05-08-2020, 02:41 PM
पर वे चतुर निकले, सीधे योनी-प्रदेश का रुख करने की बजाय वे हौले-हौले मेरे पैरों को सहला रहे थे। तलवों को, टखनों को, पिंडलियों को … विशेषकर घुटनों के अंदर की संवेदनशील जगह को। धीरे-धीरे नाइटी के अंदर भी हाथ ले जा रहे थे। देख रहे थे मैं विरोध करती हूँ कि नहीं। मैं लज्जा-प्रदर्शन की खातिर मामूली-सा प्रतिरोध कर रही थी। जब घूमते-घूमते उनकी उंगलियाँ अंदर पैंटी से टकराईं तो पुन: मेरी जाँघें कस गईं। मुझे लगा जरूर उन्होंने अंदर का गीलापन भांप लिया होगा। हाय, लाज से मैं मर गई।
उनके हाथ एक आग्रह और जिद के साथ मुझे कोंचते रहे। मेरे पाँव धीरे-धीरे खुल गए। … शायद संजय कहीं पास हों, काश वे आकर हमें रोक लें। मैंने उन्हें खोजा… ‘संजयऽऽ!’
विनय हँस कर बोले, “उसकी चिंता मत करो। अब तक उसने विद्या को पटा लिया होगा!”
‘पटा लिया होगा’ … यहाँ मैं भी तो ‘पट’ रही थी … कैसी विचित्र बात थी। अब तक मैंने इसे इस तरह नहीं देखा था।
विनय पैंटी के ऊपर से ही मेरा पेड़ू सहला रहे थे। मुझे शरम आ रही थी कि योनि कितनी गीली हो गई है पर इसके लिए जिम्मेदार भी तो विनय ही थे। उनके हाथ पैंटी में से छनकर आते रस को आसपास की सूखी त्वचा पर फैला रहे थे। धीरे धीरे जैसे पूरा शरीर ही संवेदनशील हुआ जा रहा था। कोई भी छुअन, कैसी भी रगड़ मुझे और उत्तेैजित कर देती थी।
उनके हाथ एक आग्रह और जिद के साथ मुझे कोंचते रहे। मेरे पाँव धीरे-धीरे खुल गए। … शायद संजय कहीं पास हों, काश वे आकर हमें रोक लें। मैंने उन्हें खोजा… ‘संजयऽऽ!’
विनय हँस कर बोले, “उसकी चिंता मत करो। अब तक उसने विद्या को पटा लिया होगा!”
‘पटा लिया होगा’ … यहाँ मैं भी तो ‘पट’ रही थी … कैसी विचित्र बात थी। अब तक मैंने इसे इस तरह नहीं देखा था।
विनय पैंटी के ऊपर से ही मेरा पेड़ू सहला रहे थे। मुझे शरम आ रही थी कि योनि कितनी गीली हो गई है पर इसके लिए जिम्मेदार भी तो विनय ही थे। उनके हाथ पैंटी में से छनकर आते रस को आसपास की सूखी त्वचा पर फैला रहे थे। धीरे धीरे जैसे पूरा शरीर ही संवेदनशील हुआ जा रहा था। कोई भी छुअन, कैसी भी रगड़ मुझे और उत्तेैजित कर देती थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.