06-08-2020, 12:15 PM
इब्ने सफी 1952 में पाकिस्तान चले गये थे लेकिन वे 1947 में पाकिस्तान न जाकर पांच साल बाद क्यूं गए, इसबारे में कोई ठोस जानकारी कहीं नहीं मिलती. हालांकि वे वहां जाकर भी भारतीयों के तकियों ने नीचे पाए जाते रहे. उनके उपन्यासों में जोड़ीदार जासूस (एक मुख्य जासूस और दूसरा उसका सहायक) जैसे फरीदी और हमीद या कासिम और इमरान जैसे किरदार थे और माना जाता है कि साहित्य में जोड़ीदार किरदार की यह परंपरा उन्होंने ही शुरू की थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
