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Thriller कामुक अर्धांगनी
#21
मधु अराम से अपने टांगो को मेरी झागों पे रखी मोबाइल देखती रही और मैं चाय चुस्की लेता पिता रहा और बोला तुम तोह वसंत को बोली अकेली हो पर वो मुझे देख के कही ठंडा पड़ गया तोह क्या करोगी ।

मधु बोली ऐसा नहीं है की वो आये और मैं जिस्म परोस दूँगी अगर उसे मधु को मसलना है तोह आपके सामने हिमत दिखानी पड़ेगी तभी तोह मज़ा आएगा वरना क्या फायदा ।

आप टेंशन मत लिजेए बस आप देखते जाईये क्या क्या होता है ।

घड़ी मे ठीक आठ बज कर तीस मिनट हुई और दरवाज़े पे दस्तक पड़ी मधु झट से अपने पाव को जमीन पे रखते बोली लिजेए आ गया वो जाईये स्वागत किजेए ।

मधु कमर मटकाती कप को लेती हुई मुस्कुराती किचन मे चली गई और मै एक अजीब कसमकश दिल मे दबाये दरवाज़े की और बढ़ा और दरवाज़े को खोला , एक सावला लंबा चौड़ा मर्द मेरी आँखों के सामने था , मुझे देख कर उसकी वो मुश्कान खो गयी जो उसके चेहरे पे मैंने थोड़ी देर पहले देखी थी और वो पसोपेश भरी मुद्रा मे दबी आवाज़ से घबराहट से लबरेज पूछा जी मधु भाभी ने बुलाया है ।

मैं हँसते हुए बोला ओह क्या तुम वसंत हो ,वो मुस्कुराते बोला जी ,मैंने बोला आओ बड़ी देर कर दी आने मे और वो घर के अंदर दाखिल हुआ और मैंने दरवाज़े को बंद करते हुए बोला ,आओ बैठो मधु आती होगी ।

मैं उसके सामने वाली सोफे पे बैठ गया और आवाज़ लगाई सुनती हो मधु ,वसंत आया है ।

वो किचन से आवाज़ लगाती बोली जी आती हू ।

वसंत की कद काठी काफी मर्दाना सी थी उसकी छाती चौड़ी बाजू तगड़े और शर्ट के दो बटन खुले हुई जिससे उसके सीने के घने घुघरेले बाल साफ दिखाई दे रहे थे ,उसका चेहरा भले ही सावला था लेकिन चेहरे की बनावट आकर्षक थी और उसके घने मुछे थी और गले मे एक हरे रंग की ताबीज़ सिल्वर की चैन से लटकी हुई साफ दिखाई दे रही थी । उसने शर्ट के बाजू को फोल्ड कर के ऊपर की और उठा रखा था और बालों को वेवस्तित ढंग से झाड़ रखा था ,देख के मालूम हुआ कि वो मधु से मिलने नाहा के घर से आया हो मानो वो आज मधु को हासिल कर के अपनी जिस्म से रौंद देगा ।

उसने आँख चुरा कर मुझे देखा और पसोपेश मे बोला आप कब आये भाईसाहब, मैं मंद मुस्कान लिए बोला एक हफ्ते से यहीं हु थोड़ी तबियत खराब सी लग रही थी तोह छुट्टी ले कर घर पे आराम फरमा रहा हु ।

वो दुविधा मे डूबता चला जा रहा था कि क्या बोलू उसने तोह मन ही मन ये सोच लिया था कि मधु अकेली होगी और वो दुकान मे अपने द्वारा किये गये मसलन को आगे बढ़ा के चर्मसुख की आंनद लेगा लेकिन मुझे देख के उसके मंसूबों पे मानो किसी ने आग लगा दी हो ।

मैं उसके इस मनोदशा को देख के काफी रोमांचित हुआ जा रहा था क्योंकि मुझे पता था मधु अपनी अदाओं से इसकी हालात और खराब करेगी और जो असीम दृश्य आने को है वो देख के मैं पुनः झड़ जाऊंगा ।

एक एक सेकंड वसंत को भारी लग रहा था और वो कमरे की दीवारों को घूरता पैरों को हिलाता जैसे तैसे वहा बैठा रहा मानो गले मे ऐसी हड्डी फ़स गई जो निगल न सके न ही उगल सके ।

अभी उसके आये पांच मिनट ही बीता था और दोनों की खामोशी से ऐसा प्रतीत होने लगा कि सदिया बीत गयी हो ,मैं सब्र करने का आदि हु क्योंकि मुझे हमेशा से यही लगता है कि सब्र हर घड़ी एक मनोरम और मनमोहक परिणाम प्रस्तुत करता है जिसके आने के बाद दिल गदगद हो के झूमने लगता है ।

वसंत से मैंने ही पुछा दुकान कैसी चल रही है , वो एक मुस्कान लिए बोला जी अल्लाह की मेहर से पेट पाल लेता हूँ।

दोनों एक साथ हँसते हुए हल्के हल्के बातों मै उलझने लगे और उसने बताया घर मे उसके अम्मी अबु चार बडी बहने और चार भाई है इसमें वो सबसे छोटा है और कुँवारा है ।

बाकी लोग सब पास के गांव मे रहते है और खेती बाड़ी का कार्य करते है और वो बचपन से ही अपने चाचा के साथ रह कर दर्ज़ी का काम सिख के आज खुद की दुकान चला रहा है ।
वो मोहल्ले मे ही एक चाचा के मकान मे किराये पर रहता है ।उससे खुल के बातें होने लगी थी और अब वो अपनापन सा महसूस करने लगा था उसके हिलते टांग अब श्थिर हो चुके थे और वो आँखे मिला के आराम से एक सामान्य आदमी सा बेहवाहर करने लगा ।

सच कहूँ तोह मुझे उसका बेवहार अच्छा लगा ,उसके बातों पे न घमंड न ही अकड़ थी एकदम साफ सुथरी मनमोहक व्यक्तित मालूम पड़ा ।

दोनों घुल मिल से गये और वो मुझे भाईसाहब कह के संबोधित करते बताने लगा कि भाभी जी उसके दुकान की सबसे पुरानी ग्राहक है और पिछले कई बरसों से वो मधु की ब्लाउज पेटीकोट पिको फॉल इत्यादि के काम करता आ रहा था ।


मैंने बेबाकी से बोला हा अक्सर मधु तुम्हारी बातें करती है ,वो मुस्कुराते बोला भाभी जी बहुत अच्छी है जब भी मिलती है मेरा दिन बन जाता है,वो हमेशा हस्ती मुस्कुराती बातें करती है ।

वसंत की बातों से मालूम हुआ वो मधु पे अच्छे से लटू है और न जाने कब से उसकी चुदाई के सपने सजाएं बैठा हैं ।

मैंने बोला हा ये तोह है मेरी मधु एक सुसील और ज़िंदा दिल औरत है और वो मिलनसार हैं ,वसंत बीच मे बोलने लगा जी भाईसाहब भाभी जी एक देवी की तरह है और मुझे देवर जैसा प्यार करती है और हमेशा हाल चाल पूछती रहती हैं।
मैं बोला वसंत न जाने मधु क्या करने लगी जाओ सामने किचन है देख आओ तोह ।

वसंत हल्की सरारती मुश्कान लिए बोला जी भाईसाहब और उठ के किचन की और बढ़ने लगा और आवाज़ लगाई मधु भाभी जी क्या आप यहां है मधु थोड़े ऊँचे स्वर में बोली हा वसंत यही हु आओ ।
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RE: कामुक अर्धांगनी - by kaushik02493 - 06-08-2020, 12:02 AM
RE: कामुक अर्धांगनी - by Bhavana_sonii - 24-11-2020, 11:46 PM



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