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Adultery पत्नी एक्सचेंज
#7
‘ओह…’ से तुरंत ‘आ..ऽ..ऽ..ऽ..ऽ..ह’ का सफर! मेरे अंदर भरते इनके गर्म लावे के साथ ही मैं भी किसी मशीनगन की तरह छूट पड़ी। मैंने जाना कि शरीर की अपनी मांग होती है, वह किसी नैतिकता, संस्कार, तर्क कुतर्क की नहीं सुनता। उत्तेजना के तप्त क्षणों में उसका एक ही लक्ष्य होता है– चरम सुख।

धीरे धीरे यह बात टालने की सीमा से आगे बढ़ती गई। लगने लगा कि यह चीज कभी किसी न किसी रूप में आना ही चाहती है। बस मैं बच रही हूँ। लेकिन पता नहीं कब तक। इनकी बातों में इसरार बढ़ रहा था। बिस्तर पर हमारी प्रणयक्रीड़ा में मुझे चूमते, मेरे बालों को सहलाते, मेरे स्तनों से खेलते हुए, पेट पर चूमते हुए, बाँहों, कमर से बढ़ते अंतत: योनि की विभाजक रेखा को जीभ से टटोलते, चूमते हुए बार बार ‘कोई और कर रहा है!’ की याद दिलाते। खास कर योनि और जीभ का संगम, जो मुझे बहुत ही प्रिय है, उस वक्त तो उनकी किसी बात का विरोध मैं कर ही नहीं पाती। बस उनके जीभ पर सवार वो जिधर ले जाते जाते मैं चलती चली जाती। उस संधि रेखा पर एक चुम्बन और ‘कितना स्वादिष्ट ’ के साथ ‘वो तो इसकी गंध से ही मदहोश हो जाएगा !’ की प्रशंसा, या फिर जीभ से अंदर की एक गहरी चाट लेकर ‘कितना भाग्यशाली होगा वो!’

मैं सचमुच उस वक्त किसी बिना चेहरे वाले ‘उस’ की कल्पना कर उत्तेजित हो जाती। वो मेरे नितम्बों की थरथराहटों, भगनासा के बिन्दु के तनाव से भाँप जाते। अंकुर को जीभ की नोक से चोट देकर कहते, ‘तुम्हें इस वक्तर दो और चाहिए जो (चूचुकों को पकड़ कर) इनका ध्यान रख सके। मैं उन दोनों को यहाँ पर लगा दूँगा।’

बाप रे… तीनों जगहों पर एक साथ! मैं तो मर ही जाऊँगी! मैं स्वयं के बारे में सोचती थी – कैसे शुरू में सोच में भी भयावह लगने वाली बात धीरे धीरे सहने योग्य हो गई थी। अब तो उसके जिक्र से मेरी उत्तेोजना में संकोच भी घट गया था। इसकी चर्चा जैसे जैसे बढ़ती जा रही थी मुझे दूसरी चिंता सताने लगी थी। क्या होगा अगर इन्होंने एक बार यह सुख ले लिया। क्या हमारे स्वयं के बीच दरार नहीं पड़ जाएगी? बार-बार करने की इच्छा नहीं होगी? लत नहीं लग जाएगी? अपने पर भी कभी संदेह होता कि कहीं मैं ही इसे न चाहने लगूँ। मैंने एक दिन इनसे झगड़े में कह भी दिया, “देख लेना, एक बार हिचक टूट गई तो कहीं मैं तुम से आगे ना बढ़ जाऊँ!”

उन्होंने डरने के बजाए उस बात को तुरन्त लपक लिया, “वो मेरे लिए बेहद खुशी का दिन होगा। तुम खुद चाहो, यह तो मैं कब से चाहता हूँ!”

अब मैं विरोध कम ही कर रही थी। बीच-बीच में कुछ इस तरह की बात हो जाती मानों हम यह करने वाले हों और आगे उसमें क्या क्या कैसे कैसे करेंगे इस पर विचार कर रहे हों। पर मैं अभी भी संदेह और अनिश्चय में थी। गृहस्थी दाम्पत्य -स्नेह पर टिकी रहती है, कहीं उसमें दरार न पड़ जाए। पति-पत्नी अगर शरीर से ही वफादार न रहे तो फिर कौन सी चीज उन्हें अलग होने से रोक सकती है?

एक दिन हमने एक ब्लू फिल्म देखी जिसमें पत्नियों प्रेमिकाओं की धड़ल्ले से अदला-बदली दिखाई जा रही थी। सारी क्रिया के दौरान और उसके बाद जोड़े बेहद खुश दिख रहे थे। उसमें सेक्स कर रहे मर्दों के बड़े बड़े लिंग देख कर इनके कथन ‘उसका तो सात इंच का है’ की याद आ रही थी। संजय के औसत साइज के पांच इंच की अपेक्षा उस सात इंच के लिंग की कल्पना को दृश्य रूप में घमासान करते देखकर मैं बेहद गर्म हो गई थी। मैंने जीवन में पति के सिवा किसी और का नहीं देखा था। यह वर्जित दृश्य मुझे हिला गया था। उस रात हमारे बीच बेहद गर्म क्रीड़ा चली। फिल्म के खत्म होने से पहले ही मैं आतुर हो गई थी। मेरी साँसें गर्म और तेज हो गई थीं जबकि संजय खोए से उस दृश्य को देख रहे थे, संभवत: कल्पना में उन औरतों की जगह पर मुझे रखते हुए।

मैंने उन्हें खींच कर अपने से लगा लिया था। संभोग क्रिया के शुरू होते न होते मैं उनके चुम्बनों से ही मंद-मंद स्खलित होना शुरू हो गई थी। लिंग-प्रवेश के कुछ क्षणों के बाद तो मेरे सीत्कारों और कराहटों से कमरा गूंज रहा था और मैं खुद को रोकने की कोशिश कर रही थी कि आवाज बाहर न चली जाए। सुन कर उनका उत्साह दुगुना हो गया था। उस रात हम तीन बार संभोगरत हुए। संजय ने कटाक्ष भी किया कि, “कहती तो हो कि तुम यह नहीं चाहती हो और फिल्म देख कर ही इतनी उत्तेजित हो गई हो!”

उस रात के बाद मैंने प्रकट में आने का फैसला कर लिया। संजय को कह दिया, ‘सिर्फ एक बार! वह भी सिर्फ तुम्हारी खातिर, केवल आजमाने के लिए। मैं इन चीजों में नहीं पड़ना चाहती।’

मेरे स्वर में स्वीकृति की अपेक्षा चेतावनी थी। उस दिन के बाद से वे जोर-शोर से विनय-विद्या के साथ-साथ किसी और उपयुक्त दम्प्तति के तलाश में जुट गए। फेसबुक, एडल्ट फ्रेंडफाइ… न जाने कौन कौन सी साइटें। उन दंपतियों से होने वाली बातों की चर्चा सुनकर मेरा चेहरा तन जाता। वे मेरा डर और चिंता दूर करने की कोशिश करते, “मेरी कई दंपतियों से बात होती है। वे कहते हैं वे इस तजुर्बे के बाद बेहद खुश हैं। उनके सेक्स जीवन में नया उत्साह आ गया है। जिनका तजुर्बा अच्छां नहीं रहा उनमें ज्याददातर अच्छाक युगल नहीं मिलने के कारण असंतुष्ट हैं!”

मेरे एक बड़े डर कि ‘उनको दूसरी औरत के साथ देख कर मुझे ईर्ष्या नहीं होगी?’ के उत्तर में वे कहते ‘जिनमें आपस में ईर्ष्या होती है वे इस जीवन शैली में ज्यादा देर नहीं ठहरते। इसको एक समस्या बनने देने से पहले ही बाहर निकल जाते हैं। ऐसा हम भी कर सकते हैं।’

मैं चेताती, ‘समस्या बने न बने, सिर्फ एक बार… बस।’

उसी दंपति विनय-विद्या से सबसे ज्यादा बातें चैटिंग वगैरह हो रही थी। सब कुछ से तसल्ली होने के बाद उन्होंने उनसे मेरी बात कराई। औरत कुछ संकोची सी लगी पर पुरुष परिपक्व तरीके से संकोचहीन।

मैं कम ही बोली, उसी ने ज्यादा बात की, थोड़े बड़प्पन के भाव के साथ। मुझे वह ‘तुम’ कह कर बुला रहा था। मुझे यह अच्छा लगा। मैं चाहती थी कि वही पहल करने वाला आदमी हो। मैं तो संकोच में रहूँगी। उसकी पत्नी से बात करते समय संजय अपेक्षाकृत संयमित थे। शायद मेरी मौजूदगी के कारण। मैंने सोचा अगली बार से उनकी बातचीत के दौरान मैं वहाँ से हट जाऊँगी।

उनकी तस्वीरें अच्छी थीं। विनय अपनी पत्नी की अपेक्षा देखने में चुस्ती और स्मार्ट था और उससे काफी लम्बा भी। मैं अपनी लंबाई और बेहतर रंग-रूप के कारण उसके लिए विद्या से कहीं बेहतर जोड़ीदार दिख रही थी। संजय ने इस बात को लेकर मुझे छेड़ा भी, ‘क्या बात है भई, तुम्हारा लक तो मेरे से बढ़िया है!’

मिलने के प्रश्न पर मैं चाहती थी पहले दोनों दंपति किसी सार्वजनिक जगह में मिलकर फ्री हो लें। विनय को कोई एतराज नहीं था पर उन्होंने जोड़ा, “पब्लिक प्लेस में क्यों ? हमारे घर ही आ जाइये। हम यहीं पर ‘सिर्फ दोस्त के रूप में’ मिल लेंगे!”

‘सिर्फ दोस्त के रूप में’ को वह थोड़ा अलग से हँस कर बोला। मुझे स्वयं अपना विश्वास डोलता हुआ लगा– क्या‍ वास्तव में मिलना केवल फ्रेंडली रहेगा? उससे आगे की संभावनाएँ डराने लगीं… उसके ढूंढते होंठ… मेरे शरीर को घेरती उसकी बाँहें… स्त्नों पर से ब्रा को खींचतीं परायी उंगलियां… उसके हाथों नंगी होती हुई मैं… उसकी नजरों से बचने के लिए उसके ही बदन में छिपती मैं… मेरे पर छाता हुआ वो… बेबसी से खुलती मेरी टाँगे… उसका मुझ में प्रवेश… आश्चर्य हुआ, क्या सचमुच ऐसा हो सकता है? संभावना से ही मेरे रोएँ खड़े हो गए।

तय हुआ आगामी शनिवार की शाम उनके घर पर। हमने कह दिया कि हम सिर्फ मिलने आ रहे हैं, इस से आगे का कोई वादा नहीं है। सिर्फ दोस्ताना मुलाकात!

ऊपर से संयत, अंदर से शंकित, उत्तेजित, मैं उस दिन के लिए तैयार होने लगी। संजय आफिस चले जाते तो मैं ब्यूटी पार्लर जाती – भौहों की थ्रेडिंग, चेहरे का फेशियल, हाथों-पांवों का मैनीक्योर, पैडीक्योर, हाथ-पांवों के रोओं की वैक्सिंग, बालों की पर्मिंग…। गृहिणी होने के बावजूद मैं किसी वर्किंग लेडी से कम आधुनिक या स्मांर्ट नहीं दिखना चाहती थी। मैं संजय से कुछ छिपाती नहीं थी पर उनके सामने यह कराने में शर्म महसूस होती। बगलों के बाल पूरी तरह साफ करा लेने के बाद योनिप्रदेश के उभार पर बाल रखूँ या नहीं इस पर कुछ दुविधा में रही। संजय पूरी तरह रोमरहित साफ सुथरा योनिप्रदेश चाहते थे जबकि मेरी पसंद हल्की-सी फुलझड़ी शैली की थी जो होंठों के चीरे के ठीक ऊपर से निकलती हो। मैंने अपनी सुनी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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Messages In This Thread
RE: पत्नी एक्सचेंज - by neerathemall - 05-08-2020, 02:39 PM
REमेरी सहेली - by neerathemall - 21-08-2020, 02:25 PM



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