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जिनके उपन्यास पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी ब्लैक में बिका करते थे
#7
उनका पहला उपन्यास ‘दिलेर मुजरिम’ 1952 में आया था और कहते हैं कि इस पहले उपन्यास के साथ ही उन्होंने तमाम आम-ओ-खास पाठकों को अपनी लेखनी का कायल बना लिया था. इसके बाद फिर उनके उपन्यासों का जो सिलसिला शुरू हुआ तो आगे कई सालों तक उनका हर उपन्यास पिछले से ज्यादा बिका. इब्ने सफी अकेले लेखक रहे जिसने उस दौर में लोकप्रियता के मामले में चंद्रकांता संतति से होड़ ली थी और जो गोपाल राम गहमरी की जासूसी उपन्यासों की परंपरा को बड़ी शानो-शौकत से आगे बढ़ा रहा था.

इब्ने सफी से पहले जासूसी साहित्य के नाम पर जो कुछ भी चलता आया था उसका कुल जमा सिर्फ और सिर्फ मनोरंजन था. वह चाहे चन्द्रकान्ता संतति हो या फिर गहमरी जी के उपन्यास, उनमें कोई बड़े उद्देश्य नहीं छिपे थे. लेकिन इब्ने सफी के लेखन में यह बात खूब दिखती थी. देशप्रेम और काले कारनामों की हार को दिखाना उनके जासूसी उपन्यासों का एक अहम मकसद रहा. इसके अलावा दूसरे लोकप्रिय और ठेठ देसी उपन्यासों से इतर सफी के उपन्यास कहानी के कसे हुए प्लॉट, मनोविज्ञान की गहरी पकड़ और भाषाई रवानगी के मामलों में कहीं बेहतर थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: जिनके उपन्यास पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी ब्लैक में बिका करते थे - by neerathemall - 06-08-2020, 12:14 PM



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