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जिनके उपन्यास पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी ब्लैक में बिका करते थे
#8
इब्ने सफी का रचनाकाल 1952 से 1980 का वह समय था जो हमारे देश या फिर पाकिस्तान के लिए भी सामाजिक-राजनैतिक दृष्टियों से बड़ा ही उथल-पुथल का समय था. विभाजन की त्रासदी से दोनों तरफ के समाज प्रभावित हुए थे. भारी उम्मीदों के साथ सरकारें बनीं और वे नाकामयाब होते हुए भी दिख रही थीं. सफी भारत में पैदा हुए थे लेकिन अब पाकिस्तान में रह रहे थे. और जैसा कि उनका मकसद था- अपने लेखन की लोकप्रियता बरकरार रखना, इसके लिए वे अपनी कहानियों को किसी सरहद से बांटना नहीं चाहते थे. उनके उपन्यासों में वर्णित तमाम जगहों के नाम काल्पनिक थे और इसलिए वे किसी एक देश की संपत्ति नहीं हुए. उनके पात्र जब एक देश से दूसरे देश जाते तो उसकी मिट्टी में रंग जाते. जैसे उनकी कहानियां जब भारत में प्रकाशित होतीं तो जासूस इमरान जासूस विनोद बन जाता और दूसरे जरूरी पात्रों का भी ऐसे ही धर्मांतरण हो जाता था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: जिनके उपन्यास पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी ब्लैक में बिका करते थे - by neerathemall - 06-08-2020, 12:14 PM



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