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Adultery पत्नी एक्सचेंज
#9
लिविंग रूम में लौटे तो विनय इस बार सोफे पर मेरे साथ ही बैठे। उन्होने चर्चा छेड़ दी कि इस ‘साथियों के विनिमय’ के बारे में मैं क्या सोचती हूँ। मैं तब तक इतनी सहज हो चुकी थी कि कह सकूँ कि मैं तैयार तो हूँ पर थोड़ा डर है मन में। यह कहना अच्छाै नहीं लगा कि मैं यह संजय की इच्छा से कर रही हूँ। लगा जैसे यह अपने को बरी करने की कोशिश होगी।

“यह स्वाभाविक है!” विनय ने कहा, ”पहले पहल ऐसा लगता ही है।”

मैंने देखा सामने सोफे पर संजय और विद्या मद्धम स्वर में बात कर रहे थे। उनके सिर नजदीक थे। मैंने स्वीकार किया कि संजय तो तैयार दिखते हैं पर उन्हें विद्या के साथ करते देख पता नहीं मुझे कैसा लगेगा।

विनय ने पूछा कि क्या मैंने कभी संजय के अलावा किसी अन्य पुरुष के साथ सेक्स किया है – शादी से पहले या शादी के बाद?

“नहीं, कभी नहीं… यह पहली बार है।” बोलते ही मैं पछताई। अनजाने में मेरे मुख से आज ही सेक्सं होने की बात निकल गई थी। पर विनय ने उसका कोई लाभ नहीं उठाया।

“मुझे उम्मीद है कि आपको अच्छा लगेगा।” फिर थोड़ा ठहर कर, ”आजकल बहुत से लोग इसमें हैं। आज इंटरनेट के युग में संपर्क करना आसान हो गया है। सभी उम्र के सभी तरह के लोग यह कर रहे हैं।”

उन्होंने ‘स्विगिंग पार्टियों’ के बारे में बताया जहाँ सामूहिक रूप से लोग साथियों की अदला-बदली करते हैं। मैंने पूछना चाहा ‘आप गए हैं उस में?’ लेकिन अपनी जिज्ञासा को दबा गई।

विनय ने औरत-औरत के सेक्स की बात उठाई और पूछा कि मुझे कैसा लगता है यह?

“शुरू में जब मैंने इसे ब्लू फिल्मों में देखा था, उस समय आश्चर्य हुआ था।”

“अब?”

“अम्म्मे ‍, पता नहीं! कभी ऐसी बात नहीं हुई। पता नहीं कैसा लगेगा।”

मैं धीरे धीरे खुल रही थी। उनकी बातें आश्वस्त‍ कर रही थीं। विद्या ने बताया कि कई लोग अनुभवहीन लोगों के साथ ‘स्वैप’ नहीं करना चाहते, डरते हैं कि खराब अनुभव न हो। पर हम उन्हें अच्छे लग रहे थे।

अजीब लग रहा था कि मैं किसी दूसरे पुरुष के साथ बैठी सेक्स की व्यतक्तिकगत बातें कर रही थी जबकि मेरे सामने मेरा पति एक दूसरी औरत के साथ बैठा था। मैं अपने अंदर टटोल रही थी कि मुझे कोई र्इर्ष्याे महसूस हो रही है कि नहीं। शायद थोड़ी सी, पर दुखद नहीं …

विद्या उठ कर कुछ नाश्ता ले आई। मुझे लगा कि वाइन साथ में न होने का विनय-विद्या को जरूर अफसोस हो रहा होगा। शाम सुखद गुजर रही थी। विनय-विद्या बड़े अच्छेे से मेहमाननवाजी कर रहे थे। न इतना अधिक कि संकोच में पड़ जाऊँ, न ही इतना कम कि अपर्याप्त लगे।

आरंभिक संकोच और हिचक के बाद अब बातचीत की लय कायम हो गई थी। विनय मेरे करीब बैठे थे। बात करने में उनके साँसों की गंध भी मिल रही थी। एक बार शायद गलती से या जानबूझ कर उसने मेरे ही ग्लास से कोल्ड ड्रिंक पी लिया। तुरंत ही ‘सॉरी’ कहा। मुझे उनके जूठे ग्लास से पीने में अजीब कामुक सी अनुभूति हुई।

काफी देर हो चुकी थी। मैंने कहा, “अब चलना चाहिए।”

विनय ताज्जुब से बोले,”क्या कह रही हो? अभी तो हमने शाम एंजाय करना शुरू ही किया है। आज रात ठहर जाओ, सुबह चले जाना।”

विद्या ने भी जोर दिया, ”हाँ हाँ, आज नहीं जाना है। सुबह ही जाइयेगा।”

मैंने संजय की ओर देखा। उनकी जाने की कोई इच्छा नहीं थी। विद्या ने उनको एक हाथ से घेर लिया था।

“मैं… हम कपड़े नहीं लाए हैं।” मुझे अपना बहाना खुद कमजोर लगा।

“कपडों की जरूरत हो तो …” कह कर विनय रुके और फिर बोले, “… तुम विद्या की नाइटी पहन लेना और संजय मेरे कपड़े पहन लेंगे … अगर तुम दोनों को ऐतराज न हो …”

“नहीं, ऐतराज की क्याे बात है लेकिन …”

“ओह, कम ऑन…”

अब मैं क्या कह सकती थी।

विद्या मुझे शयनकक्ष में ले गई। उसके पास नाइटवियर्स का अच्छा संग्रह था। पर वे या तो बहुत छोटी थीं या पारदर्शी। उसने मेरे संकोच को देखते हुए मुझे पूरे बदन की नाइटी दी। पारदर्शी थी मगर टू पीस की दो तहों से थोड़ी धुंधलाहट आ जाती थी। अंदर की पोशाक कंधे पर पतले स्ट्रैप और स्तनों के आधे से भी नीचे जाकर शुरू होने वाली। इतनी हल्की और मुलायम कपड़े की थी कि लगा बदन में कुछ पहना ही नहीं। गले पर काफी नीचे तक जाली का सुंदर काम था, उसके अंदर ब्रा से नीचे मेरा पेट साफ दिख रहा था, पैंटी भी।

मेरी मर्यादा यह झीनी नाइटी नहीं बल्कि ब्रा और पैंटी बचा रहे थे नहीं तो चूचुक और योनि के होंठ तक दिखाई देते। मुझे बड़ी शर्म आ रही थी पर विद्या ने जिद की, ”बहुत सुंदर लग रही हो इस में, लगता है तुम्हारे लिए ही बनी है।”

सचमुच मैं सुंदर लग रही थी लेकिन अपने खुले बदन को देख कर कैसा तो लग रहा था। इस दृश्य का आनन्द दूसरा पुरुष उठाएगा यह सोचकर झुरझुरी आ रही थी।

विद्या अपने लिए भद्र कपड़े चुनने लगी। मैंने उसे रोका- मुझे फँसा कर खुद बचना चाहती हो? मैंने उसके लिए टू पीस का एक रात्रि वस्त्र चुना। हॉल्टर (नाभि तक आने वाली) जैसी टॉप, नीचे घुटनों के ऊपर तक की पैंट। वह मुझसे अधिक खुली थी, पर अपनी झीनी नाइटी में उससे अधिक नंगी मैं ही महसूस कर रही थी। संजय का खयाल आया, विद्या का अर्धनग्न बदन देख कर उसे कैसा लगेगा! पर अपने पर गर्व भी हुआ क्योंकि मैं विद्या से निश्चित ही अधिक सुन्दर लग रही थी।

विनय और संजय पुराने दोस्तों की तरह साथ बैठे बात कर रहे थे। मुझे देख कर दोनों के चेहरे पर आनन्द-मिश्रित आश्चर्य उभरा लेकिन मैं असहज न हो जाऊँ यह सोच कर उन्होंने मेरी प्रशंसा करके मेरा उत्साह बढ़ाया। अपनी नंगी-सी अवस्था को लेकर मैं बहुत आत्म चैतन्य हो रही थी। इस स्थिीति में शिष्टाचार के शब्द भी मुझ पर कामुक असर कर रहे थे। ‘लवली’, ‘ब्यू‍टीफुल’ के बाद ‘वेरी सेक्सी’ सीधे भेदते हुए मुझ में घुस गए। फिर भी मैंने हिम्मत से उनकी तारीफ के लिए उन्हें ‘थैंक्यूं’ कहा।

विद्या ने कॉफी टेबल पर दो सुगंधित कैण्डल जला कर बल्ब बुझा दिए। कमरा एक धीमी मादक रोशनी से भर गया। विनय ने एक अंग्रेजी फिल्म लगा दी। मंद रोशनी में उसका संगीत खुशबू की तरह फैलने लगा।

मन में खीझ हुई, क्या हिन्दी में कुछ नहीं है! इस शाम के लिए भी क्या अंग्रेजी की ही जरूरत है? विद्या संजय के पास जा कर बैठ गई थी। कम रोशनी ने उन्हें और नजदीक होने की सुविधा दे दी थी। दोनों की आँखें टीवी के पर्दे पर लेकिन हाथ एक-दूसरे के हाथों में थे। संजय विद्या से सटा हुआ था।

‘करने दो जो कर रहे हैं …!’ मैंने उन दोनों की ओर से ध्यान हटा लिया। मैं धड़कते दिल से इंतजार कर रही थी अगले कदम का। विनय मेरे पास बैठे थे।

कोई हल्की यौनोत्तेजक फिल्म थी। एकदम से ब्लूे फिल्म नहीं जिसमें सीधा यांत्रिक संभोग चालू हो जाता है। नायक-नायिका के प्यार के दृश्य, समुद्र तट पर, पार्क में, कॉलेज हॉस्टल में, कमरे में…। किसी बात पर दोनों में झगड़ा हुआ और नायिका की तीखी चिल्लाहट का जवाब देने के क्रम में अचानक नायक का मूड बदला और उसने उसके चेहरे को दबोच कर उसे चूमना शुरू कर दिया।

विनय का बायाँ हाथ मेरी कमर के पीछे रेंग गया। मैं सिमटी, थोड़ा दूसरी तरफ झुक गई। ना नहीं जताना चाहती थी पर वैसा हो ही गया। उनका हाथ वैसे ही रहा। मैं भी वैसे ही दूसरी ओर झुकी रही। सोच रही थी सही किया या गलत।

नायक भावावेश में नायिका को चूम रहा था। नायिका ने पहले तो विरोध किया मगर धीरे-धीरे जवाब देने लगी। अब दोनों बदहवास से एक-दूसरे को चूम, सहला, भींच रहे थे। लड़की के धड़ से टॉप जा चुका था। उसके बदन से ब्रा झटके से हट कर हवा में उछली और लड़का उसके वक्षस्थल पर झुक गया। लड़की अपना पेड़ू उसके पेड़ू में रगड़ने लगी। पार्श्वे संगीत में उनकी सिसकारियाँ गूंजने लगीं।

कमरे का झुटपुटा अंधेरा …, सामने सोफे पर एक परायी औरत से सटे संजय …, एक यौनोत्तेजित पराए पुरुष के साथ स्वयं मै …! मैं अपने घुटने को खुजलाने के लिए नीचे झुकी और मेरा बांया उभार विनय के हाथ मे आ गया। मैंने महसूस किया कि वह हाथ पहले थोड़ा ढीला पड़ा और फिर कस गया…

उस आधे अँधेरे में मैं शर्म से लाल हो गई। शर्म से मेरी कान की लवें गरम होने लगी। पूरी रोशनी में उनसे बात करना और बात थी। अब मंद रोशनी में एक दम से… और उनका हाथ…! मैं स्क्रीन की ओर देख रही थी और वे मेरे चेहरे, मेरे कंधों को… मेरे कानों में सीटी-सी बजने लगी।

टीवी पर्दे पर लड़का-लड़की आलिंगन में बंध गए थे। दोनों का काम-विह्वल चुम्बन जारी था। लड़की के नीचे के वस्त्र उतर चुके थे और लड़का उसकी नंगी जाँघों को सहला रहा था।

इधर विनय मेरे वक्षस्थल को सहला रहे थे। मैं ‘क्या करूँ’ की जड़ता में थी। दिल धड़क रहा था। मैं इंतजार में थी… क्या यहीं पर…? उन दोनों के सामने…?

विनय के होंठ कुछ फुसफुसाते हुए मेरे कान के ऊपर मँडरा रहे थे। शर्म और उत्तेजना के कारण मैं कुछ सुन या समझ नहीं पा रही थी। बालों में उनकी गर्म साँस भर रही थी… अचानक विनय उठ खड़े हुए और उन्होंने मुझे अपने साथ आने का इशारा किया।

मैं ठिठकी। कमरे के एकांत में उनके साथ अकेले होने के ख्याल से डर लगा। मैंने सहारे के लिए पति की ओर देखा … वे दूसरी स्त्री में खोये हुए लगे। क्या करूँ? मेरे अंदर उत्पन्न हुई गरमाहट मुझे तटस्थता की स्थिति से आगे बढ़ने के लिए ठेल रही थी। विनय ने मेरा हाथ खींचा…

किनारे पर रहने की सुविधा खत्मे हो गई थी, अब धारा में उतरना ही था। फिल्म में नायक-नायिका की प्रणय-लीला आगे बढ़ रही थी … मैंने मन ही मन उन अभिनेताओं को विदा कहा। दिल कड़ा कर के उठ खड़ी हुई। संजय विद्या में मग्न थे। उन्हे पता भी नहीं चला होगा कि उनकी पत्नी वहाँ से जा चुकी है।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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Messages In This Thread
RE: पत्नी एक्सचेंज - by neerathemall - 05-08-2020, 02:40 PM
REमेरी सहेली - by neerathemall - 21-08-2020, 02:25 PM



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