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Thriller कामुक अर्धांगनी
#23
वसंत धीमी कदमो से किचन मे दाखिल हुआ और मधु की खिलखिलाने की आवाज़ें मेरे कानों मे आई और थोड़ी ही इंतज़ार के बाद मधु हाथों मैं चाय की ट्रे लिए आती नज़र आई और पीछे पीछे वसंत कुछ लिए चला जा रहा था ।

मधु ट्रे टेबल पे रख कर वसंत के हाथों से गर्म गर्म पकोड़े की प्लेट लेते बोली आओ बैठो ,बड़ी देर कर दी आने मे, लगता है भाभी को तड़पने मे मज़ा आता हैं तुमको ,वसंत मधु के बग़ल मे बैठ कर बोला ऐसा नहीं है भाभी जी वो दुकान बढ़ा के आया सोचा कोई बेहद ज़रूरी काम से आप बुलाई है इसलिए थोड़ी देर हो गई।

मैं दोनों को टकटकी लगाए देखता पकोड़े का आनंद ले रहा था वसंत खुल के मेरे सामने सामान्य बातें मधु से करता जा रहा था मानो अब उसे मेरे घर पे होने से कोई परेशानी न हो और दोनों पकोड़े खाते हँसते एक दूसरे को आंखों ही आंखों मे मसल रहे हो ,ये दृश्य मेरे लड़ के लिए घातक था क्योंकि न जाने मेरे मन मे ये विचार आने लगा कि दोनों यही मेरे सामने लिपट के कही चुम्बन ना शुरू कर दे ,मेरे मन मस्तिष्क मे बस दोनों के शारीरिक मिलन का बवंडर उमड़ चुका था ,यू तोह दोनो के बीच एक हाथ की दूरी थी लेकिन वसंत की निगाहें मधु के प्रदशित चुचियो के उभार पे टिकी थी जो हल्के पसिने के बूंदों से बेहद कामुक्ता बरसा रही थी ,मधु ने साड़ी के पल्लू को यू डाला था कि उसके चुचियो की गहराई साफ साफ दिख सके और वसंत एक पेशेवर दर्ज़ी था जिससे वो ये तोह जान ही चुका था कि इस ब्लाउज के नीचे ब्रा की परत नहीं है बल्कि मांश का वो गोला है जिसे वो आज दोपहर ही अपने हाथों से सहलाया है ।

मधु शाम से ही कामुकता की आग के ताप से जल कर निखरने लगी थी और मधु ने बोला पकोड़े अच्छे नहीं बने क्या देवर जी वसंत झेप सा गया क्योंकि वो तोह मधु की बड़ी बड़ी चुचियो मे खोया हुआ था ,वो खुद को वास्तविक समय मे सम्हालते बोला जी बहुत टेस्टी है और मधु खिलखिलाती बोली और खाओ और उसने अपने हाथों को उठा कर अपने कांख को दिखाया जिसे देख वसंत का मुंह खुला का खुला रह गया ,मधु अपने हिसाब से वसंत को पूर्ण पागल  करने का मन पहले ही बना बैठी थी । उसके काँख मे एक गज़ब सी चमक थी ,एक दम चिकनी और पसिने से लबरेज़ ,वसंत तोह यू देख रहा था जैसे पकोड़े की जगह उसके जीभ को मधु की काँख चाटनी हो ।


वसंत ने झट से अपने पैरों को एक दूसरे पे रखा जिससे मे समझ गया कि उसका लड़ तमतमा सा गया है ,मधु भी समझ गई कि वो अपने लड़ के कड़क को छुपाने की कोशिस कर रहा हैं ।

मधु एक पकोड़े को दांतों से काटी और संयोग बस एक छोटा टुकड़ा मधु के गदरायी चुचियो पे गिर गया ,मधु ने जान बूझ कर इसको नज़र अंदाज करते हुए पकोड़े का आनंद लेती हुई बोली और दुकान कैसी चल रही है ,वसंत की हालत पस्त सी हो चुकी थी ऐसा मालूम हो रहा था कि अगर मे सामने न होता तोह शायद वो अभी मधु को पटक के उसके बदन पे लेट के उसके चुत को गप्प गप्प पेल रहा होता ,वो बोला बस भाभी अच्छा चल रहा हैं।


मधु ने उसके झागों पे हाथ रखते बोली बस यहीं भगवान से प्रार्थना है कि तुम खूब कमाओ और झट से हाथ हटा ली ,वो कुछ सेकंड का स्पर्श वसंत को कामुक्ता के दरिया मैं डुबाने के लिए काफी था और उसकी हालत और खराब लगने लगी ।


मधु तिरछी नज़र से उसके टांगो को देखती बोली चाय लो आराम से बैठो न और मुझे कप हाथ मे देती बोली सुनिए जी आर्डर का क्या हुआ आया नहीं मे बोला और आधे घंटे मे आएगा वो वसंत की और मुड़ के एक हाथ को सोफे पे मोड़ के अपने चेहरे को उसकी और करती टांगो को ऊपर चढ़ा के बैठ गई और अपनी गहरी सुराख वाली नाभी को वसंत के लिए प्रदशित करती इठला के बोली क्या हुआ देवर जी ।


वसंत बिन पानी मछली की तरह तड़पता चाय उठा कर बोला बस भाभी पकोड़े का आनंद ले रहा हु और मधु अपने हाथ से पेट के ऊपर से साड़ी सरकाती उसको उकसाती बोली आनंद का भाव कहा है चेहरे पे तुम्हारे ।

मैं बोला मधु लगता है वसंत किसी ख्याल मे डूबा हुआ है ,मधु बोली हा एक जवान मर्द है मेरा देवर ज़रूर किसी देवरानी की याद सता रही होगी वैसे भी अक्सर कुँवारे लड़के शाम के नो बजे फोन लगा के दिल लगी करते है ।

वसंत बोला नही भैया ऐसी बात नहीं है देखिये मैं फ़ोन भी साथ नहीं रखता और मधु बोली ओह कही फोन आ न जाये इशलिये घर पे छोड़ आये हो ,मधु मज़े लेती उसके जज्बातो से यू खेल रही थी वो बेसब्र हो जाये और वो मधु को उसके पति के सामने दबोच ले ।

वसंत बोला भाभी आपसे क्या छुपाना आप तोह मेरी बेहद करिब है ,मधु होटो को दबाती बोली अगर करिब होती तोह इतनी दूर कैसे बैठे हो भाभी से ।
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RE: कामुक अर्धांगनी - by kaushik02493 - 06-08-2020, 01:36 PM
RE: कामुक अर्धांगनी - by Bhavana_sonii - 24-11-2020, 11:46 PM



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