05-08-2020, 02:40 PM
मैंने संजय की भी जिद करके फेशियल कराई। उनके असमय पकने लगे बालों में खुद हिना लगाई। मेरा पति किसी से कम नहीं दिखना चाहिए। संजय कुछ छरहरे हैं। उनकी पाँच फीट दस इंच की लम्बाई में छरहरापन ही निखरता है। मैं पाँच फीट चार इंच लम्बी, न ज्यादा मोटी, न पतली, बिल्कुूल सही जगहों पर सही अनुपात में भरी : 36-26-37, स्त्रीत्व् को बहुत मोहक अंदाज से उभारने वाली मांसलता के साथ सुंदर शरीर।
पर जैसे-जैसे समय नजदीक आता जा रहा था अब तक गौण रहा मेरे अंदर का वह भय सबसे प्रबल होता जा रहा था- वह आदमी मुझे बिना कपड़ों के, नंगी देखेगा, सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते थे, लेकिन साथ ही मैं उत्तेजित भी थी।
शनिवार की शाम… संजय बेहद उत्साहित थे, मैं भयभीत पर उत्तेजित भी! जब मैं बाथरूम से तौलिये में लिपटी निकली तभी से संजय मेरे इर्द गिर्द मंडरा रहे थे- ‘ओह क्या महक है। आज तुम्हारे बदन से कोई अलग ही खुशबू निकल रही है।’
मैंने कहीं बायलोजी की कक्षा में पढ़ा तो था कि कामोत्सुक स्त्री के शरीर से कोई विशेष उत्तेैजक गंध निकलती थी पर पता नहीं वह सच है या गलत।
क्या पहनूँ? इस बात पर सहमत थी कि मौके के लिए थोड़ा ‘सेक्सी’ ड्रेस पहनना उपयुक्त होगा। संजय ने अपने लिए मेरी पसंद की इनफार्मल टी शर्ट और जीन्स चुनी थी। अफसोस, लड़कों के पास कोई सेक्सीे ड्रेस नहीं होता! खैर, वे इसमें स्मार्ट दिखते हैं।
मेरे लिए पारदर्शी तो नहीं पर किंचित जालीदार ब्रा – पीच और सुनहले के बीच के रंग की। पीठ पर उसकी स्ट्रैप लगाते हुए सामने आइने में अपने तने स्तनों और जाली के बीच से आभास देती गोलाई को देखकर मैं पुन: सिहर गई। कैसे आ सकूंगी इस रूप में उसके सामने! बहुत सुंदर, बहुत उत्तेजक लग रही थी मैं। लेकिन ये उसके सामने कैसे लाऊँगी। फिर सोचा आज तो कुछ होना ही नहीं है! मन के भय, शर्म और रोमांच को दबाते हुए मैंने चौड़े और गहरे गले की स्लीवलेस ब्लाउज पहनी, कंधे पर बाहर की तरफ पतली पट्टियाँ – ब्लाेउज क्या थी, वह ब्रा का ही थोड़ा परिवर्द्धित रूप थी। उसमें स्तंनों की गहरी घाटी और कंधे के खुले हिस्सों का उत्तेजक सौंदर्य खुलकर प्रकट हो रहा था। उसका प्रभाव बढ़ाते हुए मैंने गले में मोतियों का हार पहना, कानों में उनसे मैच करते इयरिंग्स।
मुझे संजय पर गुस्सा भी आ रहा था कि यह सब किसी और के लिए कर रही हूँ। वे उत्साहित के होने के साथ कुछ डरे से भी लग रहे थे। फिर भी वे माहौल हल्का रखने की कोशिश में थे। मेरी ब्रा से मैचिंग जालीदार पैंटी उठा कर उन्होंने पूछा, “इसको पहनने की जरूरत है क्या?”
मैंने कहा, “तुम चाहो तो वापस आ कर उतार देना!”
पीच कलर का ही साया, और उसके ऊपर शिफ़ॉन की अर्द्धपारदर्शी साड़ी– जिसे मैंने नाभि से कुछ ज्यादा ही नीचे बांधी थी, कलाइयों में सुनहरी चूड़ियाँ, एड़ियों में पायल और थोड़ी हाई हील की डिजाइनदार सैंडल। मैं किसी ऋषि का तपभंग करने आई गरिमापूर्ण उत्ते़जक अप्सरा सी लग रही थी।
हम ड्राइव करके विनय और विद्या के घर पहुँच गए। घर सुंदर था, आसपास शांति थी। न्यू टाउन अभी नयी बन रही पॉश कॉलोनी थी। घनी आबादी से थोड़ा हट कर, खुला-खुला शांत इलाका। दोनों दरवाजे पर ही मिले। ‘हाइ’ के बाद दोनों मर्दों ने अपनी स्त्रियों का परिचय कराया और हमने बढ़ कर मुस्कुूराते हुए एक-दूसरे से हाथ मिलाए। मुझे याद है कैसे विद्या से हाथ मिलाते वक्त संजय के चहरे पर चौड़ी मुस्कान फैल गई थी। वे हमें अपने लिविंग रूम में ले गए। घर अंदर से सुरुचिपूर्ण तरीके से सज्जित था।
“कैसे हैं आप लोग! कोई दिक्कत तो नहीं हुई आने में”
कुछ हिचक के बाद बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। बातें घर के बारे में, काम के बारे में, ताजा समाचारों के बारे में… विनय ही बात करने में लीड ले रहे थे। बीच में कभी व्यक्तिरगत बातों की ओर उतर जाते। एक सावधान खेल, स्वाभाविकता का रूप लिए हुए…
“बहुत दिन से बात हो रही थी, आज हम लोग मिल ही लिए!”
“इसका श्रेय इनको अधिक जाता है।” संजय ने मेरी ओर इशारा किया।
“हमें खुशी है ये आईं!” मैं बात को अपने पर केन्द्रित होते शर्माने लगी। विनय ने ठहाका लगाया, “आप आए बहार आई!”
विद्या जूस, नाश्ता वगैरा ला रही थी। मैंने उसे टोका, ”तकल्लुफ मत कीजिए !”
बातें स्वाुभाविक और अनौपचारिक हो रही थीं। विनय की बातों में आकर्षक आत्मयविश्वास था। बल्कि पुरुष होने के गर्व की हल्की सी छाया, जो शिष्टााचार के पर्दे में छुपी बुरी नहीं लग रही थी। वह मेरी स्त्री की अनिश्चित मनःस्थिति को थोड़ा इत्मिनान दे रही थी। उसके साथ अकेले होना पड़ा तो मैं अपने को उस पर छोड़ सकूँगी।
विनय ने हमें अपना घर दिखाया। उसने इसे खुद ही डिजाइन किया था। घुमाते हुए वह मेरे साथ हो गया था। विद्या संजय के साथ थी। मैं देख रही थी वह भी मेरी तरह शरमा-घबरा रही है! इस बात से मुझे राहत मिली।
बेडरूम की सजावट में सुरुचिपूर्ण सुंदरता के साथ उत्तेजकता का मिश्रण था। दीवारों पर कुछ अर्द्धनग्न स्त्रियों के कलात्मंक पेंटिंग। बड़ा सा पलंग। विनय ने मेरा ध्यान पलंग के सामने की दीवार में लगे एक बड़े आइने की ओर खींचा, ”यहाँ पर एक यही चीज सिर्फ मेरी च्वाेइस है। विद्या तो अभी भी ऐतराज करती है।”
“धत्त…” कहती हुई विद्या लजाई।
“और यह नहीं?” विद्या ने लकड़ी के एक कैबिनेट की ओर इशारा किया।
“इसमें क्या है?” मैं उत्सुक हो उठी।
“सीक्रेट चीज! वैसे आपके काम की भी हो सकती है, अगर…”
मैंने दिखाने की जिद की।
“देखेंगी तो लेना पड़ेगा, सोच लीजिए।”
मैं समझ गई, “रहने दीजिए !” हमने उन्हें बता दिया था कि हम ड्रिंक नहीं करते।
पर जैसे-जैसे समय नजदीक आता जा रहा था अब तक गौण रहा मेरे अंदर का वह भय सबसे प्रबल होता जा रहा था- वह आदमी मुझे बिना कपड़ों के, नंगी देखेगा, सोच कर ही रोंगटे खड़े हो जाते थे, लेकिन साथ ही मैं उत्तेजित भी थी।
शनिवार की शाम… संजय बेहद उत्साहित थे, मैं भयभीत पर उत्तेजित भी! जब मैं बाथरूम से तौलिये में लिपटी निकली तभी से संजय मेरे इर्द गिर्द मंडरा रहे थे- ‘ओह क्या महक है। आज तुम्हारे बदन से कोई अलग ही खुशबू निकल रही है।’
मैंने कहीं बायलोजी की कक्षा में पढ़ा तो था कि कामोत्सुक स्त्री के शरीर से कोई विशेष उत्तेैजक गंध निकलती थी पर पता नहीं वह सच है या गलत।
क्या पहनूँ? इस बात पर सहमत थी कि मौके के लिए थोड़ा ‘सेक्सी’ ड्रेस पहनना उपयुक्त होगा। संजय ने अपने लिए मेरी पसंद की इनफार्मल टी शर्ट और जीन्स चुनी थी। अफसोस, लड़कों के पास कोई सेक्सीे ड्रेस नहीं होता! खैर, वे इसमें स्मार्ट दिखते हैं।
मेरे लिए पारदर्शी तो नहीं पर किंचित जालीदार ब्रा – पीच और सुनहले के बीच के रंग की। पीठ पर उसकी स्ट्रैप लगाते हुए सामने आइने में अपने तने स्तनों और जाली के बीच से आभास देती गोलाई को देखकर मैं पुन: सिहर गई। कैसे आ सकूंगी इस रूप में उसके सामने! बहुत सुंदर, बहुत उत्तेजक लग रही थी मैं। लेकिन ये उसके सामने कैसे लाऊँगी। फिर सोचा आज तो कुछ होना ही नहीं है! मन के भय, शर्म और रोमांच को दबाते हुए मैंने चौड़े और गहरे गले की स्लीवलेस ब्लाउज पहनी, कंधे पर बाहर की तरफ पतली पट्टियाँ – ब्लाेउज क्या थी, वह ब्रा का ही थोड़ा परिवर्द्धित रूप थी। उसमें स्तंनों की गहरी घाटी और कंधे के खुले हिस्सों का उत्तेजक सौंदर्य खुलकर प्रकट हो रहा था। उसका प्रभाव बढ़ाते हुए मैंने गले में मोतियों का हार पहना, कानों में उनसे मैच करते इयरिंग्स।
मुझे संजय पर गुस्सा भी आ रहा था कि यह सब किसी और के लिए कर रही हूँ। वे उत्साहित के होने के साथ कुछ डरे से भी लग रहे थे। फिर भी वे माहौल हल्का रखने की कोशिश में थे। मेरी ब्रा से मैचिंग जालीदार पैंटी उठा कर उन्होंने पूछा, “इसको पहनने की जरूरत है क्या?”
मैंने कहा, “तुम चाहो तो वापस आ कर उतार देना!”
पीच कलर का ही साया, और उसके ऊपर शिफ़ॉन की अर्द्धपारदर्शी साड़ी– जिसे मैंने नाभि से कुछ ज्यादा ही नीचे बांधी थी, कलाइयों में सुनहरी चूड़ियाँ, एड़ियों में पायल और थोड़ी हाई हील की डिजाइनदार सैंडल। मैं किसी ऋषि का तपभंग करने आई गरिमापूर्ण उत्ते़जक अप्सरा सी लग रही थी।
हम ड्राइव करके विनय और विद्या के घर पहुँच गए। घर सुंदर था, आसपास शांति थी। न्यू टाउन अभी नयी बन रही पॉश कॉलोनी थी। घनी आबादी से थोड़ा हट कर, खुला-खुला शांत इलाका। दोनों दरवाजे पर ही मिले। ‘हाइ’ के बाद दोनों मर्दों ने अपनी स्त्रियों का परिचय कराया और हमने बढ़ कर मुस्कुूराते हुए एक-दूसरे से हाथ मिलाए। मुझे याद है कैसे विद्या से हाथ मिलाते वक्त संजय के चहरे पर चौड़ी मुस्कान फैल गई थी। वे हमें अपने लिविंग रूम में ले गए। घर अंदर से सुरुचिपूर्ण तरीके से सज्जित था।
“कैसे हैं आप लोग! कोई दिक्कत तो नहीं हुई आने में”
कुछ हिचक के बाद बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। बातें घर के बारे में, काम के बारे में, ताजा समाचारों के बारे में… विनय ही बात करने में लीड ले रहे थे। बीच में कभी व्यक्तिरगत बातों की ओर उतर जाते। एक सावधान खेल, स्वाभाविकता का रूप लिए हुए…
“बहुत दिन से बात हो रही थी, आज हम लोग मिल ही लिए!”
“इसका श्रेय इनको अधिक जाता है।” संजय ने मेरी ओर इशारा किया।
“हमें खुशी है ये आईं!” मैं बात को अपने पर केन्द्रित होते शर्माने लगी। विनय ने ठहाका लगाया, “आप आए बहार आई!”
विद्या जूस, नाश्ता वगैरा ला रही थी। मैंने उसे टोका, ”तकल्लुफ मत कीजिए !”
बातें स्वाुभाविक और अनौपचारिक हो रही थीं। विनय की बातों में आकर्षक आत्मयविश्वास था। बल्कि पुरुष होने के गर्व की हल्की सी छाया, जो शिष्टााचार के पर्दे में छुपी बुरी नहीं लग रही थी। वह मेरी स्त्री की अनिश्चित मनःस्थिति को थोड़ा इत्मिनान दे रही थी। उसके साथ अकेले होना पड़ा तो मैं अपने को उस पर छोड़ सकूँगी।
विनय ने हमें अपना घर दिखाया। उसने इसे खुद ही डिजाइन किया था। घुमाते हुए वह मेरे साथ हो गया था। विद्या संजय के साथ थी। मैं देख रही थी वह भी मेरी तरह शरमा-घबरा रही है! इस बात से मुझे राहत मिली।
बेडरूम की सजावट में सुरुचिपूर्ण सुंदरता के साथ उत्तेजकता का मिश्रण था। दीवारों पर कुछ अर्द्धनग्न स्त्रियों के कलात्मंक पेंटिंग। बड़ा सा पलंग। विनय ने मेरा ध्यान पलंग के सामने की दीवार में लगे एक बड़े आइने की ओर खींचा, ”यहाँ पर एक यही चीज सिर्फ मेरी च्वाेइस है। विद्या तो अभी भी ऐतराज करती है।”
“धत्त…” कहती हुई विद्या लजाई।
“और यह नहीं?” विद्या ने लकड़ी के एक कैबिनेट की ओर इशारा किया।
“इसमें क्या है?” मैं उत्सुक हो उठी।
“सीक्रेट चीज! वैसे आपके काम की भी हो सकती है, अगर…”
मैंने दिखाने की जिद की।
“देखेंगी तो लेना पड़ेगा, सोच लीजिए।”
मैं समझ गई, “रहने दीजिए !” हमने उन्हें बता दिया था कि हम ड्रिंक नहीं करते।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
![thanks thanks](https://xossipy.com/images/smilies/thanks.gif)