05-08-2020, 02:48 PM
(This post was last modified: 04-01-2022, 12:09 PM by neerathemall. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
मैंने तो सोच रखा था की इन पूरे पन्द्रह दिनों तमें मै अपनी बहन के साथ इतनी मस्ती करूँगा की ये पंद्रह दिन हमारे आने वल्र पंद्रह सालों के लिए यादगार दिन रहें | इन पंद्रह दिनों को मै अपनी बहन के साथ हनीमून की तरह मानाने की सोच रहा था |
ऐसा नहीं की ये सपने सिर्फ मेरे ही थे या मम्मी के जाने से केवल मै ही उत्साहित था, मेरी बहन अमृता का भी कुछ ऐसा ही हाल था |वो भी मम्मी के जान से उतनी ही उत्साहित थी, जितना कि मै था |
आखिर वो दिन आ ही गया जब मम्मी ने पापा के पास जाना था | हम दोनों भाई बहन मम्मी को छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन गए थे |उस समय मेरे पास मारुती १००० कार हुआ करती थी | हम दोनों ने मम्मी को इलाहबाद की ट्रेन पकड़वाई और उसके बाद हम दोनों घर के लिए वापिस चल पड़े |
अभी हम दोनों थोड़ी ही दूर चले थे की मेरे दिल में बहुत तरह की उमंगें और शरारते उठने लगीं | इसलिए मैंने शरारत में आ कर चलती कार में ही अपना बायाँ (लेफ्ट हैण्ड ) हाथ अपनी बगल में बैठी बहन की जांघ पर रख दिया |मेरी शरारत से मेरी बहन शरमा गयी और हलके हलके मुस्कुराने लगी |मुझे उसकी मुस्कान से हिम्मत मिली और मैंने उसकी जांघ को सहलाने लगा |अभी मैंने अमृता की जांघ थोड़ी सी ही सहलाई थी कि उसने मेरा हाथ पकड़ कर रोकना चाहा और बोली-
अमृता- क्या कर रहे हो भईया, कोई देख लेगा |
मै- देखेगा कैसे? शीशे तो काले है..........कुछ नहीं दिखेगा | (उस समय दिल्ली में कार के काले शीशों को लेकर बहुत जयादा सख्ती नहीं थी) |
अमृता- मत करो न भईया, मुझे शरम आती है |अब घर ही तो जा रहे है, घर जा कर कर लेना जो करना हो............मै रोकूंगी थोड़े ही |
मै- तू कबसे मुझसे शरमाने लगी? और रही बात घर जा कर करने की तो, घर जा कर मै तेरी जांघ थोड़े ही न सह्लाऊंगा ? घर जा कर तो मै तुझे सह्लऊंगा (मैंने मुस्कुराते हुए कहा )|
मेरी बात सुनकर अमृता एक बार फिर से शरमा गयी और चुप-चाप बैठ गयी और मै उसकी जांघ सहलाने लगा |
अमृता कि जांघ सहलाते सहलाते मेरे दिल के अंदर शरारते बढती जा रही थी और मेरी हिम्मत भी |अब मैंने उसकी स्कर्ट उठा कर उसकी जांघ सहलानी शुरू कर दी थी और उसकी नंगी जांघ पर हाथ जाते ही मेरा लंड भी बेकाबू होता जा रहा था | उधर अमृता मेरी इस हरकत से परेशान होने लगी थी |उसे डर लग रहा था कि कही किसी ने देख लिया तो क्या होगा? मगर मुझे मजा आ रहा था और मेरे अंदर शरारत करने कि उमंग बढती जा रही थी | अमृता बार बार मेरा हाथ पकड़ कर रोकती और मै बार बार जबरदस्ती उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर दुबारा उसकी नंगी जांघ पे रख कर सहलाने लगता |यूँ तो इन दो सालों में मैने ना जाने कितनी बार अमृता को नंगा देखा भी था और किया भी था मगर उस दिन चलती कार में सिर्फ उसकी नंगी जांघ को देख कर जो मस्ती चढ़ रही थी उसका कोई जवाब नहीं था और शायद इसकी वजह उसकी जांघ नहीं थी, बल्कि एक विचार था - मेरा लंड ये सोच-सोच कर मचल रहा था कि मै दिन-दहाड़े, चलती कार में- बीच सड़क पर अपनी बहन की नंगी जांघ सहला रहा हूँ | मेरे लंड को बेकाबू करने के लिए सिर्फ ये विचार ही बहुत था |
अंत में आकर अमृता को समझ में आ गया कि वो जितना मुझे रोकना चाहेगी मै उतना ही जिद्दी होता जाऊँगा और उतनी ही जबरदस्ती से उसकी जांघ सह्लाऊंगा | इसलिए अमृता ने खुद को पूरी तरह से मेरे हवाले कर दिया और मै उसकी जांघ को सहलाने लगा |अब अमृता अपनी आँखे बंद करके आराम से बैठ गयी और खुद भी मेरे सहलाने का मजा लेने लगी |
मै भी बेकाबू होता जा रहा था, इसलिए मैंने अपना हाथ अब धीरे धीरे उसकी जांघ से ऊपर करते हुए उसकी चूत की तरफ बढ़ा दिए और उसकी पेंटी के ऊपर से ही उसकी चूत सहलाने लगा (साथ साथ कार चलता रहा )| अब अमृता भी गरम हो चुकी थी अब उसका स्वर , गुस्से से बदलकर शिकायत वाले सुर में आ गया था-
अमृता- भईया क्या कर रहे हो? मान जाओ न प्लीज |
मै - क्या कर रहा हूँ? अपनी बहन को प्यार कर रहा हूँ और क्या कर रहा हूँ?
अमृता- ऐसे प्यार करते है क्या बहन को?
मै- (शरारत से मुस्कुराते हुए ) तो कैसे प्यार करते है अपनी बहन को?
अमृता- घर जा कर आराम से करते है, ऐसे सड़क पर नहीं |
मै- घर जा कर भी करूँगा मगर जिसकी बहन तेरे जैसी प्यारी हो, वो बेचारा घर पहुँचने तक का इन्त्जार कैसे करे ?
अमृता- भईया, आप ना बहुत शरारती होते जा रहे हो दिन-ब-दिन |पता नहीं कहाँ-कहाँ से सीखते हो ये सब?
मै- तुझे देख कर खुद-बी-खुद आ जाता है सब कुछ |
ये सब बातें करते करते मैंने उसकी चूत में बहुत अंदर तक ऊँगली दाल दी थी और उसने जोर से सिसकी लेते हुए मुझे एक गन्दी से गाली दी |
मै- क्या हुआ?
ऐसा नहीं की ये सपने सिर्फ मेरे ही थे या मम्मी के जाने से केवल मै ही उत्साहित था, मेरी बहन अमृता का भी कुछ ऐसा ही हाल था |वो भी मम्मी के जान से उतनी ही उत्साहित थी, जितना कि मै था |
आखिर वो दिन आ ही गया जब मम्मी ने पापा के पास जाना था | हम दोनों भाई बहन मम्मी को छोड़ने के लिए रेलवे स्टेशन गए थे |उस समय मेरे पास मारुती १००० कार हुआ करती थी | हम दोनों ने मम्मी को इलाहबाद की ट्रेन पकड़वाई और उसके बाद हम दोनों घर के लिए वापिस चल पड़े |
अभी हम दोनों थोड़ी ही दूर चले थे की मेरे दिल में बहुत तरह की उमंगें और शरारते उठने लगीं | इसलिए मैंने शरारत में आ कर चलती कार में ही अपना बायाँ (लेफ्ट हैण्ड ) हाथ अपनी बगल में बैठी बहन की जांघ पर रख दिया |मेरी शरारत से मेरी बहन शरमा गयी और हलके हलके मुस्कुराने लगी |मुझे उसकी मुस्कान से हिम्मत मिली और मैंने उसकी जांघ को सहलाने लगा |अभी मैंने अमृता की जांघ थोड़ी सी ही सहलाई थी कि उसने मेरा हाथ पकड़ कर रोकना चाहा और बोली-
अमृता- क्या कर रहे हो भईया, कोई देख लेगा |
मै- देखेगा कैसे? शीशे तो काले है..........कुछ नहीं दिखेगा | (उस समय दिल्ली में कार के काले शीशों को लेकर बहुत जयादा सख्ती नहीं थी) |
अमृता- मत करो न भईया, मुझे शरम आती है |अब घर ही तो जा रहे है, घर जा कर कर लेना जो करना हो............मै रोकूंगी थोड़े ही |
मै- तू कबसे मुझसे शरमाने लगी? और रही बात घर जा कर करने की तो, घर जा कर मै तेरी जांघ थोड़े ही न सह्लाऊंगा ? घर जा कर तो मै तुझे सह्लऊंगा (मैंने मुस्कुराते हुए कहा )|
मेरी बात सुनकर अमृता एक बार फिर से शरमा गयी और चुप-चाप बैठ गयी और मै उसकी जांघ सहलाने लगा |
अमृता कि जांघ सहलाते सहलाते मेरे दिल के अंदर शरारते बढती जा रही थी और मेरी हिम्मत भी |अब मैंने उसकी स्कर्ट उठा कर उसकी जांघ सहलानी शुरू कर दी थी और उसकी नंगी जांघ पर हाथ जाते ही मेरा लंड भी बेकाबू होता जा रहा था | उधर अमृता मेरी इस हरकत से परेशान होने लगी थी |उसे डर लग रहा था कि कही किसी ने देख लिया तो क्या होगा? मगर मुझे मजा आ रहा था और मेरे अंदर शरारत करने कि उमंग बढती जा रही थी | अमृता बार बार मेरा हाथ पकड़ कर रोकती और मै बार बार जबरदस्ती उसके हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर दुबारा उसकी नंगी जांघ पे रख कर सहलाने लगता |यूँ तो इन दो सालों में मैने ना जाने कितनी बार अमृता को नंगा देखा भी था और किया भी था मगर उस दिन चलती कार में सिर्फ उसकी नंगी जांघ को देख कर जो मस्ती चढ़ रही थी उसका कोई जवाब नहीं था और शायद इसकी वजह उसकी जांघ नहीं थी, बल्कि एक विचार था - मेरा लंड ये सोच-सोच कर मचल रहा था कि मै दिन-दहाड़े, चलती कार में- बीच सड़क पर अपनी बहन की नंगी जांघ सहला रहा हूँ | मेरे लंड को बेकाबू करने के लिए सिर्फ ये विचार ही बहुत था |
अंत में आकर अमृता को समझ में आ गया कि वो जितना मुझे रोकना चाहेगी मै उतना ही जिद्दी होता जाऊँगा और उतनी ही जबरदस्ती से उसकी जांघ सह्लाऊंगा | इसलिए अमृता ने खुद को पूरी तरह से मेरे हवाले कर दिया और मै उसकी जांघ को सहलाने लगा |अब अमृता अपनी आँखे बंद करके आराम से बैठ गयी और खुद भी मेरे सहलाने का मजा लेने लगी |
मै भी बेकाबू होता जा रहा था, इसलिए मैंने अपना हाथ अब धीरे धीरे उसकी जांघ से ऊपर करते हुए उसकी चूत की तरफ बढ़ा दिए और उसकी पेंटी के ऊपर से ही उसकी चूत सहलाने लगा (साथ साथ कार चलता रहा )| अब अमृता भी गरम हो चुकी थी अब उसका स्वर , गुस्से से बदलकर शिकायत वाले सुर में आ गया था-
अमृता- भईया क्या कर रहे हो? मान जाओ न प्लीज |
मै - क्या कर रहा हूँ? अपनी बहन को प्यार कर रहा हूँ और क्या कर रहा हूँ?
अमृता- ऐसे प्यार करते है क्या बहन को?
मै- (शरारत से मुस्कुराते हुए ) तो कैसे प्यार करते है अपनी बहन को?
अमृता- घर जा कर आराम से करते है, ऐसे सड़क पर नहीं |
मै- घर जा कर भी करूँगा मगर जिसकी बहन तेरे जैसी प्यारी हो, वो बेचारा घर पहुँचने तक का इन्त्जार कैसे करे ?
अमृता- भईया, आप ना बहुत शरारती होते जा रहे हो दिन-ब-दिन |पता नहीं कहाँ-कहाँ से सीखते हो ये सब?
मै- तुझे देख कर खुद-बी-खुद आ जाता है सब कुछ |
ये सब बातें करते करते मैंने उसकी चूत में बहुत अंदर तक ऊँगली दाल दी थी और उसने जोर से सिसकी लेते हुए मुझे एक गन्दी से गाली दी |
मै- क्या हुआ?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.