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जिनके उपन्यास पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी ब्लैक में बिका करते थे
#6
यह बड़ी दिलचस्प बात है कि इब्ने सफी का झुकाव जब लेखन की तरफ हुआ तो वे जासूसी कथा लेखक नहीं बनना चाहते थे. वे कविताएं और गजल लिखा करते थे और बतौर शायर पहचान बनाना चाहते थे. जासूसी लेखन की शुरुआत उनके लिए बड़े अजब ढंग से हुई. बकौल सफी एकबार उन्होंने अपने एक दोस्त से कहा कि बिना सेक्स को विषय बनाए भी ऐसी किताबें लिखी जा सकती हैं जो लाखों की संख्या में बिकें. इस दोस्त ने बातों ही बातों में सफी को चुनौती दे दी कि यदि ऐसा है तो वे ही कुछ ऐसी किताब लिखकर बताएं. इब्ने सफी ने इस चुनौती को दिल से स्वीकारा और बनी-बनाई शायर वाली पहचान किनारे रखते हुए जासूसी उपन्यासों की दुनिया में चले आए. इब्ने सफी की आज तक जारी लोकप्रियता बताती है कि उन्होंने इस चुनौती को किस गंभीरता से लिया था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: जिनके उपन्यास पाकिस्तान में ही नहीं भारत में भी ब्लैक में बिका करते थे - by neerathemall - 06-08-2020, 12:14 PM



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