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Adultery पत्नी एक्सचेंज
#14
मुस्कुराते हुए उन्होंने उसमें उंगली डुबाकर मेरे मुँह पर लगा दी। ठंडा, मीठा, स्वादिष्ट चाकलेट। गाढ़ा। होंठों पर बचे हिस्से को मैंने जीभ निकाल कर चाट लिया।

“थकान उतारने का टानिक! पसंद आया?”

सचमुच इस वक्त की थकान में चाकलेट बहुत उपयुक्त लगा। चाकलेट मुझे यों भी बहुत पसंद था। मैंने और के लिए मुँह खोला। उन्होंने मेरी आखों पर हथेली रख दी, “अब इसका पूरा स्वाद लो।”

होंठों पर किसी गीली चीज का दबाव पड़ा। मैं समझ गई। योनि को मुख से आनन्दित करने के बाद इसके आने की स्वाभाविक अपेक्षा थी। मैंने उसे मुँह खोल कर ग्रहण दिया। चाकलेट में लिपटा लिंग। फिर भी उनकी यह हरकत मुझे हिमाकत जान पड़ी। एक स्त्री से प्रथम मिलन में लिंग चूसने की मांग … यद्यपि वे मेरी योनि को चूम-चाट चुके थे पर फिर भी …

उत्थित कठोर लिंग की अपेक्षा शिथिल कोमल लिंग को चूसना आसान होता है। मुँह के अंदर उसकी लचक मन में कौतुक जगाती है। एक बार स्खलित होने के बाद उसे अभी उठने की जल्दी नहीं थी। मैं उस पर लगे चा़कलेट को चूस रही थी। उसकी गर्दन तक के संवेदनशील क्षेत्र को जीभ से सहलाने रगड़ने में खास ध्यान दे रही थी। वह मेरे मुँह में थोड़ी उछल-कूद करने लगा था। मुझे एक बार फिर गर्व महसूस हुआ – उन पर होते अपने असर को देख कर … पर मिठास घटती जा रही थी और नमकीन स्वाद बढ़ रहा था। लिंग का आकार भी बढ़ रहा था। धीरे धीरे उसे मुँह में समाना मुश्किल हो गया। पति की अपेक्षा यह लम्बा ही नहीं, मोटा भी था। वे उसे मेरे मुँह में कुछ संकोच के साथ ठेल रहे थे।

यह पुरुष की सबसे असहाय अवस्था होती है। वह मुक्ति की याचना में गिड़गिड़ाता सा होता है और उसे वह सुख देने का सारा अधिकार स्त्री के हाथ में होता है। विनय तो दुर्बल हो कर बिस्तर पर गिर ही गए थे। मैं उनकी जांघों पर चढ़ गई। उनके विवश लिंग को मैंने अपने मुंह में पनाह दे दी। मैं कभी आक्रामक हो कर लिंग के गुलाबी अग्रभाग पर संभाल कर दाँत गड़ाती तो कभी उस पर जीभ फिसला कर चुभन के दर्द को आनन्द में परिवर्तित कर देती।

वे मेरा सिर पकड़ कर उसे अपने लिंग पर दबा रहे थे। उनका मुंड मेरे गले की कोमल त्वचा से टकरा रहा था। मैं उबकाई के आवेग को दबा जाती। अपने पति के साथ मुझे इस क्रिया का अच्छा अभ्यास था। पर यह उनसे काफी लम्बा था। रह-रह कर मेरे गले की गहराई में घुस जाता। मैं साँस रोक कर दम घुटने पर विजय पाती। जाने क्यों मुझे यकीन था कि विद्या के पास इतना हुनर नहीं होगा। विनय मेरी क्षमता पर विस्मित थे। सीत्कारों के बीच उनके बोल फूट रहे थे, “आह…! कितना अच्छा लग रहा है! यू आर एक्सलेंट़…  ओ माई गौड…”

उनका अंत नजदीक था। मुझे डर था कि दूसरे स्खलन के बाद वे संभोग करने लायक नहीं रहेंगे! लेकिन हमारे पास सारी रात थी। वे कमर उचका उचका कर अनुरोध कर रहे थे। मेरे सिर को पकड़े थे। क्या करूँ? उन्हें मुँह में ही प्राप्त कर लूँ? मुझे वीर्य का स्वाद अच्छा़ नहीं लगता था पर मैं अपने पति को यह सुख कई बार दे चुकी थी। लेकिन इन महाशय को? इनके लिंग को मैं इतने उत्साह और कुशलता से चूस रही थी … फिर उन्हे उनके सबसे बड़े आनन्द के समय बीच रास्ते छो़ड देना स्वार्थपूर्ण नहीं होगा? उन्होंने कितनी उदारता और उमंग से अपने मुँह से मुझे अपनी मंजिल तक पहुंचाया था। मैंने निर्णय कर लिया।

जब अचानक लिंग अत्यंत कठोर हो कर फड़का तो मैं तैयार थी। मैंने साँस रोक कर उसे कंठ के कोमल गद्दे में बैठा लिया। गर्म लावे की पहली लहर हलक के अंदर उतर गई। … एक और लहर! मैंने मुंह थोडा पीछे किया। हाथ से उसकी जड़ पकड़ कर उसे घर्षण की आवश्यक खुराक देने लगी। साथ ही शक्ति से प्रवाहित होते वीर्य को जल्दी-जल्दी निगलने लगी।

संजय का और इनका स्वाद एक जैसा ही था। क्या सारे मर्द एक जैसे होते हैं? इस ख्याल पर हँसी आई। मैंने मुँह में जमा हुई अंतिम बूंदों को गले के नीचे धकेला और जैसे उन्होंने किया था वैसे ही मैंने झुक कर उनके मुँह को चूम लिया। लो भाई, मेरा जवाबी इनाम भी हो गया। किसी का एहसान नहीं रखना चाहिए अपने ऊपर।

उनके चेहरे पर बेहद आनन्द और कृतज्ञता का भाव था। थोड़े लजाए हुए भी थे। सज्जन व्यक्ति थे। मेरा कुछ भी करना उन के लिये उपकार जैसा था जबकि उनका हर कार्य अपनी योग्यता साबित करने की कोशिश। मैंने तौलिए से उनके लिंग और आसपास के भीगे क्षेत्र को पोंछ दिया। उनके साथ उस समय पत्नी-सा व्येवहार करते हुए थोड़ी शर्म आई पर खुशी भी हुई …

अपनी नग्नता के प्रति चैतन्य  होकर मैंने चादर को अपने ऊपर खींच लिया। बाँह बढ़ा कर उन्होंने मुझे समेटा और खुद भी चादर के अंदर आ गए। मैं उनकी छाती से सट गई। दो स्खलनों के बाद उन्हें आराम की जरूरत थी। अब संभोग भला क्या होना था। पर उसकी जगह यह इत्मींनान भरी अंतरंगता, यह थकन-मिश्रित शांति एक अलग ही सुख दे रही थी। मैंने आँखें मूंद लीं। एक बार मन में आया कि जा कर संजय को देखूँ। पर फिर यह ख्याल दिल से निकाल दिया!

पीठ पर हल्की-हल्की  थपकी… हल्का-हल्का पलकों पर उतरता खुमार… पेट पर नन्हें लिंग का दबाव… स्तनों पर उनकी छाती के बालों का स्पर्श… मन को हल्केँ-हल्के  आनंदित करता उत्तेजनाहीन प्या‍र… मैंने खुद को खो जाने दिया।

उत्तेजनाहीन…? बस, थो़ड़ी देर के लिए। निर्वस्त्र हो कर परस्पर लिपटे दो युवा नग्न शरीरों को नींद का सौभाग्य कहाँ। बस थकान दूर होने का इंतज़ार। उतनी ही देर का विश्राम जो पुन: सक्रिय होने की ऊर्जा भर दे। फिर पुन: सहलाना, चुम्बन, आलिंगऩ, मर्दन … सिर्फ इस बार उनमें खोजने की बेकरारी कम थी और पा लेने का विश्वास अधिक! हम फिर गरम हो गए थे। एक बार फिर मेरी टांगें फैली थीं और वे उनके बीच में थे।

“प्रवेश की इजाज़त है?” मेरी नजर उनके तौलिए के उभार पर गडी थी। मैंने शरमाते हुए स्वीकृति में सिर हिलाया।

वे थोडा संकुचाते हुए बोले, “मेरी भाषा के लिये माफ करना पर मैं प्रार्थना करता हूं कि ये चुदाई तुम्हारे लिये यादगार हो।” शब्द मुझे अखरा यद्यपि उनका आशय अच्छा लगा। मेरा अपना संजय भी इस मामले में कम नहीं था – चुदाई का रसिया। अपने शब्द पर मैं चौंकी – हाय राम, मैं यह क्या  सोच गई। इस आदमी ने इतनी जल्दी मुझे प्रभावित कर दिया?

“कंडोम लगाने की जरूरत है?”

मैंने इंकार में सिर हिलाया।

“तो फिर एकदम रिलैक्स हो जाओ, नो टेंशन!”

उन्होंने तौलिया हटा दिया। वह सीधे मेरी दिशा में बंदूक की तरह तना था। अभी मैंने अपने मुँह में इसका करीब से परिचय प्राप्त किया था फिर भी इसे अपने अंदर लेने का खयाल मुझे डरा रहा था। मुझे फिर संजय की बात याद आ रही थी ‘सात इंच का …!’   ‘अंदर तक मार …!’  मैंने सोचा – विद्या का भाग्य अच्छा है क्योंकि उसे पांच इंच का ही लेना पड़ रहा है!

उन्होंने मेरी जांघों के बीच अपने को स्थित किया और लिंग को भगोष्ठों के बीच व्यवस्थित किया। मैंने पाँव और फैला दिए और थोड़ा सा नितम्बों को उठा दिया ताकि वे लक्ष्य को सीध में पा सकें। लिंग ने फिसल कर गुदा पर दस्तक दी, “कभी इसमें लिया है?”

“नहीं! कभी नहीं!”

“ठीक है!” उन्होंने उसे वहाँ से हटाकर योनिद्वार पर टिका दिया। मैं इंतजार कर रही थी…

“ओके, रिलैक्स!”

भगोष्ठ खिंच कर फैले … उनमे कहाँ सामर्थ्य था हठीले लिंग को रोकने का। सतीत्व की सब से पवित्र गली में एक परपुरुष की घुसपैठ। पातिव्रत्य का इतनी निष्ठा से सुरक्षित रखा गया किला टूट रहा था। मेरा समर्पित पत्नी मन पुकार उठा, “संजय, … मेरे स्वामी, तुमने कहाँ पहुँचा दिया मुझे।”

विनय लिंग को थोड़ा बाहर खींचते और फिर उसे थोड़ा और अंदर ठेल देते। अंदर की दीवारों में इतना खिंचाव पहले कभी नहीं महसूस हुआ था। कितना अच्छा लग रहा था, मैं एक साथ दु:ख और आनन्द से रो पड़ी। वे मेरे पाँवों को मजबूती से फैलाए थे। मेरी आँखें बेसुध हो गई थीं। मैं हल्के-हल्के कराहती उन्हें मुझ में और गहरे उतरने के लिए प्रेरित कर रही थी। थो़ड़ी देर लगी लेकिन वे अंतत: मुझ में पूरा उतर जाने में कामयाब हो गए।


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वे झुके और मेरे गले और कंधे को चूमते हुए मेरे स्तनों को सहलाने लगे, चूचुकों को चुटकियों से मसलने लगे। मैं तीव्र उत्तेजना को किसी तरह सम्हाल रही थी। आनन्द में मेरा सिर अगल बगल घूम रहा था। उन्होंने अपनी कुहनियों को मेरे बगलों के नीचे जमाया और अपने विशाल लिंग से आहिस्ता आहिस्ता लम्बे धक्के देने लगे। वे उसे लगभग पूरा निकाल लेते फिर उसे अंदर भेज देते। जैसे-जैसे मैं उनके कसाव की अभ्यस्त हो रही थी, वे गति बढ़ाते जा रहे थे। उनके आघात शक्तिशाली हो चले थे। मैंने उन्हें कस लिया और नीचे से प्रतिघात करने लगी। मेरे अंदर फुलझड़ियाँ छूटने लगीं।

वे लाजवाब प्रेमी थे। आहऽऽऽऽह… आहऽऽऽऽह … आहऽऽऽऽह… सुख की बेहोश कर देने वाली तीव्रता में मैंने उनके कंधों में दाँत गड़ा दिए। उनके प्रहार अब और भी शक्तिशाली हो गये थे। धचाक, धचाक, धचाक… मानो योनी को तहस-नहस कर देना चाहते हों। मार वास्तव में अंदर तक हो रही थी पर अत्यंत आनंददायक! दो दो स्खलनों ने उन में टिके रहने की अपार क्षमता भर दी थी।

“आहऽऽऽऽह…!” अंततः उनका शरीर अकड़ा और अंतिम चरण का आरम्भ हो गया। लगा कि बिजलियाँ कड़क रही हैं और मेरे अंदर बरसात हो रही है। अंतिम क्षरण के सुख ने मेरी सारी ताकत निचोड़ ली। वे गुर्राते हुए मुझ पर गिरे और मैंने उन्हें अपनी बाहों में भींच लिया। फिर मैं होश खो बैठी।
[Image: OMG-the-husband-was-working-so-ashamed-o...riends.jpg]
जब हम सुख की पराकाष्ठा से उबरे तो उन्होंने मुझे बार बार चूम कर मेरी तारीफ की और धन्यवाद दिया, “लक्ष्मी, यू आर वंडरफुल! ऐसा मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया। तुम कमाल की हो।”

मुझे गर्व हुआ कि विद्या ने इतना मजा उन्हें कभी नहीं दिया होगा। मैंने खुद को बहुत श्रेष्ठ महसूस किया। मैंने बिस्तर से उतर कर खुद को आइने में देखा। चरम सुख से चमकता नग्ऩ शरीर, काम-वेदी़ घर्षण से लाल और जाँघों पर रिसता हुआ वीर्य। मैंने झुक कर ब्रा और पैंटी उठाई तो उन्होंने मेरी झुकी मुद्रा में मेरे पृष्ठ भाग के सौंदर्य का पान कर लिया। मैं बाथरूम में भाग गई।

रात की घड़िया संक्षिप्त हो चली थीं। नींद खुली तो विद्या चाय ले कर आ गई थी। उसने हमें गुड मार्निंग कहा। मुझे उस वक्त उसके पति के साथ चादर के अंदर नग्नप्राय लेटे बड़ी शर्म आई और अजीब सा लगा। … लेकिन विद्या के चेहरे पर किसी प्रकार की ईर्ष्या के बजाय खुशी थी। वह मेरी आँखों में आँखें डाल कर मुस्कुराई। मुझे उसके और संजय के बीच ‘क्या हुआ’ जानने की बहुत जिज्ञासा थी।

अगली रात संजय और मैं बिस्तर पर एक-दूसरे के अनुभव के बारे में पूछ रहे थे।

“कैसा लगा तुम्हें?” संजय ने पूछा।

“तुम बोलो? तुम्हारा बहुत मन था ना!” मैं व्यंग्य करने से खुद को रोक नहीं पायी हालाँकि मैंने स्वयं अभूतपूर्व आनन्द का अनुभव किया था।

“ठीक ही रहा।”

“ठीक ही क्यों?”

“सब कुछ हुआ तो सही पर उस में तुम्हारे जैसी उत्तेजना नहीं दिखी।”

“अच्छा! पर सुंदर तो थी वो।”

“हाँऽऽऽ, लेकिन पाँच इंच में शायद उसे भी मजा नहीं आया होगा।”

“तुम साइज की व्यर्थ चिन्ता करते हो। सुबह विद्या तो बहुत खुश दिख रही थी।” मैं उन्हें दिलासा दिया पर बात सच लग रही थी। मुझे विनय के बड़े आकार से गहरी पैठ और घर्षण का कितना आनन्द मिला था!

“अच्छा? तुम्हारा कैसा रहा?”

मैं खुल कर बोल नहीं पाई। बस ‘ठीक ही’ कह पाई।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: पत्नी एक्सचेंज - by neerathemall - 05-08-2020, 02:42 PM
REमेरी सहेली - by neerathemall - 21-08-2020, 02:25 PM



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