क्यूँ नहीं आता हैं ?"

         "क्योंकि मम्मा कहती हैं कि हम जैसे लोगों को भगवान जी ने गुस्सा दिखाने का राइट हीं नहीं दिया हैं। मैं अब खेलने जा रहा हूँ, बाय मिस।" कहने के बाद हर्षित दौड़कर अपनी उम्र के एक छात्र के पास चला गया।

          निहारिका उसे कुछ देर तक हैरान-परेशान सी देखती रही और फिर अपनी नम हो चुकी आँखों को साफ करती हुई धीमे स्वर में बोली- "साॅरी बेटा, मुझे नहीं पता था कि तुम इतने सेंसेटिव हो, अदरवाइज अपना फ्रस्टेशन तुम पर उतारने की गलती नहीं करती, बट आई प्राॅमिश टू यू नाऊ कि मैं अब तुम्हें कभी नहीं डाॅटूँगी और न हीं तुम्हें उम्र से पहले बड़ा होने दूँगी।"

         "निहारिका, लगता हैं कि तुम्हारी खुद से बातें करने की आदत कभी नहीं छूटेगी।" वैशाली ने पीछे से पास आकर निहारिका के कंधे पर हाथ रखकर कहा।

        "जी दीदी, मुझे भी ऐसा हीं लगता हैं।"

        "अरे, तुम इतनी परेशान क्यों लग रही हो ? कहीं तुम्हें उस बिगड़े हुए लड़के के रईस और बदतमीज बाप ने परेशान तो नहीं किया ?"

       "नहीं दीदी, ऐसी कोई बात नहीं हैं।"

       "ठीक हैं, लेकिन वो तुम्हें कभी परेशान करें तो बता देना, मैं उसके घर जाकर उसका बैण्ड बजा दूँगी।"

       "थैंक्स दीदी।"

       "आओ, प्रेयर की बेल बज चुकी हैं।"

       "जी दीदी।" कहकर निहारिका, वैशाली के साथ उस ओर कदम बढ़ाने लगी, जिधर प्रेयर के लिए स्टूडेंट्स और टीचर्स जमा हो रहे थे।
                             .....................

        "रूको बेटा, मैं भी तुम्हारे साथ चल रही हूँ ।" निहारिका तेज कदमों से हर्षित का पीछा करतीं हुई बोली तो हर्षित अपनी जगह पर रूक गया, लेकिन उसने निहारिका की ओर पलटकर नहीं देखा।

        "चलो।" निहारिका ने उसके बराबरी में पहुँचने के बाद कहा तो वह चुपचाप चल पड़ा।

       "कैसा रहा आज का दिन ?" चलते-चलते निहारिका ने सवाल किया।

       "अच्छा रहा।" हर्षित ने धीमे स्वर में जवाब दिया।

        "मुझे छोड़कर क्यूँ भाग रहे थे ? कोई अपने फ्रेंड को इस तरह छोड़कर भागता हैं क्या ?"

         "नहीं।"

         "तो साॅरी बोलो।"

         "साॅरी।"

          और प्राॅमिश भी करों कि आगे से ऐसा नहीं करोगे।"

          "प्राॅमिश।"

          "गुड, अब ये बताओ कि कल शाम को मेरे घर किसलिए आए थे ?"

          "मम्मा ने हलवा भेजा था आपके लिए, वही देने आया था।"

          "लेकिन तुम्हारे पास तो कोई थैला या पाॅलिथिन वगैरह कुछ था ही नहीं।"

           "एक पाॅलिथिन थीं।"

           "लेकिन मुझे तो नजर हीं नहीं आयी।"

           "साइकिल में लगे बास्केट में थीं, इसलिए आपको नजर नहीं आयी होगी।"

           "ओह ! मेरा प्यारा बेबी मेरे लिए हलवा लेकर आया था और मैंने उसे डाॅटकर भगा दिया। मैं बहुत गंदी हूँ न ?"

           "नहीं।"

           "अच्छा ये बताओ, तुम मेरे लिए लाया हलवा वापस लेकर गए और तुम्हारी मम्मा ने पूछा कि क्यूँ वापस ले आए तो तुमने क्या रिजन बताया ?"

            "मैंने बताया कि मिस के घर पर कोई नहीं हैं।"

            "और तुमने ये झूठ तुम्हारी मम्मा की नजरों में मेरी इमेज खराब होने से बचाने के लिए बोला न ?"

            "हाँ।"

           "और तुम अपनी मम्मा की नजरों में मेरी इमेज खराब होने से क्यूँ बचाना चाहते थे ?"

            "आप अच्छी टीचर हैं इसलिए।"

            "अरे, पर कल तो मैंने बेवजह तुम्हें डाॅटा था न ?"

            "तो क्या हुआ, आपने मेरी हेल्प भी तो की थीं न।"

            "अच्छा तो मैंने तुम्हारी मोहित से पीछा छुड़ाने में हेल्प की थीं, इस वजह से तुमने से मेरे डाॅटने का बुरा नहीं माना ?"

            "हाँ।"

           "और ये बात भी तुम्हें तुम्हारी मम्मा ने सिखाई होगी कि कोई हमारी हेल्प करता हैं तो उनके डाॅटने का बुरा नहीं मानना चाहिए ?"

           "हाँ।"

           "यार, वाकई तुम्हारी मम्मा बहुत ग्रेट हैं। पर शायद वे तुम्हें ये सिखाना भूल गई कि हमारे फ्रेंड से अनजाने हुई भूल की वजह से उसके साथ ऐसा बिहेवियर नहीं करना चाहिए, जैसा तुम आज सुबह से मेरे साथ कर रहे हो।"

          "यानि ?"

          "यानि, तुम आज सुबह से मेरी तरफ न देख रहे हो, न मुस्करा रहे हो और न मेरे साथ खुलकर बातें कर रहे हो। मुझे देखकर मेरे पास आने की बजाए मुझसे दूर भागने की कोशिश कर रहे हो। बेटा, मैं मानती हूँ कि मुझसे गलती हुई हैं, पर उसके लिए तुम्हें मुझसे कम्प्लेन्ट करके मुझे मेरी गलती का अहसास दिलाना चाहिए, न कि मेरे साथ इस टाइप का बिहेवियर करके मुझे हर्ट करना चाहिए। बेटा, तुम मेरे साथ ऐसा हीं बिहेवियर कन्टिन्यू रखोगे तो मुझे लगेगा कि मैं एक बहुत बुरी पर्सन हूँ क्योंकि मेरी मम्मी तो मुझे पहले ही दुनिया की सबसे बुरी लड़की का अवार्ड दे चुकी हैं और मेरे .....।"

          "आपकी मम्मी आपको बुरी लड़की क्यों समझती हैं ?"

          "इसके इतने सारे रिजन्स हैं कि बताते-बताते सारा सफर कट जाएगा, पर बात पूरी नहीं होगी, इसलिए मैं तुम्हें सिर्फ कल शाम से आज सुबह तक मेरी मम्मी के मुझे बुरी लड़की समझने का रिजन बताती हूँ। तुम केयरफुली मेरी पूरी बात सुनो, क्योंकि लास्ट में तुम्हें ये डिसिजन देना हैं कि वाकई बुरी लड़की हूँ या नहीं, आर यू रेडी फाॅर इट ?"

           "यस मिस।"

           "तो सुनो, कुछ दिनों पहले अमित के नाम के एक लड़के के साथ मेरी शादी तय हुई थी और हम दोनों की शादी की डेढ़ माह बाद की एक डेट भी फिक्स हो चुकी थीं, बट इस बीच अमित ने मेरे सामने एक गंदे इंसान के सामने झुकने की डिमांड रख दीं और उसे पूरी न करने पर शादी कैंसिल कर देने की धमकी भी दे दीं। मैंने अपने सेल्फ-रिस्पेक्ट को प्रोटेक्ट करने के लिए उसकी ये इल्लिगल डिमांड पूरी नहीं की और उसने शादी कैंसिल कर दी। इस वजह से मेरी मम्मी मुझे बुरी लड़की समझ रही हैं। अब तुम बताओ कि क्या मैं बुरी लड़की हूँ ?"

          "पहले आप मुझे ये बताइए कि आपने अपनी मेरिज मुझसे किए प्राॅमिश की वजह से तो कैंसिल नहीं की न ?"

          "अरे नहीं बाबा, मैं तो अपनी मेरिज हो जाने के बाद भी तुमसे किए प्राॅमिश के एकार्डिंग तुम्हें कम्पनी देना कन्टिन्यू रख सकती हूँ तो फिर मैं तुमसे किए गए प्राॅमिश की वजह से अपनी मेरिज क्यूँ कैंसिल करूँगी ?"

          "आप अपनी मेरिज के बाद भी मुझे कम्पनी देना कन्टिन्यू रखेगी तो जो कोई भी आपके हसबैंड बनेंगे, उन्हें बुरा नहीं लगेगा ?"

           "किसलिए बुरा लगेगा ?"

           "आपका सारा टाइम उन्हें न देकर कुछ टाइम मुझे कम्पनी देने में खर्च करने के लिए ?"

            "ओ गाॅड, इस आठ साल के लड़के में कितनी समझ हैं ?"

             "मिस, आपने मुझसे कुछ कहा ?"

             "नहीं, मैं खुद से बात कर रही थीं।"

            "ये तो बहुत बुरी बात हैं।"

            "क्यूँ बुरी बात हैं, तुम भी तो खुद से बातें करते हो न ?"

          "हाँ, लेकिन मैं तभी खुद से बातें करता हूँ जब मेरे साथ बात करने वाला कोई नहीं होता हैं, बट आप तो मुझसे बातें करना ब्रेक करके खुद से बात करने लग गई।"

         "साॅरी बेटा, मैं तुम्हारे जितनी समझदार नहीं हूँ न और मेरे पास तुम्हारी जैसी हर सिच्युएशन को समझदारी से हैंडल करने का लेशन पढ़ाने वाली स्मार्ट मम्मा भी नहीं हैं, इसलिए मुझसे इस टाइप की मिस्टेक हो जाती हैं। लिव दिस अननेसेसरी आर्गुमेंट नाऊ एंड लैट्स कम टू द ओरिजनल टाॅपिक।"

          "ये आप मुझसे क्यों कह रही हैं ? खुद से कहिए न, क्योंकि अभी आन्सर देने की टर्न तो आपकी हैं।"

          "यू आर राइट, बट अब मैं खुद से कुछ कहकर तुम्हारे लैक्चर्स सुनने के मूड में बिलकुल नहीं हूँ इसलिए तुम्ही से बात करूँगी और मैं बात स्टार्ट कर रही हूँ तुम्हारे कोश्चन से। तुम्हारा कोश्चन ये था कि मैं अपना सारा टाइम अपने होनेवाले हसबैंड को न देकर कुछ टाइम तुम्हें कम्पनी देने में खर्च करूँगी तो मेरे होनेवाले हसबैंड को बुरा तो नहीं लगेगा, एम आई राइट ?"

         "यस मिस।"

         "और इसका आंसर ये हैं कि मैं ऐसे खड़ूस इंसान को अपना हसबैंड बनाऊँगी हीं क्यूँ जो मेरे फ्रेंड को कम्पनी देने की बात का बुरा मानेगा ?"

          "लेकिन किसे अपना हसबैंड बनाना हैं, ये डिसाइड करने का राइट तो आपके पास हैं हीं नहीं।"

           "तुम्हारी सारी बातें मुझे सेंसिबल लगती हैं, लेकिन ये बात बिलकुल नानसेंस लगीं। अरे बाबा, किसे अपना हसबैंड बनाना हैं, ये डिसाइड करने का राइट मुझे क्यूँ नहीं हैं ? मुझे जिस इंसान के साथ पूरी लाइफ गुजारनी हैं, उसे चूस नहीं करने का राइट मेरे पास नहीं होगा तो क्या मेरे पड़ोसी के पास होगा ?"

          "ये राइट न आपके पास हैं और न आपके पड़ोसी के पास हैं, ये राइट तो भगवान जी के पास हैं। उन्होंने जिस इंसान का नाम का आपका हसबैंड बनने के लिए डिसाइड किया होगा, वही आपका हसबैंड बनेगा।"

          "अच्छा तो ये बात भी तुम्हें पता हैं, क्या तुम्हें ये बात भी अपनी मम्मा से पता चली ?"

         "हाँ, ये बात उन्होंने मुझे डायरेक्ट नहीं बताई। वे एक दिन भगवान जी कह रहीं थीं तो मैंने सुन लीं।"

         "अच्छा, वैसे वे एग्जेक्ट कह क्या रही थीं ?"

         "यही कि हे भगवान, आपको मेरी किस्मत में इसी आदमी का नाम लिखना था, इसे मेरा पति बनाने से तो अच्छा होता कि आप मुझे जीवन भर कुँवारी हीं रहने देते।"

         "और उनकी ये बात सुनकर तुमने अनुमान लगा लिया कि किसे किसका हसबैंड बनना हैं, ये भगवान जी डिसाइड करते हैं ?"

          "हाँ।"

          "गुड यार, मैं तुम्हारे इस जबर्दस्त कैचिंग और गैसिंग पावर्स की तो आज वाकई फैन बन गई हूँ। तुम्हारी इन पावर्स की वजह से मेरी डेढ़-दो साल पुरानी उलझन दूर हो गई, अदरवाइज मैं पता नहीं कब तक इस उलझन में उलझी रहती कि मेरे लिए आए रिश्ते परफेक्ट न होने की वजह से उन्हें ठुकराकर मैंने कोई गलती तो नहीं कर दीं ? जब ऊपरवाले को ही डिसाइड करना हैं कि कौन मेरा लाइफ-पार्टनर बनेगा तो मैं इसके बारे में सोचकर क्यूँ अपना दिमाग खराब करूँ ? निहारिका, तू आज से इस मैटर पर सोचना बिलकुल बंद कर दे। जो तेरी किस्मत में होगा, सही समय आने पर अपने आप तुझे मिल जाएगा। पर यार, तू अपनी मम्मी और उसकी हाँ में हाँ मिलानेवाली रजनी आंटी का क्या करेगी ? वे दोनों तो तब तक तेरा पीछा नहीं छोड़ेगी, जब तक तूने जिन लड़कों के रिश्ते रिजेक्ट किए हैं, उनसे बेहतर लड़के के साथ तेरा रिश्ता तय नहीं हो जाता। एक काम करतीं हूँ, इन दोनों से बचने के लिए सुलेखा भाभी के साथ ट्यूशन पढ़ाना शुरू कर देती हूँ। घर में ज्यादा समय तक रहूँगी हीं नहीं तो इन लोगों को मुझ पर तंज कसने का मौका हीं नहीं मिलेगा। सुलेखा भाभी को भी बच्चे ज्यादा हो जाने की वजह से उनकी हेल्प के लिए एक टीचर की जरूरत हैं, उन्होंने पंद्रह-बीस पहले उनकी क्लासेस ज्वाइन करने के लिए मुझे कहा था, पर क्या पता इतने दिनों में मेरे कोई जवाब देने की वजह से उन्होंने दूसरा आॅप्सन खोज लिया हो ? इस लड़के को इसके बारे में पता होगा, इसी से पूछ लेती हूँ। हर्षित, तुम्हारी मम्मा की ट्यूशन क्लासेस में उनके अलावा कोई और टीचर भी पढ़ाने आ रही हैं क्या ?"

          "नो मिस।"

          "थैंक्स गाॅड।"

           "आप भगवान जी को मेरी मम्मा को हेल्प को लिए कोई टीचर नहीं मिली, इसलिए थैंक्स बोल रही हैं ?"

          "नहीं बाबा, उन्होंने मेरे लिए तुम्हारी मम्मा की क्लासेस में जगह सेफ रखी हैं इसलिए उन्हें थैंक्स बोल रही हूँ।"

          "यानि, आप मेरी मम्मा की हेल्प करने वाली हैं ?"

           "हाँ।"

           "तब तो मुझे पीपलवाले मंदिर के भगवान जी को कल ही एक नारियल गिफ्ट करना पड़ेगा।"

            "क्यूँ ?"

            "मैंने उनसे ये विश मांगी थीं न कि मेरी मम्मा को हेल्प के लिए टीचर मिल जाएगी तो मैं उन्हें एक नारियल गिफ्ट करूँगा।"

            "ऐसा हैं तो तुम उन्हें आज ही नारियल गिफ्ट कर दो।"

            "बट आज तो मैं नारियल के लिए पैसे लेकर नहीं आया।"

            "तो मैं दे देती हूँ।"

             "पर विश तो मेरी पूरी हुई हैं तो आप अपने पैसे क्यों खर्च कर रही हैं ?"

             "क्योंकि मैं तुम्हारी टीचर के साथ-साथ तुम्हारी बुआ भी हूँ और इस वजह से तुम्हें जरूरत पड़ने पर पैसे देना मेरी ड्यूटी हैं।"

             "आप मेरी बुआ हैं तो हम लोगों के साथ क्यों नहीं रहती ?"

             "जरूरी नहीं हैं कि हमारी बुआ हमारे साथ हीं रहे ?"

             "पर मेरे घर के आसपास रहने वाले चेतन की भी बुआ और नेहा की भी बुआ तो उन्हीं के साथ रहती हैं।"

              "हाँ, पर तुम्हारे घर के सामनेवाले अंकित की बुआ तो उसकी फेमिली के साथ नही रहती ?"

              "वो तो उनकी शादी हो चुकी हैं इसलिए नहीं रह रही हैं, लेकिन आपकी तो शादी भी नहीं हुई, फिर भी आप हमारे साथ क्यों नहीं रहती हैं ?"

             "तुम्हारे इस कोश्चन का आन्सर मैं कल दूँगी, अभी तुम ये पैसे लो और साइडवाली शाॅप से नारियल लेकर आओ। और सुनो, थोड़ी फुर्ती दिखाओ, हम लोग स्लो चलने की वजह से वैसे हीं काफी लेट हो चुके हैं। हम घर पहुँचने में ज्यादा लेट हुए तो तुम्हें तो तुम्हारी मम्मा कुछ नहीं कहेगी, बट मेरी मम्मी सवालों की झड़ी लगा देगी। डू यू अंडरस्टैंड ?"

             "यस मिस।" कहकर हर्षित दौड़ता हुआ सड़क के किनारे मौजूद एक दुकान पर चला गया।
                           ...................

        पिंक कलर के घर के आँगन में खड़े कुत्ते को घर से निकली एक महिला ने गंदी-गंदी गालियाँ देते हुए डंडे से पीटा तो वह भागकर रोड के दूसरी तरफ एक नीम के पेड़ के नीचे बैठे भिखारी के पास पहुँच गया।

        "भाई, तुझे मैंने कितनी बार समझाया कि थोड़ा सब्र रखा कर, लेकिन तू रोज उस घर के आँगन में रोटी मिलने की आशा से घुस जाता हैं और रोज उस घर की निर्दयी महिला की गाली और मार खाता हैं। न तू उस घर में आँगन में जाना बंद कर रहा हैं और न वो महिला तुझे पिटाई करने की आदत छोड़ रही हैं। कभी-कभी तो मुझे लगता हैं कि तू उस घर से रोटी के लिए नहीं बल्कि उस घर की बड़ी बहू के हाथ से डंडे खाने हीं जाता हैं, क्योंकि तुझे अच्छी तरह से मालूम हैं कि उस कंकालन के रहते उस घर से कुछ भी मिल पाना नामुमकिन हैं। ये मालूम हैं न तुझे ?" भिखारी ने कुत्ते की बेवकूफी पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए उससे सवाल किया, जो शायद कुत्ते को समझ में आ गया और उसने 'हाँ' कहने के अंदाज में सिर भी हिलाया।
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RE: चक्रव्यहू by Jayprakash Pawar 'The Stranger' - by pastispresent - 05-03-2019, 08:22 PM



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