05-08-2020, 02:41 PM
जब उन्होंने उंगली को होंठों की लम्बाई में रख कर अंदर दबा कर सहलाया तो मैं एक छोटे चरम सुख तक पहुँच गई। मेरी सीत्कार को तो उन्होंने मेरे मुँह पर अपना मुँह रख कर दबा दिया पर मैं लगभग अपना होश खो बैठी थी।
“लक्ष्मी, तुम ठीक तो हो ना?” मेरी कुछ क्षणों की मूर्च्छा से उबरने के बाद उन्होंने पूछा। उन्होंने इस क्रिया के दौरान पहली बार मेरा नाम लिया था। उसमें अनुराग का आभास था।
“हाँ …” मैंने शर्माते हुए उत्तर दिया। मेरे जवाब से उनके मुँह पर मुसकान फैल गई। उन्होंँने मुझे प्यार से चूम लिया। मेरी आँखें संजय को खोजती एक क्षण के लिए व्यर्थ ही घूमीं और उन्होंने देख लिया।
“संजय?” वे हँसे। वे उठे और मुझे अपने साथ ले कर दरवाजे से बाहर आ गए। सोफे खाली थे। दूसरे बेडरूम से मद्धम कराहटों की आवाज आ रही थी… दरवाजा खुला ही था। पर्दे की आड़ से देखा… संजय का हाथ विद्या के अनावृत स्तनों पर था और सिर उस की उठी टांगों के बीच। उसके चूचुक बीच बीच में प्रकट होकर चमक जाते। अचानक जैसे विद्या ने जोर से ‘आऽऽऽऽऽह!’ की और एक आवेग में नितम्ब उठा दिए। शायद संजय के होंठों या जीभ ने अंदर की ‘सही’ जगह पर चोट कर दी थी।
मेरा पति… दूसरी औरत के साथ यौन आनन्द में डूबा… इसी का तो वह ख्वाब देख रहा था।… मुझे क्या उबारेगा… मेरे अंदर कुछ डूबने लगा। मैंने विनय का कंधा थाम लिया।
विनय फुसफुसाए, “अंदर चलें? सब मिल कर एक साथ…”
मैंने उन्हें पीछे खींच लिया। वे मुझे सहारा देते लाए और सम्हाल कर बड़े प्यार से पलंग पर लिटाया जैसे मैं कोई कीमती तोहफा हूँ। मैं देख रही थी किस प्रकार वे मेरी नाइटी के बटन खोल रहे थे। इसका विरोध करना बेमानी तो क्या, असभ्यता सी लगती। वे एक एक बटन खोलते, कपड़े को सस्पेंस पैदा करते हुए धीरे धीरे सरकाते, जैसे कोई रहस्य प्रकट होने वाला हो, फिर अचानक खुल गए हिस्से को को प्यार से चूमने लगते। मैं गुदगुदी और रोमांच से उछल जाती। उनका तरीका बड़ा ही मनमोहक था। वे नाभि के नीचे वाली बटन पर पहुँचे तो मैंने हाथों से दबा लिया हालांकि अंदर अभी पैंटी की सुरक्षा थी।
“मुझे अपनी कलाकृति नहीं दिखाओगी?”
“कौन सी कलाकृति?”
“वो… फुलझड़ी…”
“हाय राम…!!” मैं लाल हो गई। तो संजय ने उन्हें इसके बारे में बता दिया था।
“और क्या क्या बताया है संजय ने मेरे बारे में?”
“यही कि मैं तुम्हारे आर्ट का दूसरा प्रशंसक बनने वाला हूँ। देखने दो ना!”
मैं हाथ दबाए रही। उन्होंने और नीचे के दो बटन खोल दिए। मैं देख रही थी कि अब वे जबरदस्ती करते हैं कि नहीं। लेकिन वे रुके, मेरी आँखों में एक क्षण देखा, फिर झुक कर मेरे हाथों को ऊपर से ही चूमने लगे। उससे बचने के लिए हाथ हटाए तो वे बटन खोल गए। इस बार उन्होंंने कोई सस्पेंस नहीं बनाया, झपट कर पैंटी के ऊपर ही जोर से मुँह जमा कर चूम लिया। मेरी कोशिश से उनका सिर अलग हुआ तो मैंने देखा वे अपने होंठों पर लगे मेरे रस को जीभ से चाट रहे थे।
उन दो क्षणों के छोटे से उत्तेजक संघर्ष में पराजित होना बहुत मीठा लगा। उन्होंने आत्मविश्वाास से नाइटी के पल्ले अलग कर दिए। नाइटी के दो खुले पल्लों पर अत्यंत सुंदर डिजाइनर ब्रा पैंटी में सुसज्जित मैं किसी महारानी की तरह लेटी थी। मैंने अपना सबसे सुंदर अंतर्वस्त्र चुना था। विनय की प्रशंसा-विस्मित आंखें मुझे गर्वित कर रही थीं।
विनय ने जब मेरी पैंटी उतारने की कोशिश की तो नारी-सुलभ लज्जावश मेरे हाथ उन्हें रोकने को बढे लेकिन साथ ही मेरे नितम्ब उनके खींचते हाथों को सुविधा देने के लिए उठ गए।
“ओह हो! क्या बात है!” मेरी ‘फुलझड़ी’ को देखकर वे चहक उठे।
मैंने योनि को छिपाने के लिए पाँव कस लिए। गोरी उभरी वेदी पर बालों का धब्बा काजल के लम्बे टीके सा दिख रहा था।
“लवली! लवली! वाकई खूबसूरत बना है। इसे तो जरूर खास ट्रीटमेंट चाहिए।” कतरे हुए बालों पर उनकी उंगली का खुर-खुर स्पर्श मुझे खुद नया लग रहा था। मैं उम्मीद कर रही थी अब वे मेरे पाँवों को फैलाएंगे। जब से उन्होंने पैंटी को चूमा था मन में योनि से उनके होंठों और जीभ के बेहद सुखद संगम की कल्पना जोर मार रही थी। मैं पाँव कसे थी लेकिन सोच रही थी उन्हें खोलने में ज्यादा मेहनत नहीं करवाऊँगी। पर वे मुझसे अलग हो गए, अपने कपड़े उतारने के लिये।
वे मुझे पहले काम-तत्पर बना कर और फिर इंतजार करा कर बड़े नफीस तरीके से यातना दे रहे थे। मेरी रुचि उनमें बढ़ती जा रही थी। उन के प्रकट होते बदन को ठीक से देखने के लिए मैं तकिए का सहारा ले कर बैठ गई, ‘फुलझड़ी’ हथेली से ढके रही। पहले कमीज गई, बनियान गई, मोजे गए, कमर की बेल्ट और फिर ओह… वो अत्यंत सेक्सी काली ब्रीफ। उसमें बने बड़े से उभार ने मेरे मन में संभावनाओं की लहर उठा दी। धीरज रख, लक्ष्मी … मैंने अपनी उत्सुकता को डाँटा।
बहुत अच्छे आकार में रखा था उन्होंने खुद को। चौड़ी छाती, माँसपेशीदार बाँहें, कंधे, पैर, पेट में चर्बी नहीं, पतली कमर, छाती पर मर्दाना खूबसूरती बढ़ाते थोड़े से बाल, सही परिमाण में, इतना अधिक नहीं कि जानवर-सा लगे, न इतना कम कि चॉकलेटी महसूस हो।
वे आ कर मेरी बगल में बैठ गए। यह देख कर मन में हँसी आई कि इतने आत्मपविश्वास भरे आदमी के चेहरे पर इस वक्त संकोच और शर्म का भाव था। मैंने उनका हाथ अपने हाथ में ले लिया। वे धीरे धीरे नीचे सरकते हुए मुझसे लिपट गए।
ओहो, तो इनको स्वीट और भोला बनना भी आता है। पर वह चतुराई थी। वे मेरे खुले कंधों, गले, गर्दन को चूम रहे थे। इस बीच पीठ पीछे मेरी ब्रा की हुक उनके दक्ष हाथों फक से खुल गई। मैंने शिकायत में उनकी छाती पर हल्का-सा मुक्का मारा, वे मुझे और जोर से चूमने लगे। उन्होंने मुझे धीरे से उठाया और एक एक करके दोनों बाँहों से नाइटी और साथ में ब्रा भी निकाल दी। मैं बस बाँहों से ही स्तन ढक सकी।
“लक्ष्मी, तुम ठीक तो हो ना?” मेरी कुछ क्षणों की मूर्च्छा से उबरने के बाद उन्होंने पूछा। उन्होंने इस क्रिया के दौरान पहली बार मेरा नाम लिया था। उसमें अनुराग का आभास था।
“हाँ …” मैंने शर्माते हुए उत्तर दिया। मेरे जवाब से उनके मुँह पर मुसकान फैल गई। उन्होंँने मुझे प्यार से चूम लिया। मेरी आँखें संजय को खोजती एक क्षण के लिए व्यर्थ ही घूमीं और उन्होंने देख लिया।
“संजय?” वे हँसे। वे उठे और मुझे अपने साथ ले कर दरवाजे से बाहर आ गए। सोफे खाली थे। दूसरे बेडरूम से मद्धम कराहटों की आवाज आ रही थी… दरवाजा खुला ही था। पर्दे की आड़ से देखा… संजय का हाथ विद्या के अनावृत स्तनों पर था और सिर उस की उठी टांगों के बीच। उसके चूचुक बीच बीच में प्रकट होकर चमक जाते। अचानक जैसे विद्या ने जोर से ‘आऽऽऽऽऽह!’ की और एक आवेग में नितम्ब उठा दिए। शायद संजय के होंठों या जीभ ने अंदर की ‘सही’ जगह पर चोट कर दी थी।
मेरा पति… दूसरी औरत के साथ यौन आनन्द में डूबा… इसी का तो वह ख्वाब देख रहा था।… मुझे क्या उबारेगा… मेरे अंदर कुछ डूबने लगा। मैंने विनय का कंधा थाम लिया।
विनय फुसफुसाए, “अंदर चलें? सब मिल कर एक साथ…”
मैंने उन्हें पीछे खींच लिया। वे मुझे सहारा देते लाए और सम्हाल कर बड़े प्यार से पलंग पर लिटाया जैसे मैं कोई कीमती तोहफा हूँ। मैं देख रही थी किस प्रकार वे मेरी नाइटी के बटन खोल रहे थे। इसका विरोध करना बेमानी तो क्या, असभ्यता सी लगती। वे एक एक बटन खोलते, कपड़े को सस्पेंस पैदा करते हुए धीरे धीरे सरकाते, जैसे कोई रहस्य प्रकट होने वाला हो, फिर अचानक खुल गए हिस्से को को प्यार से चूमने लगते। मैं गुदगुदी और रोमांच से उछल जाती। उनका तरीका बड़ा ही मनमोहक था। वे नाभि के नीचे वाली बटन पर पहुँचे तो मैंने हाथों से दबा लिया हालांकि अंदर अभी पैंटी की सुरक्षा थी।
“मुझे अपनी कलाकृति नहीं दिखाओगी?”
“कौन सी कलाकृति?”
“वो… फुलझड़ी…”
“हाय राम…!!” मैं लाल हो गई। तो संजय ने उन्हें इसके बारे में बता दिया था।
“और क्या क्या बताया है संजय ने मेरे बारे में?”
“यही कि मैं तुम्हारे आर्ट का दूसरा प्रशंसक बनने वाला हूँ। देखने दो ना!”
मैं हाथ दबाए रही। उन्होंने और नीचे के दो बटन खोल दिए। मैं देख रही थी कि अब वे जबरदस्ती करते हैं कि नहीं। लेकिन वे रुके, मेरी आँखों में एक क्षण देखा, फिर झुक कर मेरे हाथों को ऊपर से ही चूमने लगे। उससे बचने के लिए हाथ हटाए तो वे बटन खोल गए। इस बार उन्होंंने कोई सस्पेंस नहीं बनाया, झपट कर पैंटी के ऊपर ही जोर से मुँह जमा कर चूम लिया। मेरी कोशिश से उनका सिर अलग हुआ तो मैंने देखा वे अपने होंठों पर लगे मेरे रस को जीभ से चाट रहे थे।
उन दो क्षणों के छोटे से उत्तेजक संघर्ष में पराजित होना बहुत मीठा लगा। उन्होंने आत्मविश्वाास से नाइटी के पल्ले अलग कर दिए। नाइटी के दो खुले पल्लों पर अत्यंत सुंदर डिजाइनर ब्रा पैंटी में सुसज्जित मैं किसी महारानी की तरह लेटी थी। मैंने अपना सबसे सुंदर अंतर्वस्त्र चुना था। विनय की प्रशंसा-विस्मित आंखें मुझे गर्वित कर रही थीं।
विनय ने जब मेरी पैंटी उतारने की कोशिश की तो नारी-सुलभ लज्जावश मेरे हाथ उन्हें रोकने को बढे लेकिन साथ ही मेरे नितम्ब उनके खींचते हाथों को सुविधा देने के लिए उठ गए।
“ओह हो! क्या बात है!” मेरी ‘फुलझड़ी’ को देखकर वे चहक उठे।
मैंने योनि को छिपाने के लिए पाँव कस लिए। गोरी उभरी वेदी पर बालों का धब्बा काजल के लम्बे टीके सा दिख रहा था।
“लवली! लवली! वाकई खूबसूरत बना है। इसे तो जरूर खास ट्रीटमेंट चाहिए।” कतरे हुए बालों पर उनकी उंगली का खुर-खुर स्पर्श मुझे खुद नया लग रहा था। मैं उम्मीद कर रही थी अब वे मेरे पाँवों को फैलाएंगे। जब से उन्होंने पैंटी को चूमा था मन में योनि से उनके होंठों और जीभ के बेहद सुखद संगम की कल्पना जोर मार रही थी। मैं पाँव कसे थी लेकिन सोच रही थी उन्हें खोलने में ज्यादा मेहनत नहीं करवाऊँगी। पर वे मुझसे अलग हो गए, अपने कपड़े उतारने के लिये।
वे मुझे पहले काम-तत्पर बना कर और फिर इंतजार करा कर बड़े नफीस तरीके से यातना दे रहे थे। मेरी रुचि उनमें बढ़ती जा रही थी। उन के प्रकट होते बदन को ठीक से देखने के लिए मैं तकिए का सहारा ले कर बैठ गई, ‘फुलझड़ी’ हथेली से ढके रही। पहले कमीज गई, बनियान गई, मोजे गए, कमर की बेल्ट और फिर ओह… वो अत्यंत सेक्सी काली ब्रीफ। उसमें बने बड़े से उभार ने मेरे मन में संभावनाओं की लहर उठा दी। धीरज रख, लक्ष्मी … मैंने अपनी उत्सुकता को डाँटा।
बहुत अच्छे आकार में रखा था उन्होंने खुद को। चौड़ी छाती, माँसपेशीदार बाँहें, कंधे, पैर, पेट में चर्बी नहीं, पतली कमर, छाती पर मर्दाना खूबसूरती बढ़ाते थोड़े से बाल, सही परिमाण में, इतना अधिक नहीं कि जानवर-सा लगे, न इतना कम कि चॉकलेटी महसूस हो।
वे आ कर मेरी बगल में बैठ गए। यह देख कर मन में हँसी आई कि इतने आत्मपविश्वास भरे आदमी के चेहरे पर इस वक्त संकोच और शर्म का भाव था। मैंने उनका हाथ अपने हाथ में ले लिया। वे धीरे धीरे नीचे सरकते हुए मुझसे लिपट गए।
ओहो, तो इनको स्वीट और भोला बनना भी आता है। पर वह चतुराई थी। वे मेरे खुले कंधों, गले, गर्दन को चूम रहे थे। इस बीच पीठ पीछे मेरी ब्रा की हुक उनके दक्ष हाथों फक से खुल गई। मैंने शिकायत में उनकी छाती पर हल्का-सा मुक्का मारा, वे मुझे और जोर से चूमने लगे। उन्होंने मुझे धीरे से उठाया और एक एक करके दोनों बाँहों से नाइटी और साथ में ब्रा भी निकाल दी। मैं बस बाँहों से ही स्तन ढक सकी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
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